बिहार में स्वराज पार्टी के संस्थापक कौन थे? - bihaar mein svaraaj paartee ke sansthaapak kaun the?

बिहार में स्वराज दल की स्थापना किसने की?

  1. श्री कृष्ण सिंह
  2. रामलाल शाह
  3. बंकिम चंद्र मित्र
  4. सचिंद्र नाथ सान्याल
  5. उपरोक्त में से कोई नहीं/उपरोक्त में से एक से अधिक

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : श्री कृष्ण सिंह

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सही उत्तर श्री कृष्ण सिंह है।

Important Points

  • मोतीलाल नेहरू और चितरंजन दास ने स्वराज दल की स्थापना की।
    • नारायण प्रसाद पहले अध्यक्ष थे और अब्दुल बारी पहले सचिव थे।
  • स्वराज दल की एक शाखा बिहार में बनाई गई थी जिसका नेतृत्व 1923 में श्रीकृष्ण सिंह ने किया था।
  • स्वराजवादी आंदोलन के बारे में:
    • स्वराज पार्टी 1 जनवरी 1923 को सी आर दास और मोतीलाल नेहरू द्वारा बनाई गई थी।
    • स्वराज पार्टी का गठन असहयोग आंदोलन के पीछे हटने जैसी विभिन्न महत्वपूर्ण घटनाओं के बाद हुआ, भारत सरकार ने 1919 और 1923 के चुनावों को लागू किया।
    • 1922 में, कांग्रेस के गया सत्र में, सी आर दास (जो सत्र की अध्यक्षता कर रहे थे) ने विधानसभाओं में प्रवेश करने का प्रस्ताव रखा, लेकिन वह हार गए। दास और अन्य नेताओं ने कांग्रेस से अलग हो गए और स्वराज पार्टी का गठन किया।
    • स्वराजवादी विट्ठलभाई पटेल 1925 में केंद्रीय विधान सभा के स्पीकर बने।
    • 1925 में सी आर दास की मृत्यु ने पार्टी को कमजोर कर दिया।

Last updated on Sep 21, 2022

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स्वराज पार्टी पराधीन भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय बना एक राजनैतिक दल था। इस दल की स्थापना 1 जनवरी, 1923 को देशबन्धु चित्तरंजन दास तथा मोतीलाल नेहरु ने की थी। यह दल भारतीयों के लिये अधिक स्व-शासन तथा राजनीतिक स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिये कार्य कर रहा था। भारतीय भाषाओं में स्वराज का अर्थ है "अपना राज्य"।इस पैक्ट के तहत गांधी को "आल इण्डियन स्पिनर्स एसोशिएशन" की जिम्मेदारी दी गई।

स्थापना[संपादित करें]

जब ५ फरवरी सन् १९२२ को चौरी चौरा काण्ड हुआ और गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया तो कुछ नेता गांधीजी के इस कदम से बहुत अप्रसन्न हुए। इन नेताओं का विचार था कि असहयोग आन्दोलन को वापस नहीं लिया जाना चाहिये था क्योंकि इस आन्दोलन को आश्चर्यचकित करने वाली सफलता मिल रही थी और कुछ दिनों में यह आन्दोलन अंग्रेजी राज की कमर तोड़ देता। इसके बाद दिसम्बर १९२२ में चित्तरंजन दास की अध्यक्षता में गया में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ जिसमें विधान परिषद में प्रवेश न लेने का प्रस्ताव पारित हो गया। चित्तरंजन दास इस प्रस्ताव के विरोधी थे। उन्होने त्याग पत्र दे दिया।

जनवरी 1923 ई. में इलाहाबाद में चित्तरंजन दास, नरसिंह चिंतामन केलकर और मोतीलाल नेहरू बिट्ठलभाई पटेल ने 'कांग्रेस-खिलाफत स्वराज्य पार्टी' नाम के दल की स्थापना की जिसके अध्यक्ष चित्तरंजन दास बनाये गये और मोतीलाल उसके सचिव बनाये गये।

इस दल का प्रथम अधिवेशन मार्च १९२३ में इलाहबाद में हुआ, जिसमें इसका संविधान और कार्यक्रम निर्धारित हुआ। अपने उदेश्यों की प्राप्ति के लिए स्वराज दल ने निम्नलिखित कार्यक्रम निर्धारित किये-

  • परिषद् में जाकर सरकारी आय-व्यय के ब्यौरे को रद्द करना,
  • सरकार के उन प्रस्तावों का विरोध करना जिनके द्वारा नौकरशाही को शक्तिशाली बनाने का प्रयत्न हो,
  • राष्ट्र की शक्ति में वृद्धि लाने वाले प्रस्तावों, योजनाओं और विधेयकों को परिषद् में प्रस्तुत करना,
  • केन्द्रीय और प्रान्तीय व्यवस्थापिका सभाओं के सभी निर्वाचित स्थानों को घेरने के लिए प्रयत्न करते रहना जिससे कि स्वराज दल की नीति को अधिक प्रभावशाली बनाया जा सके,
  • परिषद् के बाहर महात्मा गांधी द्वारा निर्धारित रचनात्मक कार्यक्रम को सहयोग प्रदान करना,
  • हमेशा सत्याग्रह के लिए तैयार रहना और यदि आवश्यक हो तो पदों का त्याग भी कर देना।

इसके पहले के घटनाक्र में, असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ होने से पूर्व कांग्रेस ने विधान परिषदों के चुनाव का बहिष्कार करने का निर्णय लिया था। असहयोग आन्दोलन की समाप्ति के बाद कांग्रेस के सामने फिर से यह प्रश्न खड़ा हो गया कि 1919 के एक्ट द्वारा घोषित विधान परिषद के चुनाव में भाग लिया जाए अथवा नहीं। चितरंजन दास, मोतीलाल नेहरू और विट्ठल भाई परिषदों के चुनाव में हिस्सा लेने के पक्ष में थे, वे इन सभाओं में प्रवेश कर असहयोग करने की बात करते थे। ये लोग 'परिवर्तनवादी' कहलाए। दूसरी ओर डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, राजगोपालाचारी, वल्लभभाई पटेल, डॉक्टर अंसारी, एन जी रंगा आयंगर, चक्रवर्ती आदि नेता परिषद के चुनाव का बहिष्कार करना चाहते थे और उन्होने परिषदों में प्रवेश करने की नीति का विरोध किया। ये लोग 'अपरिवर्तनवादी' कहलाये।

दिसम्बर 1922 में चितरंजन दास की अध्यक्षता में गया में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। इस अधिवेशन में परिषद में प्रवेश न लेने का प्रस्ताव पारित हुआ जिसके कारण चितरंजन दास ने त्याग पत्र दे दिया। इसके बाद विधान परिषद में जाने के प्रस्ताव के समर्थकों ने 1 जनवरी 1923 में इलाहाबाद में अपने समर्थकों का अखिल भारतीय सम्मेलन बुलाया और एक नई राजनीतिक पार्टी 'स्वराज्य पार्टी' की स्थापना की। इसके अध्यक्ष चित्तरंजन दास और महासचिव मोतीलाल नेहरु थे। यह पार्टी 'कांग्रेस खिलाफ स्वराज्य पार्टी' कहलाई। स्वराज दल विधान परिषदों में भाग लेने में विश्वास करता था। इनका लक्ष्य व्यवस्थापिका सभाओं में प्रवेश करके सरकार की गलत नीतियों की आलोचना करना, उसके दोषों को उजागर करना था। उनकी योजना यह थी की विधान परिषद के कार्य में आंतरिक रुप से रुकावट डाली जाए।

परिवर्तनवादियों और स्वराजवादियों में बढ़ती हुई कटुता को दूर करने के लिए सितंबर 1923 में मौलाना अब्दुल कलाम आजाद की अध्यक्षता में दिल्ली में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन बुलाया गया। इस अधिवेशन में स्वराज पार्टी को परिषदों का चुनाव लड़ने की अनुमति कांग्रेस ने दे दी। स्वराज पार्टी ने तय किया गया कि नई पार्टी कांग्रेस के अंदर ही चुनाव लड़ेगी।

नवम्बर 1923 के चुनाव में स्वराज्य दल को केंद्रीय और प्रांतीय परिषदों के चुनाव में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त हुई। उन्हें मध्य प्रांत और बंगाल में पूर्ण बहुमत मिल गया। सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली की 101 निर्वाचित सीटों में से 42 सीटों पर इनकी जीत हुई। बंगाल में यह सबसे बड़े दल के रूप में उभरे और मुंबई और उत्तर प्रदेश में भी इन्हें अच्छी सफलता मिली। मद्रास और पंजाब में जातिवाद और सांप्रदायिकता की लहर के कारण इन्हें कुछ खास सफलता प्राप्त नहीं हुई।

गांधी जी का स्वास्थ्य खराब होने के कारण उन्हें ६ वर्ष की सजा पूर्ण करने से पूर्व ही फरवरी 1924 में जेल से छोड़ दिया गया। महात्मा गांधी जी ने स्वराज जल के राजनीतिक कार्यक्रम का समर्थन किया और स्वराज वादियो ने उनके रचनात्मक कार्यों का। १९२५ में चित्तरंजन दास की असामयिक मृत्यु होने से स्वराज पार्टी को बहुत बड़ा झटका लगा। इसके बाद पार्टी मृतप्राय हो गयी।

पतन के प्रमुख कारण[संपादित करें]

देशबंधु चितरंजन दास की मृत्यु- 1925 ई. में चित्तरंजन दास की मृत्यु स्वराज दल के लिए बहुत बड़ा धक्का थी। इसके कारण स्वराज दल का संगठन कमजोर पड़ गया, विशेषकर बंगाल में इस दल की स्थिति अत्यन्त शिथिल पड़ गयी।

सहयोग की नीति- आरम्भ में स्वराजवादियों ने असहयोग की नीति अपनाई थी और सरकार के कार्यों में विघ्न डालना ही उनका प्रमुख उद्देश्य बन गया था। परन्तु उन्हें बाद में लगने लगा कि असहयोग की नीति अपनाने से देश को लाभ के बदले हानि ही हो रही है। इसलिए उन्होंने सहयोग की नीति अपना ली। परिणामस्वरूप जनता में उनकी लोकप्रियता घटने लगी।

स्वराज दल में मतभेद- पंडित मोतीलाल नेहरु सरकार से असहयोग करनेवालों का नेतृत्व कर रहे थे। दूसरी ओर बम्बई के स्वराज दल के नेता सहयोग के पक्ष में आ गए थे। इस प्रकार स्वराज दल में मतभेद उभर आया।

1926 के निर्वाचन में प्रत्याशित सफलता न मिलना- 1926 ई. के निर्वाचन में स्वराजवादियों को वह सफलता प्राप्त नहीं हो सकी जो उन्होंने 1923 ई. के निर्वाचन में मिली थी. इससे पार्टी को बहुत बड़ा धक्का लगा।

हिन्दूवादी दल की स्थापना- पं. मदनमोहन मालवीय और लाला लाजपत राय की धारणा यह थी कि स्वराजवादियों की अड़ंगा नीति से हिन्दुओं को हानि होगी और मुसलमानों को लाभ। यह सोचकर उन्होंने कांग्रेस से हटकर एक नया दल बनाया। उनके इस निर्णय से कांग्रेस के साथ-साथ स्वराज दल को बड़ा झटका लगा।

कार्य एवं उपलब्धियाँ[संपादित करें]

स्वराज दल की प्रमुख सफलताएं निम्नलिखित थीं-

  • ये बजट को प्रत्येक वर्ष अस्वीकृत कर देते थे, परिणामस्वरुप वायसराय को अपने विशेषाधिकार द्वारा इसे पारित करना पड़ता था। इस तरह उन्होंने नए विधान मंडलों का असली चरित्र उजागर किया।
  • स्वराजवादियो ने उत्तरदायी शासन की स्थापना करने के लिए गोलमेज सम्मेलन बुलाने का सुझाव दिया।
  • इनकी मांगों के परिणामस्वरुप 1924 में सरकार ने 1919 के अधिनियम की समीक्षा के लिए मुंडी मैन कमेटी की नियुक्ति की।
  • 1925 में विट्ठल भाई पटेल को सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली का अध्यक्ष बनाने में सफलता मिली।
  • 1925 में मोतीलाल नेहरू ने स्क्रीन कमेटी की सदस्यता स्वीकार की जो सेना के तीव्र भारतीयकरण के लिए नियुक्त की गई थी।
  • 1922 से 1928 तक कांग्रेस लगभग शान्त रही, इसीलिए माहौल गर्म बनाए रखने की जिम्मेदारी स्वराज पार्टी की रही। उन्होंने परिषदों में ब्रिटिश सरकार की भारत-विरोधी नीतियों पर लगभग रोक लगा दी थी।

धीरे-धीरे स्वराजवादियों ने परिषद में सरकार को असहयोग की नीति छोड़कर सहयोग की नीति अपना ली। 1925 में चितरंजन दास की मृत्यु से स्वराज दल को बड़ा धक्का लगा। 1926 में कांग्रेस ने स्वराजवादियों को परिषद से बाहर आने का आदेश दिया क्योंकि सरकार उनके साथ सहयोग नहीं कर रही थी। 1926 के चुनाव में स्वराज पार्टी को आशा के अनुरूप सफलता नहीं मिली। केंद्र में से 40 सीटों पर और मद्रास में आधी सीटों पर सफलता मिली, लेकिन बाकी प्रांतों विशेषकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रांत और पंजाब में इसे भारी हार का सामना करना पड़ा। मुस्लिम ताकतों का विधान मंडलों में प्रतिनिधित्व बढ़ गया। स्वराजी इस बार विधानमंडलों में भी राष्ट्रीय मोर्चा बनाने में असफल रहे। लेकिन इस बार भी कई मौकों पर स्थगन प्रस्ताव लाने में कामयाब हो गए।

स्वराज पार्टी के कार्य का प्रमुख उदाहरण है कि जब 1928 में सरकार द्वारा सार्वजनिक सुरक्षा बिल लाया गया, जिसके तहत किसी भी स्वाधीनता संग्राम समर्थक गैर-भारतीयों को वह देश में निकाल सकती थी, तब स्वराज पार्टी ने इसका विरोध किया और बिल पारित नहीं हो सका। जब बिल पुनः पेश करने की कोशिश की गई तो परिषद के अध्यक्ष विट्ठल भाई पटेल ने उसे पेश करने की अनुमति तक नहीं दी। उन्होंने इस विधेयक को 'भारतीय गुलामी विधेयक नंबर एक' की संज्ञा दी।

लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में पारित प्रस्ताव और सविनय अवज्ञा आंदोलन छिड़ने के कारण 1930 में स्वराज पार्टी ने विधानमंडल का दामन छोड़ दिया।

गांधी-दास समझौता[संपादित करें]

खराब स्वास्थ्य के कारण गांधीजी को फरवरी 1924 में जेल से रिहा कर दिया गया था। नवम्बर 1924 में गांधीजी, चितरंजन दास और मोतीलाल नेहरू ने एक संयुक्त वक्तव्य दिया जो गांधी दास पेक्ट के नाम से जाना जाता है। इसमें कहा गया कि असहयोग अब राष्ट्रीय कार्यक्रम नहीं रहेगा। स्वराज पार्टी को अधिकार दिया गया कि वह कांग्रेस के नाम और कांग्रेस के अभिन्न अंग के रूप में विधानसभाओं के अंदर कार्य करे।

मुख्य घटनाक्रम[संपादित करें]

  • १९१४-१९१८ -- प्रथम विश्वयुद्ध
  • १३ अप्रैल, १९१९ -- अमृतसर में जलियाँवाला बाग हत्याकांड
  • २३ दिसम्बर १९१९ -- भारत सरकार अधिनियम, १९१९ लागू हुआ। कांग्रेस ने इसे अस्वीकार कर दिया।
  • ५ सितम्बर १९२० -- असहयोग आन्दोलन आरम्भ
  • ५ फरवरी, १९२२ -- चौरी चौरा कांड
  • १० मार्च १९२२ -- गांधी जी को असंतोष भड़काने के अपराध में 6 वर्ष की कैद की सज़ा सुनाई गयी। स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणों से उन्हें 5 फ़रवरी 1924 को रिहा कर दिया गया।
  • दिसम्बर १९२२ -- चित्तरंजन दास की अध्यक्षता में गया में कांग्रेस का अधिवेशन ; अधिवेशन में विधान परिषद में प्रवेश न लेने का प्रस्ताव पारित हुआ जिसके कारण चितरंजन दास ने त्याग पत्र दे दिया।
  • १ जनवरी १९२२ -- 'कांग्रेस-खिलाफत स्वराज पार्टी' की स्थापना
  • मार्च, १९२३ -- इलाहाबाद में स्वराज पार्टी का पहला राष्ट्रीय अधिवेशन
  • सितम्बर 1923 -- परिवर्तनवादियों और स्वराजवादियों में बढ़ती हुई कटुता को दूर करने के लिए अबुल कलाम आज़ाद की अध्यक्षता में दिल्ली में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन बुलाया गया।
  • नवम्बर १९२३ -- केन्द्रीय एवं प्रान्तीय विधान परिषदों का चुनाव हुआ। इसमें स्वराज पार्टी को अच्छी सफलता मिली।
  • ३० दिसम्बर, १९२३ -- स्वराज पार्टी एक बैठक हुई जिसमें पूर्ण उत्तरदयी सरकार की स्थापना, राष्ट्रीय नेताओं को रिहा करने, और दमनकारी कानूनों को वापस लेने और एक गोल मेज सम्मेलन बुलाने की मांग की गयी जिसमें भारत के लिए संविधान बनाने सम्बन्धी सिद्धान्तों पर चर्चा आरम्भ की जाय।
  • जून १९२५ -- चितरंजन दास की असामयिक मृत्यु ; और १९२६ में मोतीलाल नेहरू के कांग्रेस में वापस चले जाने के कारण स्वराज पार्टी मृतप्राय हो गयी।
  • १९३५ -- स्वराज पार्टी का विलय।

सन्दर्भ[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • असहयोग आन्दोलन
  • चौरी चौरा कांड
  • भारत सरकार अधिनियम, १९१९

बिहार में स्वराज दल के संस्थापक कौन थे?

इस दल की स्थापना 1 जनवरी, 1923 को देशबन्धु चित्तरंजन दास तथा मोतीलाल नेहरु ने की थी। यह दल भारतीयों के लिये अधिक स्व-शासन तथा राजनीतिक स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिये कार्य कर रहा था।

स्वराज पार्टी की स्थापना कब और किसने की?

1 जनवरी 1923स्वराज पार्टी / स्थापना की तारीख और जगहnull

स्वराज पार्टी कक्षा 10 की स्थापना किसने की थी?

इसका गठन चित्तरंजन दास और मोतीलाल नेहरू ने किया था। चित्तरंजन दास इसके अध्यक्ष थे और मोतीलाल नेहरू इसके सचिव थे।

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