बघेलखंड मध्य भारत का एक क्षेत्र है। यह मध्य प्रदेश राज्य के उत्तर-पूर्वी ओर स्थित है। इसमें मध्य प्रदेश के जिले सम्मिलित हैं:
- अनूपपुर
- रीवां
- सतना
- शहडोल
- सिधी
- उमरिया
- और उत्तर प्रदेश का सोनभद्र जिला
- साथ ही पूर्वी इलाहाबाद के क्षेत्र
प्रस्तावित बघेलखंड राज्य[संपादित करें]
The proposed state includes the following districts: बघेलखंड में कुछ जिले उत्तर प्रदेश के तथा कुछ मध्य प्रदेश के हैं, वर्तमान में बघेलखण्ड क्षेत्र की स्थिति बहुत ही गंभीर है। यह क्षेत्र पर्याप्त आर्थिक संसाधनों से परिपूर्ण है किन्तु फिर भी यह अत्यंत पिछड़ा है। इसका मुख्य कारण है, राजनीतिक उदासीनता। न तो केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकारें इस क्षेत्र के विकास के लिए गंभीर हैं। इसलिए इस क्षेत्र के लोग अलग बघेलखण्ड राज्य की मांग लम्बे समय से करते आ रहे है। यूं तो बघेलखण्ड क्षेत्र दो राज्यों में विभाजित है-उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश, लेकिन भू-सांस्कृतिक दृष्टि से यह क्षेत्र एक दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। रीति रिवाजों, भाषा और विवाह संबंधों ने इस एकता को और भी पक्की नींव पर खड़ा कर दिया।
मध्य प्रदेश से
- रीवां
- सतना
- शहडोल
- सिधी
- उमरिया
- अनूपपुर
- जयसिंहनगर
- उत्तरी सोनभद्र जिला
- दक्षिणी सोनभद्र जिला
बघेलखंड एक ऐतिहासिक-सांस्कृतिक क्षेत्र, छत्तीसगढ़ राज्य एवं मध्य प्रदेश राज्य में स्थित है। बघेलखंड के पूर्व में स्थित बलुआ पत्थर के इस पठार का झुकाव पूर्वोत्तर से दक्षिण-पूर्व की ओर है। कैमूर श्रृंखला इसे दो प्राकृतिक प्रदेशों में बांटती है। संपूर्ण क्षेत्र में टोंक, सोन व उनकी सहायक नदियाँ बहती हैं। प्रदेश के पूर्वोत्तर में स्थित इन्हीं नदी घाटियों का क्षेत्र खुला एवं गम्य है। पश्चिम में उच्च मैदान हैं और पूर्व में ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी मार्ग है, जिस पर विंध्य श्रृंखला की समानांतर वनयुक्त पर्वतश्रेणियाँ हैं। विंध्य ढलवां भूमि (भांडेर श्रेणी, रीवा के पठार, सोनापुर पर्वतश्रेणियाँ और सोन नदि के नाले से मिलकर बनी) इस प्रदेश के भीतरी भाग की विशेषता है। बघेलखंड का बाकी हिस्सा एक पठारीय क्षेत्र है, जिसके दक्षिण और पूर्वी हिस्से की निचली तह ग्रेनाइट की है। मध्य भाग में गोंडवाना और दक्कन ट्रैप तथा पूर्वोत्तर में बिंध्य है। सोन नदी की संकरी पनाली में जलोढ़ मिट्टी की परत पायी जाती है। गोंड और कोल जनजातियाँ यहाँ की जनसंख्या का प्रमुख हिस्सा हैं। मुसलमानों के आगमन से पूर्व बघेलखंड दहाला के नाम से प्रसिद्ध था और यहाँ युद्ध प्रिय कलचुरी वंश (छठी से बारहवीं शताबदी) का शासक था, जिनका मज़बूत गढ़ कालिंजर था। 14 वीं शताब्दी में बघेल राजपूतों, जिनके नाम पर इस भूभाग का नामकरण हुआ, के उदय के साथ ही इसे रीवा राज्य में मिला दिया गया। 1871 में ब्रिटिश सेंट्रल इंडिया एजेंसी के उपखंड, बघेलखंड प्रांत की स्थापना की गई, जिसमें रीवा और कई अन्य राज्य शामिल थे। इसका मुख्यालय सतना में था। 1931 में यह बुंदेलखंड एजेंसी में मिल गया और 1947 में भारतीय स्वतंत्रता के समय विंध्य प्रदेश का पूर्वी अंश बना।
इस प्रदेश में कृषि विकास कम है, मुख्य फ़सल धान है और गेहूँ, मक्का व चना भी यहाँ उगाया जाता है। बघेलखंड कोयला, एल्युमिनियम वाली मिट्टी बॉक्साइट, चिकनी मिट्टी और क्वार्ट्ज़ की अविकसित, लेकिन विपुल खनिज संपदा मौजूद है। बघेलखंड अपनी भौगोलिक स्थिती, आर्थिक अलगाव और अधिकांश जनजातिय निर्धन कृषक वर्ग के कारण उपेक्षित हैं। चूना-पत्थर और कोयले के अलावा बघेलखंड में मौजूद अन्य खनिज संसाधनों का वाणिज्यिक उद्यम द्वारा समुचित उपयोग नहीं किया जा रहा है।
रीवा, राजगढ़, सतना और शाहडोल प्रशासनिक और वाणिज्यिक केंद्र है, प्रदेश में शहरीकरण का स्तर कम है। अन्य केंद्रों में सोहागपुर नदी द्रोणी में स्थित उमरिया, बड़हर और गौरेला है, बघेलखंड में कोयले के भंडार हैं और खनन भी किया जाता है। प्रदेश के धान उत्पादक क्षेत्र अंबिकापुर, मनेंद्रगढ़ और बैकुंठपुर; कोयला खनन के लिए प्रसिद्ध सिंगरौली, रेणुकूट, पिपरी और दुधी तथा रेल व सड़क संपर्क के विकास और ताप ऊर्जा उत्पादन के लिए प्रसिद्ध ओबरा, दला, सीधी और अगौरी इस क्षेत्र के अन्य केंद्र हैं।
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