जूझ पाठ के दत्ता जी राव देसाई के चरित्र की विशेषता कौन सी है? - joojh paath ke datta jee raav desaee ke charitr kee visheshata kaun see hai?

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 2 जूझ Textbook Exercise Questions and Answers.

RBSE Class 12 Hindi Solutions Vitan Chapter 2 जूझ

RBSE Class 12 Hindi जूझ Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. 
जूझ' शीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए स्पष्ट करें कि क्या यह शीर्षक कथानायक की किसी केन्द्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता है? 
उत्तर : 
आनन्द यादव के उपन्यास से संकलित अंश का शीर्षक 'जूझ' अत्यन्त रोचक, संक्षिप्त, कौतूहलवर्धक तथा सम्पूर्ण कथानक का सूचक है। 'जूझ' का अर्थ है-संघर्ष। कथानायक आनन्द को पाठशाला जाने के लिए संघर्ष करना पड़ा। 

  1. सर्वप्रथम उसे अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध संघर्ष करना पड़ा। इसमें उसे माँ का और दत्ताजी राव का सहयोग मिला। 
  2. पाठशाला में शरारती छात्रों से संघर्ष किया, तभी वह पढ़ने में रुचि ले सका। 
  3. फिर गणित विषय में और 
  4. कविता रचने में उसे संघर्ष करना पड़ा। इस प्रकार सम्पूर्ण कथानक में उसके संघर्ष का चित्रण हुआ है और उसमें उसे सफल दिखाया गया है। इसलिए 'जूझ' शीर्षक पूर्णतया उचित है। 

पाठ के इस शीर्षक से कथानायक के जुझारू व्यक्तित्व तथा संघर्षशील चारित्रिक विशेषता का प्रकाशन हुआ है। वह स्वयं व्यक्तिगत स्तर पर, पारिवारिक एवं सामाजिक स्तर पर, विद्यालय के माहौल तथा शिक्षा-प्राप्ति के स्तर पर संघर्ष करता है। वह संघर्ष करते रहने से ही घर पर खेती आदि का सारा काम करता है। वह पढ़ाई एवं कविता-रचना करने में समन्वय रखता है। इस तरह उक्त शीर्षक से कथानायक के जुझारू व्यक्तित्व को उजागर किया है तथा यही उसकी केन्द्रीय चारित्रिक विशेषता भी है।

प्रश्न 2. 
स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास लेखक के मन में कैसे पैदा हुआ? 
उत्तर : 
लेखक के मराठी विषय के शिक्षक न. वा. सौंदलगेकर कविता के अच्छे रसिक और मर्मज्ञ थे। वे कक्षा में कविता का लय-गति के साथ सस्वर वाचन करते थे। उनके सस्वर वाचन एवं चेहरे के हाव-भाव आदि को देखकर लेखक बहुत प्रभावित हुआ और वह भी खेत में काम करते समय या पशु चराते समय मराठी-शिक्षक के समान ही हाव-भाव एवं अभिनय के साथ कविता-पाठ करने लगा। इसी क्रम में उसके मन में कविता रचने की इच्छा जाग्रत हुई। 

तब वह आसपास के परिवेश को देखकर, फूलों एवं खेती को देखकर तुकबन्दी करने लगा और मराठी-शिक्षक को दिखाकर उनसे कवियों के बारे में, कविता रचने के नियमों के विषय में तथा छन्द-अलंकार आदि के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त करता रहा। विद्यालय में छठी सातवीं के छात्रों के सामने तथा एक समारोह में उसने सस्वर कविता-पाठ भी किया। मराठी-शिक्षक से अन्य कवियों के विषय में जानकारी प्राप्त करने से उसका यह आत्मविश्वास बढ़ता गया कि वह तुकबन्दी करते-करते अच्छी कविता रचने में समर्थ हो सकता है। 

प्रश्न 3.
श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की उन विशेषताओं को रेखांकित करें जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन में रुचि जगाई। 
उत्तर :
श्री सौंदलगेकर पाठशाला में मराठी के शिक्षक थे। उनके अध्यापन की ये विशेषताएँ थीं -
1. वे कविता पढ़ाते समय एकदम रम जाते थे और बहुत ही अच्छे ढंग से कविता का लय-गति आदि के साथ सस्वर वाचन करते थे। 
2. वे कविता के रसिक थे, इस कारण सुरीले स्वर में भावमग्न होकर कविता-वाचन करते थे, साथ ही ऐसा अभिनय एवं हाव-भाव करते थे जिससे कविता का अर्थ-ग्रहण आसानी से हो जाता था। 
3. उन्हें पुरानी-नयी मराठी कविताओं के साथ अनेक अंग्रेजी कविताएँ कंठस्थ थीं। अनेक छन्दों की लय-गति .. को अच्छी तरह जानते थे और पढ़ाते समय बीच-बीच में मराठी के प्रसिद्ध कवियों, जैसे-कवि यशवन्त, बा. भ. बोरकर, भा.रा. ताँबे, गिरीश, केशव कुमार आदि के साथ अपनी मुलाकात के संस्मरण भी छात्रों को सुनाते थे। 
4. वे स्वयं भी कविता रचते थे और कभी-कभी छात्रों को अपनी कविता भी सुनाते थे।
5. वे छात्रों को भी कविता के सस्वर-वाचन के लिए प्रोत्साहित करते थे। लेखक को उन्होंने एक समारोह में कविता-पाठ के लिए प्रेरित भी किया था। 
इन सब विशेषताओं के कारण लेखक के मन में कविताओं के प्रति रुचि जागृत हुई। अर्थात् अपने शिक्षक के अध्यापन-कौशल से ही लेखक कविता-रचना के प्रति आकृष्ट हुआ।

प्रश्न 4. 
कविता के प्रति लगाव से पहले और इसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया? 
उत्तर : 
कविता के प्रति लगाव से पहले लेखक को ढोर चराते हुए, खेतों में पानी लगाते हुए या दूसरे काम करते हुए अकेलापन बहुत खटकता था। तब उसे कोई काम करना तभी अच्छा लगता था, जब उसके साथ कोई बोलने वाला, गपशप करने वाला या हँसी-मजाक करने वाला हो। लेकिन कविता के प्रति लगाव हो जाने के बाद उसे अकेलेपन से ऊब नहीं होती थी।

अब उसकी मानसिकता में बदलाव आ गया था। अब वह अकेले में रहना अच्छा मानने लगा था, ताकि वह ऊँची आवाज में कविता गा सके, कविता के भावों का अभिनय कर सके और गाते-गाते नाच सके। इस प्रकार अब उसे अकेलेपन में पूर्ण स्वतन्त्रता का अनुभव होने लगा तथा कविता रचने के लिए तुकबन्दी भी करने लगा था। अकेलेपन को लेकर अब लेखक की धारणा में यह बदलाव आ गया था कि वह एकान्त को आनन्द-प्राप्ति का अवसर मानने लगा था। 

प्रश्न 5. 
आपके ख्याल से पढ़ाई-लिखाई के सम्बन्ध में लेखक और दत्ताजी राव का रवैया सही था या लेखक के पिता का? तर्क सहित उत्तर दें। 
उत्तर : 
हमारे विचार में पढ़ाई-लिखाई के सम्बन्ध में लेखक और दत्ताजी राव का रवैया सही था और लेखक के पिता का रवैया अनुचित था। लेखक विपरीत परिस्थितियों में भी पढ़ना चाहता था। उसकी सोच थी कि 'पढ़ जाऊँगा तो नौकरी लग जाएगी, चार पैसे हाथ में रहेंगे, विठोबा आण्णा की तरह कुछ धन्धा-कारोबार किया जा सकेगा।' उसका यह सोचना भी सही था कि-"जन्म-भर खेत में काम करते रहने पर भी हाथ कुछ नहीं लगेगा।" 

पढ़ाई - लिखाई के सम्बन्ध में दत्ताजी राव का रवैया भी. सही था। इसी कारण उन्होंने लेखक के पिता को समझाया, पाठशाला न भेजने की बात पर धमकाया और बच्चे को कल से ही पढ़ाई के लिए भेजने का निर्देश दिया था। लेखक के पिता का रवैया गवई-गँवार जैसा था। वह स्वयं तो मस्त रहता था और खेती के काम में हाथ नहीं लगाता था, जबकि सारा काम बेटे से करवाता था। उसी ने उसे पढ़ने से रोका था। वह कहता था कि "तू बालिस्टर नहीं होने वाला है।" पुत्र को खेती में लगाने और उसकी पढ़ाई रोकने में उसका रवैया सर्वथा अनुचित था।

प्रश्न 6. 
दत्ताजी राव से पिता पर दबाव डलवाने के लिए लेखक और उसकी माँ को एक झूठ का सहारा लेना पड़ा। यदि झूठ का सहारा न लेना पड़ता तो आगे घटनाक्रम क्या होता? अनुमान लगाएँ। 
उत्तर : 
लेखक और उसकी माँ ने दत्ताजी राव से मिलकर और सारी बातें कर कहा कि "हमने यहाँ आकर ये सभी बातें कही हैं. यह मत कह देना। नहीं तो हम दोनों की खैर नहीं है।" इसी प्रकार लेखक की कहा कि "साग-भाजी देने देसाई सरकार के यहाँ गई थी तो उन्होंने कहा कि....."जरा इधर भेज देना।" इस प्रकार झूठ का सहारा लेकर लेखक के पिता को दत्ताजी राव के पास भेजा गया। यदि वे दोनों झूठ का सहारा नहीं लेते, तो लेखक की पढ़ाई का निर्णय नहीं होता। दत्ताजी राव के पास जाने से पिता नाराज होकर लेखक की पिटाई कर देता। तब लेखक को जन्म भर खेती के काम में जुटे रहना पड़ता और दादा मस्ती में इधर-उधर घूमता रहता। इस तरह झूठ न कहने से लेखक के जीवन पर बुरा असर पड़ता।

RBSE Class 12 जूझ Important Questions and Answers

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न - 

प्रश्न 1. 
लेखक अपने दादा के सामने खड़े होकर बोलने की हिम्मत क्यों नहीं करता था? 
उत्तर : 
लेखक के दादा बहुत ही गुस्सैल और हिंसक थे। वे बात-बात पर लेखक को अपनी गुर्राहट दिखाते थे। इस कारण लेखक उनसे डरता था। 

प्रश्न 2. 
लेखक को किस संबंध में पूरा विश्वास था? 
उत्तर : 
लेखक को खेती करने के संबंध में पूरा विश्वास था कि जन्म-भर खेत में काम करते रहने पर भी हाथ कुछ नहीं लगेगा। 

प्रश्न 3. 
लेखक के मन में किस तरह के विचार चलते रहते थे? 
उत्तर :
लेखक के मन में विचार चलते रहते थे कि पढ़ जाऊँगा तो नौकरी लग जाएगी, चार पैसे हाथ में रहेंगे। विठोबा आण्णा की तरह कुछ धंधा किया जा सकेगा। 

प्रश्न 4. 
लेखक का दादा कोल्हू जल्दी क्यों चलवाना चाहता था? 
उत्तर : 
लेखक का दादा कोल्हू जल्दी इसलिए चलवाना चाहता था कि उसका गुड़ सबसे पहले बाजार में आए तो उसके पैसे अच्छे मिलेंगे। 

प्रश्न 5. 
कुछ किसान बाद में गुड़ निकालने को बेहतर क्यों समझते थे? 
उत्तर : 
कुछ किसान बाद में गुड़ निकालने को बेहतर इसलिए समझते थे, क्योंकि देर तक खड़ी रहने वाली ईख के रस में गुड़ ज्यादा निकलता है। 

प्रश्न 6. 
लेखक ने अपने पढ़ने की बात माँ के सामने कब छेड़ी थी?
उत्तर : 
लेखक ने अपने पढ़ने की बात माँ के सामने तब छेड़ी थी जब वह अकेले धूप में कंडे थाप रही थी। 

प्रश्न 7. 
लेखक ने पढ़ाई जारी रखने की इच्छा प्रकट की तो माँ ने क्या प्रतिक्रिया की? 
उत्तर : 
माँ ने पढ़ाई जारी रखने की बात सुनकर अपनी लाचारी प्रकट की और कहा कि पढ़ाई के नाम पर उसका दादा वरहेला सुअर की तरह गुर्राता है। 

प्रश्न 8. 
लेखक की माँ उदास और निराश क्यों थी?
उत्तर : 
लेखक की माँ अपने पति की हठ के कारण उदास और निराश थी क्योंकि वह जानती थी कि वह उसकी एक नहीं सुनेगा। 

प्रश्न 9. 
दादा ने अपने लड़के को खेती के काम में क्यों लगा दिया था? 
उत्तर : 
दादा ने अपने लड़के को खेती के काम में इसलिए लगा दिया, क्योंकि वह आवारागर्दी कर सके और आवारा साँड की तरह गाँव-भर में घूम सके। 

प्रश्न 10. 
लेखक ने माँ को किसके पास चलने को कहा और क्यों? 
उत्तर : 
लेखक ने माँ को दत्ताजी राव सरकार के पास चलने को कहा क्योंकि वे ही दादा को ठीक तरह से समझा सकेंगे। 

प्रश्न 11. 
लेखक के कहने पर माँ ने हाँ तो कर दी लेकिन अंदर से माँ का मन उदास था। माँ की उदासी का क्या कारण था? 
उत्तर : 
लेखक की माँ का उदासी का कारण यह था कि वह यह समझती थी कि दादा के आगे उसका बस नहीं चलता। 

प्रश्न 12. 
माँ ने दत्ताजी राव को लेखक की पढ़ाई के अलावा और क्या दादा के बारे में बताया? 
उत्तर : 
माँ ने लेखक की पढ़ाई के अलावा दत्ताजी राव को बताया है कि दादा सारा दिन बाजार में रखमाबाई के पास गुजार देता है और खेती का काम नहीं करता। 

प्रश्न 13. 
लेखक की बात सुनकर देसाई दादा ने चिढ़कर क्या कहा? 
उत्तर : 
लेखक की बात सुनकर उन्होंने कहा- "आने दो अब उसे, मैं उसे सुनाता हूँ कि नहीं अच्छी तरह, देखा।" 

प्रश्न 14. 
दत्ता जी राव ने लेखक और उसकी माँ से क्या कहा? 
उत्तर : 
उन्होंने कहा कि "अब तुम दोनों अपने घर जाओ, जब वह आ जाए तो मेरे पास भेज देना और पीछे से तू भी आ जाना रे छोरा।" 

प्रश्न 15. 
दादा दत्ता जी राव का नाम सुनते ही उनसे मिलने क्यों चला गया? 
उत्तर : 
दादा दत्ता जी राव का बहुत सम्मान करता था इसलिए देसाई के बाड़े का बुलावा उसके लिए सम्मान की बात थी। वह तुरंत चला गया। 

प्रश्न 16. 
दत्ता जी राव ने दादा को मुख्य रूप से किस बात पर डाँटा था? 
उत्तर : 
दत्ता जी राव ने दादा को मुख्य रूप से लेखक की खेतों पर बलि चढ़ाने के लिए तथा उसकी पढ़ाई छुड़वाने के लिए डाँटा था। 

प्रश्न 17. 
दत्ता जी राव ने पाठशाला जाने के संबंध में लेखक से क्या कहा था? 
उत्तर : 
दत्ता जी राव ने कहा था- "सवेरे से तू पाठशाला जाता रह, कुछ भी हो, पूरी फीस भर दे उस मास्टर की। और मन लगाकर पढ़ाई कर।" 

प्रश्न 18. 
दत्ता जी राव से लेखक के दादा ने लेखक के संबंध में क्या कहा? 
उत्तर : 
लेखक के दादा ने लेखक के संबंध में उनसे कहा कि उसमें गलत आदतें पड़ गयी हैं इसलिए पाठशाला से निकाल कर उसे नज़रों के सामने रख लिया है। 

प्रश्न 19. 
दादा ने लेखक की कौन-कौनसी गलत आदतें दत्ता जी राव को बतायीं? 
उत्तर : 
दादा ने बताया कि वह यहाँ-वहाँ कुछ भी करता रहता है। कभी कंडे बेचता है, कभी चारा बेचता है, कभी सिनेमा देखता है तो कभी खेलने जाता है आदि। 

प्रश्न 20. 
दादा ने मन मारकर लेखक को स्कूल भेजने के संबंध में दत्ता जी राव से क्या कहा? 
उत्तर : 
दादा ने दत्ता जी राव से कहा “आप कहते हो तो भेज देता हूँ कल से। देखते हैं एकाध वर्ष में कुछ सुधार हो जाए तो।" 

प्रश्न 21. 
लेखक को अपनी कक्षा में पहले दिन दीवार से पीठ सटाकर क्यों बैठना पड़ा था? 
उत्तर : 
कक्षा में उपस्थित शरारती बच्चों ने बार-बार लेखक की काछ खींचनी शुरू की। इससे बचने हेतु वह दीवार के साथ पीठ कर सटाकर बैठ गया। 

प्रश्न 22.
"माँ के मन में जंगली सुअर बहुत गहराई से बैठा हुआ था।" इसमें 'जंगली सुअर' किसके लिए कहा गया है और क्यों? 
उत्तर : 
इसमें 'जगली सुअर' लेखक के पिता के लिए कहा गया है, क्योंकि वह बेटे की पढ़ाई की बात पर बहुत गुर्राता था और काफी गुस्सैल स्वभाव का था। 

प्रश्न 23. 
आनन्दा को खेती के कौन-कौन से कार्य करने पर ही अध्ययन की अनुमति पिता द्वारा दी गई थी? 
उत्तर : 
सुबह खेत में पानी लगाना, स्कूल से आकर ढोर चलाना, कभी खेती के काम से छुट्टी लेना। इन कार्यों को करने पर ही उसे पढ़ने की अनुमति दी गई थी। 

प्रश्न 24. 
"नहीं जाऊँगा ऐसी पाठशाला में।" लेखक ऐसा क्यों सोचने लगा था? 
उत्तर : 
कक्षा में चह्वाण के बच्चे ने उसके साथ. शरारत की तथा खिल्ली उड़ाई। अन्य बच्चे भी उसका मज़ाक उड़ाने लगे। इन कारणों से लेखक ऐसा सोचने लगा। 

प्रश्न 25.
वसंत पाटिल कौन था? 
उत्तर : 
वसंत पाटिल लेखक की कक्षा का एक छात्र था, जो शरीर से दुबला-पतला, शांत स्वभाव का और पढ़ने में बड़ा होशियार था। 

प्रश्न 26. 
वसंत पाटिल की नकल करने पर लेखक को क्या लाभ हुआ? 
उत्तर : 
वसंत पाटिल की नकल करने पर लेखक भी गणित में होशियार हो गया और वह भी मॉनीटर जैसा सम्मान पाने लगा। 

प्रश्न 27. 
मंत्री नामक अध्यापक की क्या विशेषता थी? 
उत्तर : 
उनकी यह विशेषता थी वे गणित पढ़ाते समय सवाल गलत हो जाने पर छात्र को अपने पास बुलाकर समझाते थे और छात्र की मर्खता पर पिटाई कर देते थे। 

प्रश्न 28. 
लेखक ने वसंत पाटिल से मित्रता क्यों की थी? 
उत्तर : 
वसंत पाटिल पढ़ने में होशियार लड़का था। वह पढ़ाई में हमेशा लगा रहता था। लेखक ने पढ़ाई में सहायता पाने की दृष्टि से उससे मित्रता की थी। 

प्रश्न 29. 
कविता के प्रति लगाव बढ़ने के बाद लेखक को अकेलापन अच्छा क्यों लगने लगा? 
उत्तर : 
लेखक को अकेलापन इसलिए अच्छा लगने लगा ताकि वह ऊँची आवाज में गा सके, कविता के भावों का अभिनय कर सके, गाते-गाते नाच सके और तुकबन्दी भी कर सके। 

  प्रश्न 30. 
लेखक का पाठशाला में विश्वास क्यों बढ़ने लगा? 
उत्तर : 
जब शिक्षक लेखक को आनन्दा कहकर अपनेपन का व्यवहार करने लगा और वसंत पाटिल से पक्की मित्रता हो गयी तब उसका विश्वास पाठशाला में बढ़ने लगा।

प्रश्न 31. 
कागज और पेन्सिल न होने पर लेखक किस पर और किससे कविता लिखता था? 
उत्तर : 
कागज और पेन्सिल के अभाव में लेखक लकड़ी के टुकड़े से भैंस की पीठ पर रेखा खींच कर या पत्थर की शिला पर कंकड़ से कविता लिखता था। 

प्रश्न 32. 
लेखक के छात्र-जीवन से क्या शिक्षा मिलती है? 
उत्तर : 
लेखक के छात्र-जीवन से यह शिक्षा मिलती है कि निरंतर पढ़ने में रुचि व लगन रखने से प्रतिभा का विकास होता है और कविता भी रची जा सकती है। 

प्रश्न 33. 
लेखक को मास्टरजी से किस प्रकार की कविताएँ लिखने की प्रेरणा मिली? 
उत्तर : 
लेखक को मास्टरजी से अपने आसपास, गाँव, खेत, फसल, फल-फूल, पशु-पक्षी आदि पर कविता लिखने की प्रेरणा मिली।

प्रश्न 34. 
लेखक ने किसकी कविता को मास्टरजी की चाल से अलग अपनी चाल में बिठाकर गाई थी? 
उत्तर : 
लेखक ने अनंत काणेकर की कविता मास्टरजी की चाल से अलग अपनी चाल में बिठाकर गाई थी। उसकी यह चाल सिनेमा के गाने पर आधारित थी। 

प्रश्न 35. 
लेखक ने 'जूझ' उपन्यास मूलरूप से किस भाषा में लिखा और उसका हिन्दी अनुवाद किसने किया? 
उत्तर : 
लेखक ने 'जूझ' उपन्यास मूलरूप से मराठी भाषा में लिखा और उसका हिन्दी अनुवाद केशव प्रथम वीर ने किया।

निबन्धात्मक प्रश्न -

प्रश्न 1.
"निम्न मध्यवर्गीय ग्रामीण परिवेश का किशोर प्रतिकूल परिस्थितियों में भी आगे बढ़ना चाहता है।" इस कथन की समीक्षा 'जूझ' आत्मकथात्मक उपन्यास के अंश के आधार पर कीजिए। 
उत्तर : 
निम्न मध्यवर्गीय ग्रामीण परिवेश का किशोर आनन्द यादव अपने आलसी. निकम्मा और ऐय्याशी पिता के द्वारा पाँचवीं कक्षा में आने पर पाठशाला से हटा लिया गया था। उसका पिता आवारा साँड की तरह घूमने के लिए अपने बेटे को खेती के कोल्हू में जोत देता है। बेटा भी पिता की आज्ञा के अनुसार खेतों में पानी लगाना, ढोर चराना, जुताई-बुवाई करना आदि कार्य करते हुए भी हर कीमत पर आगे पढ़ना चाहता है क्योंकि उसे लगता था कि खेती में जीविकोपार्जन कठिन है। पढ़ने के बाद नौकरी करने से जीवन सरलता से चलाया जा सकता है। इसलिए वह अपने पिता द्वारा लगाई गई कठोर शौं को परिश्रमपूर्वक पूरी करके भी पढ़ना चाहता था। इस तरह वह आगे बढ़ने में सफल रहा। 

प्रश्न 2. 
'जूझ' आत्मकथात्मक अंश के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए। 
अथवा 
लेखक ने 'जूझ' आत्मकथात्मक अंश के माध्यम से क्या संदेश दिया है? लिखिए। 
उत्तर : 
'जझ' आत्मकथात्मक उपन्यास का जितना अंश पाठ रूप में संकलित है वह परी तरह शिक्षाप्रद और सोद्देश्य है। इसके माध्यम से लेखक ने पाठकों को संघर्ष करने की सीख दी है। मनुष्य के जीवन की परिस्थितियाँ चाहे जितनी विकट हों, सामने भीषण संकट हों, बाधाएँ हों, उनसे घबराना नहीं चाहिए। उसे सहनशीलता, धैर्य, हिम्मत और संघर्ष के साथ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए। पढ़ाई छूट जाने के बाद भी लेखक के मन में पढ़ने की तीव्र लालसा है, क्योंकि आगे पढ़कर ही नौकरी प्राप्त की जा सकती है और जीवन को सफल बनाया जा सकता है। 

किन्तु उसका पिता बाधा बना हुआ है। लेखक इस संकट में रास्ता निकालता है। वह माँ की सहायता से पिता को सीधी राह पर ले जाता है। इसके लिए सारे उपाय खुद सुझाता है। वह अपने पिता की सारी शर्ते मान कर पाठशाला जाने लगता है। पाठशाला में बच्चे उसका मजाक उड़ाते हैं किन्तु वह धैर्यपूर्वक अपनी पढ़ाई करता चला जाता है। परिणामस्वरूप वह सबका चहेता बन जाता है। वह संघर्ष कर आगे बढ़ने में सफल हो जाता है और उसका भविष्य सँवर जाता है। 

प्रश्न 3.
'जूझ' आत्मकथात्मक अंश में युवक आनन्द को जुझारु अर्थात् संघर्षशील चित्रित किया गया है।" सिद्ध कीजिए। .. 
उत्तर : 
'जूझ' आत्मकथात्मक अंश में छोटी आयु में बालक आनन्द विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष करता है। उसके मन में संघर्ष करने की इच्छा इतनी बलवंती है कि वह अपने लक्ष्य को पाने के लिए असंभव से प्रयत्न भी कर डालता है। वह अपने पिता द्वारा पढ़ाई छुडाए जाने पर आगे पढ़ाई करने की इच्छा से पूरित होकर अपनी लाचार माँ से बात करता है लेकिन माँ को निराश देखकर उसे संभावित रास्ता निकाल देता है। वह अपनी माँ के साथ दत्ता जी राय के घर जाता है। उनमें अपने मन की बात अपनी माँ से कहलवाकर पाठशाला जाने की बात पर उनसे आज्ञा प्राप्त कर लेता है। पाठशाला में पहुँचने पर उसे घोर निराशा तथा अपमान का सामना करना पड़ता है। परन्तु वह 'जूझ' के आधार पर रास्ता निकाल लेता है। जल्दी ही वह अपने परिश्रम के कारण शिक्षक का चहेता छात्र ही नहीं बल्कि कवि बन जाता है। उसकी यह प्रगति उसके जुझारू या संघर्षशील की ही देन है।

प्रश्न 4. 
सिद्ध कीजिए कि 'जूझ' आत्मकथात्मक अंश में लेखक परिश्रमी बालक है। 
उत्तर :  
जूझ' आत्मकथात्मक अंश में लेखक होनहार बालक है। उसका पिता पाँचवीं कक्षा में आते ही उसे पढ़ाई से हटाकर खेती के काम में लगा देता है। वह पिता के कहे अनुसार खेतों में पानी देता है, ढोर चराता है, फसल की बुवाई-कटाई करता है। परन्तु इन कार्यों को करते हुए वह सन्तुष्ट नहीं होता है क्योंकि वह आगे पढ़ना चाहता है। वह दत्ताजी राय की आज्ञा के अनुसार पढ़ने जाने लगता है और पिता की शर्तों को स्वीकार कर पढ़ाई भी करने लगता है। वह अपने परिश्रम के कारण विद्यालय का अग्रणी छात्र ही नहीं बनता बल्कि शिक्षक का चहेता छात्र भी बन जाता है। साथ ही वह कविता-रचना में भी प्रवीण हो जाता है। इन कारणों से सिद्ध होता है कि 'जूझ' आत्मकथात्मक अंश में लेखक एक परिश्रमी बालक है, जो अपने परिश्रम के आधार पर भविष्य के दरवाजे स्वयं खोल लेता है। 

प्रश्न 5. 
'जूझ' आत्मकथात्मक अंश की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर :
मराठी के प्रसिद्ध कथाकार डॉ. आनन्द यादव के आत्मकथात्मक उपन्यास से संकलित अंश में एक किशोर के देखे और भोगे गए ग्रामीण जीवन के खुरदरे यथार्थ और उसके रंगारंग परिवेश का अत्यन्त विश्वसनीय जीवंत चित्रण हुआ है। पिता अपनी मौज-मस्ती के लिए अपने बालक की पढ़ाई छुड़ा कर खेती के काम में लगा देता है। लाचार माँ उसके साथ सहानुभूति रखकर उसके भविष्य को सुधारने में सहयोग करती है। कहानी की मूल संवेदना निम्न मध्यमवर्गीय ग्रामीण समाज और लड़ते-जूझते किसान-मजदूरों के संघर्षमय जीवन की झांकी प्रस्तुत कर एक किशोर की लालसा एवं अकुलाहट की मार्मिक व्यंजना करना है तथा उनसे संघर्षशील बने रहने की सत्प्रेरणा देना है। 

प्रश्न 6. 
वसंत पाटिल से दोस्ती होने के बाद लेखक के व्यवहार में कौन-से परिवर्तन हुए? 
उत्तर : 
वसंत पाटिल लेखक से आयु में छोटा था लेकिन पढ़ने में बहुत होशियार था। वह कक्षा का मॉनीटर था। वह स्वभाव से शांत था। घर से पढ़ाई की पूरी तैयारी करके आता था। कक्षा में पहली बैंच पर बैठता था। उससे मित्रता होने के बाद लेखक ने भी पूरा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया। इस कारण लेखक को गणित अच्छी तरह से समझ में आने लगी थी। परिणामस्वरूप लेखक भी उसके समान एकाग्रता रखकर पढ़ाई में मन लगाने लगा। गणित के शिक्षक उसके द्वारा सही उत्तर देने से प्रसन्न होकर 'आनन्दा' नाम से पुकारने लगे थे। इस प्रकार वसंत पाटिल से दोस्त ही लेखक की पढ़ाई में रुचि का जागरण हुआ और आत्मविश्वास भी बढ़ने लगा। 

प्रश्न 7. 
मास्टर न. वा. सौंदलगेकर के मराठी भाषा पढाने का वह कौन-सा तरीका था जिससे लेखक के जीवन पर उनका सर्वाधिक प्रभाव पड़ा? 
उत्तर : 
न. वा. सौंदलगेकर पाठशाला में मराठी के अध्यापक थे। वे बहुत तन्मय होकर पढ़ाते थे। वे कविता पढ़ाते समय छंद, लय, ताल का पूरा-पूरा ध्यान रखते थे। उनका स्वर सुरीला था। उन्हें मराठी और अंग्रेजी की बहुत कविताएँ कंठस्थ थीं। अनेक छंदों की लय, गति, ताल उन्हें अच्छी तरह आते थे। पहले वे एकाध कविता गाकर सुनाते थे फिर बैठे-बैठे अभिनय के साथ कविता का भाव ग्रहण करते थे। साथ ही उसी भाव की किसी अन्य कवि की कविता भी सुनाकर दिखाते। वे स्वयं भी कविता करते थे। मराठी भाषा को पढ़ाने का उनका तरीका बहुत रोचक था जिससे लेखक पर यह प्रभाव पड़ा कि वह खेत में काम करते समय या ढोर चराते हुए अकेले में खुले गले से सारी कविताएँ मास्टरजी के हाव-भाव, यति-गति और आरोह-अवरोह के अनुसार ही गाता और उन्हें रचता था। 

प्रश्न 8. 
'जझ' उपन्यास से संकलित अंश के आधार पर समझाइए कि लेखक आनन्द यादव की मराठी भाषा कैसे सुधरने लगी? 
उत्तर : 
सौंदलगेकर पाठशाला में मराठी भाषा के शिक्षक थे। उनसे प्रेरणा लेकर आनन्द यादव भी कविता रचने लगे क्योंकि लेखक को उन्होंने ही लय, गति, ताल आदि के बारे में ज्ञान कराया था। साथ में वे भी मराठी भाषा में कविता रचते थे और गाकर सुनाते थे। इसके अलावा वे यह भी कहते थे कि कवि को शुद्ध लेखन करना क्यों जरूरी होता है, शुद्ध लेखन के नियम क्या हैं? इसी आधार पर लेखक कविता रचकर उन्हें दिखाता था और वे आवश्यक सुधार उसमें कर देते थे। मराठी शिक्षक लेखक को पढ़ने के लिए मराठी कवियों के काव्य-संग्रह भी देते थे और उन कवियों के संस्मरण भी सुनायां करते थे। इस प्रकार लेखक मराठी शिक्षक के बहुत नजदीक पहुँच गया था और मराठी शिक्षक के सम्पर्क में रहने से लेखक की मराठी भाषा सुधरने लगी। 

प्रश्न 9.
'जूझ' के लेखक आनन्द यादव को यह किस प्रकार विश्वास हुआ कि वे भी कविता कर सकते हैं? 
उत्तर : 
मराठी शिक्षक कक्षा में बड़े तन्मय होकर पढ़ाते थे और बड़ी तन्मयता के साथ कविता गाकर सुनाते थे। वे स्वयं कवि थे। लेखक को विश्वास हुआ कि कवि अपने जैसा ही एक हाड़-माँस का, क्रोध-लोभ का मनुष्य होता है। इस कारण लेखक को भी लगा मैं भी कविता कर सकता हूँ। साथ ही मास्टर शिक्षक के दरवाजे पर छाई हुई मालती की लता पर उन्होंने कविता लिखी थी। उस बेल और कविता को स्वयं लेखक ने देखा था। उससे उसे लगा कि अपने आस पास .अपने गाँव और अपने खेतों में भी ऐसे दृश्य हैं जिन पर कविता लिखी जा सकती है। लेखक यह सब अनजाने में ही तुकबन्दी करता रहा और जोर-जोर से गुनगुनाता रहा। कविता रचकर लेखक शिक्षक को भी दिखाता रहा। इन सब बातों से लेखक को कविता रचने का विश्वास होने लगा। 

प्रश्न 10. 
"उलटा अब तो ऐसा लगने लगा कि जितना अकेला रहूँ उतना अच्छा।" कथन के अनुसार आनन्द यादव को अकेला रहना कब से अच्छा लगा? स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
कवित्व-शक्ति के आधार पर लेखक की मनोवृत्ति में परिवर्तन आ गया था। पहले उसे ढोर चराते हुए, खेतों में पानी लगाते समय तथा अन्य काम करते हुए अकेलापन बहुत खटकता था, लेकिन अब लेखक के मन में कवित्व शक्ति जाग गयी थी और वह कविता को कंठस्थ कर ऊँची आवाज में गाने लगा और स्वयं भी कुछ तुकबन्दी करने लगा, तब से उसे अकेलेपन से ऊब नहीं हुई, क्योंकि वह अपने आप से खेलने लगा उलटा अब उसे ऐसा लगने लगा कि जितना अकेला रहूँ, उतना अच्छा। अकेलेपन में कविता ऊँची आवाज में गायी जा सकेगी, तुकबन्दी की जा सकती और किसी भी तरह का अभिनय किया जा सकता। कविता गाते-गाते थुई थुई करके मनमर्जी के आधार नाचा भी जा सकता है और वह यह सब करने लगा था। इसलिए उसे अकेलापन अच्छा लगने लगा था। 

प्रश्न 11. 
पाठशाला पहुँचने पर लेखक को किन परेशानियों का सामना करना पड़ा?
उत्तर : 
पाठशा 
ठशाला पहँच कर जब लेखक कक्षा में गया तो गली के दो लडकों को छोडकर कोई भी उसकी पहचान का नहीं था। लेखक को उन्हीं के साथ बैठना पड़ा। लेखक उन्हें कम अक्ल का समझता था। इससे उसका मन खट्टा हो गया लेकिन क्या करता? वह एक बैंच के कोने में बैठा रहा। लेखक को बैठा देखकर के कक्षा के शरारती लड़के ने उसकी खिल्ली उड़ाई और उसका गमछा छीन कर मास्टर की मेज पर रख दिया। छुट्टी के बीच उनकी धोती की दो बार लॉग खींचने की भी कोशिश की गयी। 

घर लौटते समय लेखक चिन्तित था कि कक्षा में लड़के उसकी खिल्ली उड़ाते हैं, उसका गमछा तथा धोती खींचते हैं। इससे तो अच्छा पाठशाला न जाकर खेती करना ही है। लेकिन उसका मन नहीं माना और वह दूसरे दिन फिर पाठशाला चला गया। अन्त में मंत्री नामक कक्षा-अध्यापक के आतंक के कारण शरारती लड़कों से उसका पिंड छूट गया। 

प्रश्न 12. 
'जूझ' आत्मकथात्मक के पठित अंश के आधार पर लेखक के चरित्र की विशेषताएँ बताइये। 
उत्तर :  
जूझ' उपन्यास के पठितांश के आधार पर लेखक के चरित्र की निम्न विशेषताएँ दृष्टिगत होती हैं पढ़ने की ललक-लेखक दादा से डरता था लेकिन पढ़ने की ललक उसके मन में समायी हुई थी। इसलिए उसने अपनी इच्छा माँ के समक्ष प्रकट की और दत्ताजी राव के पास चलने का सुझाव दिया था। उनकी सहायता से उसकी पढ़ने की ललक भी पूरी हुई। - दूरदर्शी-लेखक दूरदर्शी है। वह यह जानता है कि पढ़ने से नौकरी मिल सकती है। 

या कोई धंधा किया जा सकता है। इससे भविष्य बन सकता है, खेती करने से नहीं। इस कारण ही वह दत्ताजी राय के पास जाता है क्योंकि वह जानता है उनके आदेश का पालन दादा को करना ही पड़ेगा। कठोर परिश्रमी तथा लगनशील-लेखक कठोर परिश्रमी और लगनशील है। वह अपने कठोर परिश्रम से दादा की शर्तों को पूरा करता है और अपनी लगनशीलता के कारण कक्षा में होशियार बच्चों में गिना जाने लगता है। 

प्रश्न 13. 
'जूझ' उपन्यास के पठितांश आधार पर दत्ताजी राव साहब का चरित्र-चित्रण कीजिए। 
उत्तर : 
राव साहब गांव के सम्मानित जमींदार हैं। उनके चरित्र की विशेषताएँ इस प्रकार हैं नेक दिल, उदार और रौबीले इंसान-राव साहब नेक दिल, उदार और रौबीले जमींदार हैं। कभी लेखक के दादा उन्हीं के खेतों में काम किया करते थे। वे अपने गुणों के आधार पर सहायता माँगने पहुँचने वालों की सहायता करते थे। इसी दृष्टि से उन्होंने लेखक की माँ की पीड़ा सुनकर लेखक की पढ़ाई के लिए हाँ कर दी थी। बात के धनी-जमींदार बात के धनी थे। 

उन्होंने लेखक की माँ से कहा था कि इसके दादा को मेरे पास भेजना। उन्होंने दादा को खरी-खोटी सुनाकर लेखक को पाठशाला भेजने के लिए कहा। दादा उनके सामने कुछ बोल नहीं सका और लेखक को पढ़ाने के लिए हाँ कर दी। इस आधार पर कहा जा सकता है कि मुखिया अपनी बात के धनी थे, जो कहते थे, वही करते थे। इसके साथ ही वे सद्व्यवहारी, परदुःखकातर और सच्चरित्र इंसान भी थे।

जूझ Summary in Hindi 

लेखक-परिचय - मराठी साहित्य के सुप्रसिद्ध साहित्यकार आनन्द यादव का जन्म सन् 1935 ई. में कोल्हापुर (महाराष्ट्र) के कागल नामक स्थान पर हुआ। इनका पूरा नाम आनन्द रतन यादव है। मराठी एवं संस्कृत में स्नातकोत्तर डॉ. आनन्द यादव बहुत समय तक पुणे विश्वविद्यालय में मराठी विभाग में कार्यरत रहे। इन्होंने अब तक लगभग पच्चीस पुस्तकें लिखी हैं। 'नट-रंग' नामक उपन्यास का प्रकाशन भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा किया गया है। 

डॉ. आनन्द के उपन्यासों के अतिरिक्त कविता-संग्रह, समालोचनात्मक निबन्ध आदि पुस्तकें भी प्रकाशित हैं। इनका 'जूझ' उपन्यास सन् 1990 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित है। इनकी रचनाओं की मराठी के साहित्यकारों, समालोचकों एवं प्रबुद्ध पाठकों ने भरपूर प्रशंसा की है।

पाठ-सार - 'जूझ' पाठ डॉ. आनन्द यादव के बहुचर्चित एवं प्रशंसित आत्मकथात्मक उपन्यास का एक अंश है। इसमें एक किशोर के देखे और भोगे गये गँवई जीवन का यथार्थ एवं विश्वसनीय चित्रण किया गया है। इसका सार इस प्रकार है - 

1. लेखक की विवशता-चौथी कक्षा पास कर पाँचवीं में प्रवेश लेने के बाद कंथानायक (लेखक आनन्द) को उसके पिता ने पाठशाला जाने से रोक दिया और खेती के काम में लगा दिया। परन्तु उसे लगा कि जन्म भर खेती का काम करने पर भी कोई लाभ नहीं रहेगा। यदि पढ़-लिखकर नौकरी लग जायेगी तो भविष्य बन जायेगा। इसलिए लेखक ने अपनी माँ से पढ़ने की इच्छा बताई। 

2. माँ के साथ दत्ताजी राव के पास जाना-एक बार माँ को एकान्त में पाकर लेखक ने अपनी पढ़ाई की बात चला दी। फिर माँ को सुझाव दिया कि वह दत्ताजी राव सरकार से मुझे पढ़ाने के सम्बन्ध में बात करें, उनके कहने से दादा मान जायेंगे। तब लेखक माँ के साथ दत्ताजी राव के पास गया। 

वहाँ पर माँ ने कहा कि वह बेटे को आगे पढ़ाना चाहती है। उसने यह भी बताया कि पति सारे दिन बाजार में रखमाबाई के पास गुजार देता है। खेती के काम में हाथ नहीं लगाता। सारा काम लड़का करता है। उसके पति ने खुद काम से बचने के लिए लड़के को पाठशाला जाने से रोका है। दादा की शिकायत सुनकर दत्ताजी राव को गुस्सा आया। उन्होंने कहा कि उसे मेरे पास भेज देना, मैं उसे आज ही ठीक करता हूँ।

3. दत्ताजी राव का निर्देश-दत्ताजी राव के कथनानसार कथानायक की माँ ने दादा को रावजी के पास यह कहकर भेज दिया कि वह उनके घर साग-भाजी देने गई थी, तो उन्होंने कहा कि अपने मालिक को मेरे पास भेजना। तब दादा वहाँ पर तुरन्त चला गया। दत्ताजी राव की योजना के अनुसार कुछ देर बाद लेखक भी वहाँ पर गया। तब दत्ताजी राव ने उसकी पढ़ाई के बारे में पूछा तथा पढ़ाई छोड़ देने पर दादा को जमकर फटकारा। इसके बाद उन्होंने बेटे को आगे पढ़ाने का निर्देश दिया, जिसे दादा ने मान लिया। 

4. पाठशाला भेजने की शर्त-घर आकर दादा ने शर्त रखी कि वह पाठशाला सुबह ग्यारह बजे जायेगा, उससे पहले तथा पाठशाला से आने के बाद खेत का काम, पशु चराने आदि का काम भी करेगा। काम अधिक होने पर कभी कभी छुट्टी भी लेनी पड़ेगी। लेखक ने सभी शर्ते मान लीं।

  5. कक्षा में प्रवेश-लेखक पाँचवीं कक्षा में जाकर बैठने लगा। कुछ शरारती लड़कों ने लेखक की खिल्ली उड़ाई, उसका गमछा खींचकर मेज पर पटक दिया। बीच में छुट्टी के समय उसकी धोती खींचने की कोशिश की। तब गणित के शिक्षक ने उन शरारती लड़कों को डाँटा-फटकारा। कक्षा में वसन्त पाटिल नाम का एक लड़का था जो लेखक से छोटा, शान्त स्वभाव का, परन्तु पढ़ने में होशियार था।

लेखक ने उसके समान एकाग्रता रखकर पढ़ाई में मन लगाया! इससे गणित समझ में आने लगी और सवालों के सही उत्तर देने से शिक्षक भी प्रसन्न होकर इसे 'आनन्दा' नाम से पुकारने लगे। शिक्षक के अपनेपन के व्यवहार से तथा बसन्त पाटील से मित्रता होने से लेखक का मन पढ़ाई में खूब लगने लगा। 

6. मराठी के शिक्षक का प्रभाव-मराठी के शिक्षक न. वा. सौंदलगेकर बहत तन्मय होकर पढाते थे। वे कविता पढ़ाते समय छन्द, लय, गति से पढ़ाते थे, उनका स्वर सुरीला था। उन्हें मराठी और अंग्रेजी की अनेक कविताएँ कण्ठस्थ थीं। वे छन्दों की लय, गति, ताल अच्छी तरह समझते थे। वे स्वयं भी कविता करते थे और कभी-कभी कक्षा में अपनी कविताएँ सुना भी देते थे। उनके प्रभाव से लेखक भी खेत में काम करते समय हाव-भाव, गति-यति के साथ कविताएँ गाने लग गया था और शिक्षक की तरह ही गाते समय अभिनय भी करता था। 

7. कविता-पाठ का प्रभाव-इस तरह खेत में काम करते, पशुओं को चराते समय कथानायक कविता-पाठ करता हुआ मस्त रहने लगा। उसे एकान्त में ऊँचे स्वर में कविता को अभिनय के साथ गाते रहना अच्छा लगता था। उसने कविता गाने की अपनी पद्धति भी अपनायी। शिक्षक ने उसका कविता-गायन सुना तो पाठशाला में छठी-सातवीं के छात्रों के सामने तथा एक समारोह में भी उसे गवाया। इससे लेखक का आत्मविश्वास बढ़ा और वह स्वयं भी छोटी-छोटी कविताएँ रचने लगा। वह आसपास के.फूलों-फसलों पर कविता बनाता और उनको गुनगुनाता। उन बनी कविताओं को शिक्षक के पास जाकर दिखाता। इस तरह कवि और कविता के बारे में उसके ज्ञान का विस्तार होता गया। 

8. शिक्षक द्वारा प्रोत्साहन-कथानायक द्वारा रची गई कविताओं को देखकर मराठी का शिक्षक उसे शाबाशी देता और फिर उसे कविता-रचना के विषय में समझाता। उन शिक्षकजी के प्रोत्साहन से, कविता की भाषा, छन्द, भाव आदि के सम्बन्ध में बार-बार समझाते रहने से और कविता-संग्रह की अनेक पुस्तकें देने से लेखक के ज्ञान का विस्तार होता रहा। इससे उसकी भाषा का परिष्कार हुआ; छन्द, अलंकार आदि का ज्ञान बढ़ा और तब उसके मन में कविता-रचना का कोई मधुर बाजा बजता रहा। 

कठिन-शब्दार्थ :  

  • जूझ = संघर्ष। 
  • जन = लोग। 
  • बरहेला = गुस्सैल। 
  • तड़पन = पीड़ा, बेचैनी। 
  • जोत दिया = लगा दिया। 
  • जिरह = बहस। 
  • बालिस्टर = एडवोकेट, बैरिस्टर। 
  • नापास = अनुत्तीर्ण। 
  • मटमैली = मिट्टी के रंग जैसी, गन्दी। 
  • काछ = धोती की लांग। 
  • गमछा = पतले कपड़े का तौलिया। 
  • मैलखाऊ = जिसमें मैल न दिखाई दे, मैलखोर। 
  • मुनासिब = उचित। 
  • कण्ठस्थ = जबानी याद होना। 
  • ढोर = पशु। 
  • यति = कविता में पढ़ते समय विराम। 
  • गति = लय की चाल। 
  • आरोह = चढ़ना। 
  • अवरोह = उतरना, स्वर का नीचा होना। 
  • तुकबन्दी = कविता की सामान्य रचना। 
  • खीसा = बड़ी जेब। 
  • अपनापा = अपनापन। 
  • लय = कविता की स्वर-योजना। 

जूझ कहानी के पात्र सौंदलगेकर की विशेषता क्या थी?

श्री सौंदलगेकर मराठी के अध्यापक थे। पढ़ाते समय वे स्वयं में रम जाते थे। उनके कविता पड़ाने का अंदाज बहुत ही अच्छा था। वह सुरीले गले के साथ छंद की बढ़िया चाल के साथ कविता पढ़ाते थे।

आनंदा के स्वभाव की विशेषताएं क्या है?

उसे ऐसा लगता था कि कोई-न-कोई हमेशा साथ में होना चाहिए। उसे किसी के साथ बोलते हुए, गपशप करते हुए, हँसी-मजाक करते हुए काम करना अच्छा लगता था। कविता के प्रति लगाव के बाद उसे अकेलेपन से ऊब नहीं होती। अब वह स्वयं से ही खेलना सीख गया।

जूझ कहानी के लेखक में कौन सी विशेषता थी?

वह स्वयं व्यक्तिगत स्तर पर, पारिवारिक स्तर पर, सामाजिक स्तर पर, विद्यालय के माहौल के स्तर पर तथा आर्थिक स्तर आदि पर उसका संघर्ष दिखाई देता है। स्पष्ट है कि यह शीर्षक कथानायक के पढ़ाई के प्रति जूझने की भावना को उजागर करता है। लेखक ने अपनी आत्मकथा अपनी इसी चारित्रिक विशेषता को केंद्र में रखकर की है।

दत्ता जी राव कौन है?

दत्ता राव देसाई गाँव के प्रभावशाली व्यक्ति थे। वे बेहद समझदार थे और गांव में उनका प्रभाव था। हर कोई ग्रामीण उनकी बात आसानी से मान जाता था। जब लेखक आनंदा में पढ़ाई के प्रति रुचि जागृत हुई, लेकिन आनंदा के पिता अशिक्षित होने के कारण लेखक को पाठशाला नहीं भेजना चाहते थे और खेती के कार्य में ही लगाना चाहते थे

संबंधित पोस्ट

Toplist

नवीनतम लेख

टैग