प्रश्न 3 भोर के नाम को नीला शंख जैसा राख से लीपा हुआ चौका जैसा बताने से कौन सा अलंकार प्रयोग हुआ है? - prashn 3 bhor ke naam ko neela shankh jaisa raakh se leepa hua chauka jaisa bataane se kaun sa alankaar prayog hua hai?

भोर के नभ को राख से लीपा गीला चौका क्यों कहा गया है?

कविवर शमशेर बहादुर सिंह ने भोर के नभ को राख से लीपा गीला चौका इसलिए कहा गया है क्योंकि सुबह का आकाश कुछ-कुछ धुंध के कारण मटमैला व नमी- भरा होता है। राख से लीपा हुआ चौका भी सुबह के इस कुदरती रंग से अच्छा मेल खाता है। अत: उन्होंने भोर के नभ की उपमा राख से लीपे गीले चौके से की है। इस तरह यह आकाश राख से लीपे हुए गीले चौके के समान पवित्र है।

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कवि काली सिल और लाल केसर के माध्यम से क्या कहना चाहता है?

कवि के अनुसार काली सिल पर लाल केसर को रगड़ देने से उसमें लाली युक्त लालिमा दिखाई देने लगती है। इस प्रकार भोर के समय आसमान अंधकार के कारणकाला और उषा की लालिमा से युक्त होने पर काली सिल पर लाल केसर रगड़ने के समान दिखाई देता है।

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भोर का नभ

राख से लीपा हुआ चौका

(अभी गीला पड़ा है)

नई कविता में कोष्ठक, विराम-चिन्हऔर पंक्तियों के बीच का स्थान भी कविता को अर्थ देता है। उपर्युक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में क्या विशेष अर्थ पैदा हुआ है? समझाइए।

कोष्ठक में दिया गया है-’अभी गीला पड़ा है’ कवि भोर के नभ में राख से लीपे हुए चौके की संभावना व्यक्त करता है। आसमान राख के रंग जैसा है। यह चौका प्रात:कालीन ओस के कारण गीला पड़ा हुआ है। अभी वातावरण में नमी बनी हुई है। इसमें पवित्रता की झलक प्रतीत होती है। कोष्ठक में लिखने से चौका का स्पष्टीकरण हुआ है।

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कवि ने भोर के नभ की तुलना किससे की है और क्यों?

कवि ने भोर के नभ की तुलना राख से पुते हुए गीले चौके से की है, क्योंकि भोर का नभ श्वेतवर्ण और नीलिमा का मिश्रित रूप लिए हुए है। उसमें ओस की नमी भी है अत: वह गीले चौके के समान प्रतीत होता है।

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कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि उषा, कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्दचित्र है?

कविता के निम्नलिखित उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि ‘उषा’ कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्द-चित्र है-

राख से लीपा हुआ चौका।

बहुत काली सिल।

स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मलना।

किसी की गौर झिलमिल देह का हिलना।

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कवि ने प्रातःकालीन आसमान की तुलना किससे की है?

कवि ने प्रात:कालीन आसमान की तुलना नीले शंख से की है। वह शंख के समान पवित्र और उज्ज्वल है।

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भोर के नाम को नीला शंख जैसा राख से लीपा हुआ चौका जैसा बताने से कौन सा अलंकार प्रयोग हुआ है?

का ध्यान नहीं करते 5. संसार कवि के .

भोर के नभ को राख से लीपा हुआ चौका की संज्ञा दी गई हैं क्यों?

अतः राख के समान आसमान का रंग स्लेटी हो गया है। सुबह की ओस ने इसे गीला कर दिया है। अर्थात वातावरण में अब भी नमी विद्यमान हैं। कवि ने गाँव में सुबह सवेरे औरतों द्वारा चूल्हा लीपने का जो चित्र भोर के साथ किया है, वह इसके कारण सुंदर जान पड़ा है।

नीला शंख जैसा क्या है?

उत्तर सूर्योदय से पहले आकाश का रंग शंख जैसा नीला था, उसके बाद आकाश राख से लीपे चौके जैसा हो गया। सुबह की नमी के कारण वह गीला प्रतीत होता है। सूर्य की प्रारंभिक किरणों से आकाश ऐसा लगा मानो काली सिल पर थोड़ा लाल केसर डालकर उसे धो दिया गया हो या फिर काली स्लेट पर लाल खड़िया मिट्टी मल दी गई हो।

V उषा शीर्षक कविता में राख से लीपा हुआ चौका के द्वारा कवि ने क्या कहना चाहा है?

उत्तर: कवि को सुबह का आकाश ऐसा लगता है कि मानो चौका राख से लीपा गया हो तथा वह अभी गीला हो। जिस तरह गीला चौका स्वच्छ होता है, उसी प्रकार सुबह का आकाश भी स्वच्छ होता है, उसमें प्रदूषण नहीं होता।

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