नवाब साहब ने तृप्ति का प्रदर्शन कैसे किया * पेट पर हाथ फेरकर डकार लेकर दाढ़ी पर हाथ फेरकर जम्हाई लेकर? - navaab saahab ne trpti ka pradarshan kaise kiya * pet par haath pherakar dakaar lekar daadhee par haath pherakar jamhaee lekar?

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए। हमें तसलीम में सिर खम कर लेना पड़ा-यह है खानदानी तहज़ीब, नफासत और नजाकत!
हम गौर कर रहे थे, खीरा इस्तेमाल करने के इस तरीके को खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से संतुष्ट होने का सूक्ष्म, नफीस या एब्स्ट्रैक्ट तरीका जरूर कहा जा सकता है परंतु क्या ऐसे तरीके से उदर की तृप्ति भी हो सकती है?
नवाब साहब की ओर से भरे पेट के ऊँचे डकार का शब्द सुनाई दिया और नवाब साहब ने हमारी ओर देखकर कह दिया, ‘खीरा लज़ीज़ होता है लेकिन होता है सकील, नामुराद मेदे पर बोझ डाल देता है।’
नवाब साहब ने खीरा खाने की तैयारी कैसे की?

नवाब साहब ने खीरों के नीचे रखा तौलिया झाड़कर अपने सामने बिछा लिया। सीट के नीचे से पानी का लोटा निकाल कर खीरों को खिड़की से बाहर धोया और तौलिए से पोंछ लिया। जेब से चाकू निकाल कर दोनों खीरों के सिर काटकर उन्हें गोदकर उनका झाग निकाला। खीरों को सावधानी से छीलकर उनकी फाँकों को तौलिए पर सजाते गए और उन पर जीरा मिला नमक और लाल मिर्च छिड़क दी।

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लेखक सेकंड क्लास के डिब्बे में यात्रा क्यों कर रहा था?

सेकंड क्लास का किराया अधिक था। इसीलिए उसमें ज़्यादा भीड़ नहीं होती। लेखक को नई कहानी के सोच-विचार के लिए एकांत चाहिए था। साथ में प्राकृतिक दृश्य देखते हुए किसी भी तरह की बाधा उत्पन्न नहीं होती। एकांत की इच्छा के कारण लेखक ने सेकंड क्लास का टिकट खरीदा।

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लेखक को खीरे खाने से इंकार करने पर अफसोस क्यों हो रहा था?

नवाब साहब ने साधारण से खीरों को इस तरह से संवारा कि वे खास हो गए थे। खीरों की सजावट ने लेखक के मुँह में पानी ला दिया था परंतु वे पहले ही खीरा खाने से इंकार कर चुके थे। अब उन्हें अपना भी आत्म-सम्मान बचाना था। इसीलिए नवाब साहब के दुबारा पूछने पर उन्होंने मैदा (अमाशय) कमजोर होने का बहाना बनाया।

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लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं?

लेखक ने डिब्बे में प्रवेश किया तो वहाँ पहले से ही एक सज्जन पुरुष पालथी लगाए सीट पर बैठे थे। उनके सामने खीरे रखे थे। लेखक को देखते ही उनके चेहरे के भाव ऐसे हो गए जैसे लेखक का आना अच्छा नहीं लगा। ऐसा लग रहा था जैसे लेखक ने उनके एकांत चिंतन में विघ्न डाल दिया था। इसीलिए वे परेशान हो जाते हैं। परेशानी की स्थिति में कभी खिड़की के बाहर देखते हैं और कभी खीरों को देखते हैं। उनकी असुविधा और संकोच वाली स्थिति से लेखक को लगा कि नवाब उनसे बातचीत करने में उत्सुक नहीं है।

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लेखक के सामने नवाब साहब ने खीरा खाने का कौन-सा खानदानी रईसी तरीका अपनाया?

नवाब साहब दूसरों के सामने साधारण-सा खाद्‌य पदार्थ खीरा खाना नहीं चाहते थे। इसलिए उन्होंने खीरे को किसी कीमती वस्तु की तरह तैयार किया। उस लजीज खीरे को देखकर लेखक के मुँह में पानी आ गया था। अब नवाब साहब की इज्जत का सवाल था इसलिए उन्होंने खीरे की फाँक को उठाया नाक तक ले जाकर सूंघा। खीरे की महक से उनके मुँह में पानी आ गया। उन्होंने उस पानी को गटका और खीरे की फाँक को खिड़की से बाहर फेंक दिया। इस तरह उन्होंने सारा खीरा बाहर फेंक दिया। सारा खीरा फेंक कर लेखक को गर्व से देखा। उनके चेहरे से ऐसा लग रहा था जैसे वह लेखक से कह रहे हों कि नवाबों के खीरा खाने का यह खानदानी रईसी तरीका है।

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लेखक ने नबाब की असुविधा और संकोच के लिए क्या अनुमान लगाया?

लेखक जिस डिब्बे में चढ़ा वहाँ पहले से ही एक सज्जन पालथी लगाए बैठे थे। उनके सामने दो खीरे रखे थे। लेखक को देखकर उन्हें असुविधा और संकोच हो रहा था। लेखक ने उनकी असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान लगाया कि नवाब साहब यह नहीं चाहते होंगे कि कोई उन्हें सेकंड क्लास में यात्रा करते देखें। यह उनकी रईसी के विरुद्ध था। नवाब साहब ने आम लोगों द्वारा खाए जाने वाले खीरे खरीद रखे थे। अब उन खीरों को लेखक के सामने खाने में संकोच आ रहा था। सेकंड क्लास में यात्रा करना और खीरे खाना उनके लिए असुविधा और संकोच का कारण बन रहा था।

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नवाब साहब ने तृप्ति का प्रदर्शन कैसे किया?

उत्तरः नवाब साहब ने खीरों को अच्छी तरह से धोया और तौलिए से पोंछकर तौलिये पर रखा। जेब से चाकू निकाला और उससे दोनों खीरों के सिर काटकर झाग निकाले और बहुत सावधानी से छीलकर फाँकों को तौलिये पर तरीके से सजाया। फिर नवाब साहब ने खीरों की फाँकों पर जीरा मिला नमक-मिर्च बुरक दिया।

नवाब साहब ने तृप्ति का प्रदर्शन कैसे किया 1 Point पेट पर हाथ फेरकर दाढ़ी पर हाथ फेरकर डकार लेकर जम्हाई लेकर?

2. ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है। नवाब साहब की असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान करने लगे।

नवाब साहब ने अपनी अकड़ दिखाने के लिए क्या किया?

वे अपनी अमीरी और साहबी दिखाना चाहते हैं। वे अकेले बैठे-बैठे खीरा खाने की तैयारी कर रहे थे। लेकिन लेखक को देखते उनकी साहबी जाग उठी। वे खाने का दिखावा करने के लिए खीरे के प्रत्येक टुकड़े को सूंघ-सूंघकर खिड़की के बाहर फेंकते गये।

नवाब साहब ने अपनी नवाबी का परिचय कैसे दिया?

पहले नवाब साहब ने अपने थैले से खीरा निकाला और उसे पानी से धोकर,उसे तौलिए से पोंछा और चाकू से उसे चार टुकड़ों में काटा उसपर नमक मिर्च लगाकर नवाब साहब ने अपनी नाक के पास ले गए। और उसे सूंघे। सूंघने के बाद उसे रेल के डिब्बे से नीचे फेंक दिया इस प्रकार नवाब साहब ने अपनी नवाबी का परिचय दिया

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