लेखक तक्षशिला में आग लगने की खबर सुनकर क्या प्रार्थना करने लगा? - lekhak takshashila mein aag lagane kee khabar sunakar kya praarthana karane laga?

तक्षशिला में आगजनी की खबर पढ़कर लेखक के मन में कौन-सा विचार कौधा? इससे लेखक के स्वभाव की किस विशेषता का पता चलता हैं?

तक्षशिला में धर्म के नाम पर धार्मिक झगड़े जन्म लेते रहते थे। इन झगड़ों की खबरें समाचार-पत्र में निकलती रहती थीं। लेखक ने जब इस सांप्रदायिक झगड़े की खबर पढ़ी तो उनका सीधा ध्यान हामिद खाँ की ओर गया उन्होंने प्रार्थना की कि भगवान हामिद खाँ की दुकान को कोई नुकसान न पहुँचाए। हिन्दू-मुसलिम भेद भाव आग उन तक न पहुँच पाए। इससे लेखक के स्वभाव की मानवीय भावना का परिचय मिलता है। उनकी दृष्टि में धर्म की प्रधानता नहीं थी। मानवीयता प्रमुख थी। हामिद खाँ उन्हें भले मानव लगे इसलिए हमदर्दी व सहानुभूति की भावना उनके मन में थी।

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मालाबार में हिन्दू-मुसलमानों के परस्पर संबंधों को अपने शब्दों में लिखिए।

मालाबार में हिंदू-मुसलमानों में परस्पर भेद-भाव नहीं था। वे दोनों धर्मो के नाम पर झगड़ते नहीं थे। साम्प्रदायिक झगड़ों के कारण माहौल बिगड़ा हुआ नहीं था। हिन्दू-मुसलमान एक-दूसरे के तीज-त्योहार में सम्मिलित होते थे। हिंदू इलाके में मस्जिद मिलती है।

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हामिद खाँ ने खाने का पैसा लेने से इकार क्यों किया?

हामिद खाँ पाकिस्तान का रहने वाला था। वह एक भला आदमी था। मानवीय भावनाओं का उसके जीवन में बहुत महत्व था। भूख के कारण होटल ढूँढते हुए जब लेखक तंग गलियों में स्थित हामिद खाँ के होटल पर पहुँच गए वहाँ उनकी मेहमानवाजी अच्छा इंसान समझ कर की गई। खाने के बदले लेखक पैसे देना चाहता था परन्तु हामिद खाँ ने उन्हें लेने से इंकार कर दिया। एक रूपए के नोट को वापिस करते हुए हामिद खाँ ने कहा कि मैनें आपसे पैसे ले लिए, लेकिन मैं चाहता हूँ कि ये पैसे आपके पास रहें। आप जब भारत पहुँचे तो उनकी मेहमानवाजी को याद रखें। लेखक की इनसानियत व उनकी मेल-मिलाप की बातों से हामिद खाँ प्रभावित हुए थे इसलिए उन्होनें मेहमानवाजी के पैसे लेने से इंकार कर दिया।

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हामिद को लेखक की किन बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था?

लेखक ने हिन्दू मुसलमानों के मेल-मिलाप की बातें हामिद खाँ को बताई। उन्हें लेखक की बातों पर भरोसा नहीं हुआ। पाकिस्तान में हिंदू-मुसलिम संबंधो में अंतर था। उनमें बहुत दूरियाँ थीं परन्तु हिन्दुस्तान में आपसी संबंध बहुत अच्छे थे। पाकिस्तान में वे एक-दूसरे के त्योहारों में सम्मिलित नहीं होते। न कोई हिंदू मुसलिम होटल में खाना खाता है और न ही कोई मुसलिम हिंदू दुकान पर जाता था। मुसलमानों को, अत्याचारियों की संतान माना जाता था। इस दुनिया में उन्हे शैतानों की तरह लुक-छिप कर चलना पड़ता था। लेखक ने जब हिन्दू मुसलमान एकता की भारत की बात की तो हामिद खाँ हैरान रह गए। पहले तो उन्हें लेखक के हिन्दू होने पर विश्वास नहीं हुआ। फिर वे लेखक को अजनबी निगाहों से देखते रहें।

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लेखक का परिचय हामिद खाँ से किन परिस्थितियों में हुआ?

लेखक भारत में रहते थे। वे तक्षशिला के खंडहर देखने के लिए पाकिस्तानी दोस्तों के साथ गए थे। घूमते-घूमते उन्हें भूख लगी, कुछ न मिलने पर उन्हें गली में एक दुकान दिखाई दी। यह हामिद खाँ की दुकान थी। वहाँ उन्हें खाने के लिए सालन और चपाती मिली। बातचीत करने पर दोनों एक-दूसरे से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। मुसलिम होते हुए भी उसने हिंदू लेखक की मेहमानवाजी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इन परिस्थितियों में लेखक की मुलाकात हामिद खाँ से हुई।

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‘काश मैं आपके मुल्क में आकर यह सब अपनी आँखों से देख सकता’–हामिद ने ऐसा क्यों कहा?

लेखक ने हामिद खाँ को हिंदु मुसलमान संबंधो के बारे में बुताया उन्हे पहले तो विश्वास नहीं हुआ क्योंकि पाकिस्तान में मुसलमानों को अत्याचार करने वालों की संतान समझा जाता था जाता था। लेखक ने हामिद खाँ को बताया कि भारत में हिंदु मुसलमान मिलकर रहते हैं। एक-दुसरे के त्योहारों में सम्मिलित होते हैं। हिंदू मुसलमानों के बीच दंगे न के बराबर होते हैं। मुसलमानों की मसजिद हिंदुओं के निवास स्थान के पास दिखाई देती है। हामिद खाँ विश्वास ही नही कर पाए कि वे हिन्दु हैं और इतने गौरव से एक मुसलिम से बात कर रहें है। मुसलमानी होटल में भी भारत में खाना खाने में किसी हिंदू को कोई फर्क नहीं पड़ता। लेखक द्वारा हिंदू मुसलमान की एकता भरी बातों पर हामिद खाँ पहले तो भरोसा नहीं कर पाए इसलिए वे उनके देश में आकर ये सब देखना चाहते थे।

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Hamid Khan Class 9 Summary and Question Answer

हैलो बच्चों!

आज हम कक्षा 9वी की पाठ्यपुस्तक संचयन भाग-1 का पाठ पढ़ेंगे

हामिद खाँ’

पाठ के लेखक एस. के. पोट्टेकाट हैं।

This Post Includes

  • पाठ प्रवेश
  • हामिद खाँ पाठ सार
  • प्रश्नोत्तर

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लेखकः एस. के. पोट्टेकाट

जन्मः 1913

S K Pottekatt

हामिद खाँ पाठ प्रवेश

इस पाठ में लेखक को जब (पाकिस्तान) तक्षशिला में किन्हीं शरारती तत्वों के द्वारा आग लगाए जाने का समाचार मिलता है तो लेखक वहाँ के अपने एक मित्र और उसकी दूकान की चिंता होने लगती है क्योंकि उस मित्र की दूकान तक्षशिला के काफी नजदीक थी। इस पाठ में लेखक अपने उस अनुभव को हम सभी के साथ साँझा कर रहा है जब वह (पाकिस्तान) तक्षशिला के खण्डरों को देखने गया था और भूख और कड़कड़ाती धुप से बचने के लिए कोई होटल खोज रहा था। होटल को खोजते हुए लेखक जब हामिद खाँ नाम के व्यक्ति की दूकान में कुछ खाने के लिए रुकता है तो जो भी वहाँ घटा लेखक ने उसे एक लेख के रूप में हमारे सामने प्रस्तुत किया है।

Hamid Khan Class 9 Chapter 5 Summary

हामिद खाँ पाठ सार

लेखक यहाँ अपने एक अनुभव को बताता हुआ कहता है कि जब लेखक ने तक्षशिला जो की पाकिस्तान में है वहाँ पर शरारती लोगों द्वारा आग लगाने के बारे में समाचार पत्र में खबर पढ़ी तो खबर पढ़ते ही लेखक को हामिद खाँ याद आया। लेखक ने भगवान से प्रार्थना की कि हे भगवान! उसके हामिद खाँ की दुकान को इस शरारती लोगों द्वारा लगाई गई आग से बचा लेना। अब लेखक अपने और हामिद खाँ के रिश्ते के बारे में बताता हुआ कहता है कि एक ओर कड़कड़ाती धूप थी और दूसरी ओर भूख और प्यास के मारे लेखक का बुरा हाल हो रहा था। परेशान हो कर लेखक रेलवे स्टेशन से करीब पौन मील की दूरी पर बसे एक गाँव की ओर निकल पड़ा। जब वह उस गाँव में होटल ढूंढ रहा था तब अचानक एक दुकान लेखक को नजर आई जहाँ चपातियाँ पकाई जा रही थीं। चपातियों की सोंधी महक से लेखक के पाँव अपने आप उस दुकान की ओर मुड़ गए। दूकान में लेखक ने देखा कि एक ढलती उम्र का पठान अँगीठी के पास सिर झुकाए चपातियाँ बना रहा था।

लेखक ने जैसे ही दुकान में प्रवेश किया, वह अपनी हथेली पर रखे आटे को बेलना छोड़कर लेखक की ओर घूर-घूरकर देखने लगा। उसे घूरता हुआ देख कर भी लेखक उसकी तरफ देखकर मुसकरा दिया। लेखक बताता है कि लेखक के उसकी ओर मुस्कुराने के बाद भी उसके चेहरे के हाव-भाव में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। लेखक ने बहुत ही धीमी आवाज में उस चपाती बनाने वाले पठान से पूछा कि खाने को कुछ मिलेगा? उस पठान ने लेखक से कहा कि चपाती और गोश्त या सब्जी का मसालेदार शोरबा है, ये कह के उस पठान ने लेखक को एक बेंच की तरफ इशारा करते हुए कहा कि वहाँ बैठ जाइए। उस दूकान के एक कोने में एक खाट पड़ी हुई थी जिस पर एक दाढ़ी वाला बुड्ढा गंदे तकिए पर कोहनी टेके हुए हुक्का पी रहा था। जब वह दूकान में बैठा हुआ अपने खाने का इंतजार कर रहा था तब चपाती को अंगारों पर रखते हुए उस अधेड़ उम्र के पठान ने लेखक से पूछा कि लेखक कहाँ का रहने वाला है?

लेखक ने उसे जवाब दिया कि लेखक मालाबार का रहने वाला है। उस पठान ने मालाबार नाम नहीं सुना था। आटे को हाथ में लेकर गोलाकार बनाते हुए पठान ने फिर लेखक से मालाबार के बारे में पूछा कि क्या यह हिंदुस्तान में ही है ? लेखक ने हाँ में उत्तर देते हुए कहा कि यह भारत के दक्षिणी छोर-मद्रास के आगे है। पठान ने फिर लेखक से पूछा कि क्या लेखक हिंदू हैं? लेखक ने फिर हाँ में उत्तर दिया और कहा कि उसका जन्म एक हिंदू घर में हुआ है। लेखक से यह सुनने पर कि वह एक हिन्दू है उस पठान ने एक फीकी मुसकराहट के साथ फिर पूछा कि क्या लेखक एक हिन्दू होते हुए मुसलमानी होटल में खाना खाएगा? इस पर लेखक ने कहा कि क्यों नहीं?

लेखक वहाँ खाना जरूर खाएगा और लेखक ने उस पठान से कहा कि जहाँ लेखक रहता है वहाँ तो अगर किसी को बढि़या चाय पीनी हो, या बढि़या पुलाव खाना हो तो वे लोग बिना किसी हिचकिचाहट के मुसलमानी होटल में जाया करते हैं। पठान लेखक की इस बात पर विश्वास नहीं कर पाया था। लेखक कहता है कि लेखक ने उसे बड़े गर्व के साथ बताया था कि लेखक के शहर में हिंदू-मुसलमान में कोई फर्क नहीं है। सब मिल-जुलकर रहते हैं। लेखक ने पठान को यह भी बताया था कि भारत में मुसलमानों ने जिस पहली मस्जिद का निर्माण किया था, वह लेखक के ही राज्य के एक स्थान ‘कोडुंगल्लूर’ में है।

लेखक ने पठान से बात करते हुए उसका शुभ नाम पूछा। उस पठान ने अपना नाम हामिद खाँ बताया और यह भी बताया कि वो जो चारपाई पर बैठे हैं, वो उसके पिता हैं। पठान ने लेखक को दस मिनट तक इंतजार करने के लिए कहा क्योंकि गोश्त या सब्जी का मसालेदार शोरमा अभी पक रहा था। लेखक भी इंतजार करने लगा।

लेखक कहता है कि हामिद खाँ ने जोर से किसी अब्दुल को आवाज लगाई। उसके आवाज लगते ही एक छोकरा दौड़ता हुआ आया जो आँगन में चटाई बिछाकर लाल मिर्च सुखा रहा था। हामिद ने उनकी किसी प्राचीन भाषा में उसे कुछ आदेश दिया। वह दुकान के पिछवाड़े की तरफ भागा। उसने एक थाली में चावल लाकर लेखक के सामने रख दिया, हामिद खाँ ने तीन-चार चपातियाँ उसमें रख दीं, फिर लोहे की प्लेट में गोश्त या सब्जी का शोरमा परोसा। छोकरा साफ पानी से भरा एक कटोरा मेज पर रखकर चला गया।

लेखक ने बड़े शौक से भरपेट खाना खाया। खाना खाने के बाद जेब में हाथ डालते हुए लेखक ने हामिद खाँ से पूछा कि भोजन के कितने पैसे हुए?

हामिद खाँ ने मुसकराते हुए लेखक का हाथ पकड़ लिया और बोला कि लेखक उसे माफ कर दें क्योंकि वह भोजन के पैसा नहीं लेगा क्योंकि लेखक हामिद खाँ का मेहमान हैं। हामिद खाँ की इस बात को सुन कर लेखक ने बड़े प्यार से हामिद खाँ से कहा कि मेहमाननवाजी की बात अलग है। एक दुकानदार के नाते हामिद खाँ को खाने के पैसे लेने पड़ेंगे।

लेखक ने हामिद खाँ को लेखक की मुहब्बत की कसम भी दी। लेखक ने एक रुपये के नोट को हामिद खाँ की ओर बढ़ाया। वह उन पैसों को लेने में हिचकिचा रहा था। उसने वह रूपया लेखक से लेकर फिर से लेखक के ही हाथ में रख दिया। रूपए को लेखक के हाथों में रखते हुए हामिद खाँ ने लेखक से कहा कि उस ने लेखक से खाने के पैसे ले लिए हैं, मगर वह चाहता है कि यह एक रूपया लेखक के ही हाथों में रहे और जब लेखक अपने देश वापिस पहुँचें तो किसी मुसलमानी होटल में जाकर इस पैसे से पुलाव खाएँ और तक्षशिला के भाई हामिद खाँ को याद करें।

लेखक कहता है कि हामिद की दूकान से लौटकर लेखक तक्षशिला के खंडहरों की तरफ चला आया। उसके बाद लेखक ने फिर कभी हामिद खाँ को नहीं देखा। पर हामिद खाँ की वह आवाज, उसके साथ बिताए क्षणों की यादें आज भी लेखक के मन में बिलकुल ताजा हैं। उसकी वह मुसकान आज भी लेखक के दिल में बसी है। आज वर्तमान में जब लेखक ने तक्षशिला के सांप्रदायिक दंगों की चिंगारियों की आग के बारे में सुना तो लेखक भगवान् से यही प्रार्थना कर रहा है कि हामिद और उसकी वह दुकान जिसने लेखक को उस कड़कड़ाती दोपहर में छाया और खाना देकर लेखक की भूख को संतोष प्रदान किया था, बाह सही-सलामत बची रहे।

Hamid Khan Chapter 5 Question and Answers

हामिद खाँ प्रश्नोत्तर

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1. लेखक का परिचय हामिद खाँ से किन परिस्थितियों में हुआ?

उत्तरः हामिद पाकिस्तानी मुसलमान था। वह तक्षशिला के पास एक गाँव में होटल चलाता था। लेखक तक्षशिला के खंडहर देखने के लिए पाकिस्तान आया तो हामिद के होटल पर खाना खाने पहुँचा। पहले तो हामिद खाँ लेखक को बहुत घूर-घूर कर देख रहा था परन्तु जब उन्होंने आपस में बात की तो हामिद खाँ लेखक से बहुत प्रभावित हुआ। वहीं पर उनका आपस में परिचय भी हुआ।

प्रश्न 2. काश मैं आपके मुल्क में आकर यह सब अपनी आँखों से देख सकता।’-हामिद ने ऐसा क्यों कहा?

उत्तरः लेखक और हामिद ने जब आपस में बातचीत की तो उस बातचीत केन दौरान हामिद को पता चला कि भारत में हिंदू-मुसलमान सौहार्द से मिल-जुलकर रहते हैं। लेकिन पाकिस्तान में हिंदू-मुसलमानों को आतताइयों की औलाद समझते हैं। वहाँ सांप्रदायिक सौहार्द की कमी के कारण आए दिन हिंदू-मुसलमानों के बीच दंगे होते रहे हैं। लेखक की बात हामिद को सपने जैसी लग रही थी क्योंकि वह सपने में भी नहीं सोच सकता था कि हिन्दू-मुस्लिम भी आपस में कहीं प्यार से रहते होंगे। इसीलिए लेखक की बात सुनकर हामिद ने कहा कि काश वह भी लेखक के मुल्क में आकर यह सब अपनी आँखों से देख सकता।

प्रश्न 3. हामिद को लेखक की किन बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था?

उत्तरः हामिद को लेखक की भेदभाव रहित बातों पर विश्वास नहीं हुआ। लेखक ने हामिद को बताया कि उनके प्रदेश में हिंदू-मुसलमान बड़े प्रेम से रहते हैं। वहाँ के हिंदू बढि़या चाय या पुलावों का स्वाद लेने के लिए मुसलमानी होटल में बिना किसी हिचकिचाहट के जाते हैं। पाकिस्तान में ऐसा होना संभव नहीं था। वहाँ के हिंदू मुसलमानों को अत्याचारी मानकर उनसे नफरत करते थे। और वहाँ हर दिन दंगे होते ही रहते थे। हामिद को लेखक के हिन्दू होने की बात पर भी विश्वास नहीं हो रहा था क्योंकी उसने कभी किसी हिन्दू को किसी मुस्लिम से इतने प्यार से बात करते नहीं देखा था।

प्रश्न 4. हामिद खाँ ने खाने का पैसा लेने से इंकार क्यों किया?

उत्तरः हामिद खाँ ने अनेक कारणों के कारण खाने का पैसा लेने से इसलिए इंकार कर दिया, ये कारण निम्नलिखित हैं –

  • (1) वह भारत से पाकिस्तान गए लेखक को अपना मेहमान मान रहा था।
  • (2) हिंदू होकर भी लेखक मुसलमान के ढाबे पर खाना खाने गया था।
  • (3) लेखक मुसलमानों को आतताइयों की औलाद नहीं मानता था।
  • (4) लेखक की सौहार्द भरी बातों से हामिद खाँ बहुत प्रभावित था।
  • (5) लेखक की मेहमाननवाजी करके हामिद ‘अतिथि देवो भव’ की परंपरा का निर्वाह करना चाहता था।

प्रश्न 5. मालाबार में हिंदू-मुसलमानों के परस्पर संबंधों को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तरः मालाबार में हिंदू-मुसलमानों के आपसी संबंध बहुत घनिष्ठ हैं। जब कभी भी किसी हिंदू को अच्छी चाय या पुलाव खाने का मन होता है तो वह बिना किसी हिचकिचाहट के मुसलमानों के होटलों में चला जाता हैं। वे आपस में मिल जुलकर रहते हैं। भारत में मुसलमानों द्वारा बनाई गई पहली मसजिद लेखक के ही राज्य में है। वहाँ सांप्रदायिक दंगे भी बहुत कम होते हैं।

प्रश्न 6. तक्षशिला में आगजनी की खबर पढ़कर लेखक के मन में कौन-सा विचार कौंधा? इससे लेखक के स्वभाव की किस विशेषता का परिचय मिलता है?

उत्तरः तक्षशिला में आगजनी की खबर सुनकर लेखक के मन में हामिद खाँ और उसकी दुकान के आगजनी से प्रभावित होने का विचार कौंधा। वह सोच रहा था कि कहीं हामिद की दुकान इस आगजनी का शिकार न हो गई हो। वह हामिद की सलामती की प्रार्थना करने लगा। इससे लेखक के कृतज्ञ होने, हिंदू-मुसलमानों को समान समझने की मानवीय भावना रखने वाले स्वभाव का पता चलता है।

बच्चों!

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लेखक तक्षशिला में आग लगने की खबर सुन कर क्या प्रार्थना करने लगा?

उत्तर : तक्षशिला में सांप्रदायिक दंगों में आगजनी का समाचार पढ़कर लेखक को हामिद खां की याद आती है। उन्हें हामिद खां की मेहमानवाजी तथा प्रेम याद आता है। वह भगवान से प्रार्थना करते हैं कि हामिद खां तथा उसकी दुकान आगजनी में बच जाएं क्योंकि उसी दुकान में कड़कड़ाती धूप में छाया तथा भूखे पेट को खाना मिला था ।

रेलवे स्टेशन से कुछ दूर लेखक जिस गाँव में गया वहाँ लेखक को क्या नज़र आ रहा था?

उत्तरः लेखक एक बार तक्षशिला के पौराणिक खंडहर देखने गया थावहाँ रेलवे स्टेशन पर उतरकर किसी होटल की तलाश में निकला। वह भूखा-प्यासा था। उसे उस गाँव में एक दुकान पर चपातियाँ सेंकता हुआ हामिद मिला।

लेखक त शला क आग क खबर के बाद क्या वनती कर रहा था?

तक्षशिला में आगजनी की खबर सुनकर लेखक के मन में हामिद खाँ और उसकी दुकान के आगजनी से प्रभावित होने का विचार कौंधा। वह सोच रहा था कि कहीं हामिद की दुकान इस आगजनी का शिकार न हो गई हो। वह हामिद की सलामती की प्रार्थना करने लगा।

लेखक तक्षशिला के सांप्रदायिक दंगों की आग से हामिद खाँ व उसकी दुकान के सलामती की प्रार्थना क्यों करता है?

हिंदू होते हुए भी लेखक के मुसलमानों के प्रति प्रेम से हामिद प्रभावित हुआ। उसने लेखक से भोजन के पैसे नहीं लिए । लेखक के दिए पैसों को लौटाते हुए कहा कि जब वे अपने गाँव लौटें तो उन पैसों से किसी मुसलमान के होटल में जाकर पुलाव खाएँ और उसे याद करते हुए सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखें ।

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