नव संवत्सर का नाम क्या है - nav sanvatsar ka naam kya hai

संवत्सर, संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ 'वर्ष' होता है। हिन्दू पंचांग में ६० संवत्सर होते हैं।

क्रमांकनामवर्तमान चक्रपूर्व चक्र 11प्रभव1974-1975ई.1914-19152विभव1975-1976ई.1915-1916 ई.3शुक्ल1976-1977 ई.1916-1917 ई.4प्रमोद1977-1978 ई.1917-1918 ई.5प्रजापति1978-1979 ई.1918-1919 ई.6अंगिरा1979-1980 ई.1919-1920 ई.7श्रीमुख1980-1981 ई.1920-1921 ई.8भाव1981-1982 ई.1921-1922 ई.9युवा1982-1983 ई.1922-1923 ई.10धाता1983-1984 ई.1923-1924 ई.11ईश्वर1984-1985ई.1924-1925 ई.12बहुधान्य1985-1986 ई.1925-1926 ई.13प्रमाथी1986-1987 ई.1926-1927 ई.14विक्रम1987-1988ई.1927-1928 ई.15वृषप्रजा1988-1989 ई.1928-1929 ई.16चित्रभानु1989-1990 ई.1929-1930 ई.17सुभानु1990-1991 ई.1930-1931 ई.18तारण1991-1992 ई.1931-1932 ई.19पार्थिव1992-1993 ई.1932-1933 ई.20अव्यय1993-1994 ई.1933-1934 ई.21सर्वजीत1994-1995 ई.1934-1935 ई.22सर्वधारी1995-1996 ई.1935-1936 ई.23विरोधी1996-1997 ई.1936-1937 ई.24विकृति1997-1998 ई.1937-1938 ई.25खर1998-1999 ई.1938-1939 ई.26नंदन1999-2000 ई.1939-1940 ई.27विजय2000-2001 ई.1940-1941 ई.28जय2001-2002 ई.1941-1942 ई.29मन्मथ2002-2003 ई.1942-1943 ई.30दुर्मुख2003-2004 ई.1943-1944 ई.31हेमलंबी2004-2005 ई.1944-1945 ई.32विलंबी2005-2006 ई.1945-1946 ई.33विकारी2006-2007 ई.1946-1947 ई.34शार्वरी2007-2008 ई.1947-1948 ई.35प्लव2008-2009 ई.1948-1949 ई.36शुभकृत2009-2010 ई.1949-1950 ई.37शोभकृत2010-2011 ई.1950-1951 ई.38क्रोधी2011-2012 ई.1951-1952 ई.39विश्वावसु2012-2013 ई.1952-1953 ई.40पराभव2013-2014 ई.1953-1954 ई.41प्ल्वंग2014-2015ई.1954-1955 ई.42कीलक2015-2016 ई.1955-1956 ई.43सौम्य2016-2017 ई.1956-1957 ई.44साधारण2017-2018 ई.1957-1958 ई.45विरोधकृत2018-2019 ई.1958-1959 ई.46परिधावी2019-2020 ई.1959-1960 ई.47प्रमादी2020-2021 ई.1960-1961 ई.48आनंद2021-2022 ई.1961-1962 ई.49राक्षस2022-2023 ई.1962-1963 ई.50आनल2023-2024 ई.1963-1964 ई.51पिंगल2024-2025 ई.1964-1965 ई.52कालयुक्त2025-2026 ई.1965-1966 ई.53सिद्धार्थी2026-2027 ई.1966-1967 ई.54रौद्र2027-2028 ई.1967-1968 ई.55दुर्मति2028-2029 ई.1968-1969 ई.56दुन्दुभी2029-2030 ई.1969-1970 ई.57रूधिरोद्गारी2030-2031 ई.1970-1971 ई.58रक्ताक्षी2031-2032 ई.1971-1972 ई.59क्रोधन2032-2033 ई.1972-1973 ई.60क्षय2033-2034 ई.1973-1974 ई.

Hindu Nav Varsh Date: उज्जैन (नईदुनिया प्रतिनिधि)। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा गुड़ी पड़वा पर 2 अप्रैल को हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत् 2079 का आरंभ होगा। इस बार संवत्सर का नाम नल रहेगा। नवसंवत्सर के राजा शनि होंगे। राजा होने के साथ शनि का तीन प्रमुख विभागों पर आधिपत्य भी रहेगा। मंत्री मंडल में पांच प्रमुख ग्रह शामिल है। ज्योतिषियों के अनुसार शनि प्रधान नव वर्ष में महंगाई बढ़ेगी। धान्य उत्पादन प्रभावित होगा। हालांकि बारिश की स्थिति अनुकूल रहने वाली है। इससे देश के कुछ राज्यों में गेहूं सहित अन्य धान्यों की प्रचुर पैदावार होगी।

ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला ने बताया कि गुड़ी पड़वा के दिन जिस वार को नवसंवत्सर का आरंभ होता है, उस वार का अधिपति ग्रह वर्ष का राजा कहलाता है। इस बार शनिवार के दिन हिन्दू नववर्ष का आरंभ हो रहा है। इसलिए संवत्सर के राजा शनि होंगे। ज्योतिशास्त्र में संवत्सर फलित की परंपरा है। इसमें पूरे वर्ष ग्रहों की स्थिति का आम जनमानस, समाज, राष्ट्र, बाजार तथा मौद्रिक नीति पर क्या प्रभाव होगा, यह दर्शाया जाता है।

Shukra Gochar 2022: नए साल से पहले शुक्र दो बार बदलेंगे अपनी चाल, इन राशि वालों को मिलेंगे मनचाहे परिणाम

यह भी पढ़ें

जानिए किस ग्रह का क्या फल

-राजा शनि का फल : न्याय तथा कार्यप्रणाली में सकारात्मक परिवर्तन होगा। धान्य उत्पादन कहीं श्रेष्ठ तथा कहीं मध्यम रहेगा। मौद्रिक नीति में परिवर्तन होगा। कुछ स्थानों पर महंगाई बढ़ेगी। उड़द, कोयला, लकड़ी, लोहा, कपड़ा, स्टील महंगे होंगे।

-मंत्री गुरु का फल : वर्षा की स्थिति उत्तम रहेगी। देश में करीब 88 फीसद वर्षा होगी। कुछ स्थानों को छोड़ कर शेष कृषि क्षेत्र में धान्य का प्रचुर उत्पादन होगा। विश्व में भारत का प्रभुत्व बढ़ेगा।

Mahakal Temple : लड्डू प्रसाद के बाद अब धर्मशाला के कमरों का किराया बढ़ाने की तैयारी

यह भी पढ़ें

-धान्येश शुक्र का फल : प्रचुर मात्रा में धान्य उत्पादन से प्रजा सुखी रहेगी। दूध व घी के उत्पादन में कमी आएगी। इससे दुग्ध पदार्थों के मूल्यों में उतार चढ़ाव की स्थिति बनी रहेगी।

-मेघेश बुध का फल : देश में 88 फीसद बारिश होगी। गेहूं सहित अन्य फसलों की भरपूर पैदावार होगी। जनता की धर्म कार्य में रुची बढ़ेगी। बहुत सी स्थितियों में प्रजा शांति का अनुभव करेगी। विद्वतजनों के लिए यह समय उन्नति व सुख कारक रहेगा।

Ujjain Crime News: उज्जैन में युवतियों से छेड़छाड़ के बाद विवाद, युवक की हत्या

यह भी पढ़ें

-रसेश चंद्र का फल : उत्तम जल वृष्टि होने से चारों और सुख शांति का वातावरण रहेगा। आम जनता भौतिक पदार्थों का सुख भोगेगी।

कुरुक्षेत्र, जेएनएन। हिंदू धर्म के अनुयायी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवसंवत्सर यानि नववर्ष मनाते हैं। माना जाता है कि इसी दिन सृष्टि का आरंभ हुआ था। तकरीबन 90 वर्ष बाद ऐसा संयोग बन रहा है, जब संवत 2078 राक्षस नाम से जाना जाएगा। जबकि संवत्सर के क्रमानुसार नाम की गणना में प्रमादी संवत्सर के बाद आनंद और उसके बाद राक्षस संवत्सर आता है। 

पानीपत की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

गायत्री ज्योतिष अनुसंधान केंद्र कुरुक्षेत्र के संचालक डा. रामराज कौशिक ने बताया कि संवत्सर 2077 वर्तमान में चल रहा है। वह प्रमादी नाम का है। ऐसे में लोगों के मन में ये प्रश्न उठ रहा है कि इसके बाद का संवत्सर जो 2078 के रूप में आ रहा है वह आनंद के नाम से न होकर राक्षस क्यों कहला रहा है। हिंदू ग्रंथों में 60 संवत्सरों का उल्लेख किया गया है। जो क्रमवार चलते हैं। ऐसे में प्रमादी (संवत 2077 प्रमादी के नाम से है) के बाद वाला संवत आनंद नाम से जाना जाता है। लेकिन, इसके बावजूद संवत 2078 राक्षस नाम से जाना जाएगा।

क्रमवार नाम से ऐसे समझें हिंदू संवत्सरों को

(1) प्रभव,(2) विभव,(3) शुक्ल,(4) प्रमोद,(5) प्रजापति,(6) अंगिरा,(7) श्रीमुख,(8) भाव,(9) युवा,(10) धाता,(11) ईश्वर,(12) बहुधान्य,(13) प्रमाथी,(14) विक्रम,(15) विषु,(16) चित्रभानु,(17) स्वभानु,(18) तारण,(19) पार्थिव,(20) व्यय,(21) सर्वजित्,(22) सर्वधारी,(23) विरोधी,(24) विकृति,(25) खर,(26) नंदन,(27) विजय,(28) जय,(29) मन्मथ,(30) दुर्मुख,(31) हेमलम्ब,(32) विलम्ब,(33) विकारी,(34) शर्वरी,(35) प्लव,(36) शुभकृत्,(37) शोभन,(38) क्रोधी,(39) विश्वावसु,(40) पराभव,(41) प्लवंग,(42) कीलक,(43) सौम्य,(44) साधारण,(45) विरोधकृत्,(46) परिधावी,(47) प्रमादी,(48) आनन्द,(49) राक्षस, (50) नल,(51) पिंगल,(52) काल,(53) सिद्धार्थ,(54) रौद्रि,(55) दुर्मति,(56) दुंदुभि,(57) रुधिरोद्गारी,(58) रक्ताक्ष,(59) क्रोधन और (60) अक्षय।

बदलाव का यह है कारण

दरअसल निर्णय सिंधु के संवत्सर प्रकरण में यह उल्लेख किया गया है कि संवत्सर क्रमानुसार चलते हैं। ऐसे में 89 वर्ष का प्रमादी संवत्सर अपना पूरा वर्ष व्यतीत नहीं कर रहा। इसे अपूर्ण संवत्सर के नाम से जाना जाएगा। जिसके कारण 90 वर्ष में पड़ने वाला संवत्सर विलुप्त नाम का संवत्सर आनंद का उच्चारण नहीं किया जाएगा। इस निर्णय के अनुसार वर्तमान संवत 2077 प्रमादी नाम का संवत्सर फाल्गुन मास तक रहेगा। जो 28 फरवरी 2021 से लेकर 28 मार्च 2021 तक रहेगा। इसके बाद पड़ने वाला आनंद नाम का विलुप्त संवत्सर पूर्ण वत्सरी अमावस्या तक रहेगा। जबकि आगामी संवत्सर संवत 2078 जो राक्षस नाम का होगा वह चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होगा। यह संवत्सर 31 गते चैत्र तद अनुसार 13 अप्रैल 2021 मंगलवार से प्रारंभ होगा।।

राक्षस संवत्सर में ग्रहों का प्रभाव

शनिदेव मकर राशि में स्वग्रही होकर भोग करेंगे। धनु राशि उनकी लात तथा कुंभ राशि पर उनकी दृष्टि बनी रहेगी। इन राशियों के जातकों को शनि देव का जाप करना हितकर रहेगा। कर्क राशि पर शनि की दया बनी रहेगी। वृषभ राशि के जातकों को राहु दिगभ्रमित करेगा। इसलिए वृषभ राशि के जातक राहु का जाप करें। 

राक्षत्र संवत्सर का देश दुनिया पर असर

पंडित रामराज कौशिक के अनुसार इस संवत्सर के दौरान रोग बढ़ेंगे, भय और राक्षस प्रवृत्ति लोगों में पाई जाएगी। यदा-कदा दुर्भिक्ष, अकाल तथा संक्रामक रोगों से संपूर्ण देश प्रभावित रहेगा। गुरु के पास वित्त विभाग रहेगा, जिसके चलते धन की कमी नही होने दी जाएगी। वहीं बुध देव कृषि मंत्री हैं जिससे अनाज की कमी नहीं आएगी। चंद्रमा पर देश रक्षा का भार रहेगा मंगल ही राजा,मंगल ही मंत्री इस संवत्सर के राजा व मंत्री दोनों ही मंगल यानि भौमदेव होंगे। ऐसे में मंगल जहां शरीर में रक्त के कारक है, वहीं ये जमीन के भी कारक है। जिसके चलते जमीनी सीमा के मामले में देश को लाभ होगा।

दिखेगा मंगल का असर

दोनों पदों पर मंगल के ही होने के चलते माना जा रहा है कि यह स्थिति भारत के पराक्रम और वैभव में वृद्धि करेगी चुंकि इस वर्ष के राजा मंगल होंगे तो ये हमारी तीनों सेनाओं का मनोबल बहुत उंचा रखेंगे। जहां तक हमारी आर्म फोर्स की बात है वे नए तरह के हथियार का इस्तेमाल कर सकती हैं। नए तरह की क्षेत्रों में अपना विस्तार करते हुए नए आपरेशन कर सकती है। कुटनीति व विदेश नीति इस साल नए आंदाज में होगी। जिसे आगे चल कर दुनिया भर में सराहा जाएग।

2022 में नव संवत्सर का नाम क्या है?

नववर्ष की शुरुआत में मंगल और राहु-केतु उच् 2 अप्रैल, 2022 से नवसंवत्सर 2079 शुरू हो गया है। नए संवत्सर का नाम नल है और राजा शनि देव तो मंत्री बृहस्पति रहेंगे।

नव संवत 2079 का नाम क्या है?

2 अप्रैल से हिंदू नववर्ष संवत 2079 का आरंभ हो गया है, जिसका नाम 'नल' है। नल नामक विक्रमी संवत का आरंभ शनिवार के दिन हुआ है जिससे इस साल के राज शनिदेव हुए है।

नव संवत्सर को और क्या कहते हैं?

हिंदू नववर्ष को विक्रम संवत या नव संवत्सर कहते हैं. इसका प्रारंभ सम्राट विक्रमादित्य ने किया था, जो चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरु होता है. आज हिंदू नववर्ष 2079 या विक्रम संवत 2079 का प्रारंभ हुआ है. हिंदू नववर्ष को विक्रम संवत, नव संवत्सर, गुड़ी पड़वा, उगाड़ी आदि नामों से भी जाना जाता है.

2022 में सम्मत का क्या नाम है?

नई दिल्ली, 26 मार्च। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा शनिवार दिनांक 2 अप्रैल 2022 से हिंदू नव संवत्सर प्रारंभ होगा। जिसका नाम नल रहेगा। इस नव संवत्सर में विक्रम संवत 2079 और शालिवाहन शक 1944 होंगे।

संबंधित पोस्ट

Toplist

नवीनतम लेख

टैग