इस पेज पर आप रस से संबंधित समस्त जानकारी विस्तार से पढ़ेंगे। पिछली पोस्ट में हमने वाक्य की परिभाषा शेयर की है तो उस पोस्ट को भी पढ़े। चलिए आज हम रस की परिभाषा, अंग, प्रकार और रस के स्थायी भाव को पढ़ते और समझते हैं। काव्य को पढ़ने
या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती हैं उसे रस कहाँ जाता हैं। रस का शब्दिक अर्थ “आनंद” होता हैं। रस को काव्य की आत्मा कहा जाता हैं। संस्कृत में कहा गया हैं कि “रसात्मकम् वाक्यम् काव्यम्” अर्थात् रसयुक्त वाक्य ही काव्य हैं। रस को इंग्लिश मे Sentiments कहा जाता है। रस की उत्पत्ति को सबसे पहले परिभाषित करने का श्रेय भरतमुनि को जाता
हैं। “विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती हैं।” काव्य शास्त्र के मर्मज्ञ विद्वानों ने काव्य की आत्मा को ही रस माना हैं। भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में रस के आठ प्रकारों का वर्णन किया हैं। रस, छंद और
अलंकार काव्य के अंग है। रस के चार अंग होते है। स्थाई भाव उसे कहते है जो मन में स्थाई रूप से स्थापित रहते हैं, इन्हें किसी अन्य भाव के द्वारा नष्ट नहीं किया जा सकता हैं। प्रत्येक रस का एक स्थाई भाव होता है। अर्थात कुल रसो की संख्या 9 है तो स्थाई भाव की
संख्या भी 9 होगी। मुख्य रूप से रसो की संख्या 9 मानी गई है जिसमे रसो का राजा शृंगार रस को माना गया। भरतमुनि के अनुसार रसो की संख्या 8 मानी गई थी उनके काव्य नाट्य शास्त्र में शांत रस को स्थान नहीं दिया गया। किन्तु बाद में हिंदी आचार्य द्वारा वात्सल्य और भागवत रस को मान्यता दी गई जिससे रसो की संख्या 9 की जगह 11 हो गई। रसों की संख्या 9 से 11 होने पर स्थाई भाव की संख्या भी
9 से 11 हो जायेगीं। काव्य में किसी वस्तु या विषय के वर्णन को पड़ने से जो भाव उपन्न होते है उन्हें विभाव कहते हैं। विभाव दो प्रकार के होते हैं। (a). आलंबन विभाव :- जिसका सहारा पा कर मन में स्थाई भाव जागृतित हो उन्हें आलंबन विभाव कहते हैं। जैसे :- नायक नायिका आलंबन को दो भागो में बाटा गया है। जैसे :- सुदामा की दीनदशा कृष्ण के मन में शोक भाव को जगाती है तो कृष्ण आश्रयालंबन विभाव और सुदामा को विषयालंबन विभाव कहा जाएगा। (b). उद्दीपन विभाव :- जिन वस्तुओ और परिस्तिथियों को देख कर जो भाव उद्दीप्त होने लगते है उन्हें उद्दीपन विभाव कहते हैं। जैसे :- युद्ध के बाजे, गर्जना – तर्जना, कोकिल – कुंजन, नायका – नायिका आदि। मन के भाव उत्पन्न करने वाली शारीरिक क्रियाएँ अनुभाव कहलाती है। या स्थायी भाव उत्पन्न होने के बाद जो भाव उत्पन्न होते है उन्हें अनुभाव कहते है। जैसे :- पसीने से लथपथ होना, रोमटे खड़े होना, काँपना, भय उत्पन्न होना, हक्का बक्का होना। अनुभाव 8 प्रकार के होते हैं। जैसे :- रस की परिभाषा
भरतमुनि द्वारा रस की परिभाषा
रस के अंग
1. स्थायी भाव
2. विभाव
3. अनुभाव
कंकण के नग में देख राम की
छाया,
अपलक रोमांचित बैठी थी नाव जाया।
अनुभाव के चार भेद होते हैं।
- कायिक
- मानसिक
- वाचिक
- आहार्य
4. संचारी भाव
मन में स्थाई भाव के साथ संचरण (आने जाने) करने वाले भाव जो कुछ समय बाद समाप्त हो जाते है तो उन्हें संचारी भाव कहते हैं।
संचारी भाव कि संख्या 33 हैं। यह मन में स्थाई रूप से नहीं रहते हैं।
हर्ष, विषाद, श्रास, लज्जा, ग्लानि, चिंता, शंका, असूया, अमर्ष, मोह, गर्व, उत्सुकता, उग्रता, चपलता, दीनता, जड़ता, आवेग, निर्वेद, धृति, मति, बिबोध, वितर्क, श्रम, आलस्य, निद्रा, स्वप्न, स्मृति, मद, उन्माद, अवहितथा अपस्मार व्याधि मरण।
उदाहरण :- पत्नी के लिए नायक का प्रेम देखकर नायिका के मन में जो ईर्ष्या का भाव होगा वह संचारी भाव हैं।
रस के प्रकार और स्थायी भाव
रस 11 प्रकार के होते है और स्थाई भाव भी 11 ही होते हैं।
श्रृंगार रस | रति |
हास्य रस | हास |
करुण रस | शोक |
वीर रस | उत्साह |
अद्भुत रस | आश्चर्य , विस्मय |
भयानक रस | भय |
रौद्र रस | क्रोध |
वीभत्स रस | जुगुप्सा |
शांत रस | निर्वेद या निर्वृती |
वात्सल्य रस | रति |
भक्ति रस | अनुराग |
1. श्रृंगार रस
जहां नायक और नायिका की अथवा महिला पुरुष के प्रेम पूर्वक श्रेष्ठाओं क्रिया कलापों का श्रेष्ठाक वर्णन होता हैं वहां श्रृंगार रस होता हैं।
श्रृंगार रस का स्थाई भाव – रति होता हैं।
उदाहरण :-
राम को रूप निहारत जानकी,
कंगन के नग की परछाई।
याते सवै सुध भूल गई,
कर टेक रही पल
टारत नाही।।
2. हास्य रस
किसी वस्तु या व्यक्ति की घटनाओं और भावनाओं से संबंधित काव्य को पढ़ने से उत्पन्न रस को हास्य रस कहते हैं।
हास्य रस का स्थाई भाव – हसी होता हैं।
उदाहरण :-
इस दौड़-धूप में क्या रखा हैं।
आराम करो आराम करो।
आराम जिंदगी की पूजा हैं।।
इससे न तपेदिक होती।
आराम शुधा की एक बूंद।
तन का दुबलापन खो
देती।।
3. करुण रस
इसमें किसी प्रकार की दुख से संबंधित अनुभूति से प्ररेति काव्य रचना को पढ़ने से करुण रस उत्पन्न होता हैं।
करुण रस का स्थाई भाव – शोक होता हैं।
उदाहरण :-
शोक विकल सब रोवहि रानी।
रूपु सीलु बलू तेजु बखानी।।
करहि विलाप अनेक प्रकारा।
परिहि चूमि तल बारहि बारा।।
4. वीर रस
जब काव्य में उमंग, उत्साह और पराक्रम से संबंधित भाव का उल्लेख होता हैं तब वहां वीर रस की उत्पत्ति होती हैं।
वीर रस का स्थाई भाव – उत्साह होता हैं।
उदाहरण :-
मैं सत्य कहता हूं, सके सुकुमार न मानो मुझे।
यमराज से भी युद्व को, प्रस्तुत सदा मानो मुझे।।
5. अद्भुत रस
जहां पर किसी आलौरिक क्रिया कलाप आश्चर्य चकित वस्तुओं को देखकर या उन से सम्बंधित घटनाओं को देखकर मन में जो भाव उत्पन्न होते हैं वहाँ पर अद्भुत रस होता हैं।
अदभुत रस का स्थाई भाव – आश्चर्य होता हैं।
उदाहरण :-
बिनू पद चलै सुने बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै विधि नाना।।
6. भयानक रस
जहां भयानक वस्तुओं को देखकर या भय उत्पन्न करने वाले दृश्यों/घटनाओं को देखकर मन में जो भाव उत्पन्न होते हैं वहां पर भयानक रस होता हैं।
भयानक रस का स्थाई भाव – भय होता हैं।
उदाहरण :-
उधर गरजती सिंधु लहरिया कुटिल काल के जालो सी।
चली आ रही फेन उंगलिया फन फैलाए ब्यालो सी।।
7. रौद्र रस
जिस काव्य रचना को पढ़कर या सुनकर हृदय में क्रोध के भाव उत्पन्न होते हैं वहां पर रौद्र रस होता हैं। इस प्रकार की रचनाओं में उत्प्रेरण सम्बन्धी विवरण होता हैं।
रौद्र रस का स्थाई भाव – क्रोध होता हैं।
उदाहरण :-
श्री कृष्ण के सुन वचन, अर्जुन क्रोध से जलने लगे
सब शील अपना भूल कर, करतल युगल मलने लगे।।
8. वीभत्स रस
जिस काव्य रचना में घृणात्तम वस्तु या घटनाओं का उल्लेख हो वहां पर वीभत्स रस होता हैं।
वीभत्स रस का स्थाई भाव – घ्रणा होता हैं।
उदाहरण :-
सिर पर बैठियों काक, आँख दोऊ खात निकारत।
खींचत जीभही सियार अति, आनुदित ऊर धारत।।
9. शांत रस
वह काव्य रचना जिसमें श्रोता के मन में निर्वेद के भाव उत्पन्न होते हैं उसे शांत रस कहते हैं।
शांत रस का स्थाई भाव – निर्वेद होता हैं।
उदाहरण :-
मन रे तन कागज का पुतला,
लगे बुद विनसि जाए झण में,
गरब करै क्यों इतना।
10. वात्सल्य रस
स्नेह जहां पर वाल्य क्रीड़ाओं से संबंधित एवं उनसे स्नेह के भाव उत्पन्न हो वहां पर वात्सल्य रस उत्पन्न होता हैं।
वात्सल्य रस का स्थाई भाव – स्नेह होता हैं।
उदाहरण :-
किलकत कान्ह घुटरुवन आवत।
मनिमय कनक नन्द के आँगन।
विम्ब फकरिवे घावत।।
11. भक्ति रस
जिस काव्य रचना में ईश्वर के प्रति भक्ति विश्वास के भाव उत्पन्न हो वहां पर भक्ति रस होता हैं।
भक्ति रस का स्थाई भाव – वैराग्य/अनुराग होता हैं।
उदाहरण :-
राम जपु, राम जपु, राम जपु, वावरे।
घोर भव नीर निधि, नाम निज नाव रे।।
रस से संबंधित प्रश्न उत्तर
Q.1 रस के अंग कितने प्रकार के होते है?
A. 3
B. 5
C. 9
D. 4
Ans. 4
Q.2 रस के स्थाई भाव कितने प्रकार के होते
है?
A. 4
B. 9
C. 11
D. 8
Ans. 11
Q.3 विभाव को कितने भागो में बाटा गया है?
A. 9
B. 2
C. 10
D. 8
Ans. 2
Q.4 रस कितने प्रकार के होते है?
A. 9
B. 8
C. 11
D. 6
Ans. 11
Q.5 अनुभाव की संख्या कितनी होती है?
A. 33
B. 11
C. 9
D. 8
Ans. 8
Q.6 संचारी भाव की संख्या कितनी है?
A. 11
B. 33
C. 30
D. 32
Ans. 33
Q.7 किसी अन्य भाव द्वारा नष्ट न किये जाने
वाले भाव को कौन सा भाव कहते है?
A. अनुभाव
B. स्थायी भाव
C. संचारी भाव
D. विभाव
Ans. स्थायी भाव
Q.8 भरतमुनि के रस सूत्र में निम्नलिखित में से किसका उल्लेख नहीं है?
A. अनुभाव
B. विभाव
C. संचारी भाव
D. शांत भाव
Ans. शांत भाव
Q.9 हास्य रस का स्थायी भाव क्या है?
A. करुण
B. रति
C.शोक
D. हास
Ans. हास
Q.10 वीर रस का स्थायी भाव क्या है?
A. उत्साह
B. जुगुप्सा
C. क्रोध
D. अनुराग
Ans. उत्साह
Q.11 अनुराग
किस रस का स्थायी भाव है?
A. रौद्र
B. वात्सल्य
C. करूण
D. भक्ति भाव
Ans. भक्ति भाव
Q.12 भरतमुनि के अनुसार रसो की संख्या हैं?
A. 8
B. 9
C. 10
D. 11
Ans. 8
Q.13 हिंदी आचार्य द्वारा कितने रसो को मान्यता दी गई?
A. एक
B. दो
C. तीन
D. चार
Ans. दो
Q.14 हिंदी आचार्य द्वारा कौन कौन से दो रसो को मान्यता दी गई?
A. शांत और रौद्र
B. श्रंगार और हास्य
C. वात्सल्य और भागवत
D. वात्सल्य और वीभत्स
Ans. वात्सल्य और भागवत
Q.15 करूणा रस का स्थायी भाव क्या है?
A. रति
B. शोक
C. हास
D. अनुराग
Ans. शोक
Q.16 भक्ति रस का स्थायी भाव बताये?
A. भय
B. रति
C. अनुराग
D. आश्चर्य
Ans. अनुराग
Q.17 शोक कौन से रस का स्थायी भाव है?
A. भयानक रस
B. अद्भुद रस
C. शांत रस
D. करूण रस
Ans. करुण रस
Q.18 हिंदी साहित्य का दसवा रस कौन सा है?
A. भयानक रस
B. करुण रस
C. वात्सल्य रस
D. भक्ति रस
Ans. वातसल्य रस
Q.19 शांत रस का स्थायी
भाव क्या है?
A. आश्चर्य
B. शोक
C. रति
D. निर्वेद
Ans. निर्वेद
Q.20 अनुभाव के कितने भेद है?
A.एक
B. चार
C. दो
D. तीन
Ans. चार
उम्मीद हैं आपको रस की जानकारी पसंद आयी होगीं।
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