ग्लूकोज की मात्रा बढ़ने पर क्या होता है? - glookoj kee maatra badhane par kya hota hai?

रिटायरमेंट के बाद उमा सक्सेना की रूटीन बदल गई। अपनी पसंद का खाना-पीना, टीवी देखना, दोस्तों के साथ बतियाना, देर रात तक ऑनलाइन रहना और सुबह देर से उठना उनकी आदत बन चुकी थी। फिजिकल एक्टिविटी न के बराबर होने की वजह से उनका वजन बढ़ा, तो BMI और ब्लड प्रेशर भी डगमगा गया। वो कब टाइप 2 डायबिटीज की शिकार हो गईं, उन्हें पता भी नहीं चला।

उमा उन सात करोड़ 70 लाख भारतीय में से एक हैं जिन्हें डायबिटीज है। दुनिया में हर छठा व्यक्ति जो डायबिटीज पीड़ित है वह भारतीय है। साफ है कि भारतीय डायबिटीज की बॉर्डर लाइन नहीं, बल्कि डेंजर जोन में प्रवेश कर चुके हैं। भारत दुनिया में डायबिटीज की राजधानी है।

दशहरा, दिवाली, छठ बीत चुके हैं। अब मिठाइयों की मिठास से बाहर निकल कर डायबिटीज की कड़वी सच्चाई से रू-ब-रू होते हैं। भारत में डायबिटीज के रोगी अधिक क्यों हैं। कैसे भारतीयों में ग्लूकोज इंटॉलरेंस बढ़ता जा रहा है इसे समझने से पहले देश-दुनिया की तस्वीर देख लेते हैं।

क्या है ग्लूकोज इंटॉलरेंस

बर्लिन डायग्नोस्टिक सेंटर के चिकित्सक डॉ. रवि कांत चतुर्वेदी बताते हैं कि डायबिटीज पेशेंट के शरीर में अगर सीमा से अधिक ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है तो शरीर और शुगर बर्दाश्त नहीं कर पाता। इसे ग्लूकोज इंटॉलरेंस कहा जाता है। यह स्थिति मल्टी ऑर्गन फेल्योर की वजह बनती है। हर व्यक्ति में ब्लड ग्लूकोज लेवल अलग-अलग होता है। इसलिए ग्लूकोज टॉलरेंस भी सब में एक जैसी नहीं होती। साधारण भाषा में समझें तो किसी व्यक्ति का ब्लड ग्लूकोज लेवल 140 mg/dl (milligrams per decilitre) से कम हो तो इसे नॉर्मल कहा जाता है। लेकिन यदि ग्लूकोज लेवल 140 से 199 mg/dl के बीच हो तो इसे प्रीडायबीटिक कंडीशन कहते हैं। जबकि 200 mg/dl से ऊपर होने पर व्यक्ति को डायबीटिक कहा जाता है।

ग्लूकोज इंटॉलरेंस को लेकर कई रिसर्च हुए हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि लाइफस्टाइल इसकी सबसे बड़ी वजह है। ब्लड में ग्लूकोज बढ़ने के और क्या कारण हैं आइए इसे ग्राफिक से समझते हैं।

प्री-डायबिटिक कंडीशन क्या है?

प्री-डायबीटिक होने का मतलब डायबिटीज होना नहीं है। यह एक बॉर्डर लाइन सिचुएशन है। प्री-डायबिटीज में ब्लड शुगर लेवल अधिक तो होता है पर डायबिटीज की रेंज में नहीं होता। इस स्थिति में व्यक्ति अपने शुगर लेवल को कंट्रोल कर डायबिटीज से बच सकता है।

प्री-डायबीटिक होने का मतलब ये भी नहीं कि किसी को डायबिटीज होगी ही। यदि समय रहते उपाय किए जाएं जैसे-आपका वजन ज्यादा है तो 5 से 7 kg वजन घट जाए और रोज 25-30 मिनट तक एक्सरसाइज करना भी डायबिटीज होने के रिस्क को कम कर देता है।

ग्लूकोज इंटॉलरेंस का कारण क्या है? इसकी तकनीकी बारीकियों पर हम बात करेंगे, लेकिन इससे पहले एक ग्रैफिक के जरिए ग्लाइसेमिक इंडेक्स (GI) के बारे में जान लेते हैं।

कोई प्री-डायबिटीज कंडिशन में है या डायबिटीज, इसके लिए ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट किया जाता है। भारत में जिस तरह डायबिटीज की बीमारी बढ़ी है ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट भी बढ़ा है। ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट डायबिटीज ही नहीं, प्रेग्नेंसी और किडनी की बीमारी में भी किया जाता है। गंभीर बीमारियों में ही ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट की जरूरत पड़ती है।

क्या होता है ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट

इंसुलिन की कमी या इंसुलिन के प्रति रेसिस्टेंस बढ़ने से हमारा शरीर ग्लूकोज को सही से पचा नहीं पाता। इस कारण से ब्लड में शुगर या ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है। इसे चेक करने के लिए ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट किया जाता है जिसे ग्लूकोज चैलेंज टेस्ट या ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट (OGTT) भी कहते हैं। इस टेस्ट में व्यक्ति काे फ्रूट ड्रिंक पीने काे दिया जाता है, फिर ब्लड टेस्ट से जांचते हैं कि शरीर में ग्लूकोज कितना है।

अब ये सोच रहे होंगे कि चाय के साथ कुकीज, बिस्किट लेने या कोल्ड ड्रिंक, फ्रूट ड्रिंक लेने से आपको लंबे समय तक एनर्जी मिल रही है, लेकिन यह सच नहीं है। तो फिर ये क्या है, ये है एम्प्टी कैलोरीज। आइए इसी पर बात करते हैं।

क्या है एम्प्टी कैलोरीज का मतलब

ऐसे फूड या ड्रिंक जिनमें शुगर, फैट या एल्कोहल की मात्रा अधिक होती है लेकिन पोषक तत्व नहीं होते। मेडिकल जर्नल लैंसेट के अनुसार, ऐसे फूड या ड्रिंक में हाई कैलोरी तो होती है, मगर न्यूट्रिएंट्स न के बराबर होता है। उन्हें एम्प्टी कैलोरीज (Empty calories) कहते हैं।

‘स्नैकिंग एसोसिएटेड विथ इंक्रिज्ड कैलोरीज, डिक्रिज्ड न्यूट्रिएंट्स’ नाम से 2012 में हुई एक रिसर्च में बताया गया है कि पुरुष हर दिन 923 एम्प्टी कैलोरी वाला भोजन करते हैं जबकि महिलाएं 624 एम्प्टी कैलोरी लेती हैं। इन फूड या ड्रिंक में फैट और शुगर को अलग से मिलाया जाता है ताकि इसका स्वाद बढ़ सके। यदि एम्प्टी कैलोरी वाले फूड और ड्रिंक अधिक मात्रा में लिए जाएं तो शरीर का वजन बढ़ता है लेकिन शरीर में न्यूट्रिएंट्स विटामिन, मिनरल्स, प्रोटीन, एसेंशियल फैटी एसिड्स, फाइबर की कमी हो जाती है।

अब तक हमने एम्प्टी कैलोरी के बारे में पढ़ा, अब जानते हैं कि फ्री शुगर क्या है। क्या ये हमारी हेल्थ के लिए ठीक है? इसे समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं।

जब हम फल खाते हैं तो शरीर में फल के साथ फाइबर यानी गूदा भी जाता है। लेकिन, जब उसी फल का जूस पीते हैं तो उसमें मौजूद शुगर यानी फ्रक्टोज और ग्लूकोज अपने सेल्स से बाहर आ जाते हैं। सेल से बाहर आते ही ये फ्री शुगर बन जाते हैं और फाइबर खत्म हो जाता है। इस तरह जूस के रूप में हमारा शरीर एक्स्ट्रा शुगर ले लेता है। यानी 4 संतरे खाना अलग है, 4 संतरों का रस पीना खतरनाक है।

हमारी-आपकी डाइट में खाने-पीने की जो चीजें शामिल हो रही हैं उसमें एडेड शुगर अधिक है। नमक की तरह ही भारतीय शुगर भी अधिक लेते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट कहती है कि हर दिन डाइट से मिलने वाली एनर्जी में शुगर 10% से अधिक नहीं होना चाहिए। वैसे यह जानना दिलचस्प है कि चीनी सबसे पहले भारतीयों ने ही बनाई। इस पर यह रोचक ग्रैफिक देख लेते हैं।

टाइप 1 डायबिटीज से बच्चे हो रहे पीड़ित

टाइप 1 डायबिटीज देश में अब घातक रूप लेने लगा है। चिंता की बात यह है कि इसके निशाने पर बच्चे हैं। टाइप 1 डायबिटीज जिसे चाइल्डहुड डायबिटीज भी कहते हैं, इससे पीड़ित लोग 2 प्रतिशत ही हैं, लेकिन यह टाइप 2 के मुकाबले ज्यादा खतरनाक है।

रिसर्च के अनुसार, यह पैदाइशी होती है और माता-पिता से बच्चे में आती है। टाइप 1 डायबिटीज में शरीर में इंसुलिन नहीं बनती। अगर समय रहते इलाज शुरू न हो तो एक हफ्ते में मरीज की जान जा सकती है। इंसुलिन की खोज से पहले टाइप 1 से पीड़ित बच्चे एक महीने के भीतर दम तोड़ देते थे।

बीमारी की गंभीरता को देखते हुए ‘इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च’ ने गाइडलाइंस जारी की है। गाइडलाइन में कहा गया है कि समय रहते बीमारी की पहचान और बेहतर इलाज जरूरी है।

लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारी है टाइप 2 डायबिटीज

सभी तरह की डायबिटीज में 90% से अधिक टाइप 2 डायबिटीज होता है। इसमें मरीजों का ब्लड शुगर लेवल अधिक हो जाता है। ग्लोबल बर्डन डिजीज की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2019 में टाइप-2 डायबिटीज से 14 लाख लोगों की जान गई थी। डॉ. चतुर्वेदी के अनुसार, टाइप 2 डायबिटीज में राहत की बात यह होती है कि बॉडी में कुछ इंसुलिन बनता है। अगर दवा ली जाए तो यह कंट्रोल में रहता है। हालांकि टाइप 2 डायबिटीज में शरीर इंसुलिन के प्रति ठीक से काम नहीं करता। कुछ समय पैंक्रियाज कम इंसुलिन बनाने लगते हैं।

चलते-चलते…यह जान लेते हैं कि बच्चों को डायबिटीज से बचाना है तो उन्हें खाने-पीने की उन चीजों से दूर रखना है जिसमें एडेड शुगर हो। इन चीजों का स्वाद नहीं लगाना है। डायटिशियन विजयश्री प्रसाद कहती हैं कि चिप्स, कुकीज, पेस्ट्रीज, कोल्ड ड्रिंक या एनर्जी ड्रिंक में एडेड शुगर होता है। बच्चे इन्हें खाने के लिए मचलते हैं। पेरेंट्स भी बच्चों को खुशी-खुशी दिलाते हैं। जबकि यह उनकी हेल्थ के लिए खतरनाक होता है। यदि बच्चों को डायबिटीज से बचाना है तो हमें उनके खाने-पीने पर ध्यान देना होगा।

ग्राफिक्स: प्रेरणा झा

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ब्लड ग्लूकोज बहुत ज्यादा होने पर कौन सी बीमारी होती है?

जब खून में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ने लगती है तो डायबिटीज की बीमारी होती है. अगर सही समय पर सही मात्रा में शरीर में इंसुलिन का उत्पादन हो गया तो अतिरिक्त ग्लूकोज को इंसुलिन अवशोषित कर लेता है. लेकिन कुछ कारणवश कुछ लोगों में इंसुलिन बनता ही नहीं है या कम बनता है.

ज्यादा ग्लूकोज से क्या होता है?

दरअसल, ग्लूकोज के अधिक सेवन से ब्लड शुगर के स्तर का नियंत्रण समाप्त हो सकता है. इससे आपका ब्लड शुगर बढ़ सकता, बार-बार पेशाब आने की समस्या हो सकती है और खाने की क्रेविंग भी बढ़ सकती है. इसलिए आपको ग्लूकोज का सेवन दिन में 2 चम्मच से ज्यादा नहीं करना चाहिए.

शरीर में ग्लूकोज क्यों बढ़ता है?

मांसपेशियों और फैट सेल्स ग्लूकोज को अवशोषित करना बंद कर देते हैं। साथ ही इंसुलिन के प्रति शरीर की संवेदनशीलता को कम कर देते हैं, जिससे ब्लड शुगर लेवल बढ़ सकता है।

नॉर्मल ग्लूकोज लेवल कितना होता है?

नॉर्मल ब्लड शुगर लेवल फास्टिंग के दौरान 99 mg/ dL या इससे कम और खाने के 1-2 घंटे बाद 140 mg/ dL या इससे कम होना चाहिए। यदि जिस व्यक्ति का फास्टिंग ब्लड शुगर लेवल 130 mg/ dL से अधिक आए और खाने के 1-2 घंटे बाद ब्लड शुगर लेवल 180 mg/ dL से अधिक आए तो इसका मतलब ब्लड शुगर लेवल हाई है और आपको डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए।

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