प्रकाश का प्रकीर्णन (Light scattering) वह प्रकीर्णन है जिसमें ऊर्जा का वाहक और प्रकीर्ण होने वाला विकिरण प्रकाश होता है।
सूर्योदय से पहले दिखने वाला राशिचक्रीय प्रकाश वास्तव में प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण होता है।
जब प्रकाश किसी ऐसे माध्यम से गुजरता है, जिसमें धूल तथा अन्य पदार्थों के अत्यन्त सूक्ष्म कण होते हैं, तो इनके द्वारा प्रकाश सभी दिशाओं में प्रसारित हो जाता है, जिसे प्रकाश का प्रकीर्णन कहते हैं। लार्ड रेले के अनुसार किसी रंग का प्रकीर्णन उसकी तरंगदैर्घ्य पर निर्भर करता है, तथा जिस रंग के प्रकाश की तरंगदेधर्य सबसे कम होती है, उस रंग का प्रकीर्णन सबसे अधिक तथा जिस रंग के प्रकाश की तरंगदैर्घ्य सबसे अधिक होती है, उस रंग का प्रकीर्णन सबसे कम होता है। इसका एक उदाहरण आकाश का रंग है, जो सूर्य के प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण नीला दिखाई देता है।
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
- टिण्डल प्रभाव
- प्रकीर्णन
- कांपटन प्रभाव
प्रकाश का प्रकीर्णन
हमारे वायुमंडल में अशुद्धियां, जलवाष्प, धूल कण तथा अन्य प्रकार के पदार्थ उपस्थित हैं।
जब प्रकाश वायुमंडल में प्रवेश करता है तो वायुमंडल में उपस्थित इन अशुद्धियों तथा धूल कण के द्वारा प्रकाश का अवशोषण कर उसे अन्य दिशाओं में विकिरित कर दिया जाता है। इस घटना को प्रकाश का प्रकीर्णन कहते
हैं।
आसान शब्दों में – माध्यम के कणों द्वारा प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित कर अन्य दिशाओं में विकिरित कर देने की प्रक्रिया को प्रकाश का प्रकीर्णन (scattering of light in hindi) कहते हैं।
यहां माध्यम कुछ भी हो सकता है। जैसे वायुमंडल
लॉर्ड रैले का नियम Rayleigh’s scattering law in hindi
इस
नियम के अनुसार जब किसी कण का आकार प्रकाश की तरंगदैर्ध्य की तुलना में बहुत अधिक होता है। तो प्रकीर्णित प्रकाश की तीव्रता उसकी तरंगदैर्ध्य की चतुर्थ घात के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
यदि प्रकाश की तीव्रता I तथा तरंगदैर्ध्य λ है। तो लॉर्ड रैले नियम
\footnotesize \boxed { I = \frac{1}{λ^4} }
रैले ने बताया कि किसी कण द्वारा प्रकीर्णित प्रकाश की तीव्रता उसकी तरंगदैर्ध्य पर निर्भर करती है।
जब किसी काण की तरंगदैर्ध्य कम होती है तो उसके लिए प्रकाश का
प्रकीर्णन सबसे अधिक होता है। तथा इसके विपरीत जिसकी तरंगदैर्ध्य अधिक होती है तो उसके लिए प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे कम होता है।
जैसे लाल रंग के प्रकाश की तरंगदैर्ध्य सबसे अधिक होती है। जिसके कारण लाल रंग की प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे कम होता है। तथा
बैगनी रंग के प्रकाश की तरंगदैर्ध्य सबसे अधिक होती है। जिसके कारण बैगनी रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे अधिक होता है।
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प्रकाश के प्रकीर्णन की घटनाएं (उदाहरण)
जब प्रकाश किसी माध्यम में से होकर गुजरता है। तो माध्यम में उपस्थित धूल कण या अन्य अशुद्धियों के कारण प्रकाश का अवशोषण कर उसे सभी दिशाओं में प्रसारित कर दिया जाता है। इसे प्रकाश का प्रकीर्णन कहते हैं।
प्रकाश के प्रकीर्णन के उदाहरण –
- आकाश का रंग नीला प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण ही दिखाई देता है।
- समुद्र तथा महासागरों के जल का रंग नीला भी प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण ही प्रतीत होता है।
- सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य का लालतप्त दिखाई देना।
- खतरे के संकेतों में लाल रंग के प्रकाश का प्रयोग होना।
- वर्षा वाले बादलों का श्वेत (सफेद) दिखाई देना।
पढ़ें – आकाश का रंग नीला क्यों दिखाई देता है | पानी | सूर्य लाल क्यों प्रतीत होता है
scattering of light in hindi प्रकाश का प्रकीर्णन क्या होता है ? प्रकाश का प्रकीर्णन किसे कहते हैं उदाहरण सबसे कम और सबसे अधिक किस रंग में होता है , प्रश्न उत्तर सहित |
परिभाषा : हमारे चारों तरफ वायुमंडल में विभिन्न प्रकार के कण तथा गैसें उपस्थित होती है , जब कोई प्रकाश (उदाहरण सूर्य का प्रकाश ) वायुमण्डल में उपस्थित इन कणों पर आपतित होता है या गिरता है तो यह प्रकाश इन कणों द्वारा विभिन्न दिशाओं में परावर्तित (विसरित) कर दिया जाता है या फैला दिया जाता है।
वायुमण्डल के अणुओ द्वारा प्रकाश को चारो दिशाओं में विसरित करने की इस घटना को प्रकाश का प्रकीर्णन कहते है।
प्रकाश के प्रकीर्णन का कारण
जब प्रकाश वायुमण्डल में गति करता है जिसमें गैस इत्यादि के कण पहले से ही उपस्थित होते है , ये कण माध्यम के कण की तरह कार्य करते है और प्रकाश को अवशोषित कर लेते है , अवशोषण के बाद ये इस अवशोषित प्रकाश को सभी दिशाओं में विसरित कर देते हैं।
प्रकीर्णन की तीव्रता प्रकाश की तरंग दैर्ध्य तथा प्रकीर्णन करने वाले माध्यम के कणों के आकार पर भी निर्भर करता है।
रैले का नियम (rayleigh’s law of scattering)
यदि माध्यम के कणों का आकार प्रकाश की तरंग दैर्ध्य से छोटा हो तो प्रकाश के प्रकीर्णन का मान 1/λ4 के समानुपाती होता है।
यहाँ λ = प्रकाश की तरंग दैर्ध्य
इसे ही रैले का नियम कहते हैं।
अतः रैले के नियमानुसार जिस रंग की तरंग दैर्ध्य कम होगी उस रंग का प्रकीर्णन उतना ही अधिक होगा।
हम जानते है की तरंग दैर्ध्य का बढ़ता क्रम निम्न है –
V
= बैंगनी
I = नील
B = नीला
G = हरा
Y = पीला
O = नारंगी
R = लाल
अतः रैले के नियमानुसार लाल रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे कम (न्यूनतम) होता है क्योंकि इसकी तरंग दैर्ध्य सबसे अधिक है।
इसी प्रकार बैंगनी रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे अधिक (अधिकतम) होता है क्योंकि इसकी तरंग दैर्ध्य सबसे कम होती है।
यही कारण है की सिग्नल में लाल रंग (ट्रैन इत्यादि में) काम में लिया जाता है क्योंकि इसका प्रकीर्णन कम होता है और इसलिए यह दूर तक दिखाई दे सकता हैं।
प्रकाश का प्रकीर्णन
जब प्रकाश किसी ऐसे माध्यम से गुजरता है, जिसमें धूल तथा अन्य पदार्थो के अत्यन्त सूक्ष्म कण होते है, तो इनके द्वारा प्रकाश सभी दिशाओं में (कुछ दिशाओं में कम तथा कुछ में अधिक) प्रसारित हो जाता है। इस घटना को प्रकाश का प्रकीर्णन कहते है। लॉर्ड रैले के अनुसार किसी रंग का प्रकीर्णन उसकी तरंगदैर्ध्य पर निर्भर करता है तथा जिस रंग के प्रकाश की तरंगदैर्ध्य सबसे कम होती है, उस रंग का प्रकीर्णन सबसे अधिक तथा जिस रंग के प्रकाश की तरंगदैर्ध्य सबसे अधिक होती है, उस रंग का प्रकीर्णन सबसे कम होता है। यही कारण है कि सूर्य के प्रकाश में बैंगनी रंग, जिसकी तरंगदैर्ध्य सबसे कम होती है का प्रकीर्णन सबसे अधिक तथा लाल रंग, जिसकी तरंगदैर्ध्य सबसे अधिक होती है का प्रकीर्णन सबसे कम होता है।
प्रकाश के प्रकीर्णन के उदाहरण
आकाश का रंग सूर्य के प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण नीला दिखायी देता है- जब सूर्य का प्रकाश जो कि विभिन्न रंगों का मिश्रण है, वायुमंडल से होकर गुजरता है, तो वायु में उपस्थित विभिन्न अणुओं, धूल एवं धुएँ के कणों द्वारा उसका प्रकीर्णन हो जाता है। दिन के समय जब सूर्य सीधा आकाश में मनुष्य के सिर के ऊपर होता है, तो मनुष्य केवल प्रकीर्णित प्रकाश की ही देख पाता है। चूंकि बैंगनी रंग का प्रकीर्णन सबसे अधिक व लाल रंग का सबसे कम होता है, अतः प्रकीर्णन प्रकाश का मिश्रित रंग हल्का नीला होता है। इसी कारण आकाश नीला दिखाई देता है।
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