आज का योग: छात्रों के लिए बहुत फायदेमंद हैं यह योगासन, याददाश्त होगी तेज और पढ़ाई में लगेगा मन
हेल्थ डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: Abhilash Srivastava Updated Thu, 18 Nov 2021 11:51 AM IST
आज के इस दौर में याददाश्त की कमजोरी और आसानी से ध्यान केंद्रित न कर पाना लोगों की सबसे बड़ी समस्या बन गई है। विशेषकर परीक्षा की तैयारी करते समय छात्रों के सामने सबसे आम समस्या यह है कि उन्हें ध्यान केंद्रित करने और चीजों को याद करने में बहुत कठिनाई होती है। छात्रों के अलावा आम जीवन में भी कई लोगों को चीजों को याद करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, तो क्या यह समस्या ठीक की जा सकती है? विशेषज्ञों का जवाब है-हां।
सामान्यतौर पर नींद की कमी, कम ऊर्जा और थकान सहित कई कारणों से याददाश्त कमजोर होने की समस्या हो सकती है। इन समस्याओं को दूर करने का सबसे बेहतर विकल्प है-योग। योग करने से न केवल आप शांत रहेंगे साथ ही आपकी याददाश्त, एकाग्रता में भी सुधार होगा। आइए ऐसे ही कुछ योगासनों के बारे में जानते हैं।
पद्मासन योग का करें अभ्यास
पद्मासन या कमल मुद्रा, मांसपेशियों के तनाव को कम करने के साथ
आपके मन को शांत करने का सबसे बेहतर उपाय हो सकता है। यह योगासन आपके दिमाग को तेज बनाने के साथ मस्तिष्क की कार्यप्रणाली में सुधार करती है। शरीर को आराम मिलने से चीजों पर ध्यान बना पाना आसान हो जाता है।
सर्वांगासन योग के लाभ
सर्वांगासन को सभी आसनों की जननी कहा जाता है। यह आसन फोकस और एकाग्रता में सुधार करता है। योग विशेषज्ञों के अनुसार, सर्वांगासन आपके शरीर के सभी चक्रों और अंगों को संलग्न करता है।
दिमाग को शक्ति देने के साथ उसे स्वस्थ बनाए रखने में इस योगासन को काफी फायदेमंद माना जाता है। सभी छात्रों को नियमित यह योगासन अवश्य करना चाहिए।
पश्चिमोत्तानासन के लाभ
पश्चिमोत्तानासन योग को एकाग्रता बढ़ाने के लिए सबसे अच्छे आसनों में से एक माना जाता है। यह आपके दिमाग को शांत करने के साथ आपकी याददाश्त में सुधार करता है। इस योग आसन के अभ्यास को तंत्रिका तंत्र के लिए भी अच्छा माना जाता है।
सिरदर्द की समस्या को दूर करने के साथ मस्तिष्क को कार्यों को बेहतर बनाने में इस योगासन को विशेष लाभदायक माना जाता है।
हलासन योग है फायदेमंद
हलासन या हल मुद्रा, तनाव को कम करने के साथ आपके दिमाग को शांत करती है। तंत्रिका तंत्र को बेहतर रखने के लिए इसे बेहतरीन मुद्रा माना जाता है। मस्तिष्क में रक्त के संचार को बढ़ावा देने के साथ याददाश्त की समस्याओं को दूर करने के लिए इस योगासन का नियमित अभ्यास करना
फायदेमंद हो सकता है।
------------------
नोट: यह लेख योगगुरु के सुझावों के आधार पर तैयार किया गया है। आसन की सही स्थिति के बारे में जानने के लिए किसी योगगुरु से संपर्क कर सकते हैं।
अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
चित्त की चंचलता की परीक्षा के लिए ध्यान से ज्यादा उपयोगी कोई दूसरा साधन नहीं। कभी एकांत में ध्यान में बैठो, तो मन इधर-उधर दौड़ता है। इससे लाभ यह होता है कि मन कहां-कहां गया, यह मालूम होता है।
चित्त की चंचलता की परीक्षा के लिए ध्यान से ज्यादा उपयोगी कोई दूसरा साधन नहीं। कभी एकांत में ध्यान में बैठो, तो मन इधर-उधर दौड़ता है। इससे लाभ यह होता है कि मन कहां-कहां गया, यह मालूम होता है। किसी कार्य में रत रहते हैं, तो मन इधर-उधर नहीं दौड़ता। तब उसकी रुचि पहचान में नहीं आती। मन को परखने का मौका ध्यान में आता है। इस प्रकार दस-बीस बार मन के सारे चलचित्र को लिख लें। यह देखने से पता चलेगा कि मन की विशेष आसक्ति का स्थान कौन सा है। उसे पहचान कर मन को उधर जाने का मौका न दें।
चित्त को शुद्ध किए बिना एकाग्रता नहीं आती। वास्तव में परमात्मा अंदर है, हृदय में। उस पर आवरण है बुद्धि का, हृदय का। जैसे लालटेन के अंदर ज्योति होती है, पर कांच के आवरण पर गंदगी हो, तो अंदर की ज्योति साफ नहीं दिखती। उसी तरह बुद्धि पर गंदगी है, तो अंदर की ज्योति नहीं दिखती। तभी एकाग्रता नहीं आती। चित्तशुद्धि का शास्त्रों में उपाय दिया है, जिसे प्रतिपक्ष भावना कहते हैं। मैंने इसे स्वयं आचरण में लाने की कोशिश की है। क्रोध की प्रतिपक्ष भावना क्या है? जिस पर क्रोध आया, उसके पास जाकर क्षमा मांगना, जिससे क्रोध मिटे। किसी को मारने की इच्छा हो, तो उसके पास जाएं, प्रेमपूर्वक उसकी मदद करें। इससे द्वेषभावना मिट जाएगी। किसी से अनबन नहीं रहेगी। चित्त में जो दोष था, वह निकल जाएगा। यह मेरा अपना अनुभव है।
शास्त्रकारों ने दूसरा उपाय बताया है। मैत्री, करुणा, मुदिता, उपेक्षा- ये चार भावनाएं हैं। जो सुखी हैं उनके साथ मैत्री, जो दुखी हैं उनके लिए करुणा, किसी ने पुण्यकर्म किया, उसके लिए मुदित होना। इससे सामान्य चित्तशुद्धि होती है। मैंने अपनी नई खोज निकाली है। जिसमें दूसरों के दोष तो देखना ही नहीं, अपने भी नहीं देखना है। दोष तो अनंत होते हैं, फिर भी एक-आध गुण तो होगा ही। इसके तहत मैंने दूसरों के गुण देखे और अपने भी। मैंने देखा, मुझमें कौन-सा गुण है? मुझमें करुणा है, तो उसको बढ़ाते जाना है। अपनी छोटी करुणा से ईश्वर की बड़ी करुणा तक एक लाइन खींचें। इस बिंदु से उस पहाड़ तक जाना है। जैसे-जैसे गुण बढ़ेगा, एकाग्रता आती जाएगी।
किसी भी काम में चित्त की एकाग्रता आवश्यक है। चाहे व्यवहार हो या परमार्थ, चित्त की एकाग्रता के बिना सफलता मिलना कठिन है। परंतु यह सधे कैसे? एकाग्रता केवल आसन जमाकर बैठने से प्राप्त नहीं हो सकती। हमारे व्यवहार को शुद्ध होना चाहिए। व्यवहार व्यक्तिगत लाभ के लिए, वासनातृप्ति के लिए अथवा भौतिक चीजों के लिए नहीं करना चाहिए। एकाग्रता में सहायक होती है जीवन की परिमितता। यानी हमारा हर काम नपा-तुला होना चाहिए। गणित का यह नियम हमारी सभी क्रियाओं में आना चाहिए। आहार और निद्रा नपी-तुली होनी चाहिए।
जीवन में नियमन और परिमितता लाएं। खराब चीज न देखें। खराब किताब न पढ़ें। निंदा या स्तुति न सुनें। इंद्रियों को यह भय रहे कि हम अनियमितता बरतेंगे, तो भीतर का मालिक हमें सजा देगा। नियमित आचरण को ही जीवन की परिमितता कहते हैं। एकाग्रता के लिए सारी सृष्टि मंगलमय लगनी चाहिए। यह समदृष्टि है। जब तक यह खयाल दिमाग से नहीं निकलेगा कि रक्षक मैं अकेला हूं, बाकी सब भक्षक हैं, तब तक एकाग्रता नहीं आएगी। समदृष्टि की भावना मन में लाना ही एकाग्रता का उत्तम मार्ग है।
मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर