जो राष्ट्र अपने मानव संसाधन की परवाह करता है, वह अवश्य ही विकास व उन्नति के उच्च स्तर पर पहुंच जाता है और जो इसकी परवाह नहीं करता, वह देश पिछड़ जाता है। मानव संसाधन की परवाह और विकास दोनों ही देश की शिक्षा व्यवस्था से जुड़े हैं। जिस देश में साक्षरता का स्तर बढ़ा, उस देश ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा अर्थात् उन्नति करता चला गया और जहां अनपढ़ व निरक्षर लोग रहे, वहां विकास अभी उतना ही दूर है जितना कि वो चलकर आगे आए हैं।
सन् 2०11 की जनगणना के आंकड़ों पर ध्यान दें तो देश में 85 प्रतिशत साक्षरता का आंकड़ा केवल दस राज्यों ने ही पूरा किया है। दूसरी सोचने की बात यह है कि स्वतंत्रता व संविधान लागू होने के सत्तर वर्ष हो जाने के बाद भी आज देश का कोई भी राज्य सौ प्रतिशत साक्षर नहीं हो पाया है।
जहां प्राइवेट स्कूलों में स्मार्ट कक्षा की बात व पढ़ाई कराई जा रही है वहीं सरकारी विद्यालयों में देश के अलग-अलग राज्यों व जिले के स्कूलों में एक शिक्षक एक कक्षा में 50 से अधिक या उसके पास की संख्या के बच्चों को एक साथ पढ़ा रहा है, तो कहीं नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्कूलों के नाम पर केवल खंडहर दिखाई देते हैं। पढऩे-पढ़ाने वाले दूर दराज तक दिखाई नहीं देते। कहीं स्कूल की इमारत नहीं तो कहीं स्कूल में बच्चे नहीं जबकि लोकतंत्र में तो सभी नागरिकों को समानता का अधिकार भी मिला हुआ है।
राज्य सरकार केंद्र पर आरोप लगा देती है और केंद्र सरकार राज्य पर लेकिन सोचा जाए तो इन दोनों के बीच फंसा कौन? एक साधारण इंसान जो कई बार व्यवस्थाओं के चलते अपने को असमर्थ समझ लेता है।
यह हाल तो सामान्य बालकों की शिक्षा और व्यवस्था का है जबकि देश में विकलांग, अपंग चाहे वह शारीरिक या मानसिक किसी दृष्टि से हों, उनके लिए शिक्षा व्यवस्था कितनी कारगर सिद्ध हो रही है और सरकार कितने सजग तरीके से काम कर रही है, यह भी एक सोचनीय प्रश्न है। इस तरफ जनसाधारण का ध्यान कम जाता है या फिर वही लोग सोचते हैं जिनके घर में ऐसा विशिष्ट बच्चा है।
सरकार को सामान्य बालकों की शिक्षा के साथ-साथ समाज से कटे विशिष्ट बालकों की शिक्षा की ओर भी ध्यान देना होगा। हालांकि इस क्षेत्र में सरकार और कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं कार्य कर रही हैं लेकिन सामान्य बालक की शिक्षा का अंदाजा लगाना कोई मुश्किल कार्य नहीं है। इसलिए देश की सरकार और देश के हर एक जिम्मेदार नागरिक को अपने देश की शिक्षा व्यवस्था को आगे बढ़ाने में हर संभव प्रयास करना होगा, तभी देश का हर नागरिक पढ़ सकेगा और आगे बढ़ सकेगा।
- डा. नीरज भारद्वाज
निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
नागर जी: | लिखने से पहले तो मैंने पढ़ना शुरू किया था। आरंभ में कवियों को ही अधिक पढ़ता था। सनेही जी, अयोध्यासिंह उपाध्याय की कविताएँ ज्यादा पढ़ीं। छापे का अक्षर मेरा पहला मित्र था। घर में दो पत्रिकाएँ मँगाते थे मेरे पितामह। एक 'सरस्वती' और दूसरी 'गृहलक्ष्मी'। उस समय हमारे सामने प्रेमचंद का साहित्य था, कौशिक का था। आरंभ में बंकिम के उपन्यास पढ़े। शरतचंद्र को बाद में। प्रभातकुमार मुखोपाध्याय का कहानी संग्रह 'देशी और विलायती' १९३० के आसपास पढ़ा। उपन्यासों में बंकिम के उपन्यास १९३० में ही पढ़ डाले। 'आनंदमठ', 'देवी चौधरानी' और एक राजस्थानी थीम पर लिखा हुआ उपन्यास, उसी समय पढ़ा था। |
तिवारी जी: | क्या यही लेखक आपके लेखन के आदर्श रहे? |
नागर जी: | नहीं, कोई आदर्श नहीं। केवल आनंद था पढ़ने का। सबसे पहले कविता फूटी साइमन कमीशन के बहिष्कार के समय १९२८-१९२९ में। लाठीचार्ज हुआ था। इस अनुभव से ही पहली कविता फूटी- 'कब लाैं कहाैं लाठी खाय!' इसे ही लेखन का आरंभ मानिए। |
1. नाम लिखिए: (2)
1. ______ 1. ______
2. ______ 2. ______
2. लिखिए: (2)
- लेखक का पहला मित्र – ______
- लेखक की पहली कविता – ______
3. गद्यांश से ढूँढ़कर लिखिए: (2)
- प्रत्यययुक्त शब्द:
i. ______
ii. ______ - ऐसे दो शब्द जिनका वचन परिवर्तन नहीं होता:
- ______
- ______
4. 'पढ़ोगे तो बढ़ोगे' विषय पर २५ ते ३० शब्दों में अपने विचार लिखिए। (2)
1.
1. सरस्वती 2. गृहलक्ष्मी
1. आनंदमठ 2. देवी चौधरानी
2.
- छापे का अक्षर
- कब लाैं कहाैं लाठी खाय!
3. प्रत्यययुक्त शब्द:
- देशी
- विलायती
ऐसे दो शब्द जिनका वचन परिवर्तन नहीं होता:
- अक्षर
- मित्र
4. मित्रज्ञानार्जन का एकमेव साधन पढ़ना ही है। जब व्यक्ति तरह-तरह की ज्ञानवर्धक पुस्तकें पढ़ता है, तो उसके ज्ञान में भी वृद्धि होती है। ज्ञानी व्यक्ति अपनी समस्याओंका आसानी से हल खोज सकता है। ऐसे व्यक्ति जीवन में किसी भी परिस्थिती में परेशान नहीं होते हैं। वे अपने ज्ञान के सहारे हर अच्छी-बुरी परिस्थिति का सामना कर सकते हैं। ऐसे लोग अपने ज्ञान के सहारे जीवन में सफलता प्राप्त कर सुखी जीवन जीते हैं। जो व्यक्ति ज्ञानी होता है, वह न सिर्फ स्वयं बल्कि पूरे समाज के लिए लाभकारी होता है। इसीलिए ऐसा कहा जाता है कि पढ़ोगे तो बढ़ोगे।
Concept: गद्य (10th Standard)
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