क्या आत्मा होती है या नहीं - kya aatma hotee hai ya nahin

मृत्यु के बाद भौतिक शरीर अचेतन हो जाता है। कहा जाता है कि मृत्यु के बाद प्राण बाहर निकल गए, और ऐसा भी कहते हैं कि आत्मा शरीर से बाहर चली गयी। क्या अंतर है आत्मा और प्राण में?

प्रश्न: सद्‌गुरु, ‘प्राण या आत्मा’ से आपका क्या मतलब है?

आत्मा की परिभाषा

सद्‌गुरु: आप जिसे ‘आत्मा’ कहते हैं, वह कोई इकाई नहीं है। लोगों में बस थोड़ी समझ पैदा करने के लिए हिन्दू संस्कृति में, ‘जो असीमित है,’ उसके लिए एक शब्द का इस्तेमाल किया गया, लेकिन दुर्भाग्य से इसे अब गलत अर्थों में समझा जाता है। जो असीमित है वह कभी भी एक इकाई नहीं हो सकता। लेकिन जैसे ही आप इसे एक नाम दे देते हैं, यह एक इकाई बन जाता है। आप चाहे इसे ‘आत्मा’ कहें, ‘सोल’ कहें, ‘सेल्फ ’ कहें - आप इसे चाहे जो भी कहें - जैसे ही आप इसके साथ एक नाम जोड़ देते हैं, यह एक इकाई बन जाता है।

लोग ‘अच्छी आत्माओं’ की बात करते हैं। पश्चिम में लोग कहते हैं, ‘अरे, वह एक अच्छी आत्मा है।’ कोई आत्मा अच्छी या बुरी नहीं होती। आत्मा सभी पहचानों से, सभी इकाईयों से, सभी चीजों से परे है। इसे समझने का दूसरा तरीका यह है कि आत्मा जैसी कोई चीज ही नहीं है। इसी वजह से गौतम बुद्ध कहते फिरते थे, ‘‘तुम ‘अनात्म’ हो। आत्मा कुछ नहीं है।’’

प्राण क्या है

अब आप प्राण के बारे में पूछ रहे हैं। योग में कहा जाता है कि हर चीज शरीर है। भौतिक शरीर, शरीर है, मन शरीर है, प्राण शरीर है, आकाशीय-तत्व शरीर है, हर चीज शरीर की तरह है, यहां तक कि आत्मा भी शरीर की तरह है। यह चीजों को देखने का बहुत समझदारी भरा तरीका है। जब हम कहते हैं आनंदमय कोष, तो बेशक हम परम तत्व की बात कर रहे हैं, लेकिन उसे भी एक शरीर के रूप में। ऐसा इसलिए कि आप इन बातों को समझ सकें। दूसरे शब्दों में, अगर आप अपने शरीर को पूरी सृष्टि के एक ‘मॉडल’ यानी नमूने की तरह लेते हैं, तो यह कुछ ऐसा है जैसे आप ब्रश से पेंट को फैला रहे हों। जब आप ब्रश से पेंट को फैलाते हैं तो रंग शुरु में बहुत गाढ़ा या सुर्ख होता है, फिर हल्का, और हल्का, और ज्यादा हल्का यानी सूक्ष्म रंग होता चला जाता है - और अंत में रंगहीन हो जाता है। कुछ इसी तरह यह भौतिक-शरीर से शुरू होकर मानसिक-शरीर फि र ‘प्राणिक-शरीर’ तक स्थूल से सूक्ष्म और सूक्ष्मतर होता चला गया है। भौतिक-शरीर और मानसिक-शरीर में ज्यादा स्थूलता है। प्राणिक-शरीर वह ऊर्जा है जो इन सबको चलाती है, और यही है जो आपको शरीर से जोडक़र रखती है। जब प्राण खत्म हो जाते हैं, तो आप खत्म हो जाते हैं। आपका शरीर निर्जीव हो जाता है या आप अपने खुद के अनुभव में मर जाते हैं - इसे आप जैसे भी चाहें ले सकते हैं। तो जिसे आप मौत कह रहे हैं वह सिर्फ यही है कि प्राण ने अपना कंपन खो दिया है या कहें अपनी जीवंतता खो दी है।

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जीव और आत्मा में क्या अंतर है

मान लीजिए एक नवयुवक है और उसका भौतिक-शरीर किसी दुर्घटना में, या किसी और वजह से नष्ट हो जाता है। उसका प्राणिक-शरीर तब भी पूर्ण जीवंत और बरकरार रहता है। लेकिन यह भौतिक-शरीर पूरी तरह से टूट चुका है, जिसकी वजह से प्राणिक-शरीर को भौतिक-शरीर छोडक़र जाना पड़ता है। अब जब वह ऐसी हालत में जाता है, तो उसकी जीवंतता बरकरार रहती है। इसीलिए वह लोगों के द्वारा बहुत आसानी से महसूस किया जाता है।

आदित्य: जी हां सद्‌गुरु। लेकिन उस प्राण शरीर को, जो कि तब भी बरकरार है, वह कब तक रख सकता है? क्या वह सूक्ष्म-शरीर होता है?

सद्‌गुरु: वह इंसान जो बुढ़ापे में मरता है, उसके पास भी एक सूक्ष्म-शरीर होता है, लेकिन वह इतना सूक्ष्म होता है कि लोग उसे महसूस नहीं कर पाते।

आदित्य: तो सद्‌गुरु, क्या यह प्राणिक-शरीर तब तक बरकरार रहता है जब तक कि पुनर्जन्म नहीं होता?

सद्‌गुरु: हां, जब तक कि यह एक दूसरा भौतिक-शरीर खोज पाने में समर्थ नहीं हो जाता।

आदित्य: खोज पाने में या सृजन करने में, सद्‌गुरु?

सद्‌गुरु: एक तरह से अगर देखा जाए तो सृजन करने में, क्योंकि बिना प्राणिक-तत्व के शरीर खुद-ब-खुद नहीं बन सकता।

लोग अपनी भाषा मै या जिस धर्म का हम पालन करते हैं उसके आधार पर आत्मा को रूह, पवित्र आत्मा, चेतना या महा-चेतना भी कहा जाता है। बहुत से लोग उसे वास्तविक आत्मा, अमर आत्मा, शुद्धात्मा और आत्मा भी कहते हैं। फिर भी, आत्मा क्या है ? क्या यह पूर्णतया आध्यात्मिक है? क्या यह धार्मिक नहीं है ?

सोल यानि आत्मा, आत्मा यानि “सेल्फ”(खुद का स्वरूप)

जिसने आत्मा का अनुभव किया है, उसने आत्मा की वास्तविक सुंदरता को पहेचाना है। जबकि मन का स्वभाव शांति है, आत्मा का स्वभाव आनंद है! आनंद यानी शाश्वत सुख की अवस्था।

परम पूज्य दादा भगवान कहते हैं, "आत्मा का वास्तविक अर्थ स्वयं (खुद) है, स्वयं का सच्चा स्वरूप है। " शाश्वत सुख, आनंद, हमारे भीतर ही है। आपका सच्चा स्वरूप, यानि आत्मा है, अनंत सुख का धाम है और फिर भी आप विनाशी चीज़ों में अपना सुख ढूंढ रहे हो।“

मनुष्य जीवन का लक्ष्य आत्मा को जागृत करना है

आत्मा प्रत्येक जीवमात्र में होता है। उनका स्वभाव एक समान है, यानि प्रत्येक आत्मा के गुण समान होते है। अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत शक्ति और अनंत सुख आत्मा के मुख्य गुण हैं।

जबकि भौतिक सुख जैसे की प्रसिद्धि, पैसा और संपत्ति का स्वभाव विनाशी हैं और असंतोष करवाता है; आत्मा शाश्वत है और ठीक वैसे ही उसके गुण भी। उदाहरण के लिए, पैसा जीवन में सुख और आराम लाता है, लेकिन यह कभी भी आत्मा के जैसा अविनाशी सुख और आनंद नहीं दे सकता है। इस कारण से सभी शास्त्रों का सार, आध्यात्मिक अध्ययन का विषय और आध्यात्मिक साधना यह सब एक ही है: अपने आत्मा को जागृत कीजिए।

जो देखा नहीं जा सकता, उसे कैसे जागृत किया जा सकता है?

आत्मा को देह के चक्षुओं (नेत्रों) से नहीं देखा जा सकता, और न ही उसका सम्पूर्ण वर्णन शब्दों में किया जा सकता है। यह इतना सूक्ष्म है। इसके साक्षाकार के लिए, हमे प्रत्यक्ष ज्ञानी की आवश्यकता है, जिसे आत्मसाक्षात्कार हो गया हो। ऐसे गुरु को ज्ञानी कहते हैं, जिनकी कृपा से, आत्मा क्या है यह जानने की हमारी दृष्टि खुलती है।

वह प्रगट ज्ञानी हैं जिनके पास दूसरों की आत्मा जागृत करवाने की सिद्धि होती है। केवल वह ही हमें आत्मसाक्षात्कार (हमारे आत्मा का अनुभव) का अनुभव करा सकते है!!! इसीलिए शुभकामनाओं के साथ “शाश्वत सुख का मार्ग शीघ्र ही में मिले”, यहाँ वह प्रस्तुत है जो आप अपने आत्मा के बारे में जानना चाहते हैं।

आत्मा क्या कर सकती है?

आत्मा कर सकती है ये सब आत्मा प्रकाश पुंज है जो सूक्ष्म शरीर के रूप में जीवित व्यक्तियों के अंदर मौजूद रहती है। सूक्ष्म शरीर के आंख, कान, मुख तथा हाथ पैर नहीं होते है फिर भी यह देख सकता है, सुन सकता है, बोल सकता है और स्पर्श कर सकता है।

क्या वैज्ञानिक आत्मा को मानते हैं?

विज्ञान के अनुसार शरीर में आत्मा शरीर की तंत्रिका प्रणाली से व्याप्त क्वांटम जब अपनी जगह छोड़ने लगता है तो मृत्यु जैसा अनुभव होता है। इस सिद्धांत या निष्कर्ष का आधार यह है मस्तिष्क में क्वांटम कंप्यूटर के लिए चेतना एक प्रोग्राम की तरह काम करती है। यह चेतना मृत्यु के बाद भी ब्रह्मांड में परिव्याप्त रहती है।

क्या सच में आत्मा होती है या नहीं?

हर जीवित व्यक्ति के अंदर आत्मा मौजूद रहती है। जैसे ही यह शरीर से निकल जाती है शरीर निर्जीव हो जाता है यानी आत्मा एक जीव है जिसके चले जाने से शरीर जीव विहीन हो जाता है। शरीर से जुड़े सारे नाते रिश्ते सब खत्म हो जाते हैं।

क्या आत्मा को किसी ने देखा है?

कहा गया है कि आत्मा अविनाशी है, इस पर किसी भी प्राकृतिक भाव का असर नहीं होता. आत्मा पर किसी भी प्रकार की चीजें असर नहीं करती. आत्मा का एक ही स्वाभाविक गुण है, स्वाभाविक रूप से प्रसार करना और ईश्वर में विलीन होना. जब तक आत्मा ईश्वर के अपने मुख्य बिंदु तक नहीं पहुचती, तब तक तमाम शरीर बदलती रहती है.

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