18वीं सदी के उत्तरार्द्ध में इंग्लैण्ड में अज्ञात और सतत रूप से अनेक अंग्रेज मन्त्रियो, अन्वेषकों और वैज्ञानिकों द्वारा वस्तु-उत्पादन, खेती, यातायात और शिल्प उद्योगों के साधनों और प्रयासो में जो नवीन, मौलिक और क्रांतिकारी परिवर्तन हुए, उनसे उत्पादन-व्यवस्था और व्यापार व्यवस्था बिल्कुल बदल गयी, जिनके फलस्वरूप आधुनिक काल में अनेक वर्गीय तथा अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष आरंभ हुए, जिनका अर्वाचीन देशो की आंतरिक और विदेश-नीतियों पर बड़ा महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा व जिनके कारण अर्वाचीन जगत की अनेक जटिल व विस्फोटनजक राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक समस्याओं और व्यवस्थाओं का प्रादुर्भाव हुआ - उन्हें समष्टि रूप में हम ‘औद्योगिक क्रांति’ कहते हैं। इसे हम ‘यांत्रिक क्रांति’ भी कहते हैं।
औद्योगिक क्रांति किसे कहते हैं?
औद्योगिक क्रांति उत्पादन के साधन में द्रुत परिवर्तन को रेखांकित करती है जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन में मानव का स्थान मशीन ने ले लिया, कुटीर उद्योगों के स्थान पर कारखाना प्रणाली तथा दस्तकारी के स्थान पर मशीन-युग का आरंभ हुआ। क्रांति का प्रचलित अर्थ अकस्मात् परिवर्तन होता है। 19वीं सदी में तकनीकी क्रियाओं में आश्चर्यजनक रूप से अकस्मात् परिवर्तन हुआ जिसका प्रभाव राजनीति, समाज और अर्थतंत्र पर पड़ा इससे राज्य की नीति भी प्रभावित हुई और आम आदमी भी।औद्योगिक क्रांति का आर्थिक आधार तैयार किया चार क्रांतियों- कृषि क्रांति, जनांकिकीय क्रांति, व्यावसायिक क्रांति और परिवहन क्रांति ने। इसका तकनीकी आधार तैयार किया वैज्ञानिक क्रांति ने तथा इसका वैचारिक आधार तैयार किया प्रबोधन काल के चिंतन ने। औद्योगिक क्रांति तीन क्षेत्रों जैसे - आर्थिक संगठन, तकनीकी तथा व्यापारिक ढांचे में होने वाली सामूहिक प्रक्रिया का परिणाम थी। औद्योगिक क्रांति का तात्पर्य उद्योगों में मशीनी प्रणाली का आगमन तथा कारखाना प्रणाली के उद्भव से है। उत्पादन प्रणाली में आधारभूत या आमूल-चूल परिवर्तन को ही औद्योगिक क्रांति कहा गया।
औद्योगिक क्रांति के कारण
औद्योगिक क्रांति सर्वप्रथम इंजीनियरिंग उद्योग से प्रारंभ हुई और फिर लोहा, इस्पात, कोयला, सूती वस्त्रा उद्योग, रंग, रसायन और यातायात में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। इन परिवर्तनों के पीछे निम्नलिखित कारण प्रमुख रूप से उत्तरदायी थे-
- पुनर्जागरण एवं भौगोलिक खोजें
- व्यापारिक पूंजी का योग
- कृषि का विकास
- नये उद्योगों का जन्म
- सूती वस्त्रोद्योग का विकास
- लोहे का उत्पादन
- फ्रांस की राज्य क्रांति
- अन्य नये आविष्कार
- पर्याप्त बाजार का होना
- साम्राज्यवादी भावना
- शिक्षा का प्रसार
- जनसंख्या में वृद्धि
- यातायात के साध्नों का विकास
- राष्ट्रीयता की भावना
- भौतिकता में वृद्धि
औद्योगिक क्रांति सर्वप्रथम इंग्लैंड में होने के कारण
- औद्योगिक आविष्कारों का प्रारंभ सर्वप्रथम वस्त्र उद्योग में हुआ। क्योंकि इन दिनों इंग्लैण्ड वस्त्र-उद्योग में सबसे आगे था और कपड़े की अत्यधिक खपत, श्रमिकों की कमी, हाथकरघा द्वारा अल्प-उत्पादन इत्यादि कारणों से अंग्रेज अन्वेषकों का ध्यान सर्वप्रथम वस्त्र-उत्पादन की वृद्धि की ओर आकृष्ट हुआ। अतएव उन्होंने नवीन आविष्कार और यंत्र निकाले।
- इंग्लैण्ड में पहले से प्रायोगिक विज्ञान और अध्ययन का काफी विकास हो रहा था, अत: इनसे अन्वेषकों को नवीन आविष्कारों की रचना में पर्याप्त सुगमता व प्रोत्साहन मिला।
- व्यापार की अत्यधिक वृद्धि के कारण इंग्लैण्ड में पर्याप्त धन था, जिससे इन अन्वेषकों हेतु सुगमता से अर्थ का प्रयोग हो सकता था।
- अंग्रेजी माल के निर्यात के लिए विस्तृत बाजार उपलब्ध थे।
- सामुद्रिक उद्योग, व्यापार और उपनिवेश-संस्थान द्वारा अंग्रेजों ने वृहत उद्योग के प्रबंध करने का पर्याप्त अनुभव प्राप्त कर लिया था।
- औद्योगिक विकास का सबसे महत्वपूर्ण कारण यह था कि अन्य यूरोपीय देशों के विपरीत इंग्लैण्ड के शिल्पियों और उद्योगपतियों को अधिक आर्थिक स्वतंत्रता उपलब्ध थी। यह आर्थिक स्वतंत्रता अंग्रेजी उद्योग व व्यापार के विकास का प्रमुख कारण सिद्ध हुई।
औद्योगिक क्रांति के परिणाम व प्रभाव
1. आर्थिक उत्पत्ति में वृद्धि इंग्लैण्ड और यूरोप में आर्थिक उत्पत्ति व मुद्रण व्यवसाय में भी बड़ी उéति हुई। इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप, समस्त संसार आर्थिक दृष्टि से एक इकाई बन गया। न केवल वस्त्र-व्यवसाय में ही, वरन् अन्य व्यवसायों में भी मशीन के प्रयागे ने उनकी उत्पत्ति में भारी वृद्धि कर दी गयी। यांि त्रक शक्ति और मशीन के उपयागे के कारण मदु ्रण-व्यवसाय में बड़ी उéति हुई। कारखानों के लिए कच्चा माल संसार के कोने-कोने से प्राप्त किया जाने लगा और सारा संसार प्रत्येक देश के पक्के माल के विक्रय का एक बाजार बन गया।2. गृह-व्यवसाय का अंत और विशाल कारखानों का प्रारंभ- नये-नये आविष्कारों और मशीनों के कारण पुराने उद्यागे -धंधे और गृह-व्यवसाय ठप्प होते गये व उनके स्थान पर फैक्टरियाँ खोली जाने लगीं, जिनमें कारीगर की अपेक्षा मशीनों का अधिक महत्व था। इसके कारण श्रम-विभाग का भी बहुत विकास हुआ। कारीगर अब स्वतंत्र उत्पादक न रहकर मजदूरी प्राप्त करने वाला श्रमिक बन गया।
3. पूँजीपतियों का प्रभाव - खेतीबाड़ी में मौलिक परिवर्तन होने के कारण जीविका-रहित किसान और कारीगर नये-नये कारखानों में थाडे ़ी मज़दूर व शाचेनीय वातावरण में रहकर भी काम करने के लिए विवश हुए। अत: धनलोलुप तथा स्वाथ्र्ाी उद्योगपतियों ने श्रमिकों का शोषण कर अपने कारखानों से अतुल धन-उपार्जन किया और इंग्लैण्ड को मशीन का उत्पादक बना दिया। कम मजदूरी, लंबी श्रमावधि और निम्न जीवर-स्तर के कारण श्रमिकों का असंतोष बढ़ा और उसने उग्र रूप धारण कर लिया। श्रमिक दल के नेताओं ने नयी माँगे और नयी शासन व सामाजिक व्यवस्थाओं और नये सामाजिक तथा राजनीतिकवादियों का सृजन किया, जिनके परिणामस्वरूप संसार के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन में विविध परिवर्तन होने लगे।
समाजवाद, माक्र्सवाद व साम्यवाद, अराजतकतावाद, श्रमिक संस्थाओं का विकास एवं नवीन विचारधाराएँ इसी नवीन औद्योगिक व्यवस्था के परिणाम है। औद्योगिक और व्यावसायिक क्रांति ने आर्थिक उत्पादकों को दो श्रेणियों में विभक्त कर दिया, अर्थात् पूँजीपति व मजदूर। पूँजीपतियों व मजदूरों का पारस्परिक संघर्ष व्यावसायिक उन्नति का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम है।
4. व्यावसायिक नगरों का विकास- बड़े-बड़े कारखानों के विकास के कारण बड़े व्यावसायिक नगरों की स्थापना होने लगी और आबादी बढ़ने लगी। व्यावसायिक नगरों का विकास औद्योगिक क्रांति का महत्वपूर्ण परिणाम है।
5. नया श्रेणी-भेद -औद्योगिक क्रांति के कारण नया श्रेणी-भेद उत्पé हुआ। कारखानों के मालिक पूंजीपतियों का महत्व अत्यधिक बढ़ गया। अब समाज में दो मुख्य श्रेणियाँ बन गयीं-पूंजीपति ओर मजदूर। सामाजिक दृष्टि से स्वतंत्र होते हुए भी मजदूरों की स्थिति गुलामों से अच्छी नहीं थी। धीरे-धीरे एक तीसरे श्रेणी ‘शिक्षित मध्य-वर्ग’ का विकास होने लगा व समाज व राजनीति में इसका प्रभाव बढ़ने लगा।
6. पारिवारिक जीवन पर प्रभाव- आरंभ में औद्योगिक व व्यावसायिक क्रांति में पारिवारिक जीवन की सुख-शांति को नष्ट कर दिया, स्त्रियों और बच्चों का स्वास्थ्य और भविष्य पर भी इसका बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। पूंजीपतियों ने हर संभव उपाय द्वारा गरीबों का शोषण किया व समाज में गरीब और अमीर का भेदभाव निरंतर बढ़ता ही गया।
7. वैयक्तिक स्वतंत्रता के सिद्धांत का विकास - इस युग में पूंजीपतियों की मनमानी का किसी भी प्रकार से विरोध कर सकना सुगम नहीं था, क्येांकि एक ओर तो एकतंत्र, स्वेच्छाचारी शासक विद्यमान थे क्योंकि लोकतंत्र शासन का भलीभाँति विकास नहीं हुआ था, और दूसरी ओर, इस समय के विचारक ‘वैयक्तिक स्वतंत्रता’ के सिद्धांत के अनुयायी थे। परिणामस्वरूप कारखानों और मजदूरों की दशा बड़ी शोचनीय हो गयी। कालांतर में ‘वैयक्तिक स्वतंत्रता’ के सिद्धांत के विरूद्ध भी प्रतिक्रिया आरंभ हुई, कारखानों पर सरकारी नियंत्रण व सर्वसाधारण-जनता के हितार्थ नियंत्रण के लिए आंदोलन होने लगे, जिनके परिणामस्वरूप मजदूरों और कारखानों की दशा में सुधार के लिए कानून व सुधार प्रारंभ हुए।
8. व्यापार का विस्तार - औद्योगिक क्रांति के कारण व्यापार का भी अत्यधिक विस्तार हुआ। इस नवीन व्यवस्था ने विश्व व्यापार पर भी काफी प्रभाव डाला। अब औद्योगिक देशांे के व्यापार का उद्देश्य य निर्यात की दृष्टि से विविध प्रकार के पक्के माल का निर्यात और आयात की दृष्टि से कच्चे माल और खाद्य पदाथोर् का आयात बन गया। नये व्यापार की सेवा के लिए बड़े-बड़े जहाज, विस्तृत बंदरगाह व यातायात की अधिकाधिक सुगमताएँ होने लगीं। इसी प्रकार उसके लिए अर्थ-प्रबंधन, बीमा, विनिमय तथा क्रय-विक्रय के नये साधनों और व्यवस्थाओं का विकास हुआ। अत: धीरे-धीरे उत्पादन, व्यापार विनिमय, यातायात और अर्थ प्रबंधन की समस्त व्यवस्थाएँ बदल गयीं।
इनमें संदेह नहीं कि औद्योगिक क्रांति के प्रभाव और परिणाम अच्छे तथा बुरे दोनों प्रकार के थे। कालांतर में प्रत्येक देश में श्रमिक संघर्षों के फलस्वरूप अथवा प्रशासनों के सुधार प्रयास द्वारा श्रमिकों का जीवन-स्तर बहुत ऊँचा हो गया जो उस परिविर्द्धत राष्ट्रीय आय का ही फल है, जिसे औद्योगिक क्रांति ने ही संभव किया। आज के समृद्ध देशों में जनसाधारण को जो सामान्य सुगमताएँ प्राप्त है ये सब औद्योगिक क्रांति की ही देन है।