अहमदनगर के किले में नेहरू जी क्या क्या काम करते थे? - ahamadanagar ke kile mein neharoo jee kya kya kaam karate the?

अहमदनगर किले में रहकर नेहरू जी ने क्या कार्य करना प्रारंभ किया?

अहमदनगर किले में नेहरू जी ने बागवानी का कार्य शुरू किया। क्योंकि वे खाली बैठकर समय व्यर्थ नहीं करना चाहते थे। उन्होंने पथरीली व कंकरीली जमीन को भी उपजाऊ बना डाला।

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अतीत का दबाव’ शब्दों से क्या तात्पर्य है?

  • पुरानी बातें

  • प्राचीन वस्तुएँ

  • मनुष्य के मानस पटल पर प्राचीन सभ्यता व संस्कृति का प्रभाव

  • मनुष्य के मानस पटल पर प्राचीन सभ्यता व संस्कृति का प्रभाव

C.

मनुष्य के मानस पटल पर प्राचीन सभ्यता व संस्कृति का प्रभाव

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यह नेहरू जी की कितनी बार की जेल यात्रा थी?

  • आठवीं 
  •  दूसरी 

  • नौवीं 

  • नौवीं 

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लेखनी उठाने का प्रमुख उद्देश्य क्या था?

  • जेल की कमियाँ लिखकर देना 

  •  काव्य लेखन करना

  • भारतीय इतिहास पर प्रकाश डालना 

  • भारतीय इतिहास पर प्रकाश डालना 

C.

भारतीय इतिहास पर प्रकाश डालना 

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नेहरू जी ने बंदी जीवन में कलम क्यों उठाई?

  • भारत का गुणगान करने हेतु 

  • भारतीयों में राष्ट्रप्रेम जागृत करने हेतु

  •  भारतीयों का मार्गदर्शन करने हेतु

  •  भारतीयों का मार्गदर्शन करने हेतु

B.

भारतीयों में राष्ट्रप्रेम जागृत करने हेतु

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‘अहमदनगर का किला’ पाठ कब व किसके द्धारा लिखा गया?

  • 13 अप्रैल 1944 में जवाहरलाल नेहरू द्धारा 
  • 14 अप्रैल 1933 में जवाहरलाल नेहरू द्धारा 

  • 13 अप्रैल 1944 में महात्मा गाँधी द्धारा 

  • 13 अप्रैल 1944 में महात्मा गाँधी द्धारा 

A.

13 अप्रैल 1944 में जवाहरलाल नेहरू द्धारा 

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Chapter 1: Ahmednagar Ka Qila

“अहमदनगर का किला” भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की प्रसिद्ध पुस्तक भारत की खोज (Discovery of India) के संक्षिप्त संस्करण का पहला अध्याय है। इसमें वे अतीत को लेकर अपने दृष्टिकोण और उसके दबाव से हमें परिचित करा रहे हैं।

डिस्कवरी ऑफ इंडिया का अगला अध्याय यहाँ पढ़ें – अध्याय 2: तलाश। “अहमदनगर का किला” के अतिरिक्त पुस्तक के अन्य अध्याय पढ़ने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – भारत की खोज

बीस महीने

अहमदनगर का क़िला, 13 अप्रैल 1944

हमें यहाँ आए हुए बीस महीने से अधिक समय बीत गया–मेरी नौंवी जेलयात्रा का बीस महीने से भी अधिक समय। अंधियारे आकाश में झिलमिलाते दूज के चाँद ने यहाँ पहुँचने पर हमारा स्वागत किया। बढ़ते चाँद का उजला शुक्ल-पक्ष शुरू हो चुका था। तब से हर बार जब नया चाँद उगता है तो जैसे मुझे याद दिला जाता है कि मेरे कारावास का एक महीना और बीत गया। ऐसा ही मेरे पिछले कारावास की अवधि में हुआ था जी आलोक-पर्व दीपावली के तत्काल बाद नए चाँद के साथ शुरू हुई थी। चाँद, मेरे बंदी जीवन का स्थायी सहचर रहा है। पहचान गहराने से मित्रता और बढ़ गई है। वही मुझे दुनिया के सौंदर्य की, जीवन के ज्वार-भाटे की याद दिलाता है। साथ ही इस बात की भी कि अंधेरे के बाद उजाला होता है और मृत्यु और पुनर्जीवन एक दूसरे के पीछे अनंत क्रम में घूमते रहते हैं। निरंतर बदलते रहने के बावजूद हमेशा वैसा ही होता है ये चाँद। मैंने उसे उसकी विभिन्न कलाओं में, और तरह-तरह के मनोभावों में देखा है। शाम की लंबी होती परछाइयों में, रात के मौन प्रहरों में, और तब जब भोर के झोंके और मरमराहट, आने वाले दिन की आस बँधाते हैं।

अतीत का भार

दूसरे जेलों की तरह, यहाँ अहमदनगर के किले में भी मैंने बागबानी करना शुरू कर दिया। मैं रोज़ कई घंटे, तपती धूप में भी फूलों के लिए क्यारियाँ खोदकर तैयार करने में बिताने लगा। मिट्टी बहुत खराब थी-पथरीली और पहले बनाए गए मकानों के मलबे और अवशेषों से भरी हुई। उसमें प्राचीन स्मारकों के खण्डहर भी मौजूद थे इसलिए चूँकि यह इतिहास-स्थत है। अतीत में इसने कई युद्ध और राजमहलों की दुरभिसंधियाँ देखी हैं। भारत के पूरे इतिहास की दृष्टि से यहाँ का इतिहास बहुत पुराना नहीं है, घटनाओं के बृहतर संदर्भ में इसकी कोई विशेष अहमियत भी नहीं है। पर इनमें एक घटना औरों से विशिष्ट है, और आज भी याद की जाती है। यह है चाँद बीबी नामक एक सुन्दर महिला के साहस की कहानी, जिसने इस किले की रक्षा के लिए, तलवार हाथ में उठाकर, अकबर की शाही सेना के विरुद्ध अपनी सेना का नेतृत्व किया। उसकी हत्या उसके अपने ही एक आदमी के हाथों हुई।

इस अभागी धरती की खुदाई के दौरान हमें ज़मीन की सतह के बहुत नीचे दबे हुए प्राचीन दीवारों के हिस्से और गुंबदों और इमारतों के ऊपरी हिस्से मिले। हम बहुत दूर नहीं जा सके, क्योंकि अधिकारियों ने गहरी खुदाई करने और पुरातात्विक खोजबीन करने की अनुमति नहीं दी थी और न ही हमारे पास इस काम की जारी रखने के साधन थे। एक बार हमें एक तरफ दीवार पर पत्थर पर खुदे हुए सुंदर सफेद कमल की आकृति मिली। शायद यह पत्थर दरवाजे के ऊपर रहा होगा।

अब मैंने अपनी कुदाल छोड़कर उसके बदले कलम उठा ली है। मैं वर्तमान के बारे में तब तक नहीं लिख सकता जब तक उसे कर्म के माध्यम से अनुभव करने के लिए मैं आज़ाद नहीं हो जाता ना ही मैं पैगंबर की भूमिका अपनाकर भविष्य के बारे में लिख सकता हूँ।

बच रहता है अतीत, पर मैं बीती हुई घटनाओं के बारे में किसी इतिहासकार या विद्वान की विद्वतापूर्ण शैली में भी नहीं लिख सकता। मैं उसके बारे में उसी ढंग से लिख सकता हूँ जिस तरह मैं पहले भी लिख चुका हूँ-अपने आज के बार कहा था कि इस प्रकार का इतिहास-लेखन अतीत के भारी बोझ से एक सीमा तक राहत दिलाता है।

अतीत का दबाव

भला-बुरा, दोनों तरह का दबाव, अभिभूत करता है। कभी-कभी यह दबाव दम-घोटू होता है-खास तौर पर उन लोगों के लिए जिनकी जड़ें बहुत पुरानी सभ्यताओं में होती हैं-मसलन भारत और चीन की सभ्यताएँ। नीत्शे ने कहा था-“बीती हुई सदियों का विवेक ही नहीं उनकी दीवानगी भी हमारे भीतर से फूट पड़ती है। उनका वारिस होना आवश्यक है।”

आखिर मेरी विरासत क्या है? मैं किन बातों का उत्तराधिकारी हूँ? क्या उस जिसके बारे में उसने विचार किया, महसूस किया, भोगा और जिन वातों से उसने युगों पहले हुई और जो अव भी जारी है और हमें आकर्षित करती है। मैं इस सबका वारिस हूँ और उस सबका भी जिसमें पूरी मानव जाति की सेाझेदारी है। पर हम भारतवासियों की विरासत में एक खास बात है, लेकिन यह कोई अनोखी बात नहीं है, क्योंकि कोई व्यक्ति औरों से एकदम अलग नहीं होता। मानव-जाति के लिए सभी बातें समान हैं। अलबत्ता एक बात हम लोगों पर विशेष रूप से लागू होती है, जो हमारे रक्त, मांस और अस्थियों में समायी है। इसी विशेषता से हमारा वर्तमान रूप बना है, और हमारा भावी रूप बनेगा।

इसी विशिष्ट विरासत का विचार और वर्तमान पर इसे लागू करने की बात एक लंबे अरसे से मेरे मन में जगह बनाए है, और मैं इसी के बारे में लिखना चाहता हूँ। विषय की कठिनाई और जटिलता मुझे भयभीत करती है। मुझे लगता है कि मैं सतही तौर पर इसका स्पर्श ही कर सकता हूँ।

प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न

अहमदनगर का किला किसने बनवाया?

अमदनगर का क़िला निज़ामशाही वंश के प्रथम शासक मलिक अहमद निज़ाम शाह ने सन् 1427 में बनवाया था।

अहमदनगर के किले का जवाहरलाल नेहरू से क्या संबंध है?

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान इस किले में हिरासत में रहे थे। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “भारत – एक खोज” यहीं पर लिखी थी।

क्या औरंगज़ेब की मृत्यु अहमदनगर के क़िले में हुई थी?

ऐतिहासिक तौर पर उल्लेख मिलता है कि मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब की मृत्यु इस किले में 20 फरवरी 1707 को हुई थी।

नेहरू जी को अहमदनगर के किले में हिरासत में क्यों रखा गया था?

अंग्रेज़ों के विरुद्ध भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित करने के कारण जवाहरलाल नेहरू समेत अन्य कई तत्कालीन राजनेताओं को यहाँ क़ैद रखा गया था।

अहमदनगर का किला किस-किस के आधिपत्य में रहा है?

स्वतंत्रता से पूर्व यह क़िला अहमदनगर सल्तनत, मुग़ल, हैदराबाद, मराठा, ईस्ट इंडिया कंपनी और ब्रिटिश हुक़ूमत का अंग रहा है।

अहमदनगर के किले में रहकर नेहरू जी ने क्या कार्य आरंभ किया?

दूसरी जेलों की तरह, यहाँ अहमदनगर के किले में भी मैंने बागवानी करना शुरू कर दिया।

अहमदनगर के किले में लेखक कौन से कार्य करते थे?

अहमदनगर जिले में लेखक नेहरु जी की दिनचर्या बागवानी का कार्य करने की थी। जब नेहरू अपनी जेल नौंवी यात्रा पर अहमदनगर किले में कैद थे, तब वहाँ पर उन्हें काफी समय खाली रहना पड़ता था। यह खाली समय व्यर्थ नही जाए, इसलिए उन्होंने आसपास के बंजर भूमि पर बागवानी का कार्य करना शुरू कर दिया।

अहमदनगर के किले में नेहरू जी की यह कौन सी जेल यात्रा थी?

अहमदनगर जिले में लेखक नेहरु जी नौंवी जेल यात्रा थी

अहमदनगर के किले में नेहरू जी ने कितना समय बिताया?

Answer: तीन साल से अधिक समय तक जवाहरलाल नेहरू किले में कैद रहे और सक्रिय राजनीति से दूर रहे।

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