मलवथ पूर्णा तेलंगाना के दलित परिवार से हैं और एवरेस्ट पर फतह हासिल करने से पहले उन्होंने कभी किसी पर्वत की चोटी नहीं छुयी थी. 10 नेपाली गाइडों के साथ मिलकर पूर्णा और उसकी 16 साल की दोस्त ने चीन में तिब्बत की तरफ से एवरेस्ट पर चढ़ाई की. भारत पहुंचने से पहले काठमांडू में पूर्णा ने बताया, "मैंने पिछले सितंबर एवरेस्ट के लिए ट्रेनिंग शुरू की. मेरे माता पिता और मेरे कोच ने बहुत मदद की." चढ़ाई के दौरान पूर्णा को पूरा वक्त पैकेट वाला खाना और सूप पीना पड़ा. अब पूर्णा कहती हैं, "मैं तो सीधे घर जाऊंगी और मां का बनाया हुआ चिकन फ्राय और चावल खाऊंगी."
कड़ी परीक्षा
पूर्णा की इस उपल्ब्धि को हिमालयन डाटाबेस नाम के संगठन ने मान्यता दी है, जो पूरे इलाके में पर्वतारोहण के बारे में सबसे ज्यादा जानकारी रखता है. काठमांडू में हिमालयन डाटाबेस की मदद कर रहे जीवन श्रेष्ठ ने बताया, "पूर्णा एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने वाली सबसे कम उम्र की महिला है और यह कम ही लोग हासिल करते हैं." हालांकि चीन और नेपाल के अधिकारियों ने पूर्णा पर कोई बयान जारी नहीं किया है.
पूर्णा के पिता महीने में करीब 35,000 रुपये कमाते हैं लेकिन इस यात्रा की तैयारी के लिए पूर्णा को भारत सरकार से सहायता मिली. करीब सात महीनों के लिए पूर्णा ने पथरीले पहाड़ों पर ट्रेनिंग की और फिर लद्दाख में बर्फ पर चढ़ने का अभ्यास किया. ट्रेनिंग के दौरान ऊंचाई और जबरदस्त ठंड का सामना करने के खास तरीके भी सिखाए गए. पूरी यात्रा में पूर्णा को 52 दिन लगे. चढ़ाई के दौरान हुए अनुभवों के बारे में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने, "उस सुबह मैंने चोटी पर जाते हुए छह लोगों के शव देखे. मेरे कोच ने मुझसे कहा था कि कई पर्वतारोहियों की मौत हो जाती है और उनके शव पहाड़ पर ही रह जाते हैं. लेकिन फिर भी मैं देखकर हैरान हुई."
पूर्णा के सपने
एवरेस्ट पर चढ़ने की इच्छा रखने वाले ज्यादातर पर्वतारोही नेपाल की तरफ से पर्वत पर जाते हैं. इस रास्ते को सबसे आसान माना जाता है और इसलिए यह लोगों को पसंद भी है. लेकिन काठमांडू में अधिकारी 16 साल से कम उम्र के लोगों को इसकी अनुमति नहीं देते. इस साल नेपाल में हिमस्खलन होने की वजह से 16 शेरपा की मौत हुई और एवरेस्ट पर चढ़ने की सारी योजनाएं बंद हो गईं.
पूर्णा से पहले 2010 में 13 साल के अमेरिकी जॉर्डन रोमेरो एवरेस्ट पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के पुरुष पर्वतारोही बने. उन्होंने भी तिब्बत से एवरेस्ट पर चढ़ाई की, हालांकि कई लोगों ने उनकी कम उम्र को लेकर सवाल किए. लेकिन 13 साल की पूर्णा कहती हैं, "मैं खुश हूं कि मुझे चढ़ने का मौका मिला. अगर मैं फिट हूं तो कोई मुझे चढ़ने से क्यों रोकेगा. मैं साबित करना चाहती हूं कि मेरे समुदाय के लोग, आदिवासी कुछ भी कर सकते हैं." फिलहाल पूर्णा और चोटियों चढ़ना चाहती हैं. फिर पढ़ाई खत्म करके वह पुलिस अफसर बनना चाहती हैं.
एमजी/ओएसजे (एएफपी)
सबसे कम उम्र में भारत की कंचनचंगा फतह करने वाली बेटी शीतल चढ़ेगी माउंट एवरेस्ट
सबसे कम उम्र में भारत की कंचनचंगा फतह का विश्व रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज कराने वाली उत्तराखंड की शीतल राज अब दुनिया की सबसे ऊंची चोटी चढ़ेंगी।
पिथौरागढ़, जेएनएन : सबसे कम उम्र में भारत की कंचनचंगा फतह का विश्व रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज कराने वाली उत्तराखंड की शीतल राज अब दुनिया की सबसे ऊंची चोटी चढ़ेंगी। वह दो अप्रैल को काठमांडू (नेपाल)
के लिए रवाना होंगी।
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के सल्मोड़ा गांव की रहने वाली शीतल राज का माउंट एवरेस्ट अभियान दो अप्रैल से शुरू होगा। बेहद प्रतिभाशाली पर्वतारोही शीतल राज ने मात्र 23 वर्ष की उम्र में भारत की कंचनचंगा (28169 फिट) जैसी ऊंची चोटी पर फतह हासिल की थी। वे 21 मई 2018 को इस चोटी पर चढ़ी थीं। उन्होंने इससे पहले संतोपथ और त्रिशूल चोटियां भी फतह की थी। उसी समय शीतल को माउंट एवरेस्ट अभियान के लिए चुना गया था, लेकिन कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि की शीतल के समक्ष एवरेस्ट अभियान पर
आने वाले 25-30 लाख का खर्च जुटाना मुश्किल था। पिछले जिलाधिकारी सी. रविशंकर और सीडीओ वंदना ने शीतल की समस्या को देखते हुए प्रायोजक खोजने की पहल की।
हंस फाउंडेशन, आइआइएलसी, खनिज फाउंडेशन के सहयोग से उनके लिए धनराशि का इंतजाम किया गया। आस्ट्रेलिया में रहने वाले प्रवासी भारतीय भी उन्हें मदद कर रहे हैं। उसके बाद शीतल की उम्मीदों को पंख लगे। वह दो अप्रैल को काठमांडू के लिए रवाना होंगी। जहां से वह अपना एवरेस्ट अभियान शुरू करेंगी। शीतल एवरेस्ट पर चढऩे के लिए कड़ी मशक्कत कर रही हैं। पिछले तीन
माह से वह उत्तराखंड के प्रतिष्ठित पर्वतारोही योगेश गब्र्याल की देखरेख में पंचाचूली चोटी क्षेत्र में नियमित अभ्यास कर रही हैं। शीतल ने कहा है कि उनका एक मात्र लक्ष्य एवरेस्ट फतह करना है। एवरेस्ट विजेता लवराज धर्मशक्तू सहित उत्तराखंड के तमाम लोगों ने उन्हें अपनी शुभकामनाएं दी हैं।
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भी नहीं उतरी धरातल पर
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Edited By: Skand Shukla
6 मई को फतह किया एवरेस्ट बेस कैंप
एवरेस्ट बेस कैंप फतह करने के लिए रिदम दृढ़ निश्चयी होने के साथ-साथ बेहद उत्साहित थीं। समुद्र तल से 5,364 मीटर की ऊंचाई पर लो ऑक्सिजन लेवल, बार-बार जी मिचलाने की दिक्कत और पैरों में पड़े छाले भी रिदम को उनके निर्धारित लक्ष्य से डिगा नहीं पाए।
6 मई को दोपहर करीब 1 बजे बांद्रा स्थित ऋषिकुल विद्यालय में कक्षा पांचवीं की छात्रा ने एवरेस्ट बेस कैंप फतह किया। उनकी इस उपलब्धि से उनके पैरंट्स
उर्मी और हर्शल गर्व महसूस कर रहे हैं।
रिदम बताती हैं, 'ईबीसी समिट पर पहुंचना मेरा लक्ष्य था इसलिए ठंड समेत वहां की कठिन परिस्थितियों पर मैंने ध्यान ही नहीं दिया। मैंने अपने खेल को एंजॉय किया। हां, कभी-कभार वहां ओले भी पड़े जो मेरे लिए नया अनुभव था।'
'रिदम ट्रैकिंग के जरिए ही खुद नीचे उतरकर आईं'
रिदम की मां उर्मी कहती हैं, 'रिदम नैशनल लेवल की स्केटर हैं इसलिए उसकी मांसपेशियां मजबूत हैं लेकिन यह दृढ़ इच्छा ही थी जिसने उसका लक्ष्य पूरा करने में सबसे ज्यादा मदद की।
रिदम ने ट्रैकिंग के जरिए ही नीचे उतरने का विकल्प चुना जबकि अन्य हेलिकॉप्टर राइड के जरिए नीचे उतरकर आए। इतना ही नहीं रिदम ने अपना सारा कचरा पहाड़ों पर फेंकने के बजाय काठमांडू पर जाकर डिस्पोज किया। ताकि पहाड़ों पर गंदगी न हो।'
'रिदम ने चढ़ाई के दौरान कोई शिकायत नहीं की'
11 दिन के इस अभियान को नेपाल के सतोरी ऐडवेंचर्स के ऋषि भंडारी ने आयोजित किया था। उन्होंने बताया, 'मेरे पास ईबीसी के शिखर पर पहुंचने वाले सभी प्रतिभागियों की उम्र और राष्ट्रीयता का पूरा रिकॉर्ड नहीं है
लेकिन भारत के अधिकतर लोग विशेष रूप से मुंबई और महाराष्ट्र से लोगों ने इसमें हिस्सा लिया और रिदम उनमें से सबसे छोटी हैं।'
ऋषि ने आगे बताया, 'मैं यह देखकर प्रभावित हुआ कि रिदम ने इस कठिन चढ़ाई के दौरान जी मिचलाने या थकान की जरा सी भी शिकायत नहीं की। दूसरे पर्वतारोहियों को एयरलिफ्ट के जरिए नीचे लाना पड़ा लेकिन रिदम ने एक योद्धा की तरह अपनी ताकत, फिटनेस और ऊर्जा से दूसरों को प्रेरित किया।'
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