अंग्रेजों ने भारत में शिक्षा के लिए क्या किया? - angrejon ne bhaarat mein shiksha ke lie kya kiya?

इसे सुनेंरोकेंइस प्रक्रिया में अंग्रेज़ भारतीय संस्कृति के अभिभावक और मालिक, दोनों की भूमिकाएं निभा रहे थे। वे चाहते थे कि प्राचीन भारतीय ग्रंथों के अध्ययन को प्रोत्साहित करने और संस्कृत व फ़ारसी साहित्य व काव्य पढ़ाने के लिए संस्थानों की स्थापना की जाए।

अंग्रेजों का भारतीयों को शिक्षित करने का क्या उद्देश्य था?

इसे सुनेंरोकेंExplanation: अंग्रेजों ने अपने हित साधने के लिए भारत में आधुनिक शिक्षा की शुरुआत की। स्पष्टीकरण: वे एक नई शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे ताकि वे ब्रिटिशों को अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में मदद कर सकें। अंग्रेज चाहते थे कि वे आधिकारिक भाषा अंग्रेजी सीखें ताकि उनके लिए चीजें आसान हो सकें।

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भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर अंग्रेजी शासन का क्या प्रभाव पड़ा?

इसे सुनेंरोकेंइसने देश में विद्यमान शिक्षा पद्धति को सुव्यवस्थित करते हुए प्राथमिक शिक्षा का माध्यम क्षेत्रीय भाषा को, माध्यमिक शिक्षा हेतु एंग्लो-वर्नाकुलर (अर्द्ध-अंग्रेज़ी) भाषा तथा उच्च शिक्षा हेतु अंग्रेज़ी को माध्यम बनाया। इसने पहली बार महिला शिक्षा हेतु प्रयास किया।

ब्रिटिश काल में शिक्षा के विकास में 1813 के चार्टर एक्ट का क्या महत्व था?

इसे सुनेंरोकेंमाध्यम से ईसाइयत का प्रचार-प्रसार था। विशेष रूप से, इस एक्ट ने (i) भारतीय शिक्षित वर्ग को प्रोत्साहित करने, साहित्य के विकास तथा (ii) भारतीयों के बीच विज्ञान के प्रचार प्रसार पर कंपनी को वार्षिक एक लाख रुपए खर्च करने को कहा। हालाँकि इस एक्ट की व्याख्या अलग-अलग लोगों ने भिन्न-भिन्न रूपों में की।

भारत में पश्चिमी शिक्षा प्रणाली कब लागू हुई?

इसे सुनेंरोकेंअंग्रेजों ने वर्ष 1813 तक तो शैक्षिक क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं किया, मगर इसके बाद भारतीयों के सहयोग या सीमित संख्या उनके साथ के बाद ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों ने भारत में शिक्षा की पश्चिमी प्रणाली शुरू कर दी।

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भारत को कौन असभ्य देश मानता था?

इसे सुनेंरोकेंकौन भारत के असभ्य देश मानता था? ➲ अंग्रेजी विचारक थॉमस बेविंगटन मेकॉले यह मानता था कि भारत एक असभ्य देश है। स्पष्टीकरण : अंग्रेजी सरकार का ही एक पश्चिमी विचारक थॉमस बेविंगटन मैकॉले इन आलोचकों में सबसे मुखर था।

पश्चिमी शिक्षा का क्या इतिहास है इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए?

इसे सुनेंरोकेंइसकी मुख्य विशेषताएँ थीं इसने भारत में शिक्षा का उद्देश्य यूरोपीय ज्ञान के प्रसार को माना। उच्च शिक्षा के लिए माध्यम अंग्रेजी ही रहेगी तथा स्थानीय भाषाएँ ऐसी माध्यम होंगी जिनके द्वारा यूरोपीय ज्ञान जन सामान्य तक पहुँच सके।

इसे सुनेंरोकेंने दलील दी कि अंग्रेजों को पश्चिमी ज्ञान की बजाय भारतीय ज्ञान को ही प्रोत्साहन देना चाहिए। वे चाहते थे कि प्राचीन भारतीय ग्रंथों के अध्ययन को प्रोत्साहित करने और संस्कृत व फ़ारसी साहित्य व काव्य पढ़ाने के लिए संस्थानों की स्थापना की जाए।

चार्ल्स वुड ईस्ट इंडिया कंपनी के बोर्ड ऑफ कंट्रोल (Board of Control) के अध्यक्ष थे। भारत में शिक्षा व्यवस्था में सुधार हेतु उन्होंने एक विस्तृत योजना तैयार की जिसे तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौज़ी द्वारा लागू किया गया।

  • इसके तहत प्रावधान किया गया कि जनसामान्य तक शिक्षा के प्रसार की ज़िम्मेदारी भारत सरकार की होगी। इसके माध्यम से अधोगामी निस्पंदन के सिद्धांत का विरोध किया गया। 
  • इसने देश में विद्यमान शिक्षा पद्धति को सुव्यवस्थित करते हुए प्राथमिक शिक्षा का माध्यम क्षेत्रीय भाषा को, माध्यमिक शिक्षा हेतु एंग्लो-वर्नाकुलर (अर्द्ध-अंग्रेज़ी) भाषा तथा उच्च शिक्षा हेतु अंग्रेज़ी को माध्यम बनाया।
  • इसने पहली बार महिला शिक्षा हेतु प्रयास किया।
  • इसके द्वारा व्यावसायिक शिक्षा तथा शिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु प्रावधान किये गए।
  • इसके द्वारा यह निर्धारित किया गया कि सरकारी संस्थानों में दी जाने वाली शिक्षा धर्म-निरपेक्ष हो। 
  • इसके तहत निजी विद्यालयों को प्रोत्साहन देने हेतु अनुदान (Grant-in-aid) का प्रावधान भी किया गया। 
  • इसके तहत भारत के सभी राज्यों में शिक्षा विभाग की स्थापना का निर्देश दिया गया। 
  • इस अधिनियम के परिणामस्वरूप देश के तीनों प्रेसीडेंसियों (बंगाल, मद्रास तथा बॉम्बे) में एक-एक विश्वविद्यालय स्थापित किया गया।

हंटर आयोग, 1882-83 (Hunter Commission):

  • हालाँकि वुड्स डिस्पैच ने देश के उच्च शिक्षा के लिये प्रयास किये लेकिन प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा के विकास पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया।
  • प्रत्येक राज्य में शिक्षा विभाग की स्थापना से प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा की ज़िम्मेदारी भी राज्यों पर आ गई जिसके लिये उनके पास संसाधनों की कमी थी।
  • वर्ष 1882 में सरकार ने डब्लूडब्लू हंटर की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया जिसका कार्य वुड्स डिस्पैच के बाद देश में शिक्षा के क्षेत्र में हुई प्रगति का मूल्यांकन करना था। हंटर आयोग के मुख्य सुझाव प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा से संबंधित थे जो कि इस प्रकार थे:
    • इसके तहत इस बात पर ज़ोर दिया गया कि राज्य प्राथमिक शिक्षा के विस्तार तथा विकास हेतु विशेष कार्य करे और प्राथमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम क्षेत्रीय भाषा हो। 
    • इसके द्वारा यह अनुशंसा की गई कि प्राथमिक शिक्षा का नियंत्रण नए स्थापित ज़िला तथा नगरपालिका बोर्डों को दिया जाए। 
    • इसकी अनुशंसा थी कि माध्यमिक शिक्षा के अंतर्गत दो शाखाएँ हों: 
    • साहित्यिक (Literary), जिसके बाद विद्यार्थी विश्वविद्यालयी शिक्षा की तरफ जाएँ।
    • व्यावसायिक (Vocational), जिसके बाद विद्यार्थी रोज़गार प्राप्त करें। 
  • इसके माध्यम से तत्कालीन समय में महिला शिक्षा में विद्यमान अवसंरचनात्मक कमियों को उजागर किया गया तथा उसकी भरपाई हेतु व्यापक प्रयास के सुझाव प्रस्तुत किये गए। 
  • हंटर आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद अगले दो दशक तक देश में शिक्षा का उल्लेखनीय विकास हुआ तथा पंजाब विश्वविद्यालय (1882) और इलाहाबाद विश्वविद्यालय (1887) की स्थापना हुई। 

भारतीय विश्वविद्यालय आयोग, 1904 (Indian Universities Act, 1904): 

  • 20वीं शताब्दी के उदय के बाद देश में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल व्याप्त था। प्रशासन का मानना था कि निजी प्रबंधन की वजह से शिक्षा के स्तर में गिरावट आई तथा उच्च शैक्षणिक संस्थान राजनीतिक क्रांतिकारियों के उत्पादक बन गए हैं। 
  • इसके विपरीत राष्ट्रवादी राजनीतिज्ञों का मानना था कि सरकार देश में निरक्षरता को कम करने तथा शिक्षा के विकास हेतु कोई प्रयास नहीं कर रही है।
  • वर्ष 1902 में सरकार ने रैले आयोग (Raleigh Commission) का गठन किया जिसका कार्य भारत के विश्वविद्यालयों की दशा का अध्ययन करना तथा उनकी स्थिति में सुधार हेतु सुझाव देना था।
  • रैले आयोग की अनुशंसा के आधार पर सरकार ने भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 1904 (Indian University Act, 1904) पारित किया। अधिनियम की मुख्य प्रावधान निम्नलिखित थे:
    • विश्वविद्यालयों में शिक्षा तथा शोध पर अधिक बल दिया जाए।
    • विश्वविद्यालयों में शोधार्थियों की संख्या तथा उनके कार्यकाल को कम किया गया। अधिकांश शोधार्थियों को सरकार द्वारा नामित किया जाने लगा। 
    • सरकार को विश्वविद्यालयों के सीनेट के विनियमों को वीटो करने का अधिकार प्राप्त हो गया और सरकार उनके द्वारा बनाए गए नियमों को बदल सकती थी या स्वयं द्वारा निर्मित नियम लागू कर सकती थी। 
    • विश्वविद्यालयों से निजी कॉलेजों को संबंधित करने की प्रक्रिया को कठिन कर दिया गया। 
    • उच्च शिक्षा तथा विश्वविद्यालयों के विकास हेतु प्रतिवर्ष 5 लाख रुपए के हिसाब से पाँच वर्षों तक अनुदान देने का प्रावधान किया गया। 
  • इस समय भारत का वायसराय लॉर्ड कर्ज़न था। उसने गुणवत्ता तथा दक्षता बढ़ाने के नाम पर विश्वविद्यालयों पर कड़ा नियंत्रण स्थापित कर दिया।

सैडलर विश्वविद्यालय आयोग, 1917-19 (Saddler University Commission): 

सैडलर आयोग का गठन कलकत्ता विश्वविद्यालय की समस्याओं के अध्ययन तथा उस पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये किया गया था लेकिन इसके सुझाव देश के सभी विश्वविद्यालयों पर लागू हुए थे।

इसके मुख्य सुझाव निम्नलिखित थे:

  • स्कूली पाठ्यक्रम 12 वर्षों का होना चाहिये। विश्वविद्यालयों में इंटरमीडिएट स्तर के बाद  विद्यार्थी प्रवेश प्राप्त कर सकते हैं। विश्वविद्यालय में डिग्री पाठ्यक्रम तीन वर्षों का होने चाहिये। ऐसा करने के निम्नलिखित उद्देश्य थे:
    • विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा हेतु विद्यार्थियों को तैयार करना।
    • स्कूलों में इंटरमीडिएट स्तर की शिक्षा देने से विश्वविद्यालयों को राहत देना। 
    • उन विद्यार्थियों को कॉलेज की शिक्षा प्रदान करना जो कि विश्वविद्यालयों में नहीं जाना चाहते। 
    • विश्वविद्यालय के विनियमों के निर्माण में लचीलापन बनाए रखना।   
    • विश्वविद्यालय को एक केंद्रीकृत, आवासीय शिक्षण प्रदान करने के लिये स्वायत्त निकाय के तौर पर बनाया जाए, न कि कई कॉलेजों को संबंद्ध कर विस्तृत किया जाए। 
    • महिला शिक्षा, प्रायोगिक विज्ञान, तकनीकी शिक्षा तथा अध्यापकों के प्रशिक्षण हेतु प्रयास किये जाएँ।

वर्ष 1916 से वर्ष 1921 के दौरान भारत में सात नए विश्वविद्यालयों (मैसूर, पटना, बनारस, अलीगढ़, ढाका, लखनऊ तथा ओस्मानिया विश्वविद्यालय) की स्थापना हुई।

हर्टोग समिति, 1929 (Hartog Committee): 

  • हर्टोग समिति का गठन विभिन्न स्कूलों तथा कॉलेजों द्वारा शिक्षा के मानकों का पालन न करने के कारण किया गया था तथा इसका कार्य शिक्षा के विकास पर रिपोर्ट तैयार करना था।
  • इसकी प्रमुख अनुशंसाएँ निम्नलिखित थीं:
    • प्राथमिक शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाए लेकिन इसके लिये जल्दबाज़ी में इसका विस्तार तथा अनिवार्यता न बनाई जाए।
    • ऐसी व्यवस्था बनाई जाए ताकि केवल पात्र विद्यार्थी ही हाईस्कूल तथा इंटरमीडिएट में प्रवेश लें, जबकि औसत विद्यार्थी व्यावसायिक शिक्षा में प्रवेश प्राप्त करें।
    • विश्वविद्यालयी शिक्षा का स्तर उठाने के लिये आवश्यक है कि विश्वविद्यालयों में प्रवेश को नियंत्रित किया जाए।

शिक्षा पर सार्जेंट योजना, 1944 (Sergeant Plan on Education):

सार्जेंट योजना (सर जॉन सार्जेंट सरकार के शैक्षिक सलाहकार थे) का निर्माण वर्ष 1944 में सेंट्रल एडवाइज़री बोर्ड ऑफ एजुकेशन (Central Board of Education) ने किया था। इसके मुख्य सुझाव निम्नलिखित थे:

  • 3-6 वर्ष के आयु समूह के लिये पूर्व-प्राथमिक शिक्षा। 
  • 6-11 वर्ष के आयु वर्ग के लिए नि:शुल्क, सार्वभौमिक और अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा। 
  • 11-17 वर्ष आयु समूह के कुछ चयनित बच्चों के लिये हाईस्कूल शिक्षा और उच्च माध्यमिक के बाद 3 वर्ष का विश्वविद्यालयी पाठ्यक्रम।
  • हाईस्कूल स्तर की शिक्षा दो प्रकार की होती: 
    • शैक्षणिक (Academic) 
    • तकनीकी और व्यावसायिक (Technical and Vocational)
  • तकनीकी, वाणिज्यिक और कला संबंधी शिक्षा को पर्याप्त प्रोत्साहन।
  • इंटरमीडिएट का उन्मूलन।
  • 20 वर्षों में वयस्क निरक्षरता को समाप्त करना।
  • शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांगों के लिये शिक्षकों के प्रशिक्षण, शारीरिक शिक्षा, शिक्षा पर ज़ोर देना।

सार्जेंट योजना का उद्देश्य आगामी 40 वर्षों के अंदर ब्रिटेन में प्रचलित शिक्षा स्तर को भारत में लागू करना था। हालाँकि यह एक विस्तृत योजना थीं लेकिन इसके क्रियान्वयन हेतु कोई योजना नहीं बनाई गई थी। इसके अलावा इस योजना को लागू करने के लिये ब्रिटेन की तुलना में भारतीय परिस्थितियाँ भिन्न थीं।

अंग्रेजों ने भारत में अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम कब?

1835 में, अंग्रेजों ने भारत में अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाया। विलियम बैंटिक, भारत के गवर्नर-जनरल और लॉर्ड मैकाले ने भारत में अंग्रेजी शुरू करने का फैसला किया। अंग्रेजी शिक्षा अधिनियम 1835 लॉर्ड विलियम बैंटिक द्वारा बनाया गया एक विधायी अधिनियम था।

अंग्रेजों ने भारत में क्या अच्छा काम किया?

अंग्रेजों ने भारत में कौन से अच्छा काम किये थे? अंग्रेजो ने भारत में basic infrastructure विकसित करने में काफी काम किया. उन्होंने अलग अलग राज्यों को मिलाकर एक किया. लेकिन जो कुछ भी उन्होंने किया था अपनी सुविधा के लिए किया था, हमारे लिए वोह कुछ नहीं कर गए.

अंग्रेजों का भारत आने का मुख्य उद्देश्य क्या है?

अंग्रेजों का सबसे पहले आगमन भारत के सूरत बंदरगाह पर 24 अगस्त 1608 को हुआ। अंग्रेजों का उद्देश्य भारत में अधिक से अधिक व्यापार करके यहां से पैसा हड़पना था। 1615 ईसवी में जहांगीर के शासनकाल में “सर टॉमस रो” को अंग्रेजों ने अपना राजदूत बनाकर जहांगीर के दरबार में भेजा।

भारत में अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य क्या था?

ब्रिटिश कालीन शिक्षा का मुख्य उद्देश्य भारतीयों का बौद्धिक तथा नैतिक विकास करना था। लॉर्ड मैकाले के द्वारा 1835 में जारी विवरण पत्र और चाल्लर्स वुड के 1854 के घोषणा-पत्र से स्पष्ट है कि अंग्रेजी शिक्षा द्वारा भारत में रहने वाले व्यक्तियों को बौद्धिक और नैतिक दृष्टि से शिक्षा प्रदान करना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण माना गया।

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