छायावाद के कवि कौन थे निराला? - chhaayaavaad ke kavi kaun the niraala?

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जैसे कि आपने क्वेश्चन पूछा निराला कभी फोन से शुरू त्रिपाठी निराला हिंदी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हुए जयशंकर प्रसाद सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ हिंदी साइड में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं किसान के साथ अपने सहज बोध के दौरान संबंध के कारण निराला प्रकृति के सौंदर्य और जीवन के उल्लास के भी उतने ही बड़े कभी हैं जितने संघर्ष के सौंदर्य उल्लास और संघर्ष में आपसी विरोध नहीं है धन्यवाद

jaise ki aapne question poocha niraala kabhi phone se shuru tripathi niraala hindi kavita ke chhayavadi yug ke char pramukh stambho me se ek maane jaate hue jaishankar prasad sumitranandan pant aur mahadevi verma ke saath hindi side me chaayavaad ke pramukh stambh maane jaate hain kisan ke saath apne sehaz bodh ke dauran sambandh ke karan niraala prakriti ke saundarya aur jeevan ke ullas ke bhi utne hi bade kabhi hain jitne sangharsh ke saundarya ullas aur sangharsh me aapasi virodh nahi hai dhanyavad

जैसे कि आपने क्वेश्चन पूछा निराला कभी फोन से शुरू त्रिपाठी निराला हिंदी कविता के छायावादी

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छायावादी कवि के रूप में जयशंकर प्रसाद chhayavadi kavi jaishankar prasad jaishankar prasad ki kavyagat visheshta जयशंकर प्रसाद की काव्यगत विशेषताएँ छायावादी कवि के रूप में जयशंकर प्रसाद जयशंकर प्रसाद, पंत, निराला एवं महादेवी वर्मा छायावाद रूपी काव्य महल के 4 कीर्ति स्तम्भ हैं ।

छायावादी कवि के रूप में जयशंकर प्रसाद


जयशंकर प्रसाद की काव्यगत विशेषताएँ छायावादी कवि के रूप में जयशंकर प्रसाद chhayavadi kavi jaishankar prasad jaishankar prasad ki kavyagat visheshta जयशंकर प्रसाद, पंत, निराला एवं महादेवी वर्मा छायावाद रूपी काव्य महल के 4 कीर्ति स्तम्भ हैं । यदि निराला ने उसे जन्म दिया तो प्रसाद ने उसे खड़ा किया, पंत ने उसे सवाँरा और महादेवी वर्मा ने उसमें प्राण प्रतिष्ठित किया।कुछ आलोचक प्रसाद, पंत और निराला को छायावाद की वृहदत्रयी मानकर प्रसाद को छायावादी युग का ब्रह्मा, पंत को विष्णु और निराला को शंकर स्वीकार करते हैं। 


जयशंकर प्रसाद - 

(सन् 1889-1937 ) ये छायावाद के प्रवर्तक कवि हैं।प्रारम्भिककाल में प्रसाद जी ब्रजभाषा में लिखा करते थे। इनकी ब्रजभाषा की कविताएँ 'चित्राधार' में संग्रहित हैं।खड़ी बोली के चार काव्य कानन कुसुम, महाराणा का महत्व, करुणालय एवं प्रेमपथिक इनकी प्रारम्भिक रचनाएँ हैं।इन रचनाओं में न तो साहित्यिक प्रौढ़ता है न छायावादी प्रवृत्ति।इनका ‘झरना' काव्य सन् 1918 में 24 कविताओं के साथ प्रकाशित हुआ । इसी में छायावादी प्रवृत्तियों का सर्वप्रथम परिचय हुआ।जब इसका दूसरा संस्करण सन् 1927 में 31 कविताओं के साथ निकाला तो उसमें कई नई कविताओं के माध्यम से आत्मव्यंजना का अनूठापन, चित्रविधान, रहस्यमयता, प्रेमानुभूति आदि छायावादी प्रवृत्तियाँ खुलकर सामने आई ।आँसू [1931] में छायावादी प्रवृत्तियाँ प्रौढ़ रूप से देखने को मिली । लहर' तथा 'कामायनी' इनके चरम साहित्यिक उत्कर्ष काल की रचनाएँ हैं। 

जयशंकर प्रसाद


छायावादी प्रवृत्ति की दृष्टि से झरना काव्य उल्लेखनीय है।इस दृष्टि से इसमें संग्रहित किरण, विषाद, बालु की बेला, आदि कविताएँ विशेष महत्वपूर्ण हैं। 


सन् 1930-31 के राष्ट्रीय आन्दोलन के दिनों में आँसू काव्य की रचना हुई।इसको प्रत्येक दृष्टि से छायावाद की प्रौढ़ रचना कह सकते हैं ।आँसू एक प्रेमकाव्य है।जिसमें कवि का व्यक्तिवाद, तथा प्रेम वेदना की दिव्य झाँकी लेकर प्रकट हुआ है ।यहाँ कवि की पीड़ा ही आँसू बन गई हैं - 


जो घनीभूत पीड़ा थी, मस्तक में स्मृति सा छाई। 

दुर्दिन में आँसू बनकर, वह आज बरसने आई॥ 


इस काव्य का नायक कवि स्वयं है । यह उसके निजी जीवन की प्रयोगशाला है । उसके आँसुओं के माध्यम से अतीत संयोग की सुखद स्मृतियाँ उसे झकझोर देती है और कवि विवश होकर अपने छालों को छिल-छिल कर फाड़ता है। कवि की सौन्दर्य दृष्टि बेजोड़ है । कहीं-कहीं आध्यात्मिक संकेत द्वारा उसने अपने लौकिक प्रेम को दर्शाया है । परन्तु इस आधार पर इसे अलौकिक प्रेमकाव्य कहना अन्याय है । रूप और विलास के चित्र, व्यंजना का अनूठापन, कल्पना की रंगीनी, भावों की सघनता, भाषा की सुकुमार योजना तथा नियतिवाद आँसू काव्य की अक्षय निधियाँ हैं। 


'लहर' प्रसाद जी की एक मुक्तक रचना है, इसमें अन्तर्मुखी तथ बहिर्मुखी दोनों प्रवृत्तियाँ विकसित हुई है। प्रसादजी यहाँ एक सशक्त, प्रौढ़ आत्मचिन्तक तथा विद्रोही कवि के रूप में सामने आते हैं । इस संग्रह में प्रेमगीत, आत्मकथा, राष्ट्रीय गीत, प्रकृति चित्र, ऐतिहासिक आख्यान आदि विषय समाहित हैं। 


प्रेमगीत - अरे कहीं देखा है तुमने, मुझे प्यार करने वाले को। 

मेरी आँखों में आकर फिर, आँसू बन टलने वाले को॥


प्रकृति चित्र- बीती विभावरी जाग री। 


आत्मकथा - मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं, स्वप्न देखकर जाग गया।


देशप्रेम - हिमालय के आँगन में उसे, प्रथम किरणों का दे उपहार॥ 


ऐतिहासिक आख्यानों में अशोक की चिन्ता, शेर सिंह का अस्त्र समर्पण, पेशोला की प्रतिध्वनि कविताएँ प्रमख है। इस काव्य में छायावाद के ब्रह्मा प्रसाद की दो प्रमुख प्रवृत्तियाँ प्रकृति चित्रण और रहस्यात्मकता को क्रमशः पन्त और निराला ने विकासोन्मुख किया। 


प्रसाद जी की कला का सर्वोच्च शिखर 'कामायानी' है । यद्यपि इस काव्य की कहानी प्राचीन साहित्य से ली गई है।परन्तु कवि ने अपनी उर्वर कल्पना द्वारा इसे अत्यन्त सार्थक रूप में ढाल दिया है । छायावादी युग की यह सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है। व्यक्तिवादी काव्य की चरम परिणति निश्चित रूप से प्रसाद की कामायनी में हुई है। वह मनु महाराज के मानसिक विकास तथा वाह्य संघर्ष के रूप में आज व्यक्ति के विकासोन्मुख व्यक्तित्व की अन्तकथा है । मनु श्रद्धा तथा इड़ा की पौराणिक कहानी के माध्यम से कवि ने मानव के बौद्धिक तथा भावात्मक विकास को लिपिबद्ध किया है। 


मनु, श्रद्धा तथा इडा पौराणिक पात्र होते हुए भी प्रतीकात्मक हैं । मनु मन अर्थात् आज के आत्म चेतन व्यक्ति का प्रतीक, श्रद्धा भाव अर्थात् मनुष्य की सहज मानवीय भावना, नैतिक मूल्य युक्त मानव हृदय के श्रद्धा तत्व का प्रतीक इड़ा बुद्धि अर्थात आधुनिक पूँजीवादी समाज वर्ग भेद और शोषण की मान्यताओं पर आधारित बुद्धि तत्व का प्रतीक है। प्रतीकात्मक रूप में ये पात्र प्रसाद जी के आनन्दवाद को सार्थक करते है। आज के बुद्धिवादी युग में विड्दना ग्रस्त मानव के मूल कारणों पर प्रकाश डालते हुए कवि ने जीवन में सन्तुलन स्थापित करने का संदेश दिया है। 


ज्ञान दूर कुछ क्रिया भिन्न है, इच्छा क्यों पूरी हो मन की। 

एक दूसरे से न मिल सके, विडम्बना है जीवन की॥ 


कामायनी महाकाव्य में मनोविकारों के सूक्ष्म चित्र, प्रकृति का मनोरम चित्र, नारी सौन्दर्य एवं प्रणय के चित्र, प्रतीक चित्र, भाषा के चित्रात्मक लाक्षणिक चित्र जितने प्रभावकारी और सुन्दर हैं, उसका उद्देश्य उतना ही लोकोपकारी एवं आदर्श रूप हैं। यह महाकाव्य प्रसाद जी को मानवतावादी, युगान्तकारी महाकवि सिद्ध करता है। 

छायावाद के कवि कौन थे अ निराला जी?

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (२१ फरवरी, १८९९ - १५ अक्टूबर, १९६१) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। वे जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं।

छायावाद के कवि कौन थे answer?

जयशंकर प्रसाद, सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला', सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, पंडित माखन लाल चतुर्वेदी इस काव्य धारा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। छायावाद नामकरण का श्रेय मुकुटधर पाण्डेय को जाता है।

छायावाद के जनक कौन है?

जयशंकर प्रसाद ने हिंदी काव्य में छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई और वह काव्य की सिद्ध भाषा बन गई।

छायावाद के लेखक कौन है?

प्रकृति का प्राणमय प्रदेश कविता में आया। जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”, सुमित्रानन्दन पंत और महादेवी वर्मा “छायावादी युग” के चार प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं।

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