भारत-नेपाल के बीच वो सीमा विवाद जिसे एक नदी के बदलते हुए रास्ते ने जन्म दिया
- राघवेंद्र राव
- बीबीसी संवाददाता, नेपाल-भारत सीमा से लौटकर
28 मई 2022
अपडेटेड 29 मई 2022
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नारायणी नदी के पार दिखता सुस्ता का इलाक़ा
क़रीब 200 साल पहले एक नदी को दो देशों के बीच की सीमा के तौर पर निर्धारित कर दिया गया था. नदी के पूर्वी भाग को एक देश का अधिकार क्षेत्र मान लिया गया और पश्चिमी भाग को दूसरे देश का.
जैसे-जैसे समय गुज़रता गया, नदी ने अपना रास्ता बदलना शुरू किया और कुछ सालों में वो पूर्वी इलाक़े के और अंदर की तरफ बहने लगी.
नतीजा ये हुआ कि नदी के पूर्वी छोर का एक इलाक़ा धीरे-धीरे नदी के पश्चिमी छोर पर आ गया और दोनों देशों के बीच एक ऐसा सीमा विवाद पैदा हो गया जो आज तक नहीं सुलझ पाया है.
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ये दो देश हैं नेपाल और भारत. जिस नदी की हम बात कर रहे हैं उसे नेपाल में नारायणी और भारत में गंडक के नाम से जाना जाता है. और दोनों देशों के बीच सीमा विवाद में फंसा हुआ इलाक़ा है सुस्ता, जिस पर नेपाल और भारत दोनों ही दावा करते हैं.
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नारायणी नदी के पूर्वी तट पर तटबंध बनाते मज़दूर
बीबीसी की टीम नेपाल के नवलपरासी ज़िले में नारायणी नदी के किनारे पहुंची. और फिर एक नाव के ज़रिये हमने नदी पार की और हम सुस्ता पहुंचे.
सुस्ता पहुंचते ही हमें नेपाल पुलिस की एक पुलिस चौकी दिखी. यहां तैनात अधिकारियों का कहना था कि सुस्ता नेपाल का हिस्सा है. लेकिन साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि आसपास का बहुत-सा इलाका कई वर्षों से विवादित है.
हमने ऐसे कुछ विवादित इलाक़ों का जायज़ा लिया. नेपाल पुलिस के अधिकारियों का कहना था कि जो इलाक़े कई सालों से विवादित माने जाते हैं वहां एक समय सुस्ता के लोग फसलें उगाया करते थे. लेकिन सीमा विवाद के चलते अब वहां कोई खेती नहीं होती.
थोड़ी ही दूर पैदल चलने पर हमें एक खुला-सा मैदान मिला. नेपाल पुलिस का कहना था कि इस इलाक़े को लेकर भी दोनों देशों के बीच विवाद है. जब कुछ समय पहले नेपाल ने वहां सुरक्षाकर्मियों की तैनाती करने की कोशिश की थी तो भारत ने उसका विरोध किया था.
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सुस्ता और चकधावा के बीच की सड़क
सीमाओं के बीच धुंधली रेखाएँ
इस मैदान से कुछ ही दूर एक जगह हमें भारत के बिहार राज्य के लोग मिले जिनका कहना था कि वो जिस ज़मीन पर रह रहे हैं वो भारत के बिहार राज्य के चकधावा गांव है.
इस जगह पर एक संकरी से सड़क थी. नेपाल पुलिस का कहना था कि इस सड़क के उस पार भारत का चकधावा गांव था और इस पार नेपाल का सुस्ता.
लेकिन चकधावा के लोगों का कहना था कि सड़क के दूसरी तरफ भी कुछ भारतीयों के घर हैं. घरों की इस छोटी-सी बस्ती को देखकर ये कहना तक़रीबन नामुमकिन था कि भारत की सीमा कहां शुरू होती है या नेपाल की कहां ख़त्म.
चूंकि सुस्ता का इलाक़ा भारत के बिहार से सटा हुआ है इसलिए यहां के लोग अपनी रोज़मर्रा की खरीदारी करने सीमा पार कर भारत ही आते हैं. यही खरीदारी करने अगर उन्हें किसी नेपाल के बाज़ार में जाना हो तो उन्हें नारायणी नदी को पार करने की ज़रुरत पड़ती है.
सुस्ता के कुछ लोग हमें ऐसे भी मिले जिनका कहना था कि वो हर रोज़ नारायणी नदी पार कर नौकरी या व्यापार के लिए नेपाल की तरफ जाते हैं.
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सुस्ता के साथ रहते बिहार के लोग
सुगौली संधि
साल 1816 में एंग्लो-नेपाली युद्ध का अंत हुआ और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के बीच सुगौली संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे. इस संधि ने नारायणी नदी को भारत और नेपाल के बीच की सीमा के रूप में मान्यता दी थी.
इस संधि के मुताबिक़ नदी का पूर्वी भाग भारत का था और पश्चिमी भाग नेपाल का.
जिस समय संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे उस समय सुस्ता का इलाक़ा इस नदी के पश्चिम में स्थित था. लेकिन जैसे-जैसे नदी ने अपना मार्ग बदला, सुस्ता नदी के पूर्व की ओर चला गया. चूंकि सुगौली संधि के मुताबिक़ नदी के पश्चिम का इलाक़ा भारत का इसलिए ये इलाक़ा दोनों देशों के बीच विवाद की एक वजह बन गया.
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सुस्ता गांव, नेपाल
'सीमा की हदबंदी की जाए'
नेपाल का मानना है कि सुस्ता के इलाक़े में भारत ने उसकी ज़मीन पर अतिक्रमण किया है. हालांकि भारत का कहना है कि सीमा के संरेखण के मामले को लेकर दोनों देशों के बीच कुछ क्षेत्रों में धारणा का अंतर है.
भारत और नेपाल के बीच क़रीब 1,800 किलोमीटर लम्बी सीमा है. बिहार की लगभग 601 किलोमीटर की सीमा नेपाल से सटी हुई है, तो उत्तर प्रदेश की क़रीब 651 किलोमीटर की सीमा नेपाल से लगती है. नेपाल की सीमाएं भारत के उत्तराखंड, सिक्किम और पश्चिम बंगाल राज्यों से भी लगती हैं.
पिछले कुछ सालों मैं नेपाल में चली चर्चाओं में बिहार और उत्तर प्रदेश से लगती सीमा को नेपाल में कथित तौर पर हो रहे डेमोग्राफ़िक या जनसांख्यिकीय परिवर्तन के लिए ज़िम्मेदार ठहराया गया है.
गोपाल गुरुंग सुस्ता में रहते हैं और 'सुस्ता बचाओ अभियान' नाम की संस्था की अगुवाई करते हैं.
वे कहते हैं, "40,980 हेक्टेयर भूभाग में से 7,500 हज़ार हेक्टेयर भूभाग सुस्तावासियों के पास है, 19,600 हेक्टेयर भूभाग को लेकर विवाद है और बाकी भूभाग का अतिक्रमण बिहार के लोगों ने किया है. सुस्ता के लोगों की मांग सिर्फ इतनी है कि नेपाल के भूभाग नेपाली लोगों को दे दिए जाएं. इसमें और कोई विवाद ही नहीं है."
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गोपाल गुरुंग, सुस्ता बचाओ अभियान
गुरुंग का कहना है कि दोनों देशों की एक संयुक्त समिति को सीमा की हदबंदी करनी चाहिए और बॉर्डर पिलर लगा देने चाहिए.
इस मसले पर हमने नेपाल के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता से बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने बात करने से इंकार कर दिया.
वहीं नेपाल के साथ सीमा विवादों को लेकर भारत ने हाल ही में अपना रुख साफ़ किया है.
13 मई को भारत के विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने कहा, "जहां तक दोनों देशों के बीच सीमा पर चर्चा का संबंध है, तो दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यवस्थाएं मौजूद हैं. हमने हमेशा यह सुनिश्चित किया है कि ये व्यवस्थाएं उन मुद्दों पर चर्चा करने और उन मुद्दों का राजनीतिकरण किए बिना ज़िम्मेदार तरीके से चर्चा करने का सबसे अच्छा तरीका हैं."
भारत और नेपाल के दोस्ताना रिश्तों में साल 2020 में तब खटास आ गई थी जब नेपाल ने एक नए राजनीतिक नक़्शा जारी किया जिसमें उसने कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख के उन इलाकों को अपने क्षेत्र में दिखाया जिन्हें भारत उत्तराखंड राज्य का हिस्सा मानता है.
इसके बाद 8 मई 2020 को भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक विशेष कार्यक्रम में उत्तराखंड के धारचूला से चीन सीमा पर लिपुलेख तक एक सड़क संपर्क मार्ग का उदघाटन किया. नेपाल ने इसका विरोध करते हुए लिपुलेख पर अपना दावा दोहराया था. दोनों देशों के बीच कूटनीतिक खींचतान की वजह बना ये मामला कई दिनों तक सुर्ख़ियों में रहा था.
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सुस्ता में नेपाल पुलिस की चौकी
कैसे सुलझेगा सीमा विवाद?
भारत और नेपाल के बीच सीमा विवादों से जुड़े मसलों से निपटने के लिए साल 2014 में एक बाउंड्री वर्किंग ग्रुप बनाया गया था. लेकिन सीमा विवाद अभी भी अनसुलझे ही हैं.
बुद्धि नारायण श्रेष्ठा नेपाल के सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक रह चुके हैं और नेपाल की सीमाओं से जुड़े मसलो के विशेषज्ञ हैं.
वे कहते हैं, "ये दुःख की बात है कि सुस्ता के मामले में नेपाल-भारत तकनीकी या राजनयिक कर्मियों ने इस मसले के ऊपर चर्चा ही नहीं की है. पिछले दो साल से भारत और नेपाल के बीच सीमा मुद्दों को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई है. दोनों देश मिलकर अन्य कई क्षेत्रों में काम कर रहे हैं लेकिन सुस्ता के मुद्दे पर उन्होंने काम शुरू नहीं किया है."
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तो क्या निकट भविष्य में इस सीमा विवाद का कोई हल निकल पायेगा?
बुद्धि नारायण श्रेष्ठ कहते हैं, "दोनों देशों के लोगों को मिलकर काम करना चाहिए और लगभग 200 साल पहले 1816 के दौरान बहने वाली नदी का सीमांकन करना चाहिए. नेपाल और भारत के बहुत क़रीबी संबंध हैं. दोनों के बीच संबंध आम लोगों के स्तर पर हैं और इसलिए हमें सुस्ता क्षेत्र में भी संबंधों को बिगाड़ने की ज़रूरत नहीं है."
"इसलिए विवाद को दोनों देशों के तकनीकी लोगों द्वारा सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाया जाना चाहिए. इसे सरकारी अधिकारियों द्वारा निपटाया जाना चाहिए, संभवतः सरकार के प्रमुख या प्रधानमंत्री के स्तर पर."
गोपाल गुरुंग का कहना है कि भारत और नेपाल में हमेशा से अच्छी मित्रता रही है इसलिए इस मामले का हल निकल सकता है.
वे कहते हैं, "हमारे बीच रोटी-बेटी के संबंध हैं. हम लोग इस विषय पर कोई झगड़ा नहीं करना चाहते. हम चाहते हैं कि शांतिपूर्ण तरीके से भारत और नेपाल की सीमा अलग कर दी जाए."
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सुस्ता के साथ रहते बिहार के लोग
सुस्ता निवासी सुकई हरजन कहते हैं, "इसका हल सरकार जानती है. जो भी करना है वो सरकार को करना है. हम लोगों से तो होगा नहीं. हम किसान, मज़दूर हैं, हम क्या करेंगे. कोई हमारी बात मानेगा क्या?."
भारत और नेपाल के बीच सदियों पुराने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध हैं. दोनों देशों के बीच की वो अनूठी व्यवस्था मशहूर है जो अपने नागरिकों को बिना वीज़ा के दूसरे देश की यात्रा करने की अनुमति देती है.
जहां क़रीब अस्सी लाख नेपाली नागरिक भारत में रहते हैं और काम करते हैं, वहीं क़रीब छह लाख भारतीय नेपाल में रहते हैं.
शायद यही वजहें हैं जो सुस्ता जैसे गांव के लोगों को उम्मीद देती हैं कि एक न एक दिन ये दोनों देश इस सीमा विवाद को सुलझाने में कामयाबी हासिल कर लेंगे.