इसे सुनेंरोकेंpashchimi shiksha ki visheshta;पाश्चात्य देशों के इतिहास का अध्ययन करने पर यह पता चलता है कि वहां के दर्शनवेत्ता महान शिक्षक हुए और शिक्षक ही महान दार्शनिक हुए है। रूसो एक महान युग-प्रवर्तक थे, जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में मनोवैज्ञानिक, सामाजिक तथा वैज्ञानिक प्रवृत्तयों को जन्म दिया। पाश्चात्य शिक्षा ने भारतीयों को कैसे प्रभावित किया? प्रबुद्ध
भारतीयों ने निष्कर्ष निकाला कि पाश्चात्य शिक्षा के माध्यम से ही देश की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक दुर्बलता को दूर किया जा सकता है। भारत में पश्चिमी शिक्षा कब लागू हुई? इसे सुनेंरोकेंअंग्रेजों ने वर्ष 1813 तक तो शैक्षिक क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं किया, मगर इसके बाद भारतीयों के सहयोग या सीमित संख्या उनके
साथ के बाद ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों ने भारत में शिक्षा की पश्चिमी प्रणाली शुरू कर दी। इसे सुनेंरोकें1854 में सर चार्ल्स वुड का डिस्पैच: 1854 में, सर चार्ल्स वुड, नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष ने 1854 की ‘वुड्स डिस्पैच’ के रूप में जानी जाने वाली अपनी सिफारिशें भेजीं, जिसमें शिक्षा की पूरी संरचना को पुनर्गठित किया गया। वुड के डिस्पैच को भारत में अंग्रेजी शिक्षा का मैग्ना कार्टा माना जाता है। भारत में आधुनिक शिक्षा का जन्मदाता किसे
कहा जाता है तथा उसके द्वारा लिखी गई पुस्तक का नाम क्या है? इसे सुनेंरोकेंवास्तव में, अंगेजी शिक्षा की अग्रिम रूपरेखा का निर्माण चार्ल्स ग्रांट ने ही किया । इसीलिए उसे ‘भारत में आधुनिक शिक्षा का जन्मदाता’ कहा जाता है। भारत में प्राथमिक शिक्षा के जनक कौन हैं?पश्चिमी शिक्षा क्या है?
भारत में अंग्रेजी शिक्षा की नींव कब पड़ी?
इसे सुनेंरोकेंशिक्षा के जनक थे स्वामी सहजानन्द
समाज की आधारशिला क्या है?
इसे सुनेंरोकेंऔर शिक्षक ही समाज की आधारशिला है। क्योंकि शिक्षक ही हमें समाज में रहने योग्य बनाता है। इसलिये ही शिक्षक को समाज का शिल्पकार कहा जाता है।
प्रबुद्ध भारतीयों ने निष्कर्ष निकाला कि पाश्चात्य शिक्षा के माध्यम से ही देश की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक दुर्बलता को दूर किया जा सकता है।
इसे सुनेंरोकेंयह वर्ग स्थानीय भाषा तथा साहित्य को समृद्ध कर पश्चिमी विज्ञान तथा साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने में मदद करेगा। यह ब्रिटिश शासकों को बहुत ही कम खर्च पर पश्चिमी सभ्यता को जन-जन तक फैलाने में मदद की। इस सिद्धांत ने ब्रिटिश अफसरशाही में भारतीयों को अधीनस्थ पदों जैसे कि क्लर्क आदि बनने के योग्य बनाया।
प्राच्य पाश्चात्य विवाद के मुख्य कारण क्या थे?
इसे सुनेंरोकेंप्राच्य-पाश्चात्य विवाद 1813 के चार्टर की 43वां धारा एवं शिक्षा के माध्यम के प्रश्न को लेकर उत्पन्न हुआ था। इसके बाद 1833 के चार्टर द्वारा भारतीय शिक्षा अनुदान की राशि 1 लाख से बढ़कर 10 लाख रुपये वार्षिक कर दिये जाने से रह विवाद उम्र रूप धारण कर गया था।
राजा राम मोहन रायलाल बहादुर शास्त्रीनेताजी सुभाषचन्द्र बोससरदार वल्लभ भाई पटेल
Answer : A
Solution : 1828 में स्थापित ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय ने भारत में पश्चिमी शिक्षा का श्रीगणेश किया था। उन्होंने भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा वर्नाकुलर एजुकेशन का समर्थन करने के निर्णय का विरोध किया और इस बात पर बल दिया कि भारत में फारसी और संस्कृत के स्थान पर अंग्रेजी में शिक्षा दी जानी चाहिए। उन्होंने वैज्ञानिक शिक्षा आरंभ करने का समर्थन किया और भारत में पश्चिमी शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए कड़ी मेहनत की। उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप 1817 में कलकत्ता में हिन्दू कॉलेज की स्थापना की गई थी।
पश्चिमी शिक्षा की विशेषताएं
pashchimi shiksha ki visheshta;पाश्चात्य देशों के इतिहास का अध्ययन करने पर यह पता चलता है कि वहां के दर्शनवेत्ता महान शिक्षक हुए और शिक्षक ही महान दार्शनिक हुए है। प्रागैतिहासिक काल से लेकर वर्तमान समय तक पाश्चात्य विद्वानों ने अपने विचारों से शिक्षा व्यवस्था को इतना उन्नत और समृद्ध बना दिया कि आज लगभग संपूर्ण विश्व की शिक्षा व्यवस्था इन विचारों का अनुसरण कर अपनी शिक्षा प्रणाली में सुधार कर रही है।
पश्चिमी शिक्षा की निम्नलिखित विशेषताएं है--
1. यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक प्लेटो पाश्चात्य आदर्शवाद के जन्मजात थे। वे एक सुयोग्य शिक्षक भी थे। अपने दार्शनिक सिद्धांतों को प्रयोगात्मक रूप देने के लिए उन्होंने 'एकेडेमी' नामक प्रसिद्ध विद्यालय की स्थापना की।
2. प्रकृतिवादी विचारधारा में मानव स्वतंत्रता पर विशेष बल दिया गया। रूसो एक महान युग-प्रवर्तक थे, जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में मनोवैज्ञानिक, सामाजिक तथा वैज्ञानिक प्रवृत्तयों को जन्म दिया। रूसो का प्रसिद्ध नारा था-- 'प्रकृति की ओर लौटो'।
3. यथार्थवाद के उदय से शिक्षा मे नवीन उद्देश्यों का श्रीगणेश हुआ और उन बातों को महत्व मिला जो बालक के भावी जीवन को सुखी बनाने के लिए जरूरी होती है। विज्ञान को पाठ्यक्रम में महत्वपूर्ण स्थान मिला।
4. वर्तमान युग की दार्शनिक विचारधाराओं में प्रयोजनवादी विचारधारा सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। अमेरिका में इस विचारधार का प्रादुर्भाव एवं प्रसार हुआ।
5. प्रगतिशील शिक्षा के विचारों को बल देने वाले सुप्रसिद्ध दार्शनिक रूसों, फ्राॅबेल, पेस्टालाॅजी, माॅण्टेसरी आदि पश्चिमी विद्वान हैं।
6. पेस्टालाॅजी ने शिक्षा में मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों का प्रयोग करके बाल-केन्द्रित शिक्षा को बल प्रदान किया।
7. फ्राॅबेल ने 'किंडरगार्टन शिक्षा प्रद्धति' को प्रस्तुत करके बालकों की जन्मजात प्रवृत्तियों के विकास पर बल दिया।
8. माॅण्टेसरी ने मन्दबुद्धि बालकों के लिए विशेष कार्य किया। बाल मनोविज्ञान पर आधारित 'माॅण्टेसरी पद्धति' का निर्माण किया।
9. रसेल ने आदर्शवादी और व्यावहारिकवादी तत्वों का समावेश कर शिक्षा की विस्तृत योजना प्रस्तुत की। रसेल ने व्यक्तिवादी शिक्षा पर बल दिया।
10. हरबर्ट स्पेन्सर ने शिक्षा में वैज्ञानिक यथार्थवाद का समर्थन किया। शिक्षा के क्षेत्र में वैज्ञानिक यथार्थवाद के फलस्वरूप जीवन में वैज्ञानिक विषयों की उपयोगिता सिद्ध हुई। उन्हीं विषयों को पढ़ाने पर बल दिया गया, जिनसे जीवन के सुखों की प्राप्ति हो।
इस प्रकार पाश्चात्य शिक्षा ने वर्तमान शिक्षा प्रणाली में हुए सुधारों की आधारशिला रखी। अनेकों ऐसी शिक्षा पद्धतियाँ विकसित की गयी जिन्हे संपूर्ण विश्व मे शैक्षिक सुधारों के लिए अपनाया जा रहा है। पश्चिमी शिक्षा का प्रभाव संपूर्ण विश्व की शिक्षा व्यवस्था पर स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है।
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