वर्णिक छंद के प्रकार उदाहरण सहित - varnik chhand ke prakaar udaaharan sahit

मात्रिक और वर्णिक छन्द के भेद को उदाहरण सहित समझाइये। छंद के प्रकार और उदाहरण pdf. छन्द कितने प्रकार के होते हैं. मात्रिक छन्द की परिभाषा, छन्द याद करने की ट्रिक pdf. वर्णिक छन्द की परिभाषा. मुक्त छन्द की परिभाषा छन्द के बारे में पूरी जानकारी इस आर्टिकल में दी गई है.

छन्द के भेद

वाक्य रचना में जब वर्णों अथवा मात्राओं की संख्या, चरण, क्रम, गति, यति, विराम और तुक आदि का नियम माना जाता है, तो वह रचना छन्द कहलाती है। वर्ण तथा मात्रा के विचार से छन्द के 4 भेद हैं – अर्थात छन्द चार प्रकार के होते हैं.

  1. वार्णिक छन्द
  2. वार्णिक वृत्त
  3. मात्रिक छन्द
  4. मुक्त छन्द

वार्णिक छन्द की परिभाषा

जिस छन्द में वर्णों की संख्या को आधार बनाकर उसकी रचना की जाती है, उसे वार्णिक छन्द कहते हैं। वृत्तों की तरह इसमें वर्णों का क्रम निश्चित नहीं होता, केवल संख्या ही निश्चित होती है, इसमें चार चरणों का होना भी अनिवार्य नहीं ।

वार्णिक छन्द के भेद

वार्णिक छन्द के दो भेद होते हैं-(i) साधारण तथा (i) दण्डक।

साधारण वार्णिक छन्द – 1 से 16 वर्ण तक के चरण (पाद) रखने वाले वार्णिक छन्द साधारण होते हैं। इससे अधिक वाले दण्डक। हिन्दी का सुप्रसिद्ध घनाक्षरी (कवित्त) तथा उसकी ‘रूप’ तथा देव आदि जातियाँ दण्डक में आती हैं। इसका कारण है कि घनाक्षरी में 31 वर्ण (16वें तथा 15 वर्ण पर यति) तथा अंत में लघु गुरु होते हैं। छन्द के भेद.

रूपघनाक्षरी (32 वर्ण-16-16 वर्ण या प्रत्येक 8वें वर्ण के बाद यति)। कवि देव द्वारा प्रयुक्त देवघनाक्षरी (33 वर्ण-8, 8, 8 तथा 9वें वर्ण पर यति तथा अंतिम दोनों वर्ण लघु)। दण्डक वार्णिक छन्द (घनाक्षरी का उदाहरण) –

“किसको पुकारे यहाँ रोकर जंगल बीच
चाहे जो करो श्याम शरण तुम्हारे हैं।”
देव घनाक्षरी -“लखि घनश्याम तन, मोर है मगन मन,
सुमन सकल अलि, गावहि गुनन-गुनन
जीवन को जीवन प्रदायक सबहि विधि,
नाचै वन सीकर सुधारन छनन छनन।”

रूप घनाक्षरी का उदाहरण – प्रत्येक चरण में 32 वर्ण तथा अंत में लघु गुरु होते हैं। 16-17वें वर्ण पर विराम होता है।

हरी-हरी घास आस-पास फूली सरसों है
पीली-पीली बिन्दियों का चारों ओर है प्रसार।
कुछ दूर विरल, सघन फिर और आगे
एक रंग मिला चला गया पीत पारावार
गाढ़ी हरी श्यामता की तुंग सारी रेखा बनी
बाँधती है दक्षिण की ओर उसे छेर-घार।।”

साधारण वार्णिक छन्द – (26 वर्ण तक) में अमिताक्षर (छन्द को उदाहरण के रूप में ले सकते हैं। यह वास्तव में घनाक्षरी एक चरण के उत्तरांश से निर्मित है। इसमें 15 वर्ण होते हैं। 8 तथा 7 के बाद यति होती है।

“चाहे जो करो श्याम (8 वर्ण)।
शरण तिहारे हैं (7 वर्ण)।

वार्णिक वृत्त की परिभाषा

वह सम छन्द जिसमें 4 समान चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में आने वाले वर्गों का लघु-गुरु क्रम सुनिश्चित रहता है। उसे वार्णिक वृत्त छन्द कहते हैं।” गणों में वर्णों का बँधा होना प्रमुख लक्षण होने के कारण इसे वार्णिक वृत्त गणबद्ध (गणात्मक) छन्द कहते हैं।” 7 भगण तथा 2 गुरु का मत्त गयंद सवैया इसके उदाहरण हैं।

ऽ।।    ऽ।।    ऽ।।    ऽ।।
भगण भगण भगण भगण
या लकुटी अरु कामरिया पर
भगण भगण भगण गग
राज तिहूँ पुर को तजि डारौ।।

कुल 7 भगण + 2 गुरु = 23 वर्ण।

द्रुत विलम्बित‘ और ‘मालिनी‘ आदि इसके गणबद्ध वार्णिक वृत्त हैं।

मात्रिक छन्द की परिभाषा

Matrik chhand kise kahate hain – जिन छन्दों में मात्रा की गणना का आधार लिया जाता है, मात्रिक कहलाता है। वार्णिक छन्द के विपरीत इन छन्दों में वर्गों की संख्या भिन्न होते हैं तथा ये गणबद्ध भी नहीं होते। ये गण-पद्धति या वर्ण संख्या को छोड़कर केवल चरण की कुल मात्रा पर ही आधारित हैं। दोहा और चौपाई आदि मात्रिक छन्द हैं। जैसे-दोहे (एक तथा तीन में 13 मात्रा और 2 तथा 4 में 11 मात्रा होती हैं.

मुक्त छन्द की परिभाषा

चरणों की अनियमित, असमान, स्वच्छंद गति और भावानुकूल यति विधान ही मुक्त छन्द की विशेषता है। इसका कोई नियम नहीं। यह लयात्मक काव्य है जिसमें पद्य का प्रवाह अपेक्षित है। निराला से नयी कविता तक हिन्दी कविता में इसका पर्याप्त प्रयोग हुआ है।

ध्यान दें☞ यह लेख ध्यानपूर्वक पढ़ने पर आप गण पहचानना तो सीख ही जायेंगे, साथ ही छन्द और वर्ण की गणना करना भी सीख जायेंगे।

वर्णिक छन्द में गण और मात्राओं की संख्या निश्चित होती है। मात्राओं को लघु गुरु चिह्नों की सहायता से समझा जाता है। लघु का चिह्न खड़ी पाई । गुरु या दीर्घ का चिह्न अँग्रेज़ी अक्षर ऽ की तरह होता है। लघु में १ मात्रा मानी जाती है। गुरु में २ मात्रा मानी जाती है।

उदाहरण तौर पर मात्रिक छन्द पर आधारित हनुमान चालीसा की प्रथम चौपाई को ले लेते हैं। दो सोलह-सोलह मात्राओं की पंक्तियाँ मिलकर ३२ मात्राओं की एक चौपाई बनती है। चौपाई की मात्राएँ इस प्रकार होती हैं☟

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
(।।) (।।ऽ।) (ऽ।) (।।) (ऽ।।)=१६
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।
(।।) (।ऽ।) (।।) (ऽ।) (।ऽ।।)=१६

जयहनुमानज्ञानगुनसागरवर्ण (१३)।।।।ऽ।ऽ।।।ऽ।।मात्रा (१६)जयकपीसतिहुँलोकउजागरवर्ण (१३)।।।ऽ।।।ऽ।।ऽ।।मात्रा (१६)

इस प्रकार मात्रिक छन्द पर आधारित छन्द-मात्रा की गिनती तो हो जाती है; क्योंकि इसमें गण नहीं होते, गण नहीं होने के कारण वर्ण की संख्या भी निश्चित नहीं होती। यद्यपि उपरोक्त चौपाई में वर्ण की संख्या भी समान है, परन्तु यह पंक्ति-रचना पर आधारित है, नियम नहीं है।

ख़ैर, जब कभी हम वर्णिक छन्द के बारे में पढ़ते हैं कि अमुक-अमुक गण को मिलाकर इस छन्द की रचना हुई है तो हम गण को पहचान नहीं पाते कि कौन-कौन-से गण हैं?

तो आइये,
www.sugamgyaansangam.com
सुगम ज्ञान संगम के हिन्दी साहित्य + छन्द ज्ञान स्तम्भ (Category) में जानते हैं कि वर्णिक छन्द के गण कैसे पहचानें।

शिखरिणी छन्द को समझने का प्रयास करते हैं; क्योंकि इस छन्द में अनेक गणों का समावेश है। इस प्रकार आप इस छन्द से परिचित भी हो जायेंगे और गण को कैसे पहचाना जाये, यह भी समझ जायेंगे।

शिखरिणी छन्द [एक यगण] [एक मगण] [एक नगण] [एक सगण] [एक भगण] और अन्त में [लघु-गुरु] के संयोग से बनता है।

निम्नलिखित स्तम्भ देखें:-

यगणमगणनगणसगणभगणल-गुमात्रा।ऽऽऽऽऽ।।।।।ऽऽ।।।ऽ२५वर्ण३३३३३२१७

इस प्रकार इसमें कुल २५ मात्राएँ और १७ वर्ण हैं। ऐसी चार पंक्तियों को मिलाकर यह छन्द पूर्ण होता है। जिसमें १०० मात्राएँ और ६८ वर्ण होते हैं। अब आइये, यगण मगण नगण आदि को कैसे पहचाने, इस पर ग़ौर करते हैं।

निम्नलिखित स्तम्भ देखें─

यमाताराजभानसलगा।ऽ।ऽऽऽ।।।ऽ

य मा ता रा ज भा न स ल गा

बस, यही गणों को पहचानने का सूत्र है। इसे कण्ठस्थ कर लेें। उपरोक्त तीन-तीन वर्णों को पकड़कर एक गण बनता है, उसके अनुसार उसकी मात्राएँ निश्चित होती है, अर्थात्

१) यगण (यमाता-।ऽऽ)
२) मगण (मातारा-ऽऽऽ)
३) तगण (ताराज-ऽऽ।)
४) रगण (राजभा-ऽ।ऽ)
५) जगण (जभान-।ऽ।)
६) भगण (भानस-ऽ।।)
७) नगण (नसल-।।।)
८) सगण (सलगा-।।ऽ)
९) ल अर्थात् लघु (।)
१०) गा अर्थात् गुरु (ऽ)

इस प्रकार कुल आठ गण हैं, जिनके आधार पर वर्णिक छन्दों की रचना होती है।

अब जान लेते हैं कि लघु-गुरु (दीर्घ) मात्रा को कैसे पहचानें?

जिस अक्षर पर छोटे स्वर की मात्रा होती है, उसकी मात्रा लघु होती है; जिस पर बड़े स्वर की मात्रा होती है, उसकी मात्रा गुरु या दीर्घ होती है; जैसे ─

ककाकिकीकुकूकेकैकोकौकंकः।ऽ।ऽ।ऽऽऽऽऽऽऽ

ध्यान दें─ के (ए) को (ओ) की मात्रा को बलाघात के अनुसार लघु मात्रा में भी गिना जाता है।

संयुक्त वर्ण में जिस वर्ण पर बलाघात (ज़ोर) पढ़ता है, वह गुरु या दीर्घ माना जाता है, जैसे─
दिव्य (ऽ।) दिव्या (ऽऽ)
कुम्भ (ऽ।) कुम्भार (ऽऽ।)
दण्ड (ऽ।) दण्डाधीश (ऽऽऽ।)
परन्तु…
म जब ह से जुड़ता है तो उसका बलाघात ह पर पड़ता है, इसलिये ‘तुम्ह’ शब्द में दो लघु अर्थात् दो ही मात्रा होगी।
जैसे─
तुम्ह (।।)
तुम्हारी (।ऽऽ)

शिखरिणी छन्द पर आधारित निम्नलिखित पंक्तियाँ पढ़ें, जिनमें मात्राओं की संख्या २५×४=१०० और वर्णों की संख्या १७×४=६८ है।

वर्णिक छंद का उदाहरण क्या है?

वर्णिक छंद की रचना में उस के वर्णों के क्रम का सम्यक ज्ञान और पद के मध्य की यति या यतियों का ज्ञान होना ही पर्याप्त है। वर्णिक छंदो में रचना करने के लिए ह्रस्व या दीर्घ मात्रा के अनुसार केवल शब्द चयन आवश्यक है। जैसे – मेरी “सुमति छंद” की रचना का एक उदाहरण देखें जिसका वर्ण विन्यास- 111 212 111 122 है।

वर्णिक छंद कितने प्रकार के होते हैं?

वर्णिक छंद.
1 . मन्दाक्रान्ता - इस वार्णिक समवृत्त छंद में प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते है। ... .
2 .शिखरिणी - यह सम-वार्णिक छन्द है। ... .
द्रुत बिलम्बित - यह वार्णिक समवृत्त छंद है। ... .
शार्दूलविक्रीडित - शार्दूलविक्रीडित छन्द के प्रत्येक चरण में 19 वर्ण होते हैं। ... .
सवैया - वार्णिक समवृत्त छंद है। ... .
कवित्त - यह वार्णिक समवृत्त छंद है।.

वर्णिक छंद में कितने वर्ण होते हैं?

जिस छंद रचना में प्रत्येक चरण में २६ से अधिक वर्ण होते हैं , उसे दण्डक वर्णिक छंद कहा जाता है । जैसे- घनाक्षरी छंद

वर्णिक छंद कौन से हैं?

वर्णिक छन्द किसे कहते हैं जिन छंदों में वर्णों की संख्या, गणविधान, क्रम, तथा लघु-गुरु स्वर के आधार पर पद रचना होती है, उसे 'वर्णिक छंद' कहते हैं। दूसरे शब्दों में केवल वर्णों के गणना के आधार पर रचा गया छन्द 'वार्णिक छन्द' कहलाता है। या जिस छंद के सभी चरणों में वर्णो की संख्या समान होती हैं उन्हें 'वर्णिक छंद' कहते हैं

Toplist

नवीनतम लेख

टैग