मनोविज्ञान की परिभाषा कहाँ से प्रारम्भ हुई? - manovigyaan kee paribhaasha kahaan se praarambh huee?

मनोविज्ञान की अवधारणाएँ - Concepts of Psychology

मनोविज्ञान क्या है? इसका क्या अर्थ है? इन प्रश्नों का उत्तर मनोवैज्ञनिको ने भिन्न-भिन्न समय में विभिन्न प्रकार से दिया है। साधारण अर्थों में मनोविज्ञान मन का विज्ञान या मानसिक क्रियाओं के अध्ययन का विज्ञान है। मनोविज्ञान वह विशेष विज्ञान है जो अपना अध्ययन बाहरी वातारण पर क्रेन्द्रित न करके व्यक्ति तथा उसके अन्तर्णगत पर क्रेन्द्रित करता है।

मनोविज्ञान के इतिहास की जड़े हजारो वर्ष गहरी ही नहीं है। बल्कि ज्ञान के अनेक क्षेत्रों से संबंधित है। धर्म, जादू, दर्शन और विज्ञान सभी का मनोविज्ञान की उत्पत्ति में महत्वपूर्ण योगदान है। ईसा पूर्व छठी शताब्दी के दार्शनिकों के विचारों में अनेक मनोवैज्ञानिक समस्याओं की विवेचना मिलती है। भारत वर्ष में मनोविज्ञान का अध्ययन प्रारम्भ से ही दर्शन शास्त्र के अन्तर्गत किया जाता है। पहले मनोविज्ञान दर्शन शास्त्र का एक अंग माना जाता था। मनोविज्ञान एक विकसित होता हुआ विज्ञान है। समय के परिवर्तन के साथ - साथ मनोविज्ञान के स्वरूप में भी क्रमशः परिवर्तन होता गया और कुछ वर्ष पूर्व ही यह एक स्वतंत्र विषय के रूप में सामने आया । दार्शनिक अरस्तु के समय में मनोविज्ञान दर्शन शास्त्र का एक अंग था। किंतु धीरे-धीरे यह दर्शन शास्त्र से अलग हो गया। जैसे कि रेबर्न महोदय ने कहां है।

“आधुनिक काल में एक परिवर्तन हुआ मनोविज्ञानिक ने धीरे धीरे अपने विज्ञान को दर्शन शास्त्र से पृथक कर लिया है।" मनोविज्ञान दर्शन शास्त्र से किस प्रकार पृथक हुआ, उसके अर्थ में किस प्रकार परिवर्तन किया तथा उसके वैज्ञानिक स्वरूप का आरम्भ और विकास किस प्रकार हुआ, यह क्रमशः दी जाने वाली परिभाषाओं से स्पष्ट हो जाता है।

मनोविज्ञान के अर्थ में क्रमशः परिवर्तन

मनोविज्ञान दर्शन शास्त्र से किस प्रकार पृथक हुआ और उसके अर्थ में किस प्रकार परिवर्तन हुआ, इसका वर्णन निम्नांकित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा रहा है।

1. आत्मा का विज्ञान

गैरिट के अनुसार ‘साइकोलॉजी' शब्द की उत्पत्ति यूनॉनी भाषा के दो शब्दों से हुई है। साइकी जिसका अर्थ है आत्मा और लोगस जिसका अर्थ है अध्ययन। इस प्रकार, प्राचीन काल में साइकोलॉजी या ‘मनोविज्ञान’ का अर्थ था आत्मा का अध्ययन या आत्मा का ज्ञान प्राप्त करना इसीलिए, इसको उस काल में “आत्मा का विज्ञान" माना जाता था।

अनेक यूनानी दार्शनिकों ने मनोविज्ञान को आत्मा का विज्ञान' माना। इन दार्शनिकों में उल्लेखनीय है। प्लेटो, अरिस्टोटल और डेकाटें। आत्मा क्या है एवं उसका रंग, रूप और आकार कैसा है? आत्मा की व्याख्या, उसके अस्तित्व एवं प्रमाणिकता का उत्तर न दे पाने के कारण सोलहवी शताब्दी में मनोविज्ञान का यह अर्थ अस्वीकार कर दिया गया।

2. मस्तिष्क का विज्ञान

मध्य युग के दार्शनिकों ने मनोविज्ञान को 'मन या मस्तिष्क का विज्ञान' बताया । दूसरे शब्दों में, उन्होने, विशेष रूप से इटली के दार्शनिक पोम्पोनॉजी ने, मनोविज्ञान को मस्तिष्क का अध्ययन करने वाला विज्ञान कहा इसका मुख्य कारण था कि आत्मा के मानसिक और आध्यात्मिक पहलू, अध्ययन के पृथक विषय हो गये थे, पर कोई भी दार्शनिक मस्तिष्क की पृकति और स्वरूप को निश्चित नहीं कर सका। इसका परिणाम बताते हुए बी.एन. झा ने लिखा है "मस्तिष्क के स्वरूप के अनिश्चित रह जाने के कारण मनोविज्ञान ने मस्तिष्क के विज्ञान के रूप में किसी प्रकार की प्रगति नही की। "

आधुनिक मनोविज्ञान मन के स्वरूप तथा प्रकृति का निर्धारण न कर सका मन शब्द के विषय में भी अनेक मतभेद है, अतः यह परिभाषा भी अस्वीकार की गयी। 

3. चेतना का विज्ञान

सोलहवी शताब्दी में वाइव्स विलियम जेम्स, विलियम वुण्ट, जेम्स सल्ली आदि विद्वानों ने मनोविज्ञान को ‘चेतना का विज्ञान' बताया। उन्होंने कहा कि मनोविज्ञान, मनुष्य की चेतन क्रियाओं का अध्ययन करता है पर वे 'चेतना' शब्द के अर्थ के संबंध में एक मत न हो सके। दूसरे, 'चेतन मन' के अलावा ‘अचेतन मन’ और ‘अर्ध चेतन मन' भी होते हैं। जो मनुष्य की क्रियाओं को प्रभावित करते है परिणामतः मनोविज्ञान का यह अर्थ सीमित होने के कारण सर्वमान्य न हो सका।

विलियम जेम्स मनोविज्ञान के चेतना के स्वरूप को स्वीकार करता है तथा उसने कहा है कि मनोविज्ञान की सर्वोत्तम परिभाषा यह है कि वह चेतना की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन एवं व्याख्या करता है।"

4. व्यवहार का विज्ञान

20 वीं शताब्दी के आरम्भ में मनोविज्ञान के अनेक अर्थ बताये गये, जिनमें सबसे अधिक मान्यता इस अर्थ को दी गयी “मनोविज्ञान, व्यवहार का विज्ञान है" दूसरे शब्दों में हम कह सकते है कि इस शताब्दी में में मनोविज्ञान का व्यवहार का निश्चित विज्ञान माना जाता है। इस संबंध में कुछ प्रमुख लेखकों के विचारों को निम्नांकित पंक्तियों में दर्शाया जा रहा है।

1. वाटसन “मनोविज्ञान, व्यवहार का निश्चित विज्ञान है"।

2. वुडवर्थ "मनोविज्ञान, वातावरण के सन्दर्भ में व्यक्ति की क्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन है।”

3. स्किनर “मनोविज्ञान, जीवन की सभी प्रकार की परिस्थितियों में प्राणी की प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है। प्रक्रियाओं अथवा व्यवहार का तात्पर्य है प्राणी की सब प्रकार की गतिविधियां, समायोजनायें, क्रियायें एवं अभिव्यक्तियाँ।”

वाटसन ने मनोविज्ञान को व्यवहार का विज्ञान कहा उसने मनोविज्ञान को वस्तु परक बनाने के लिए उत्तेजक, प्राणी तथा अनुक्रिया पर बल दिया।

5. मनोविज्ञान व्यक्ति की क्रियाओं का अध्ययन है

कुछ मनोवैज्ञानिकों ने मनोविज्ञान की परिभाषा प्राणी की क्रियाओं के अध्ययन के रूप में की है। जिसमें अनुभूति और व्यवहार सम्मिलित है। मनोवैज्ञानिक वुडवर्थ के अनुसार मनोविज्ञान वातावरण से संबंधित व्यक्ति की क्रियाओं का विज्ञान है।

यहाँ क्रिया शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थ में किया गया है। जिसमें न केवल शारीरिक क्रियायें जैसे चलना और बोलना सम्मिलित है, बल्कि ज्ञानात्मक क्रियायें जैसे देखना, सुनना, स्मरण करना, विचार करना तथा संवेगात्मक क्रियायें जैसे हसना, रोना, प्रसन्न या दुःखी होना आदि भी सम्मिलित है। इस प्रकार मनोविज्ञान के अध्ययन के अन्तर्गत, शारीरिक, मानसिक क्रियाओ, चेतन और अचेतन क्रियाओं का समावेश हो जाता है। अतः जब मनोविज्ञान क्रियाओं का अध्ययन करता है तब इसमें अनुभूति और व्यवहार दोनों का समावेश होता है क्यो कि इसमें वाह्य प्रदर्शित क्रिया जो व्यवहार में दिखायी देती है और आन्तरिक क्रिया जो अनुभूति से संबंधित है दोनों का अध्ययन किया जाता है। व्यक्ति के व्यवहार और क्रियाओं का अध्ययन जिस वातावरण में वह रहता है उससे उसे अलग करके नहीं किया जा सकता। प्रत्येक प्राणी किसी न किसी वातावरण में रहता है। वातारण में प्राकृतिक तथा सामाजिक दोनों प्रकार के वातावरण आते हैं। वातावरण में विद्यमान जिन वस्तुओं के प्रभाव के फलस्वरूप प्राणी क्रिया करता है उसे उत्तेजक कहते है और जो कार्य वह करता है या व्यवहार प्रदर्शित करता है उसे प्रतिक्रिया कहते है।

इस प्रकार वातावरण की उत्तेजनाओं के फलस्वरूप व्यक्ति कुछ प्रतिक्रियायें करता है जो वातावरण के प्रति उसके समायोजन की दशा निर्धारित करती है। इन्ही बातों का अध्ययन मनोविज्ञान करता है।

मनोविज्ञान की विभिन्न परिभाषाओं को क्रमानुसार प्रस्तुत करते हुए मनोवैज्ञानिक वुडवर्थ के शब्दों में कहा जा सकता है कि सबसे पहले मनोविज्ञान ने अपनी आत्मा का त्याग किया फिर उसने अपने मन का त्याग किया उसके बाद उसने चेतना का त्याग किया। अब वह व्यवहार की विधि को स्वीकार करता है। "

मनोविज्ञान की स्थापना कब और कहां हुई?

कोलकाता विश्वविद्यालय में सबसे पहले १९१६ में मनोविज्ञान विभाग की स्थापना हुई थी। भारत की प्रथम मनोविज्ञान प्रयोगशाला की स्थापना नरेन्द्रनाथ सेनगुप्ता ने किया ।

मनोविज्ञान की शुरुआत कब हुई?

17वीं शताब्दी मे इटली के मनोवैज्ञानिक पॉम्पोनोजी ने मनोविज्ञान को ” मन या मस्तिष्क का विज्ञान ” माना । बाद मे यह परिभाषा भी अमान्य हो गई । 19वीं शताब्दी में विलियम वुन्ट, विलियम जेम्स, वाइव्स और जेम्स सली आदि के द्वारा मनोविज्ञान को ” चेतना का विज्ञान ” माना गया था, अपूर्ण अर्थ होने के कारण यह परिभाषा भी अमान्य हो गई ।

मनोविज्ञान का जन्म किसकी देन है?

घटना है। जर्मनी के एक विद्वान विल्हेम वुण्ट ने वहीं के लिपजिंग विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान की पहली प्रयोगशाला स्थापित की। यही प्रयोगशाला मनोविज्ञान की जन्मस्थली कही जाती है और विल्हेम वुण्ट को मनोविज्ञान का जनक माना जाता है।

मनोविज्ञान की सर्वप्रथम परिभाषा क्या है?

मनोविज्ञान शब्द का शाब्दिक अर्थ है मन का विज्ञान अर्थात मनोविज्ञान अध्ययन की वह शाखा है जो मन का अध्ययन करती हैं. मनोविज्ञान शब्द अंग्रेजी भाषा के Psychology शब्द से बना हैं. साइकोलॉजी शब्द की उत्पत्ति यूनानी (लैटिन) भाषा के दो शब्द साइकी तथा लोगस से मिलकर हुई हैं.

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