Welcome!Log into your account
your username
your password
Welcome!Register for an account
your email
your username
A password will be e-mailed to you.
Recover your password
your email
मित्रों हर मनुष्य की इच्छा होती है कि वह इस दुनिया में ज्यादा से ज्यादा जी सके इसलिए मौत का नाम सुनते ही हर कोई डर जाता है पर मरना तो सबको एक दिन है। कुछ लोग लंबी उम्र तक जीते हैं वहीं कुछ लोग अचानक से इस दुनिया को अलविदा कह देते हैं। अल्पायु में हुई मृत्यु को लोग तुरंत स्वीकार नहीं कर पाते है ऐसी मृत्यु को अकाल मृत्यु की श्रेणी में डाला जाता है। आज की इस पोस्ट में हम लोग यही जानेंगे कि जिसकी मृत्यु अल्पायु में हो जाती है उन आत्माओं के साथ क्या होता है जिसका वर्णन हमें गरुड़ पुराण में मिलता है तो चलिए जानते हैं।अकाल मृत्यु होने पर आत्मा को क्या कष्ट भोगना पड़ता है – गरुड़ पुराण?
अकाल मृत्यु होने पर आत्मा को क्या कष्ट भोगना पड़ता है – गरुड़ पुराण?
दोस्तों गरुड़ पुराण में बताया गया है कि मनुष्य के जीवन के सात चक्र निश्चित है और यदि कोई मनुष्य इस चक्र को पूरा नहीं करता अर्थात अल्पायु में ही उसकी मृत्यु हो जाती है तो उसे मृत्यु के बाद भी कई प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं। लेकिन हम लोग सब से पहले यह जानेंगे कि अल्प आयु में मृत्यु का क्या मतलब होता है।
गरुड़ पुराण के सिंहावलोकन अध्याय में बताया गया है यदि कोई प्राणी भूख से पीड़ित होकर मर जाता है या फिर हिंसक प्राणी द्वारा मार दिया जाता है या फिर जो विष तथा अग्नि से मृत्यु को प्राप्त होता है, जिसकी मृत्यु जल में डूबने से हो जाती है या फिर जो सर्प के काटने से मर जाता है या फिर जिसकी मृत्यु दुर्घटना अथवा किसी भी प्रकार के आपदा के कारण हो जाती है वह अकाल मृत्यु को प्राप्त होता है। अगर मनुष्य के निर्धारित उम्र से पहले कोई व्यक्ति काल के गाल में समा जाता है तो उसे अकाल मृत्यु की संज्ञा दी जाती है।
गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु ने बताया है कि जिस मनुष्य अथवा प्राणी की मृत्यु प्राकृतिक रूप से होती है वें तीन, दस, तेरह अथवा 40 दिन के अंदर दूसरा शरीर धारण कर लेती है। वही अल्प आयु में मृत्यु को प्राप्त करने वाले आत्मा अपनी सभी इच्छाओं यानी कि भूख, प्यास, कामना, राग, दोष, क्रोध, लोभ आदि इच्छाओं की पूर्ति के लिए अंधकार में तब तक भटकती रहती है जब तक कि परमात्मा द्वारा उसका निर्धारित जीवन चक्र पूरा नहीं हो जाता। अब यहां सवाल उठता है कि किसी भी प्राणी की अल्पाइन में मृत्यु क्यों होती है तो चलिए जानते हैं किसी भी प्राणी की अल्प आयु में मृत्यु क्यों होती है
अल्प आयु में मृत्यु क्यों होती है
प्राचीन काल से ही वेदों का यह कथन है कि मनुष्य 100 वर्ष तक जीवित रहता है मगर जो व्यक्ति धर्म एवं शास्त्र के विपरीत अधर्म आचरण को धारण एवं निंदनीय कर्म करता है वह शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। जो वेदों के ज्ञान ना होने के कारण वंश-परंपरा के सदाचार का पालन नहीं करता, जो आलस्यवश कर्म का परित्याग कर देता है, जो सदैव अधर्म आचरण कर्म को सम्मान देता है, जो परस्त्री में अनुरक्त रहता है, इसी प्रकार के अन्य महादोष की वजह से मनुष्य की आयु क्षीण हो जाती है और वे अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।
जो अपने कर्मों का परित्याग तथा जितने मुख्य आचरण है उनका परित्याग करता है तथा दूसरों के कर्मों में संलग्न रहता है वह निश्चित ही कम उम्र में मृत्यु को प्राप्त हो जाता है और जो धर्म विरुद्ध आचरण करता है वह भी अगले जन्म में निश्चित समय से पहले अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। मित्रों यह तो हो गई अल्प आयु में मृत्यु और उसे मिलने वाले कष्टों के बारे में, तो चलिए अब जानते हैं कि अल्प आयु में मृत्यु के बाद कौन सी आत्मा किस योनि में भटकती है।
अकाल मृत्यु के बाद किस योनि में भटकती हैआत्मा
गरुड़ पुराण में बताया गया है कि जो पुरुष अल्पायु में मृत्यु को प्राप्त करता है तो वह भूत, प्रेत, पिचास, कुष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, बेताल या फिर क्षेत्रपाल योनि में भटकता रहता है और तब तक भटकता रहता है जब तक परमात्मा द्वारा उसकी निर्धारित आयु पूरी ना हो जाए। और जब भी कोई स्त्री अल्प आयु में मृत्यु को प्राप्त होती है वह भी इसी तरह योनियों में भटकती रहती है लेकिन उसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे कोई नवयुवती यानि शादीशुदा कम उम्र में मृत्यु को प्राप्त हो जाए तो वह चुड़ैल बन जाती है और वही कोई कुंवारी कन्या की मृत्यु अल्पायु में हो जाती है तो उसे देवी योनि में भटकना पड़ता है।
अल्पायु में मृतक की आत्मा की शांति के लिए किए जाने वाले कार्य
इस प्रकार की मृत्यु होने के पश्चात मृत आत्मा को किस प्रकार शांति मिलती है यह भी गरुड़ पुराण में आगे बताया गया है जो इस प्रकार है – अल्प आयु में हुई मृत्यु के बाद मृत आत्मा की शांति के लिए उनके परिवारजनों को नदी या फिर तालाबों में तर्पण करना चाहिए और साथ ही मृत आत्मा की इच्छा की पूर्ति के लिए पिंड दान, सत्कर्म के लिए दान-पुण्य, एवं गीता का पाठ करवाना चाहिए। इन कर्मकांड को 3 वर्षों तक करना चाहिए और बरसी आने पर ब्राह्मणों, भूखे एवं ज्ञानी जनों को भोजन खिलाना चाहिए ताकि मृत आत्मा को जल्द से जल्द मुक्ति मिल सके।
रात में श्मशान घाट क्यों नहीं जाना चाहिए – गरुड़ पुराण?
यमलोक का मार्ग कैसा होता है – गरुड़ पुराण?