लेखक के अनुसार वृंदावन में सुबह क्या अनुभूति होती है? - lekhak ke anusaar vrndaavan mein subah kya anubhooti hotee hai?

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Short Note

वृंदावन में सुबह-शाम सैलानियों को होने वाली अनुभूति अन्य स्थानों की अनुभूति से किस तरह भिन्न है?

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Solution

वृंदावन में सुबह-शाम सैलानियों को सुखद अनुभूति होती है। वहाँ सूर्योदय पूर्व जब उत्साहित भीड़ यमुना की सँकरी गलियों से गुजरती है तो लगता है कि अचानक कृष्ण बंशी बजाते हुए कहीं से आ जाएँगे। कुछ ऐसी ही अनुभूति शाम को भी होती है। ऐसी अनुभूति अन्य स्थानों पर नहीं होती है।

Concept: गद्य (Prose) (Class 9 A)

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Chapter 4: साँवले सपनों की याद - अतिरिक्त प्रश्न

Q 7Q 6Q 8

APPEARS IN

NCERT Class 9 Hindi - Kshitij Part 1

Chapter 4 साँवले सपनों की याद
अतिरिक्त प्रश्न | Q 7

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पाठ 4 - साँवले सपनों की याद Extra Questions क्षितिज़ Class 9th हिंदी

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर -

1. सुनहरे परिंदों के खूबसूरत पंखों पर सवार साँवले सपनों का एक हुजूम मौत की खामोश वादी की तरफ़ अग्रसर है। कोई रोक-टोक सके, कहाँ संभव है। 

इस हुजूम में आगे-आगे चल रहे हैं, सालिम अली। अपने कंधों पर, सैलानियों की तरह अपने अंतहीन सफ़र का बोझ उठाए। लेकिन यह सफ़र पिछले तमाम सफ़रों से भिन्न है। भीड़-भाड़ की जिंदगी और तनाव के माहौल से सालिम अली का यह आखिरी पलायन है। अब तो वो उस वन-पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे हैं, जो जिंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो। कोई अपने जिस्म की हरारत और दिल की धड़कन देकर भी उसे लौटाना चाहे तो वह पक्षी अपने | सपनों के गीत दोबारा कैसे गा सकेगा।

मुझे नहीं लगता, कोई इस सोए हुए पक्षी को जगाना चाहेगा। वर्षों पूर्व, खुद सालिम अली ने कहा था कि लोग पक्षियों को आदमी की नज़र से देखना चाहते हैं। यह उनकी भूल है, ठीक उसी तरह, जैसे जंगलों और पहाड़ों, झरनों और आबशारों को वो प्रकृति की नज़र से नहीं, आदमी की नजर से देखने को उत्सुक रहते हैं। भला कोई आदमी अपने कानों से पक्षियों की आवाज़ का मधुर संगीत सुनकर अपने भीतर रोमांच का सोता फूटता महसूस कर सकता है?

(क)सालिम अली किसकी तरह प्रकृति में विलीन हो रहे हैं?

(ख)सालिम अली पक्षियों को किन नजरों से देखना चाहते थे?

(ग)मनुष्य पक्षियों की मधुर आवाज सुनकर रोमांच अनुभव क्यों नहीं कर सकता?

उत्तर

(क)प्रसिद्ध पक्षी-प्रेमी सालिम अली उस वन-पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे हैं, जो जिंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो|

(ख)सालिम अली को पक्षियों से बहुत प्रेम था| वे पक्षियों को उनकी ही नजर से देखते थे| वे पक्षियों की सुरक्षा तथा उनके आनंद के बारे में सोचते थे| पक्षियों की सुरक्षा में उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था| 

(ग)मनुष्य पक्षियों की भाषा नहीं समझ सकता| वह उन्हें अपने मनोरंजन के साधन के रूप में देखता है| यही कारण है कि पक्षी कलरव अथवा अपनी मधुर आवाज के माध्यम से जिन भावनाओं को व्यक्त करते हैं, उन्हें सुनकर मनुष्य रोमांच का अनुभव नहीं करता| 

2. पता नहीं, इतिहास में कब कृष्ण ने वृंदावन में रासलीला रची थी और शोख गोपियों को अपनी शरारतों का निशाना बनाया था। कब माखन भरे भाँडे फोड़े थे और दूध-छाली से अपने मुँह भरे थे। कब वाटिका में, छोटे-छोटे किंतु घने पेड़ों की छाँह | में विश्राम किया था। कब दिल की धडकनों को एकदम से तेज करने वाले अंदाज़ में बंसी बजाई थी। और, पता नहीं, कब वृंदावन की पूरी दुनिया संगीतमय हो गई थी। पता नहीं, यह सब कब हुआ था। लेकिन कोई आज भी वृंदावन जाए तो नदी का साँवला पानी उसे पूरे घटनाक्रम की याद दिला देगा। हर सुबह, सूरज निकलने से पहले, जब पतली गलियों से उत्साह भरी भीड़ नदी की ओर बढ़ती है, तो लगता है | जैसे उस भीड़ को चीरकर अचानक कोई सामने आएगा और बंसी की आवाज़ पर सब किसी के कदम थम जाएँगे। हर शाम सूरज ढलने से पहले, जब वाटिका का | माली सैलानियों को हिदायत देगा तो लगता है जैसे बस कुछ ही क्षणों में वो कहीं | से आ टपकेगा और संगीत का जादू वाटिका के भरे-पूरे माहौल पर छा जाएगा। | वृंदावन कभी कृष्ण की बाँसुरी के जादू से खाली हुआ है क्या!

(क)वृंदावन में सुबह-शाम क्या अनुभूति होती है?

(ख)यमुना नदी का साँवला पानी किस घटना-क्रम की याद दिलाता है?

(ग)वृंदावन किसकी जादू से खाली क्यों नहीं होता?

उत्तर

(क)वृंदावन में सुबह-शाम ऐसी अनुभूति होती है कि जैसे भीड़ को चीरते हुए कृष्ण आएँगे और अपनी बाँसुरी की मधुर आवाज सुनाने लगेंगे|

(ख)यमुना नदी का साँवला पानी वहाँ आने वाले को कृष्ण के बाललीला की याद दिलाता है| इतिहास में यहीं पर कृष्ण ने रासलीला रची थी और शोख गोपियों को अपनी शरारतों का निशाना बनाया था| कब माखन भरे घड़े फोड़े थे और दूध-छाली से अपने मुँह भरे थे| यमुना किनारे घने पेड़ों की छांह में विश्राम किया था तथा मनमोहक बाँसुरी बजाई थी|

(ग)वृंदावन में वर्ष-भर तीर्थयात्री भगवान कृष्ण के दर्शन के लिए आते रहते हैं| सुबह-शाम यमुना नदी के किनारे ऐसा लगता है मानो कृष्ण की बाँसुरी की मधुर आवाज सुनाई दे रही है| इसलिए वृंदावन कृष्ण की बाँसुरी की आवाज के जादू से कभी खाली नहीं होता| 

महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर -

1. लेखक ने सालिम अली की अंतिम यात्रा का वर्णन कैसे किया है?

उत्तर

लेखक के शब्दों में, प्रसिद्ध पक्षी-प्रेमी सालिम अली किसी वन-पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे थे, जो जिंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो| ऐसा लग रहा था मानो सुनहरे पक्षियों के पंखों पर साँवले सपनों का एक झुंड सवार है और सालिम अली उसका नेतृत्व कर रहे हैं| वे सैलानियों की तरह पीठ पर बोझ लादे अंतहीन यात्रा पर चल पड़े हैं|    

2. वृंदावन में कृष्ण की मुरली का जादू हमेशा क्यों बना रहता है?

उत्तर

वृंदावन कृष्ण की नगरी के रूप में जाना जाता है| हिंदू तीर्थयात्री यहाँ वर्ष-भर कृष्ण के दर्शन के लिए आते रहते हैं| उन्हें यहाँ की गलियों में कृष्ण की बाँसुरी की मधुर धुन सुनाई पड़ती है| इस प्रकार वृंदावन में कृष्ण की मुरली जादू हमेशा बना रहता है|    

3. सालिम अली के अनुसार प्रकृति को किस नजर से देखना चाहिए?

उत्तर

सालिम अली के अनुसार प्रकृति को उसी के नजर से देखना चाहिए| प्रकृति को अपने आनंद के लिए नहीं, बल्कि उसकी सुरक्षा की दृष्टि से देखना चाहिए| लोग प्रकृति को अपने स्वार्थ पूर्ति का साधन-मात्र मानते हैं, जबकि सालिम अली प्रकृति की सुंदरता बनाए रखने में विश्वास रखते थे|

4. सालिम अली की तुलना टापू से न करके अथाह सागर से क्यों की गई है?

उत्तर

लेखक के अनुसार, सालिम अली ने प्रकृति का सूक्ष्मता से अध्ययन किया था| उनका जीवन देखने में सरल था लेकिन उनका ज्ञान प्रकृति के संबंध में असीम था| उन्होंने किसी सीमा में बंधकर काम नहीं किया बल्कि प्रकृति के हर अनुभव को महसूस किया| उन्हें अथाह सागर की तरह प्रकृति से गहरा प्रेम था| इस प्रकार उन्होंने किसी छोटे टापू की तरह नहीं बल्कि गहरे सागर की तरह खुले संसार में प्रकृति का गहन अध्ययन किया| 

वृंदावन में सुबह सुबह क्या अनुभूति होती है?

वृंदावन में सुबह-शाम सैलानियों को सुखद अनुभूति होती है। वहाँ सूर्योदय पूर्व जब उत्साहित भीड़ यमुना की सँकरी गलियों से गुजरती है तो लगता है कि अचानक कृष्ण बंशी बजाते हुए कहीं से आ जाएँगे। कुछ ऐसी ही अनुभूति शाम को भी होती है। ऐसी अनुभूति अन्य स्थानों पर नहीं होती है।

वृंदावन में संध्या समय क्या अनभु तू होती है?

वृन्दावन में सूरज निकलने और ढलने के समय यह अनुभूति होती है जैसे अभी कन्हैया भीड़ में से निकलकर बाँसुरी बजाते हुए प्रकट होंगे और बाँसुरी की मधुर तान से सबका मन मोह लेगी| पूरे वृन्दावन में आज भी श्रीकृष्ण और उनकी बाँसुरी तथा अन्य यादें बसी हुई हैं|

वृंदावन में कृष्ण के प्रसंग का उल्लेख लेखक ने क्या स्पष्ट करने के लिए किया है?

वृंदावन में कृष्ण के प्रसंग का उल्लेख यह स्पष्ट करने की कोशिश की है कि वृंदावन में कृष्ण के प्रसंग मिथक माने जाते हैं जो सच थे या नहीं ये नही पता। लेकिन आज भी वृंदावन जाने पर वहां के परिवेश में श्रीकृष्ण की स्मृति का एहसास होता है। उसी प्रकार श्री उसी प्रकार सलीम अली जिनका पक्षी एवं प्रकृति से गहरा नाता था।

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