कार्बन डाइऑक्साइड का हिंदी क्या होता है? - kaarban daioksaid ka hindee kya hota hai?

प्रश्न कार्बन डाइऑक्साइड ध्रुवी योगिक है ठीक है चलिए देखते हैं तो यह जो कार्बन डाइऑक्साइड है किसको ध्रुवी पता लगाने के लिए हम इसका द्विध्रुव आघूर्ण निकालते हैं जिसको म्यूज़ियम दर्शाते हैं तो द्विध्रुव आघूर्ण अगर हमारा तो जीरो ठीक है तुझे योगिक होता है वह दूर भी हो जाता है ठीक है अधूरी हो जाता है और अगर द्विध्रुव आघूर्ण शून्य के बराबर नहीं है ठीक है और कुछ है ठीक है तो वह कैसा होता है तो वह ध्रुवी होता है ठीक है तो यह करने के पहले हमें क्या देखना पड़ता है इसमें हम CO2 की संरचना देखे तो CO2 की संरचना कैसी होती है पता यार एक ही होती है एक ही होती है अगर हम CO2 को बनाए थे देखे कार्बन और यहां दो बंद ऑक्सीजन और यहां पर भी से दो बंद ऑक्सीजन ठीक है और यहां पर जिस की विधि निर्माता ज्यादा होती तीर उसकी तरफ जाता है ठीक

ऐसे टीचरों का गुण निकालते हैं ठीक है इस तरह से द्विध्रुव आघूर्ण हम निकाल लेंगे और फिर इस तरह से कट कर देते तो यहां पर जो यह क्यों बंद है और यह क्यों बंद है मतलब यह जिओ बंद हो कि जो द्विध्रुव आघूर्ण है इनका हम क्या करते हैं सदस्यों के लिए निकालते हैं सदस्यों को निकाल देनी व्यक्ति निकालते तब हमें बता जरूर इनका जवाब सदस्यों निकाल लोगे तो क्या आयेगा जीरो आएगा ठीक है तो यह हमारा जो यहां पर सी ओपन है कि किस तरह से हम कह दे रही हो बंधुओं का बंधु का द्विध्रुव आघूर्ण इसको मैं उसे दर्शा रहे हैं विद्रोह हां गुड मतलब ध्रुवा घोड़ों का सदस्यों का

सदुपयोग क्या आएगा सुने है ठीक है और तू नहीं होने के कारण सोने होने के कारण आज रवि योगी को जाएगा CO2 कैसा हो जाएगा आज रूबी तो दिया हुआ जो कथन होगा वह क्या हो जाएगा वह असत्य हो जाएगा फाल्स हो जाएगा ठीक है देखे यहां पर यह जो हमारे हम ने बताया कि हां यह म्यूजिक आ गई है मैं कट पेस्ट पता कैसे चला कभी भी तीर अपोजी दिशा में विपरीत दिशा में हो तो काट देता है तो जीरो आ जाता है मगर तीर इस तरह से होता तो मैं कुछ होता तो न्यूज़ हीरो के बराबर नहीं होता लेकिन अगर यहां तीर काट दे रहा कैंसिल हो जा रहा है ठीक है एक दूसरे कैंसिल कर दे रहा है इसलिए जीरो आ रहा है इसलिए म्यूजिक आ रहा हूं ओके

आजकल हर कोई कार्बन डाइऑक्साइड को कोसता-धिक्कारता है. वैश्विक तापमान बढ़ने और जलवायु परिवर्तन के लिए ज़िम्मेदार ठहराता है. कुछ भी हो हर बात के लिए उसी को नक्कू बनाया जाता है. कहा जा रहा है कि प्रलय बिल्कुल सिर पर है और उसे इसी मुई कार्बन डाइऑक्साइड गैस ने न्यौता दिया है.

यह तो सच है कि कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता से मौत होती है. लेकिन यह भी सच है कि पृथ्वी पर ही नहीं, शायद किसी भी ग्रह पर उसके बिना जीवन संभव ही नहीं है, जैसा कि जर्मनी में म्युनिख विश्विवविद्यालय के प्रो. डॉ. हाराल्ड लेश कहते हैं, "किसी भी जीवनधारी ग्रह पर कार्बन डाइऑक्साइड का होना अनिवार्य है. यह कोई संयोग नहीं, शर्त है. कार्बन डाइऑक्साइड का अणु अपने आप में कतई बुरा नहीं है. अच्छा भी नहीं है. वह तो सिर्फ़ एक अणु है. हमें यह जानना चाहिए कि उसके काम क्या हैं? उसका एक मुख्य काम यह है कि वह सूर्य की रोशनी में छिपी गर्मी को सोख लेता है. हमारे वायुमंडल वाला कांचघर प्रभाव इतना प्रबल नहीं होता, यदि वायुमंडल में इस गैस के अणु न होते. लेकिन, उनके बिना हमारी पृथ्वी भी एकदम निर्जीव होती."

हम मनुष्य, हमारे ढोर-ढांगर, जीव-जंतु, पेड़-पौधे और इस धरती पर की सारी रंगीनी बिल्कुल नहीं होती, यदि हमारे ऊपर कार्बन डाइऑक्साइड की बिल्कुल सही मात्रा की छतरी न तनी होती. प्रो. लेश कहते हैं, "तब पृथ्वी की सफ़ेद उपरी सतह सूर्य प्रकाश को अंतरिक्ष में परावर्तित कर देती और हमेशा के लिए बर्फ़ से ढकी रहती. पृथ्वी पर देखने-जानने के लिए कुछ भी नहीं होता."

कार्बन ही काया है

विज्ञान की दृष्टि में जीवन कार्बनिक रसायन (ऑर्गैनिक केमिस्ट्री) है. कार्बन ही काया है, शरीर है. हम मनुष्य ही नहीं, सारे जीव-जंतु, पेड़-पौधे मुख्य रूप से कार्बन के ही बने हुए हैं. पेड़-पौधे सूर्य-प्रकाश से ऊर्जा लेकर और पानी का उपयोग करते हुए फ़ोटो-सिंथेसिस, यानी प्रकाश संश्लेषण क्रिया के द्वारा कार्बोज (C6 H12 O6) नाम की शर्करा का निर्माण करते हैं, जिसका वे अपने भोजन के लिए उपयोग करते हैं. इस क्रिया में पानी के अणुओं के टूटने से ऑक्सीजन मुक्त होती है, जो सारे प्राणी जगत के लिए सांस लेने के काम आती है. पेड़-पौधों के फल-फूल और पत्तियां शाकाहारी प्राणियों का, और शाकाहारी प्राणी मांसाहारी प्राणियों का भोजन बनते हैं. यही मोटे तौर पर वह कार्बन-चक्र है, जिससे प्राणिजगत को जीवन प्राप्त होता है.

कार्बन डाइऑक्साइड के बिना पृथ्वी पर हरियाली संभव नहीं.तस्वीर: ISNA

वनस्पतियां अपने लिए कार्बन डाइऑक्साइड पत्तियों के द्वारा हवा से लेती हैं. वायुमंडलीय हवा में उसका हिस्सा इस समय 0.0387 प्रतिशत के आस-पास है, जो स्थान और ऋतुओं के अनुसार थोड़ा-बहुत बदला करता है. बहुत से वैज्ञानिकों का कहना है कि वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ने से फसलों और पेड़-पौधों का विकास और भी तेज़ होगा. पिछले पचास वर्षों में यही हुआ है. इससे न सिर्फ़ खाद्यान्नों की उपज बढ़ेगी, वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा भी बढ़नी चाहिए.

जलवायु हमेशा से परिवर्तनशील है

कनाडा में ओटावा विश्वविद्यालय में भूविज्ञान के प्रोफ़ेसर डॉ. इयान क्लार्क नहीं मानते कि हम इस समय जिस जलवायु परिवर्तन का रोना रो रहे हैं, उसके लिए कार्बन डाइऑक्साइड ही ज़िम्मेदार है. वह कहते हैं, "कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में परिवर्तन का पिछले 50 करोड़ वर्षों का ग्राफ़ इस सारे समय के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर और भूमंडलीय तापमान के बीच कोई संबंध नहीं दिखाता. वास्तव में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर आज से कोई 45 करोड़ साल पहले, जब आज की तुलना में दस गुना अधिक था, तब पृथ्वी पिछले 50 करोड़ वर्षों के सबसे घनघोर हिमयुग में पहुंच गयी थी."

कार्बन डॉइऑक्साइड रहित एक जर्मन तापबिजलीघरतस्वीर: picture-alliance / dpa

प्रोफ़ेसर क्लार्क बताते हैं कि बारीक़ी से देखने पर हम पाते हैं कि तापमान का ग्राफ़ पहले उठता है और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ने का ग्राफ़ 800 वर्ष पीछे-पीछे चलता है. वह कहते हैं, "दूसरे शब्दों में, कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ना तापमान बढ़ने का परिणाम है, न कि उसका कारण." प्रोफ़ेसर क्लार्क और उनके जैसे बहुत-से वैज्ञानिकों का कहना है कार्बन डाइऑक्साइड जलवायु परिवर्तन का "मुख्य ड्राइवर" नहीं है, ऐसा अतीत में कभी नहीं रहा. जलवायु तो हमेशा ही परिवर्तनशील रही है, तब भी, जब आदमी का कोई योगदान नहीं हो सकता था.

कुछ वैज्ञानिक तो यहां तक आरोप लगाते हैं कि जलवायु परिवर्तन को विज्ञान से छीन कर राजनैतिक विचारधारा का प्रश्न बना दिया गया है. उसका हौवा दिखा कर विकासशील देशों से अपना विकास रोक देने या फिर पश्चिम की मंहगी, तथाकथित "पर्यावरण-अनुकूल तकनीक" ख़रीदने के लिए कहा जा रहा है. जो भी हो, हम यही कह सकते हैं कि दोनों खेमों के पास कई अकाट्य तर्क हैं. तब भी, तापमान का बढ़ना और जलवायु में उलटफेर भी वर्षों से जारी है. इतना तय है कि कार्बन डाइऑक्साइड तापमान नियमन का काम करता है और इस समय यह नियमन ठीक से हो नहीं रहा है.

रिपोर्ट- राम यादव

संपादन- महेश झा

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