राजा बलि की उत्पत्ति कैसे हुई - raaja bali kee utpatti kaise huee

विष्णु को बनाया रक्षक : राजा बलि ने कहा कि भगवान यदि आप मुझे पाताल लोक का राजा बना ही रहे हैं तो मुझे वरदान ‍दीजिए कि मेरा साम्राज्य शत्रुओं के प्रपंचों से बचा रहे और आप मेरे साथ रहें। अपने भक्त के अनुरोध पर भगवान विष्णु ने राजा बलि के निवास में रहने का संकल्प लिया।
पातालपुरी में राजा बलि के राज्य में आठों प्रहर भगवान विष्णु सशरीर उपस्थित रह उनकी रक्षा करने लगे और इस तरह बलि निश्चिंत होकर सोता था और संपूर्ण पातालपुरी में शुक्राचार्य के साथ रहकर एक नए धर्म राज्य की व्यवस्था संचालित करता था।

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महाबली संविभागी बळीराजा

बलि सप्तचिरजीवियों में से एक, पुराणप्रसिद्ध विष्णुभक्त, दानवीर, महान् योद्धा थे। विरोचनपुत्र असुरराज बलि सभी युद्ध कौशल में निपुण थे। वे वैरोचन नामक साम्राज्य के सम्राट थे जिसकी राजधानी महाबलिपुर थी। इन्हें परास्त करने के लिए विष्णु का वामनावतार हुआ था। इसने असुरगुरु शुक्राचार्य की प्रेरणा से देवों को विजित कर स्वर्ग लोक पर अधिकार कर लिया । समुद्रमंथन से प्राप्त रत्नों के लिए जब देवासुर संग्राम छिड़ा और असुरों एवं देवताओं के बीच युद्ध हुआ तो असुरों ने अपनी मायावी शक्तियों एवं का प्रयोग कर के देवताओं को युद्ध में परास्त किया। उस के बाद राजा बलि ने विश्वजित्‌ और शत अश्वमेध यज्ञों का संपादन कर तीनों लोकों पर अधिकार जमा लिया। कालांतर में जब यह अंतिम अश्वमेघ यज्ञ का समापन कर रहा था, तब दान के लिए वामन रूप में ब्राह्मण वेशधारी विष्णु उपस्थित हुए। शुक्राचार्य के सावधान करने पर भी बलि दान से विमुख न हुआ। वामन ने तीन पग भूमि दान में माँगी और संकल्प पूरा होते ही विशाल रूप धारण कर प्रथम दो पगों में पृथ्वी और स्वर्ग को नाप लिया। शेष दान के लिए बलि ने अपना मस्तक नपवा दिया। लोक मान्यता है कि पार्वती द्वारा शिव पर उछाले गए सात चावल सात रंग की बालू बनकर कन्याकुमारी के पास बिखर गए। 'ओणम' के अवसर पर राजा बलि केरल में प्रतिवर्ष अपनी प्यारी प्रजा को देखने आते हैं। राजा बलि का टीला मथुरा में है।[1]

अन्य बलि[संपादित करें]

बलि वैरोचन के अतिरिक्त बलिनाम धारी अनेक पौराणिक व्यक्तियों में कुछ ये हैं -

  • युधिष्ठिर की राजसभा का एक विद्वान्‌ ऋषि,
  • आंध्रवंशीय राजा,
  • शिवावतारों में से एक अवतार,
  • सुनपस्पुत्र - जो आनवदेश का राजा था।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "लोक-परम्परा में धरती-संबंधी अवधारणाएँ". टेक्नॉलॉजी डिपार्टमेंट ऑफ़ इंडियन गवर्नमेंट. मूल (एचटीएम) से 14 अक्तूबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 जुलाई 2007.

2) बलि का राज आये (पौराणिक उपन्यास) लेखक सुधीर मौर्य

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • पशु बलि
  • बलि (रामायण)

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • Biography of Bali Maharaj

पौराणिक कथाओं में राजा बलि का बहुत बार उल्लेख मिलता (Raja Bali Ki Katha) हैं जो ऋषि कश्यप के कुल से थे। राजा बलि के दादा का नाम प्रह्लाद तथा पिता का नाम विरोचन (Raja Bali Kaun The) था। वह महर्षि कश्यप तथा दैत्य हिरण्यकश्यप के कुल में जन्मा एक दैत्य राजा था। वह स्वभाव से अपने दादा के समान दानवीर था किंतु उसमे दैत्यों के गुण होने के कारण अहंकार तथा अधर्म भी (Raja Bali Story In Hindi) था। आज हम आपको दानवीर महाबलि के जन्म, यज्ञ, शक्ति तथा पराक्रम के बारे में बताएँगे।

प्रह्लाद के पौत्र राजा महाबलि का जीवन परिचय (Raja Bali Ki Kahani)

राजा बलि का जन्म (Raja Bali Ka Janm)

राजा बलि के माता-पिता का नाम विरोचन तथा विशालाक्षी था। उसके दादा प्रह्लाद थे जो भगवान विष्णु के प्रिय भक्त थे। अपने पिता विरोचन की देवराज इंद्र के द्वारा छल से हत्या कर देने के बाद राजा बलि तीनों लोकों के सम्राट बने थे। वह अत्यंत शक्तिशाली तथा पराक्रमी था तथा इसी के बल पर उसने तीनों लोकों पर अपना राज्य स्थापित कर लिया था। उसकी राजधानी दक्षिण भारत में केरल (Raja Bali Kahan Ke Raja The) थी।

राजा बलि का अहंकार (Raja Bali Ka Ahankar)

चूँकि उसका जन्म प्रह्लाद के कुल में हुआ था लेकिन दैत्य जाति होने के कारण उसके अंदर अहंकार ज्यादा था। वह दानवीर होने के साथ-साथ अधर्म रुपी कार्य भी करता था। हालाँकि वह भगवान विष्णु का भक्त भी था लेकिन देवताओं आदि से वह ईर्ष्या रखता था। इसी ईर्ष्या में उसने इंद्र को उनके सिंहासन से अपदस्थ कर दिया (Raja Bali Aur Indra Ka Yuddh) था।

उसने अपने गुरु शुक्राचार्य की सहायता से सौ अश्वमेघ यज्ञों का आयोजन करवाया था। 99वें यज्ञों का वह सफलतापूर्वक आयोजन कर चुका था और यदि वह सौवां यज्ञ भी निर्विघ्न आयोजित कर लेता तो इंद्र के पद पर वह हमेशा के लिए आसीन हो जाता।

उसके इस कृत्य से देवताओं में भय व्याप्त हो गया लेकिन किसी में भी उसे रोकने की शक्ति नही थी। स्वयं देवराज इंद्र असहाय अनुभव कर रहे थे। जब वह सौवां यज्ञ आयोजित करने जा रहा था तब इंद्र सभी देवताओं के साथ भगवान विष्णु से सहायता मांगने गए तथा धर्म की रक्षा की बात की।

भगवान विष्णु का वामन अवतार (Raja Bali Aur Vaman Ki Kahani)

जब भगवान विष्णु को बलि के द्वारा सौवां यज्ञ करने तथा उसके प्रभाव का ज्ञान हुआ तब उन्होंने धरती पर अवतार लेने का निश्चय किया। चूँकि राजा बलि उनके प्रिय भक्त प्रह्लाद का पौत्र था इसलिये वे उसका वध नही करना चाहते थे। इसलिये उन्होंने उसका अहंकार दूर कर इंद्र को फिर से स्वर्ग के आसन पर बिठाने के लिए एक योजना सोची।

इसके लिए भगवान विष्णु ने एक छोटे ब्राह्मण का अवतार लिया जिसे बटुक ब्राह्मण अवतार भी कहा जाता है। इसके बाद वे राजा बलि के यज्ञशाला में गए तथा कुछ मांगने की इच्छा प्रकट की। राजा बलि द्वार पर आये किसी ब्राह्मण को खाली हाथ वापस नही भेजते थे, इसलिये वह यज्ञ शुरू करने से पहले ब्राह्मण को दान देने की इच्छा से बाहर आ (Raja Bali Ki Pariksha) गया।

भगवान विष्णु ने वामन अवतार में उससे तीन पग धरती (Raja Bali Ka Daan) मांगी जिस पर राजा बलि को आश्चर्य हुआ। गुरु शुक्राचार्य (Raja Bali Ke Guru Kaun The) ने उसे रोकने का प्रयास किया लेकिन राजा बलि ने अपने दानवीर व अहंकारी स्वभाव के कारण ब्राह्मण को तीन पग धरती देने का संकल्प ले लिया।

इसके पश्चात भगवान वामन ने अपना अवतार आकाश तक बड़ा कर लिया जो संपूर्ण लोकों में फैल गया। उन्होंने अपने एक पग में संपूर्ण पृथ्वी तथा दूसरे पग में स्वर्ग लोक नाप लिया। तीसरे पग को रखने की अब कोई जगह नही बची थी। यह देखकर राजा बलि का अहंकार नष्ट हो (Raja Bali Ka Ant Kaise Hua) गया तथा उसने उनका तीसरा पग रखने के लिए अपना मस्तक आगे कर दिया।

भगवान विष्णु ने तीसरा पग रखकर उसका मान भंग किया तथा उसे पाताल लोक भेज (Raja Bali In Hindi) दिया। इस प्रकार राजा बलि के हाथों से स्वर्ग तथा पृथ्वी का अधिकार छीन गया और अब वह पाताल लोक में रहने लगा।

राजा बलि व ओणम (King Bali And Onam)

मान्यता हैं कि वर्ष में एक बार राजा बलि अपने प्रजा से मिलने अवश्य आते हैं। इस अवसर पर केरल के लोग प्रसिद्ध ओणम का त्यौहार मनाते है तथा राजा बलि का हर्षोल्लास के साथ स्वागत करते है।

राजा बलि कौन सी जाति के थे?

राजा बलि का अहंकार (Raja Bali Ka Ahankar) चूँकि उसका जन्म प्रह्लाद के कुल में हुआ था लेकिन दैत्य जाति होने के कारण उसके अंदर अहंकार ज्यादा था।

राजा बलि का पिता कौन है?

विरोचन के पुत्र थे बलि हिरण्यकश्यप के 4 पुत्र थे। जोकि क्रमशः अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद। और प्रह्लाद के कुल में विरोचन के पुत्र राजा बलि का जन्म हुआ।

राजा बलि पूर्व जन्म में क्या थे?

राजा बलि के पूर्व जन्म की कथा : पौराणिक कथाओं अनुसार राजा बलि अपने पूर्व जन्म में एक जुआरी थे। एक जुए से उन्हें कुछ धन मिला। उस धन से इन्होंने अपनी प्रिय वेश्या के लिए एक हार खरीदा।

राजा बलि कहाँ के राजा थे?

विरोचनपुत्र असुरराज बलि सभी युद्ध कौशल में निपुण थे। वे वैरोचन नामक साम्राज्य के सम्राट थे जिसकी राजधानी महाबलिपुर थी। इन्हें परास्त करने के लिए विष्णु का वामनावतार हुआ था। इसने असुरगुरु शुक्राचार्य की प्रेरणा से देवों को विजित कर स्वर्ग लोक पर अधिकार कर लिया ।

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