बुद्ध काल में पाटलिपुत्र का नाम क्या था? - buddh kaal mein paataliputr ka naam kya tha?

पटना का नाम बुध काल में क्या था?...


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पटना का नाम पुत्र कॉलेज में पाटलिपुत्र था

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पटना का इतिहास

पटना जंक्शन का दृश्य, जिसमें बिहार की संस्कृति (नीतीश कुमार के 6 वें मुख्य मंत्रालय के दौरान बनाया गया था।

लोककथाओं के अनुसार, राजा पत्रक को पटना का जनक कहा जाता है, जिसने अपनी रानी पाटलि के लिये जादू से इस नगर का निर्माण किया। इसी कारण नगर का नाम पाटलिग्राम पड़ा। पाटलिपुत्र नाम भी इसी के कारण पड़ा। संस्कृत में पुत्र का अर्थ पुत्र या बेटा तथा ग्राम का अर्थ गांव होता है।

पुरातात्विक अनुसंधानो के अनुसार पटना का इतिहास 490 ईसा पूर्व से होता है जब हर्यक वंश के शासक अजातशत्रु ने अपनी राजधानी राजगृह से बदलकर यहां स्थापित की, क्योंकि वैशाली के लिच्छवियों से संघर्ष में उपयुक्त होने के कारण पाटलिपुत्र राजगृह की अपेक्षा सामरिक दृष्टि से अधिक रणनीतिक स्थान पर था। उसने गंगा के किनारे यह स्थान चुना और अपमा दुर्ग स्थापित कर लिया।[1] उस समय से ही इस नगर का लगातार इतिहास रहा है - ऐसा गौरव दुनिया के बहुत कम नगरों को हासिल है। बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध अपने अन्तिम दिनों में यहां से गुजरे थे। उन्होने ये भविष्यवाणी की थी कि नगर का भविष्य उज्ज्वल होगा, पर कभी बाढ़, आग या आपसी संघर्ष के कारण यह बर्बाद हो जाएगा।

मौर्य साम्राज्य के उत्कर्ष के बाद पाटलिपुत्र सत्ता का केन्द्र बन गया। चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य बंगाल की खाड़ी से अफ़ग़ानिस्तान तक फैल गया था। शुरूआती पाटलिपुत्र लकड़ियों से बना था, पर सम्राट अशोक ने नगर को शिलाओं की संरचना में तब्दील किया। चीन के फाहियान ने, जो कि सन् 399-414 तक भारत यात्रा पर था, अपने यात्रा-वृतांत में यहां के शैल संरचनाओं का जीवन्त वर्णन किया है।

मेगास्थनीज़, जो कि एक युनानी इतिहासकार और चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में एक राजदूत के नाते आया था, ने पाटलिपुत्र नगर का प्रथम लिखित विवरण दिया। ज्ञान की खोज में, बाद में कई चीनी यात्री यहां आए और उन्होने भी यहां के बारे में, अपने यात्रा-वृतांतों में लिखा है।

इसके पश्चात नगर पर कई राजवंशों का राज रहा। इन राजाओं ने यहीं से भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन किया। गुप्त वंश के शासनकाल को प्राचीन भारत का स्वर्ण युग कहा जाता है। पर इसके बाद नगर को वह गैरव नहीं मिल पाया जो एक समय मौर्य वंश के समय प्राप्त था।

गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद पटना का भविष्य काफी अनिश्चित रहा। 12 वीं सदी में बख़्तियार खिलजी ने बिहार पर अपना अधिपत्य जमा लिया और कई आध्यात्मिक प्रतिष्ठानों को ध्वस्त कर डाला। पटना देश का सांस्कृतिक और राजनैतिक केन्द्र नहीं रहा।

मुगलकाल में दिल्ली के सत्ताधारियों ने यहां अपना नियंत्रण बनाए रखा। इस काल में सबसे उत्कृष्ठ समय तब आया जब शेरसाह सूरी ने नगर को पुनर्जीवित करने की कोशिश की। उसने गंगा के तीर पर एक किला बनाने की सोची। उसका बनाया कोई दुर्ग तो अभी नहीं है, पर अफ़ग़ान शैली में बना एक मस्जिद अभी भी है।

मुगल बादशाह अकबर 1574 में अफ़गान सरगना दाउद ख़ान को कुचलने पटना आया। अकबर के राज्य सचिव एवं आइने अकबरी के लेखक (अबुल फ़जल) ने इस जगह को कागज, पत्थर तथा शीशे का सम्पन्न औद्योगिक केन्द्र के रूप में वर्णित किया है। पटना राइस के नाम से यूरोप में प्रसिद्ध चावल के विभिन्न नस्लों की गुणवत्ता का उल्लेख भी इन विवरणों में मिलता है।

मुगल बादशाह औरंगजेब ने अपने प्रिय पोते मुहम्मद अज़ीम के अनुरोध पर 1704 में, शहर का नाम अजीमाबाद कर दिया। अज़ीम उस समय पटना का सूबेदार था। पर इस कालखंड में, नाम के अतिरिक्त पटना में कुछ विशेष बदलाव नहीं आया।

मुगल साम्राज्य के पतन के साथ ही पटना बंगाल के नबाबों के शासनाधीन हो गया जिन्होंने इस क्षेत्र पर भारी कर लगाया पर इसे वाणिज्यिक केन्द्र बने रहने की छूट दी। १७वीं शताब्दी में पटना अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का केन्द्र बन गया। अंग्रेज़ों ने 1620 में यहां रेशम तथा कैलिको के व्यापार के लिये यहां फैक्ट्री खोली। जल्द ही यह सॉल्ट पीटर (पोटेशियम नाइट्रेट) के व्यापार का केन्द्र बन गया जिसके कारण फ्रेंच और डच लोग से प्रतिस्पर्धा तेज हुई।

बक्सर के निर्णायक युद्ध के बाद नगर इस्ट इंडिया कंपनी के अधीन चला गया और वाणिज्य का केन्द्र बना रहा।

1912, में बंगाल के विभाजन के बाद, पटना उड़ीसा तथा बिहार की राजधानी बना। It soon emerged as an important and strategic centre. A number of imposing structures were constructed by the British. Credit for designing the massive and majestic buildings of colonial Patna goes to the architect, I. F. Munnings. Most of these buildings reflect either Indo-Saracenic influence (like Patna Museum and the state Assembly), or overt Renaissance influence like the Raj Bhawan and the High Court. Some buildings, like the General Post Office (GPO) and the Old Secretariat bear pseudo-Renaissance influence. कुछ लोगों का कहना है कि पटना के नए भवनों के निर्माण में हासिल हुई महारथ दिल्ली के शासनिक क्षेत्र के निर्माण में बहुत काम आई।

पटना में कई प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान भी हैं।There are several prestigious educational institutions in Patna like Patna College, Patna Women's College, Patna Science College,Bihar National College,Bihar College of Engineering, Patna Medical College (formerly, Prince of Wales Medical College), Nalanda Medical College, Patna Dental College and the Patna Veterinary College.

1935 में उड़ीसा बिहार से अलग कर एक राज्य बना दिया गया। पटना राज्य की राजधानी बना रहा।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में नगर ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नील की खेती के लिये चम्पारण का आन्दोलन तथा 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन इनमें से कुछ उल्लेखनीय नाम है। आजादी के बाद पटना बिहार की राजधानी बना रहा। 2000 में झारखंड राज्य के बनने के बाद अभी तक यह बिहार की राजधानी है।

चित्रदीर्घा : विभिन्न राजवंशों की राजधानी पटना[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "एम्स-दीघा एलिवेटेड रोड अब पाटलि पथ, कल होगा कारगिल चौक से एनआइटी तक डबल डेकर फ्लाइओवर का शिलान्यास".

बुद्ध काल में पाटलिपुत्र का नाम क्या है?

पाटलिग्राम ही आगे चलकर पाटलिपुत्र नाम से प्रसिद्ध हुआ। कुछ प्राचीन संस्कृत ग्रंथों एवं पुराणों में पाटलिपुत्र का दूसरा नाम पुष्पपुर या कुसुमपुर प्राप्त होता है। उत्तर- सिख संप्रदायके लोगों के लिए पटना नगर में पूजनीय स्थल अवस्थित है

पाटलिपुत्र का नया नाम क्या है?

2500 साल पहले मगध के विशाल साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी. बाद में पाटलिपुत्र का ही नाम बदलकर पटना रखा गया.

बुद्ध के समय में पटना का क्या नाम था?

पूर्वी भारत का एक प्रमुख शहर होने के साथ ही पटना का ऐतिहासिक महत्त्व भी है। यह पहले पाटलिपुत्र के नाम से जाना जाता था

पाटलिपुत्र के संबंध में भगवान बुद्ध ने क्या कहा था?

भगवन बुद्ध ने कहा था कि- यह नगर आर्यावर्त का सर्वश्रेष्ठ नगर होगा और संपूर्ण आर्यावर्त का नेतृत्व करेगा। लेकिन इसे आग, पानी एवं आतरिक मतभेद का सदैव भय रहेगा। वही सभ्यता द्वार के दूसरी ओर यूनानी राजदूत और लेखक मेगास्थानीज और जैन तीर्थकार वर्धमान महावीर के शब्द उकेरे गए हैं। सभी जीवित प्राणियों को सम्मान देना अहिंसा है।

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