सुखवाद (Hedonism) नीतिशास्त्र के अंतर्गत नैतिक अपेक्षाओं की अभिपुष्टि करने वाला सिद्धांत है। सुखवाद के अनुसार अच्छाई वह है जो आनन्द प्रदान करती है या दुःख-पीड़ा से छुटकारा दिलाती है तथा बुराई वह है जो दुःख-पीड़ा को जन्म देती है। सैद्धांतिक तौर पर सुखवाद नीतिशास्त्र में प्रकृतिवाद का एक रूपांतर है। उसका आधार इस विचार में निहित है कि आनन्द मनुष्य का मुख्य निर्णायक गुण है, जो उसके स्वभाव में निहित है और उसके समस्त कार्यकलाप को निर्धारित करता है। सिद्धांत के रूप में सुखवाद की उत्पत्ति प्राचीन काल में ही हो गयी थी। यूनान में सुखवादी अरिस्टिप्पस के नीतिशास्त्र के अनुयायी रहे। सुखवाद एपीक्यूरस की शिक्षा में अपने चरम शिखर पर पहुँचा। सुखवाद के विचारों को मिल तथा बेंथम के उपयोगितावाद में केंद्रीय स्थान प्राप्त है।[1]
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ दर्शनकोश, प्रगति प्रकाशन, मास्को, १९८0, पृष्ठ-७२५, ISBN: ५-0१000९0७-२
बेन्थम के सुखवाद का सिद्धांत क्या है?
बेंथम के मत में मनुष्य स्वभाव में यह बात अंतर्निहित है कि वह सुख की प्राप्ति तथा दुख से निवृत्ति चाहता है। वह उन्हीं कार्यों को करना चाहता है जिनसे उसे सुख मिले और आनंद प्राप्त हो। किसी वस्तु या कार्य की उपयोगिता का मापदंड उससे प्राप्त होने वाला सुख या दुख है।
बेंथम के अनुसार सुख कितने प्रकार के होते हैं?
3) सुख और दुःख का वर्गीकरण – बेंथम ने सुख-दुःख को दो भागों (सरल व जटिल) में विभाजित किया है। उसके अनुसार सरल सुख 14 प्रकार के तथा सरल दुःख 12 प्रकार के हैं।
बेंथम के अनुसार दुःख और सुख के क्या स्रोत है?
सुख की प्राप्ति और दुःख का निवारण - बेंथम का मत है कि जो वस्तु सुख प्रदान करती है, वह अच्छी है और उपयोगी है। जिस कार्य या वस्तु से मनुष्य को दु:ख प्राप्त होता है वह अनुपयोगी है। मानव के समस्त कार्यों की कसौटी उपयोगितावाद है। बेंथम का मानना है कि जिस कार्य से प्रसन्नता या आनन्द में वृद्धि होती है तो वह कार्य उपयोगी है।
बेंथम कौन से सिद्धांत का समर्थक है?
Explanation: जेरेमी बेन्थम (Jeremy Bentham) (15 फ़रवरी 1748 – 6 जून 1832) इंग्लैण्ड का न्यायविद, दार्शनिक तथा विधिक व सामाजिक सुधारक था। वह उपयोगितावाद का कट्टर समर्थक था। वह प्राकृतिक विधि तथा प्राकृतिक अधिकार के सिद्धान्तों का कट्टर विरोधी था।