पीपल के पेड़ की पूजा कब और कैसे करनी चाहिए? - peepal ke ped kee pooja kab aur kaise karanee chaahie?

  • जानें क्यों खास है पीपल और पूजा से क्या हैं लाभ

    सनातन धर्म में पीपल के वृक्ष को बहुत पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि पीपल में सभी देवी-देवताओं का वास होता है और इसकी पूजा करने से कई तरह के लाभ होते हैं और शनिदोष से भी मुक्ति मिलती है। इसलिए धार्मिक क्षेत्र में पीपल को देव वृक्ष की पदवी दी गई है। पीपल की पूजा कई अवसरों पर की जाती है, चाहें फिर वह अमावस्या हो या पूर्णिमा। पीपल के वृक्ष में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का भी वास माना गया है इसलिए पीपल की पूजा करने से न केवल पुण्य की प्राप्ति होती है बल्कि पितरों का भी आशीर्वाद मिलता है। वैज्ञानिकों ने भी इस वृक्ष को अनूठा बताया है, जो 24 घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है, जो मनुष्यों के लिए बहुत जरूरी है। पीपल के नीचे महात्मा बुद्ध से लेकर कई अन्य ऋषि-मुनियों ने ज्ञानार्जन किया है। आइए जानते हैं किन कारणों से पीपल की पूजा की जाती है….

  • पुराणों में पीपल का महत्व

    स्कंद पुराण में पीपल के वृक्ष के बारे में बताया गया है कि
    मूले विष्णु: स्थितो नित्यं स्कन्धे केशव एव च।
    नारायणस्तु शारवासु पत्रेषु भगवान् हरि:।।
    फलेऽच्युतो न सन्देह: सर्वदेवै: समन्व स एवं ष्णिुद्र्रुम एव मूर्तो महात्मभि: सेवितपुण्यमूल:।
    यस्याश्रय: पापसहस्त्रहन्ता भवेन्नृणां कामदुघो गुणाढ्य:।
    अर्थात पीपल के जड़ में भगवान विष्णु, तने में केशव, शाखओं में नारायण, पत्तों में भगवान हरि और फलों में सभी देवता निवास करते हैं। पीपल का वृक्ष भगवान विष्णु स्वरूप है। महात्मा इस वृक्ष की सेवा करते हैं और यह वृक्ष मनुष्यों के पापों को नष्ट करने वाला है। पीपल में पितरों और तीर्थों का निवास होता है।

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  • पीपल की पूजा मिलती है शनि दोष से मुक्ति

    महर्षि दधीचि के पुत्र पिप्पलाद ऋषि थे। पिप्पलाद का शाब्दिक अर्थ है पीपल के पेड़ के पत्ते खाकर जीवित रहने वाला। महर्षि दधीचि ने संसार के हित में अपने शरीर को त्यागकर देवराज इंद्र को हड्डियों का दान कर दिया था। तब विश्वकर्मा ने दधीचि की हड्डियों से व्रज नामक अस्त्र बनाया, जो काफी शक्तिशाली था। महर्षि दधीचि की पत्नी को जब इसके बारे में पता चला तो उनको काफी दुख हुआ और सती होने के लिए निकल पड़ीं। देवताओं ने उनको काफी रोका लेकिन वह नहीं मानीं। उस समय महर्षि दधीचि की पत्नी गर्भवती थीं। उन्होंने अपने गर्भ से बच्चे को निकालकर पीपल के वृक्ष के नीचे रख दिया था और फिर सती हो गईं। बच्चा पीपल के पेड़ के नीचे ही पला-बड़ा, जिससे उनका नाम पिप्पलाद पड़ा। साथ ही उन्होंने पीपल के पेड़ के नीचे ही कठोर तपस्या भी की थी। पिप्पलाद ऋषि के प्रभाव से ही पीपल को आशीर्वाद प्राप्त है कि जो इस देव वृक्ष की सेवा और पूजा करेगा। उनको पुण्य फल की प्राप्ति होगी और शनि दोष से मुक्ति भी मिलेगी। दरअसल जब पिप्पलाद ऋषि को पता चला कि शनि दोष के कारण ही उनकी पिता की जान गई थी तब उन्होंने ब्रह्माजी के आशीर्वाद से ब्रह्मदंड की प्राप्ति की थी और शनिदेव की डंडे से पिटाई की थी। इसी वजह से पीपल की पूजा करने से शनिदोष से मुक्ति मिलती है।

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  • भगवान विष्णु का स्वरूप है पीपल

    भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि ‘वृक्षों में सर्वोत्तम मैं पीपल हूं’। साथ ही पीपल को ही भगवान विष्णु का स्वरूप भी बताया गया है और जहां भगवान विष्णु होंगे, वहां लक्ष्मी स्वयं मौजूद होंगी। पीपल की महत्त इससे ही पता चलती है कि भगवान कृष्ण ने पीपल के वृक्ष के नीचे ही गीता का ज्ञान दुनिया को दिया था। इसलिए पीपल की पूजा करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और सभी कार्य पूरे होते हैं।

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  • देवी-देवताओं का मिलता है आशीर्वाद

    ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, हर रोज पीपल के वृक्ष के पूजा करनी चाहिए, क्योंकि अलग-अलग दिन अलग देवी-देवताओं का वास होता है। इससे न केवल सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है बल्कि अक्षय पुण्य की भी प्राप्ति होती है। पीपल की पूजा करने के बाद परिक्रमा करने से सभी तरह के पाप भी नष्ट हो जाते हैं।

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  • पितृ दोष होता है दूर

    पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पीपल की पूजा करना सर्वोत्तम माना गया है। साथ ही उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पीपल के पौधे लगाने चाहिए, ऐसा करने से चारों तरह सकारात्मक वातावरण बना रहता है। गीता में भगवान कृष्ण ने पेड़ों में खुद को पीपल बताया है इसलिए पीपल के पेड़ लगाने से पुण्य फल की प्राप्ति भी होती है और पीपल की हर रोज पूजा करने पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है।

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  • शनि साढ़ेसाती से मिलती है मुक्ति

    शनिवार के दिन पीपल की पूजा करना काफी लाभदायक माना जाता है। माना जाता है कि पीपल पर हमेशा शनि की छाया रहती है, जिससे इसकी पूजा से शनि दोष दूर रहता है। शनिवार के दिन पीपल की जड़ में जल चढ़ाने व दीपक जलाने से शनि से संबंधित कष्टों का निवारण रहता है। बताया जाता है कि जिस व्यक्ति पर शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही होती है, उनको पीपल का पूजन व परिक्रमा करनी चाहिए। ऐसा करने से शनि महादशा से मुक्ति मिलती है।

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  • इस समय न करें पीपल की पूजा

    शास्त्रों में बताया गया है कि सूर्योदय से पहले कभी भी पीपल की पूजा नहीं करनी चाहिए क्योंकि इस समय धन की देवी लक्ष्मी की बहन अलक्ष्मी का वास होता है। अलक्ष्मी दरिद्रता की देवी मानी जाती हैं और हमेशा गरीबी व जीवन में परेशानी लाती हैं। इसलिए सूर्योदय से पहले न तो पीपल की पूजा करनी चाहिए और न ही इस वृक्ष के पास जाना चाहिए, ऐसा करने से घर में दरिद्रता चली आती है। हमेशा सूर्योदय के बाद ही पीपल की पूजा करें।

पीपल के पेड़ में दिया कब जलाना चाहिए?

मान्‍यता है क‍ि प्रत्येक अमावस्या को रात्रि में पीपल के नीचे शुद्ध घी का दीपक जलाने से पितर प्रसन्न होते हैं। वहीं अगर न‍ियम‍ित रूप से 41 द‍िनों तक पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाया जाए तो सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

पीपल में जल कितने बजे तक चढ़ाना चाहिए?

पीपल के वृक्ष पर जल सूर्योदय के बाद ही चढ़ाना चाहीए। जिससे आपके ऊपर माता लक्ष्मी की कृपा द्रष्टि सदा बनी रहे। पुराणों के अनुसार जो व्यक्ति पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करता है उसकी सर्व मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साथ ही शत्रुओं का नाश भी होता है।

पीपल की पूजा सुबह कितने बजे करना चाहिए?

इसलिए सूर्योदय से पहले न तो पीपल की पूजा करनी चाहिए और न ही इस वृक्ष के पास जाना चाहिए, ऐसा करने से घर में दरिद्रता चली आती है। हमेशा सूर्योदय के बाद ही पीपल की पूजा करें।

शाम को पीपल की पूजा कैसे करें?

सूर्यास्‍त के बाद करें यह उपाय सबसे पहले पीपल के वृक्ष पर आटे का दीपक जला दें। दीपक के सम्‍मुख खड़े होकर हनुमान चालीसा का पाठ करें। अब उस पीपल के पेड़ के एक बड़े पत्‍ते पर लाल स्‍याही से अपनी मनोकामना लिख दें और उसकी डाली पर 7 बार लाल कलावा लपेट दें। अब उस कलावे को 7 बार घुमाकर अपने हाथ में बांध लें।

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