मांसाहार पर गीता में क्या लिखा है? - maansaahaar par geeta mein kya likha hai?

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Gitika dubey

| नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: May 4, 2022, 7:31 AM

वैदिक धर्म में अहिंसा को सबसे परम धर्म माना गया है। वह हिंसा जो अत्‍याचारी से अपनी रक्षा के लिए न की गई हो, उसे सबसे बड़ा अधर्म माना जाता है और मांस का भोजन इसी प्रकार की हिंसा से प्राप्‍त होता है। इस प्रकार से हिंदुओं के लिए मांसभक्षण सबसे बड़ा पाप माना जाता है। महाभारत में 'मांसभक्षण' की घोर निन्दा की गई है। मनुष्य को मन, वचन और कर्म से हिंसा न करने और मांस न खाने का आदेश देते हुए ये श्‍लोक प्रासंगिक हैं। आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही खास श्‍लोक और उनके अर्थ...

  • उससे बढ़कर नीच कोई नहीं

  • सब प्राणियों में श्रेष्‍ठ

    अधृष्यः सर्वभूतानां विश्वास्यः सर्वजन्तुषु।
    साधूनां सम्मतो नित्यं भवेन्मांसं विवर्जयन्।।

    अर्थ: जो मनुष्य मांस का परित्याग कर देता है, वह सब प्राणियों में आदरणीय, सब जीवों का विश्वसनीय और सदा साधुओं से सम्मानित होता है।

  • बृहस्पतिजी का कथन

  • सभी को अपने प्राण प्रिय हैं

    एवं वै परमं धर्मं प्रशंसन्ति मनीषिणः।
    प्राणा यथाऽऽत्मनोऽभीष्टा भूतानामपि वै तथा।।

    अर्थ: इस प्रकार मनीषी पुरुष अहिंसारूप परमधर्म की प्रशंसा करते हैं। जैसे मनुष्य को अपने प्राण प्रिय होते हैं, वैसे ही सभी प्राणियों को अपने-अपने प्राण प्रिय जान पड़ते हैं।

  • मांस को खाना महादोष

    न हि मांसं तृणात् काष्ठादुपलाद् वापि जायते।
    हत्वा जन्तुं ततो मांसं तस्माद् दोषस्तु भक्षणे।।

    अर्थ: मांस तृण से, काष्ठ यानी लकड़ी से अथवा पत्थर से पैदा नहीं होता, वह प्राणी की हत्या करने पर ही उपलब्ध होता है, अतः उसके खाने में महादोष है।

  • मांस खाने वाले का पक्ष लेना भी दोष

    अखादन्ननुमोदंश्च भावदोषेण मानवः।
    योऽनुमोदति हन्यन्तं सोऽपि दोषेण लिप्यते।।

    अर्थ: जो स्वयं तो मांस नहीं खाता, परन्तु खाने वाले का अनुमोदन करता है, वह भी भाव-दोष के कारण मांसभक्षण के पाप का भागी होता है। इसी प्रकार जो मारने वाले का अनुमोदन करता है, वह भी हिंसा के दोष से लिप्त होता है।

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  • नरक भोगते हैं ऐसे लोग

    इज्यायज्ञश्रुतिकृतैर्यो मार्गैरबुधोऽधमः।
    हन्याज्जन्तून् मांसगृध्नुः स वै नरकभाङ्नरः।।

    अर्थ: जो मांसलोभी मूर्ख एवं अधम मनुष्य होता है और यज्ञ त्‍याग आदि वैदिक मार्गों के नाम पर प्राणियों की हिंसा करता है, वह नरक भोगने का हकदार है।

  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण में मांसाहार

    मांस खाने वाले ज्यादातर लोगों में चिड़चिड़ापन होता है और ज्यादा गुस्सा होता है और शरीर व मन दोनों अस्वस्थ बन जाते हैं। गंभीर बीमारियों की चपेट में ज्यादा आते हैं। इन बीमारियों में हाई ब्लड प्रेशर, डायबीटीज, दिल की बीमारी, कैंसर, गुर्दे का रोग, गठिया और अल्सर शामिल हैं।

एक तरफ जहां कई लोग अपनी बेहतर सेहत के लिए मांसाहार से दूर होते जा रहे हैं.

नॉन-वेज का नाम सुनते ही लोगों के मुंह में पानी आ जाता है. ये सारी चीजें भले ही खाने में आपको स्वादिष्ट लगती हैं लेकिन नॉन-वेज खाना न तो सेहत के नज़रिए से फायदेमंद है और न हमारी संस्कृति इसकी इज़ाजत देती है.

हम आपको धर्मशास्त्रों के अनुसार  बताते हैं कि इंसानों को नॉन-वेज खाना क्यों नहीं खाना चाहिए.

धर्मशास्त्रों की नज़र में नॉन-वेज खाना

1 – हिंदू धर्मशास्त्र

हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक इस धरती पर रहनेवाले सभी जीवों को भगवान का अंश माना जाता हैं. इनमें से किसी भी जीव की हत्या करना शास्त्रों के मुताबिक पाप है. मांसाहार भोजन के लिए रोज़ाना न जाने कितने ही बेज़ुबान जानवरों की बलि चढ़ाई जाती है. जबकि हमारी संस्कृति में मांसाहार के सेवन को वर्जित माना गया है.

2 – श्रीमद् भगवत गीता

श्रीमद् भगवत गीता के मुताबिक कहा जाता है कि नॉन-वेज खाना इंसानों का खाना नहीं बल्कि राक्षसी भोजन है. मांस और मदिरा जैसी चीजें तामसिक भोजन कहलाती हैं. इस तरह का भोजन करनेवाले लोग अक्सर कुकर्मी, रोगी, दुखी और आलसी होते है.

3 – सनातन संस्कृति

सनातन संस्कृति में गौमांस को खाना पाप माना गया है. शास्त्रों के अनुसार गाय का दूध, घी, गोबर और गोमूत्र अनेक रोगों की एक दवा है.

शास्त्रों में लिखा है कि गाय से मिलनेवाली इन चीजों को खाने से शरीर में पापों का समावेश नहीं हो पाता. श्री कृष्ण अनेकों गायों का पालन-पोषण करते थे तथा उन्हें मां समान पूजते थे. तभी तो उनको गोपाल कहा जाता है.

4 – ऋग्वेद

ऋग्वेद में गाय को जगत माता का दर्जा दिया गया है. अनेकों पुराणों के रचियता वेद व्यास जी के मुताबिक गाय धरती की माता हैं और उनकी रक्षा में ही समाज की उन्नति है.

5 – महाभारत

महाभारत में उल्लेख मिलता है कि जो व्यक्ति सौ सालों तक लगातार अश्वमेघ यज्ञ करता है और जो व्यक्ति मांस नहीं खाता, उनमें से मांसाहार का त्याग करनेवाला व्यक्ति ही ज्यादा पुण्य कमाने वाला माना जाता है.

अब हम आपको विज्ञान के अनुसार बताते हैं कि इंसानों को नॉन-वेज खाना क्यों नहीं खाना चाहिए.

विज्ञान की नज़र में मांसाहार

विभिन्न धर्म ग्रंथों में जिस तरह से मांसाहार को वर्जित माना गया है उसी तरह वैज्ञानिक नज़रिए से भी मांसाहार को सेहत के लिए हानिकारक माना गया है.

1- ज्यादा मांसाहार भोजन करने से इंसान के भीतर चिड़चिड़ापन आने लगता है वो स्वभाव से उग्र होने लगता है. मांसाहार आपके तन और मन दोनों को अस्वस्थ कर देता है.

2- मांसाहारी लोगों में कई तरह की गंभीर बीमारियों का खतरा शाकाहारी लोगों के मुताबिक कहीं ज्यादा होता है. इससे हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, दिल की बीमारी, कैंसर, गुर्दे का रोग, गठिया और अल्सर जैसी कई बीमारियां आपको अपनी चपेट में ले सकती हैं.

3- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट के मुताबिक मांसाहार इंसान के शरीर के लिए उतना ही खतरनाक है जितना कि धूम्रपान. इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि पके हुए मांस से जानलेवा कैंसर का खतरा होता है.

4- मांसाहारी भोजन की तुलना में शाकाहारी भोजन सेहत के लिए ज्यादा फायदेमंद होता है. शाकाहारी भोजन इंसान को स्वस्थ, दीर्घायु, निरोग और तंदरुस्त बनाता है. शाकाहारी व्यक्ति हमेशा ठंडे दिमागवाले, सहनशील, सशक्त, बहादुर, परिश्रमी, शांतिप्रिय और आनंदप्रिय होते हैं

5- बर्ड फ्लू और स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियां मुर्गियों और सूअरों के ज़रिए इंसानों को अपना शिकार बनाती हैं. इन प्राणियों का मांस खाना इसकी सबसे बड़ी वजह मानी जाती है. जबकि शाकाहारी जीवनशैली को अपना कर इनसे होनेवाली बीमारियों से खुद को बचाया जा सकता है.

बहरहाल हमारे कई धर्म ग्रंथों में यही उल्लेख मिलता है कि मांसाहार नहीं करना चाहिए. अगर आप खुद को तन और मन से तंदरुस्त रखना चाहते हैं तो शाकाहार सबसे बेहतर ज़रिया बन सकता है.

यही वजह है कि मेंटल फिटनेस और फिजिकल फिटनेस के लिए आजकल ज्यादातर लोग मांसाहार को छोड़कर शाकाहार को अपना रहे हैं.

आपका क्या ख्याल है?

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गीता में मांस के बारे में क्या लिखा है?

यह गीता जे 17 वें अध्याय में कहा गया है। सात्विकता के लिए सात्विक भोजन , राजसिकता के लिए राजसिक भोजन एवम तामसी कार्यों के लिए तामसी भोजन करना चाहिए। यह गीता का उपदेश है। मांसाहार यह तो मूलतः राजसिक अथवा तामसिक अन्न है।

मांस खाने पर श्रीकृष्ण ने गीता में क्या कहा?

इसके बाद भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि मांसाहारी भोजन राक्षसों के लिए है न की इंसानों के लिए। भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने आहार को तीन भागों में विभाजित किया गया है जोकि राजसिक तामसिक और सात्विक भोजन है।

क्या श्री कृष्ण मांसाहारी थे?

श्रीकृष्ण मांसाहारी नही थे। वह मक्खन मिस्री खाते थे। विदुर के यहां साग खाया। दुर्योधन ने मेवे मिष्ठान्न की दावत दी थी मासाहार की नही।

क्या वेदों में मांस खाना लिखा है?

हिन्दु धर्म शास्त्रों ने सभी जीवों को ईश्वर का अंश मानकर मां हिंस्यात सर्वभूतानि किसी जीव की हत्या न करो, स्कंद पुराण में लिखा है। जो दूसरों का मांस खाकर अपना मांस बढ़ाना चाहता है, वह उतने दिन नर्क में सड़ता है। वेदों में कही भी मांस खाने का उल्लेख नहीं है।

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