अंग्रेजों ने व्यापार करने के लिए कौन सी कंपनी बनाई? - angrejon ne vyaapaar karane ke lie kaun see kampanee banaee?

यूरोपीय शक्तियों में पुर्तगाली कंपनी ने भारत में सबसे पहले प्रवेश किया । भारत के लिए नए समुद्री मार्ग की खोज पुर्तगाली व्यापारी वास्कोडिगामा ने 17 मई 1948  को भारत के पश्चिमी तट पर अवस्थित बंदरगाह कालीकट पहुँच कर की । वास्कोडिगामा का स्वागत कालीकट के तत्कालीन शाशक जमोरिन (यह कालीकट के शाशक की उपाधि थी) द्वारा किया गया । तत्कालीन भारतीय व्यापर पर अधिकार रखें वाले अरब व्यापारियों को जमोरिन का यह व्यव्हार पसंद नहीं आया , अतः उनके द्वारा पुर्तगालियों का विरोध किया गया ।

इस प्रकार हम देखते है के पुर्तगालियों के भारत आगमन से भारत एवं यूरोप के मध्य व्यापार के क्षेत्र में एक नए युग का सूत्रपात हुआ । भारत आने और जाने में हुए यात्रा व्यय के बदले में वास्कोडिगामा ने करीब 60 गुना अधिक धन कमाया । इसके बाद धीरे धीरे पुर्तगालियों ने भारत आना आरम्भ कर दिया । भारत में कालीकट, दमन,दीव एवं हुगली के बंदरगाहों में पुर्तगालियों ने अपनी व्यापारिक कोठियों की स्थापना की । भारत में द्वितीय पुर्तगाली स्थापना अभियान पेड्रो अल्वरेज कैब्राल के नेतृत्व में सन 1500 ई. में छेड़ा गया । कैब्राल ने कालीकट बंदरगाह में एक अरबी जहाज को पकड़कर जमोरिन को उपहारस्वरूप भेट किया । 1502 ई. में वास्कोडिगामा का पुनः भारत में आगमन हुआ । भारत में प्रथम पुर्तगाली फैक्ट्री की स्थापना 1503 ई. में कोचीन में की गई तथा दुतीय फैक्ट्री की स्थापना 1505 ई. में कन्नूर में की गई । इसे भारत में पुर्तगाली शक्ति का वास्तविक संस्थापक माना जाता है ।

भारत में डचों का आगमन

पुर्तगालियों के पश्चात डच भारत में आये । ये नीदरलैंड या हालैंड के निवासी थे । डचों की नियत दक्षिण पूर्व एशिया के मसाला बाजारों में सीधा प्रवेश कर नियंत्रण स्थापित करने की थी । 1596 ई. में कर्नेलिस डि हाऊटमैन (Cornelis de Houtman) भारत आने वाला प्रथम डच नागरिक था । डचों ने सन 1602 ई. में एक विशाल व्यापारिक कंपनी की स्थापना 'यूनाइटेड ईस्ट इंडिया कंपनी ऑफ़ नीदरलैंड' की स्थापना की । इसका गठन विभिन्न व्यापारिक कंपनियों को मिलाकर किया गया था । इसका वास्तविक नाम 'वेरिगंदे ओस्टिंडिशे कंपनी' था ।

इसके अतिरिक्त डचों द्वारा अन्य महत्वपूर्ण फैक्ट्रियां पुलिकेट (1610), सूरत (1616),चिनसुरा, विमलीपट्टनम, कासिम बाजार, पटना, बालासोर, नागपट्टनम तथा कोचीन में अवस्थित थी ।

विदेशी कंपनियां

कंपनीस्थापना वर्षएस्तादो द इंडिया(पुर्तगाली कंपनी)1948वेरिगिंदे ओस्त ईदिशे कंपनी (डच ईस्ट इंडिया कंपनी)1602ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी1600 (1599)डेन ईस्ट इंडिया कंपनी1616कम्पने देस ईनदेश ओरियंटलेश (फ़्रांसिसी कंपनी)1664

यूरोपीय व्यापारिक कंपनी से संबद्ध व्यक्ति

वास्कोडिगामाभारत आने वाला प्रथम यूरोपीय यात्रीपेड्रो अल्वरेज कैब्रालभारत आने वाला द्वितीय पुर्तगालीफ्रांसिस्को डी अल्मेड़ाभारत का प्रथम पुर्तगाली गवर्नरजॉन मिल्देनहॉलभारत आने वाला प्रथम ब्रिटिश नागरिककैप्टन हॉकिंसप्रथम अंग्रेज दूत जिसने सम्राट जहांगीर से भेट कीजैराल्ड औंगियारबंम्बई का संस्थापकजॉब चार्नोककलकत्ता का संस्थापकचाल्र्स आयरफोर्ट विलियम (कलकत्ता) का प्रथम प्रशाशकविलियम नारिश1638 ई. में स्थापित नई ब्रिटिश कंपनी 'ट्रेडिंग इन द ईस्ट' का दूत जो व्यापारिक विशेषाधिकार हेतु औरंगजेब के दरबार में उपस्थित हुआफ्रैंकोइस मार्टिनपांडिचेरी का प्रथम फ़्रांसिसी गवर्नरफ्रांसिस डेमद्रास का संस्थापकशोभा सिंहबर्धमान का जमींदार, जिसने 1690 में अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह कियाइब्राहिम खानकालिकाता, गोविंदपुर तथा सूतानटी का जमींदारजॉन सुरमनमुग़ल सम्राट फर्रुखसियर से विशेष व्यापारिक सुविधा प्राप्त करने वाला शिस्टमण्डल का मुखियाफादर मोंसरेटअकबर के दरबार में पहुँचने वाले प्रथम शिष्टमंडल के अध्यक्षकैरोंन फ्रैंकइसने भारत में प्रथम फ़्रांसिसी फैक्ट्री की सूरत में स्थापना की

भारत में फ्रांसीसियों का आगमन

फ्रांसीसियों ने भारत में अन्य यूरीपीय कंपनियों की तुलना में सबसे बाद में प्रवेश किया । भारत में पुर्तगाली डच अंग्रेज तथा डेन लोगो ने इनसे पहले अपनी व्यवसायिक कोठियों की स्थापना कर दी थी । संन 1664 ई. में फ्रांस की सम्राट लुइ 14वें की समय उनके मंत्री कोल्बर्ट की प्रयासों से फ़्रांसीसी व्यापारिक कंपनी 'कंपनी द इंड ओरिएंटल' (कंपनी देस इंडस ओरिएंटल) की स्थापना हुई । इस कंपनी का निर्माण फ्रांस की सरकार द्वारा किया गया था। तथा इसका सारा खर्च भी सर्कार ही वहन करती थी । इसे सरकारी व्यापारिक कंपनी भी कहा जाता था क्योकि यह कंपनी सरकार द्वारा संरक्षित थी व् सरकार आर्थिक सहायता पर निर्भर करती थी ।

सूरत में 1668 ई. में फ्रांसीसियों की प्रथम कोठी ई स्थापना फ्रैंक कैरो द्वारा की गई । फ्रांसीसियों द्वारा दूसरी व्यपारिक कोठी की स्थापना गोलकुंडा रियासत के सुल्तान से अधिकार पत्त्र प्राप्त करने के पश्चात सन 1669 ई. मसूलीपट्टनम में की गई । 'पांडिचेरी' की नींव फ़्रेंडोईस मार्टिन द्वारा सन 1673 ई. में डाली गई । बंगाल के नवाब शाइस्ता खां ने फ्रांसीसियों को एक जगह किराये पर दी जहाँ चंद्रनगर की सु्प्रसिद्ध कोठी की स्थापना की गई । डचों ने 1639 ई. में पांडिचेरी को फ्रांसीसियों के नियंत्रण से छीन लिया किन्तु 1697 ई. के रिज्विक समझौते के अनुसार उसे वापस कर दिया । फ्रांसीसियों द्वारा 1721 ई. में मारीशस, 1725 ई. में माहे (मालाबार तट) एवं 1939 ई. में कराईकल पर अधिकार कर लिया गया । 1742 ई. के पश्चात व्यापारिक लाभ कमाने के साथ साथ फ्रांसीसियों की राजनितिक महत्त्वकांक्षाए भी जाग्रत हो गई । परिणामस्वरुप अंग्रेज और फ्रांसीसियों के बीच युद्ध छिड़ गया । इन युद्धों को 'कर्नाटक युद्ध' के नाम से जानते है ।

ईस्ट इंडिया कंपनी का पहला जहाज ‘हेक्टर’ आज ही के दिन सूरत के तट पर पहुंचा था। इसे ही ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत में आगमन माना जाता है। उस समय कोई नहीं जानता था कि व्यापार के लिए आई ये कंपनी करीब 200 सालों तक भारत पर राज करेगी। इस घटना ने भारत के भूगोल, इतिहास दोनों को बदलकर रख दिया।

एक वक्त तक कहा जाता था कि ब्रिटिश साम्राज्य का सूरज कभी डूबता नहीं है, लेकिन 16वीं शताब्दी में अंग्रेजी साम्राज्य का सूरज डूबने ही वाला था। पुर्तगाल और डच लगातार अपने व्यापारिक साम्राज्य को फैला रहे थे। ब्रिटिशर्स केवल यूरोप तक ही सीमित थे और वहां भी उनको व्यापार में कोई खास फायदा नहीं हो रहा था। उन्हें एक बड़े बाजार की जरूरत थी।

व्यापारियों ने इंग्लैंड की महारानी से भारत में व्यापार करने की अनुमति मांगी। साल 1600 में एक कंपनी बनाई गई। कंपनी को मुख्यत: साउथ और साउथ ईस्ट एशिया में व्यापार करने के उद्देश्य से बनाया गया था, इसलिए कंपनी का नाम ईस्ट इंडीज पड़ा। 125 शेयरहोल्डर्स और 72 हजार स्टर्लिंग पाउंड की कैपिटल से कंपनी बनकर तैयार हो गई। कंपनी को रॉयल चार्टर प्राप्त था यानी उसे ब्रिटेन के शाही परिवार का संरक्षण प्राप्त था।

24 अगस्त 1608 को कंपनी का पहला जहाज सूरत के तट पर आया। इस जहाज के कैप्टन का नाम था हॉकिंस। उस समय मुगल सम्राट जहांगीर का शासन था, इसलिए हॉकिंस ने जहांगीर से मुलाकात की। कंपनी के लिए एक समस्या ये थी कि सूरत में पहले से पुर्तगाली व्यापार कर रहे थे। ऐसे में हॉकिंस के लिए भारत में व्यापार की अनुमति प्राप्त करना इतना आसान नहीं था।

ब्रिटिशर्स ने उसके बाद संसद के सदस्य और राजदूत सर थॉमस रो को राजपरिवार के शाही दूत के रूप में भारत भेजा। सर थॉमस रो 1615 में भारत आए और राजा से मिले। वे मुगल राजा को रिझाने के लिए अपने साथ बेशकीमती तोहफे लेकर आए थे। अगले 3 साल में ही रो ने मुगल शासन से भारत में व्यापार के लिए शाही फरमान हासिल कर लिए थे।

कंपनी के लिए अब व्यापार के रास्ते पूरी तरह साफ थे। कंपनी ने तेजी से भारत में अपने पैर पसारना शुरू किए। हर बड़े बंदरगाह पर कंपनी ने अपनी फैक्ट्री स्थापित की। 1646 तक ही कंपनी देशभर में 23 फैक्ट्रियां स्थापित कर चुकी थी। मुगल साम्राज्य की कमजोरियों का फायदा उठाकर धीरे-धीरे कंपनी ने शासन-प्रशासन में भी अपना दखल बढ़ाना शुरू कर दिया और एक व्यापारिक कंपनी से अलग प्रशासनिक कंपनी भी बन गई।

1968 : दुनिया की 5वीं थर्मोन्यूक्लियर शक्ति बना था फ्रांस

आज ही के दिन फ्रांस ने अपना पहला हाइड्रोजन बम टेस्ट किया था। इसी के साथ फ्रांस थर्मोन्यूक्लियर पावर से लैस दुनिया का पांचवां देश बन गया था।

दरअसल दूसरे विश्वयुद्ध के बाद देशों के बीच शीतयुद्ध शुरू हो चुका था। इस शीतयुद्ध में देशों के बीच स्पेस से लेकर न्यूक्लियर पावर बनने की होड़ लगी थी। अक्टूबर 1964 में चीन ने न्यूक्लियर टेस्ट कर न्यूक्लियर पावर बनने की रेस में अपनी प्रतिबद्धता जाहिर कर दी थी।

फ्रांस फरवरी 1960 में न्यूक्लियर बम टेस्ट कर चुका था और अब हाइड्रोजन बम बनाने की कोशिश कर रहा था। फ्रांस ने इस पूरे मिशन को नाम दिया था - ऑपरेशन केनोपस।

फ्रांस नॉर्वे और अमेरिका की मदद से रेडियोएक्टिव आइसोटोप ट्रिटीयम को बनाने में कामयाब हो गया था। ट्रिटीयम न्यूक्लियर बम को बनाने के लिए एक बेहद अहम मटेरियल है।

ट्रिटीयम के मिलने के बाद फ्रांस के लिए हाइड्रोजन बम बनाने का रास्ता इतना मुश्किल नहीं रहा। अगस्त 1964 तक बम बनकर तैयार था। फ्रांस ने टेस्ट के लिए फंगाटोफा नाम के एक आइलैंड को चुना। 3 टन के इस बम को एक हाइड्रोजन बलून के जरिए 520 मीटर की ऊंचाई से गिराया गया। बम फटते ही 2.6 मेगाटन ऊर्जा वातावरण में रिलीज हुई। ये हिरोशिमा पर गिराए गए बम से करीब 200 गुना ज्यादा थी।

विस्फोट के बाद आसमान में उठा धूल और धुएं का गुबार।

बम के रेडियोएक्टिव मटेरियल से पूरा आइलैंड प्रदूषित हो गया। यहां के वातावरण में रेडियोएक्टिविटी इतनी ज्यादा बढ़ गई कि अगले 6 साल तक कोई भी इंसान इस आइलैंड पर जा नहीं सका।

1995 - माइक्रोसॉफ्ट ने रिलीज किया था Windows 95

टेक कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने आज ही के दिन ऑपरेटिंग सिस्टम विंडोज 95 को आम लोगों के लिए जारी किया था। ये इतना ज्यादा पॉपुलर हुआ कि 5 हफ्ते में ही इसकी 70 लाख से ज्यादा कॉपियां बिक गई थीं। इसे माइक्रोसॉफ्ट का सबसे सफल ऑपरेटिंग सिस्टम भी माना जाता है। इसके आने के बाद कम्प्यूटर के ग्राफिक यूजर इंटरफेस में बड़े बदलाव हुए।

विंडोज 95 की लॉन्चिंग सेरेमनी के दौरान बिल गेट्स।

माइक्रोसॉफ्ट ने विंडोज 95 में कई फीचर्स ऐसे शामिल किए थे जो पहले किसी भी ऑपरेटिंग सिस्टम में नहीं थे। स्टार्ट बटन, मेन्यू और टास्कबार पहली बार विंडोज 95 में ही दिए गए थे और ये आज तक माइक्रोसॉफ्ट के ऑपरेटिंग सिस्टम का हिस्सा हैं।

इसके अलावा विंडोज 95 में एक बड़ा फीचर प्लग एंड प्ले का था। इससे ऑपरेटिंग सिस्टम खुद ही हार्डवेयर की पहचान कर उसे आसानी से इन्स्टॉल कर सकता था। MSN ऐप को भी एक खास आइकॉन के साथ डेस्कटॉप पर जोड़ा गया।

24 अगस्त के दिन को इतिहास में और किन-किन महत्वपूर्ण घटनाओं की वजह से याद किया जाता है…

2019: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संयुक्त अरब अमीरात ने अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'ऑर्डर ऑफ जायद' से नवाजा।

2011: एपल के CEO स्टीव जॉब्स ने स्वास्थ्यगत कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा दिया। दो महीने बाद ही उनका निधन हो गया।

व्यापार करने के लिए अंग्रेजों ने भारत में कौन सी कंपनी बनाई?

उन्होंने 31 दिसंबर 1600 को एक नई कंपनी की नींव डाली और महारानी से पूर्वी एशिया में व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त किया. इस कंपनी के कई नाम हैं, लेकिन इसे ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से जाना जाता है.

अंग्रेजों की कंपनी का क्या नाम था?

ईस्ट इंडिया कंपनी सन 1600 में बनाई गई थी. उस वक़्त ब्रिटेन की महारानी थीं एलिज़ाबेथ प्रथम. जिन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी को एशिया में कारोबार करने की खुली छूट दी थी.

अंग्रेजों ने भारत में अपनी पहली कंपनी कब स्थापित की?

ब्रिटिश लाइब्रेरी लंदन के रिकॉर्ड के अनुसार, ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 31 दिसम्बर 1600 को हुई थी। साल 1608 में विलियम हॉकिन्स ईस्ट इंडिया कंपनी के जहाज लेकर सूरत आया था। इसके बाद कंपनी ने भारत में अपना पहला कारखाना सूरत में 11 जनवरी 1613 को खोला था।

भारत में सबसे पहले कौन सी कंपनी आई थी?

यूरोपीय शक्तियों में पुर्तगाली कंपनी ने भारत में सबसे पहले प्रवेश किया । भारत के लिए नए समुद्री मार्ग की खोज पुर्तगाली व्यापारी वास्कोडिगामा ने 17 मई 1948 को भारत के पश्चिमी तट पर अवस्थित बंदरगाह कालीकट पहुँच कर की । वास्कोडिगामा का स्वागत कालीकट के तत्कालीन शाशक जमोरिन (यह कालीकट के शाशक की उपाधि थी) द्वारा किया गया ।

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