रूस में कौन सी जाती रहती है - roos mein kaun see jaatee rahatee hai

सोवियत संघ के टूट जाने के बाद से रूस साम्यवाद की छाया से बाहर निकलने और दोबारा एक मज़बूत राष्ट्र बनने की कोशिश में है. लेकिन प्रजातंत्र और खुली अर्थव्यवस्था को गले लगाने का उसका फ़ैसला अब तक पूरी तरह सफल नहीं रहा है.

शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो रूस के आकार और इसकी विविधता से प्रभावित न हो. लगभग 1.7 करोड़ वर्ग किलोमीटर आकार का यह देश उत्तरी हिस्सा बहुत ठंडा है वहीं इसके दक्षिणी हिस्से गर्म रहते हैं.

अस्सी के दशक में साम्यवाद की समाप्ति के दस वर्ष बाद तक रूस को आर्थिक संकट झेलना पडा. अगस्त 1998 में रूसी मुद्रा रूबल में भारी गिरावट देखी गई लेकिन उसके बाद से अर्थव्यवस्था काफ़ी सुधरी है.

जनसंख्या – 14.32 करोड़ (संयुक्त राष्ट्र, 2003)

मुख्य धर्म – ईसाई, इस्लाम

औसत आयु – 61 वर्ष (पुरुष), 73 वर्ष (महिलाएँ) (संयुक्त राष्ट्र)

मुद्रा – एक रूबल – 100 कोपेक्स

निर्यात की मुख्य वस्तुएँ – तेल और तेल उत्पाद, गैस, लकड़ी और लकड़ी से बनी चीज़ें, हथियार और सेना का अन्य साज़ो-सामान

औसत आय – 1,750 अमरीकी डॉलर (विश्व बैंक, 2001)

अंतरराष्ट्रीय डायलिंग कोड - +7

नब्बे के दशक में निजीकरण का दौर शुरू हुआ जिसने कुछ लोगों को ढेर सारा पैसा कमाने का मौक़ा दिया. 'ओलीगार्क' कहे जाने वाले इन पूंजीपतियों ने गैस और तेल कंपनियों के अलावा मीडिया कंपनियों को ख़रीद कर करोड़ों बनाए.

जानकारों का कहना है कि बरिस येल्तसिन ने इन पूंजीपतियों का प्रभाव राजनीतिक क्षेत्र में आने दिया लेकिन व्लादिमीर पुतिन ने राष्ट्रपति बनते ही इन्हें किनारे लगाना शुरू कर दिया.

कुछ पूंजीपतियों के ख़िलाफ़ आपराधिक मामले शुरू कर दिए गए और कुछ अन्य को रूस छोड़ कर भागना पडा.

रूस में आबादी का 80 प्रतिशत हिस्सा रूसियों का है और ये लोग इसाई धर्म का पालन करते हैं. इनके अलावा एक बड़ी संख्या मुस्लिम और बशकीर लोगों की भी है. मुस्लिम आबादी ज़्यादातर वोल्गा तातार क्षेत्र में रहती है जबकि बशकीर उत्तरी कॉकसस क्षेत्र में रहते हैं.

चेचन समस्या

चेचन्या में अलगाववाद की समस्या रूसी प्रसाशन के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द है. लगभग एक दशक से जारी इस समस्या में अब तक हज़ारों लोग मारे जा चुके हैं. हालाँकि 1994 से चेचन्या में शुरू हुए रूसी सैनिक अभियान को पश्चिमी देशों की आलोचना झेलनी पड़ी है लेकिन ग्यारह सितंबर के हमलों के बाद इसमें थोड़ी कमी दिखी है.

न्यूयॉर्क और वॉशिंगटन पर हुए इन हमलों के बाद रूस ने अमरीका को अपना समर्थन दिया था जिसका असर नेटो-रूस संबंधों पर भी पडा है. मई 2002 में नेटों देशों ने रूस को संगठन में बराबरी का दर्जा देने का फ़ैसला किया.

लेकिन इराक़ पर अमरीकी सैनिक अभियान को लेकर अमरीका और रूस के संबंधों में थोड़ी खटास आ गई. फ़्रांस और जर्मनी की तरह रूस ने भी अमरीका का साथ नहीं दिया.

इराक़ संकट के शांतिपूर्ण समाधान की रूसी कोशिश अमरीका को साफ़ संदेश था कि रूस मुख्य अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर अमरीका से अलग रूख अपनाने से नहीं कतराएगा.

नेता

व्लादिमीर पुतिन ने अपने कामकाजी जीवन की शुरूआत रूसी ख़ुफ़िया एजेंसी केजीबी से की थी.

वर्ष 1990 में उन्होंने सेंट पीटर्सबर्ग प्रशासन के साथ काम करना शुरू किया और फिर 1996 में वे मॉस्को चले आए. अगस्त 1999 तक वे रूस के प्रधानमंत्री बन चुके थे.

प्रधानमंत्री – मिखाइल कास्यानोव

विदेश मंत्री – इगोर इवानोव

आंतरिक मामलों के मंत्री – बरिस ग्रिज़लोव

रक्षा मंत्री – सर्गेइ इवानोव

वित्त मंत्री – एलेक्सई कुदरिन

1999 में तत्कालीन राष्ट्रपति बरिस येल्तसिन ने पुतिन को कार्यवाहक राष्ट्रपति मनोनीत कर दिया. येल्तसिन ने कहा कि पुतिन ही वो व्यक्ति हैं जो “रूस को फिर ताकतवर देश बनाने वालों को संगठित कर सकते हैं”.

मई 2000 में राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव को पुतिन ने भारी बहुमत से जीता. चेचन विद्रोहियों से सख़्ती से निबटने का उनका निश्चय लोगों को बहुत पसंद आया.

उन्होंने रूस को एक आधुनिक और मज़बूत राष्ट्र बनाने की बात कही और सरकारी बजट को संतुलित करने के अलावा देश में महंगाई की बढ़ती दर पर भी लगाम लगाई.

ग्यारह सितंबर के हमलों के तुरंत बाद राष्ट्रपति पुतिन ने अमरीका को अपना पूरा समर्थन देने की वादा किया. लेकिन इराक़ में सैनिक अभियान पर उन्होंने अमरीका का विरोध किया और जर्मनी और फ़्रांस की तरह ऐसे अभियान के लिए संयुक्त राष्ट्र के समर्थन पर ज़ोर दिया.

समाचार माध्यम

पिछले कुछ वर्षों में रूसी प्रशासन ने देश के मुख्य टीवी चैनलों पर अपनी पकड़ मज़बूत की है. चैनल वन, आरटीआर और एनटीवी ऐसे कुछ चैनल हैं जिन्होंने इस बदलाव को महसूस किया है.

रोसिस्काया गज़ेटा – सरकारी समाचारपत्र

नेज़ाविसिमाया गज़ेटा – निजी दैनिक

सोवेतस्काया रोसिया – कम्युनिस्ट समाचारपत्र

आर्गुमेंती ए फ़क्ते – साप्ताहिक

द मॉस्को टाइम्स – अंग्रेज़ी भाषा का समाचार-पत्र

आलोचकों का कहना है कि सरकार के इस प्रयास का सीधा असर समाचारों की निष्पक्षता पर पड़ा है.

गैज़प्रॉम और लुकऑयल जैसी सरकारी कंपनियों और अदालत में लाए गए मामलों की मदद से सरकार ने 2001 में एनटीवी चैनल पर अपना नियंत्रण किया और फिर जनवरी 2002 में टीवी-6 को बंद कर दिया.

समाचार-पत्र मॉस्कोवस्की कोमसोमोलेत्स ने दिसंबर 2001 में अपने एक संपादकीय में लिखा, “रूस के सभी टीवी चैनल एक जैसे लगते हैं. सभी पर राष्ट्रपति पुतिन के नेतृत्व में रूस की उपलब्धियों की चर्चा नज़र आती है.”

सरकार के इस कड़े रुख का एक बड़ा कारण चेचन्या में जारी लड़ाई को माना जाता है. चेचन्या में काम कर रहे कई पत्रकार मारे जा चुके हैं और कुछ अन्य का पता नहीं है.

यूक्रेन की 4.49 करोड़ की आबादी में मुसलमानों की आबादी एक से दो फ़ीसदी मानी जाती है. यहाँ की बहुसंख्यक आबादी ईसाई है. पूर्वी यूक्रेन पर रूस सैन्य कार्रवाई शुरू कर दी है.

रूस की इस कार्रवाई को लेकर पश्चिम के देश ग़ुस्से में हैं और अब तक कई प्रतिबंधों की घोषणा कर चुके हैं. जापान और ऑस्ट्रेलिया भी पश्चिम के देशों के साथ खड़े हैं. इनके अलावा बाक़ी के देश अपने हितों को ध्यान में रखते हुए संतुलित बयान दे रहे हैं.

आइए एक नज़र डालते हैं कि प्रमुख इस्लामिक देश या मुस्लिम बहुल देश यूक्रेन को लेकर छिड़े संघर्ष में किसके साथ हैं-

23 फ़रवरी को संयुक्त संयुक्त राष्ट्र की एक आम सभा में सऊदी अरब ने रूस की निंदा किए बिना राजनयिक समाधान की बात कही थी. सऊदी अरब ने दोनों पक्षों से सैन्य तनाव कम करने की अपील की थी. कहा जा रहा है कि मीडिया का पूरा ध्यान यूक्रेन पर है लेकिन इसकी वजह बढ़ रही गैस की क़ीमत की बात कम हो रही है.

गैस की क़ीमत यूक्रेन संकट के कारण पिछले सात सालों में सबसे ज़्यादा हो गई है. हाल के वर्षों में रूस और सऊदी की साझेदारी में नाटकीय रूप से बढ़ोतरी हुई है. रूस और सऊदी अरब दोनों दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादक देश हैं और निर्यात के फ़ैसलों पर इनका नियंत्रण होता है.

अमेरिका और सऊदी अरब के रिश्ते पहले जैसे नहीं रहे हैं. इसका संकेत इस महीने भी मिला था, जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने सऊदी अरब से तेल का उत्पादन बढ़ाने का आग्रह किया था. अगर सऊदी ऐसा करता तो न केवल महंगाई और गैस की क़ीमत कम करने में मदद मिलती बल्कि इससे रूस के फायदे को भी काबू में किया जाता. लेकिन सऊदी अरब ने इससे इनकार कर दिया था.

कहा जाता है कि क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की बढ़ती ताक़त का एक नतीजा यह भी हुआ है कि सऊदी और रूस के संबंध और गहरे हुए हैं. 2015 की गर्मी पुतिन और क्राउन प्रिंस की पहली बैठक हुई थी. इसके बाद से दोनों नेताओं की कई बैठकें हुई हैं. बाइडन जब राष्ट्रपति बने तो उन्होंने कहा था कि वह अपने समकक्षों से ही मिलेंगे. क्राउन प्रिंस सऊदी अरब के रक्षा मंत्री हैं और उनसे अमेरिका के रक्षा मंत्री ही मिलेंगे.

द इंटरसेप्ट से एक रिपोर्ट में ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन में सीनियर फेलो ब्रूस राइडेल कहते हैं, ''पुतिन और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस में बहुत कुछ समानता है. घर के भीतर या बाहर अपने विरोधियों को दोनों बर्दाश्त नहीं करते हैं. दोनों पड़ोसी देशों में हमले करते हैं और तेल की क़ीमत जितना संभव हो सके ऊंची रखने की कोशिश करते हैं. यूक्रेन पर हमले के बाद सऊदी क्राउन प्रिंस के लिए सबसे अच्छा मौक़ा होगा. क्योंकि तेल की क़ीमत सातवें आसमान पर पहुँच जाएगी.

कई लोग सऊदी को लेकर यह सवाल भी उठा रहे हैं कि वह यूक्रेन पर बोलने का अधिकार नहीं रखता है क्योंकि यमन कई सालों से सैन्य कार्रवाई कर रहा है. बुधवार को भारत के जाने-माने गीतकार जावेद अख़्तर ने ट्वीट कर कहा था कि पश्चिम की ताक़ते सऊदी अरब की यमन में बमबारी पर क्यों चुप रहती हैं?

तुर्की संवैधानिक रूप से इस्लामिक देश नहीं है लेकिन यहां की बहुसंख्यक आबादी मुसलमान है. तुर्की नेटो का भी सदस्य है. नेटो के सदस्य होने के नाते वह यूक्रेन पर रूसी हमले के साथ नहीं है लेकिन तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन जब अमेरिका से नाराज़ होते हैं तो पुतिन के पास ही जाते हैं. रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम लेने कारण तुर्की पर अमेरिका ने प्रतिबंध भी लगाया था. बाइडन के आने के बाद से तुर्की का संबंध अमेरिका से ख़राब हुआ है.

तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने बुधवार को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से फ़ोन पर बात की. तुर्की के राष्ट्रपति के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से इस बातचीत को लेकर एक बयान जारी किया गया है.

बयान में कहा गया है, इस बातचीत में रूस-यूक्रेन के मुद्दे पर बात हुई. राष्ट्रपति अर्दोआन ने कहा कि उन्होंने रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ संवाद को हमेशा से अहमियत दी है, जिसके कई अच्छे नतीजे भी मिले और वह आगे भी संवाद जारी रखेंगे.

तुर्की ने ज़ोर देते हुए कहा कि यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करने वाले क़दमों का वह समर्थन नहीं करता है और उसका ये रुख़ सिद्धांतों पर आधारित है. अर्दोआन ने मिन्स्क समझौते के तहत समस्या के समाधान पर ज़ोर दिया.

अर्दोआन ने मौजूदा हालात को जटिल बताते हुए कहा कि सैन्य संघर्ष से किसी को भी फ़ायदा नहीं होगा इसीलिए तुर्की कूटनीतिक तरीक़े से समाधान निकालने के पक्ष में है. तुर्की तनाव कम करने में भूमिका निभाने के लिए भी तैयार है. अर्दोआन ने कहा कि नेटो में भी तुर्की अपनी सकारात्मक भूमिका निभाना जारी रखेगा. तुर्की के राष्ट्रपति ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन को उच्च स्तरीय सहयोग परिषद की बैठक में शामिल होने के लिए भी आमंत्रित किया है.

ईरान शिया मुस्लिम बहुल देश है. ईरान का संबंध अमेरिका से 1979 में इस्लामिक क्रांति से ही ख़राब है. रूस से ईरान के अच्छे संबंध रहे हैं.

यूक्रेन संकट को लेकर ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सईद ख़ातिबज़ादेह ने मंगलवार को कहा था, ''इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान सभी पक्षों से धैर्य की अपेक्षा करता है. किसी भी तरह के तनाव बढ़ाने वाले क़दम से परहेज़ करना चाहिए. सभी पक्ष संवाद के ज़रिए अपने मतभेदों को सुलझा सकते हैं. दुर्भाग्य से अमेरिका ने नेटो के हस्तक्षेप और उकसाऊ क़दम से इलाक़े की स्थिति को जटिल बना दिया है.

हालांकि रूस के साथ ईरान के संबंध ऐतिहासिक रूप से मधुर नहीं रहे हैं. 1943 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान तेहरान में मित्र देशों के नेता स्टालिन, चर्चिल और फ़्रैंकलीन डी रूज़वेल्ट की बैठक हुई थी. उस वक़्त ईरान पर रूस और ब्रिटेन का कब्ज़ा था. तेहरान कॉन्फ़्रेंस में ही मित्र देश दूसरे मोर्चे को लेकर नॉरमंडी पर आक्रमण के लिए सहमत हुए थे. 1941 में रूस और ब्रिटेन ने तटस्थ ईरान पर हमला किया था ताकि तेल की आपूर्ति बाधित ना हो और रूसी आपूर्ति जारी रहे.

पाकिस्तान दुनिया का एकमात्र इस्लामिक देश है, जो परमाणु शक्ति संपन्न है. शीत युद्ध के दौरान पाकिस्तान अमेरिकी खेमे में था लेकिन अब हालात बदल रहे हैं. सबसे दिलचस्प है कि पुतिन ने यूक्रेन पर हमले का आदेश दिया है और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान रूस के दौर पर पहुँचे हैं.

सोशल मीडिया पर कई विश्लेषकों का कहना है कि इमरान ख़ान ने दौरे का बिल्कुल ग़लत समय चुना है. कहा जा रहा है कि इमरान ख़ान ने दौरे का जो वक़्त चुना है उससे संदेश जाएगा कि पाकिस्तान यूक्रेन संकट में अमेरिकी के नेतृत्व वाले गठबंधन के साथ नहीं बल्कि रूस के साथ खड़ा है.

पाकिस्तान के अंग्रेज़ी अख़बार डॉन के अनुसार, वहाँ के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ़ ने इमरान ख़ान के दौरे के समय को लेकर लगाई जा रही अटकलों को ख़ारिज कर दिया है. युसूफ़ ने कहा है, ''हाँ वैश्विक तनाव है लेकिन हमारा दौरा द्विपक्षीय है और यह चीन के दौरे की तरह ही है. हमारे दौरे में आर्थिक मुद्दे शामिल हैं. हम किसी एक खेमे में नहीं हैं.''

संयुक्त अरब अमीरात ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यूक्रेन के मुद्दे को कूटनीतिक वार्ता से सुलझाने की अपील की है. यूएई ने यह नहीं कहा है कि रूस ने यूक्रेन की संप्रभुता का उल्लंघन किया है. यूएई की सरकारी न्यूज़ एजेंसी WAM के अनुसार, रूस और यूएई के विदेश मंत्री ने बुधवार को फ़ोन पर बात की और अपने संबंधों को और मज़बूत करने पर ज़ोर दिया. दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच संबंध मज़बूत करने की बात यूक्रेन संकट के दौरान हुई है.

रूस में सबसे ज्यादा कौन सी कास्ट है?

२०१० की जनगणना के अनुसार रूस के ८१% लोग रूसी जाति के थे।

रूस में रहने वाले लोगों का धर्म क्या है?

रूस में धर्म ईसाई धर्म के साथ विविधतापूर्ण है, खासतौर पर रूढ़िवादी, सबसे व्यापक रूप से सम्मानित विश्वास होने के नाते, लेकिन अधार्मिक लोगों, मुसलमानों और पगानों के महत्वपूर्ण अल्पसंख्यकों के साथ।

क्या रूस एक मुस्लिम देश है?

रूस में इस्लाम धर्म रूस में इस्लाम दूसरा सबसे व्यापक धर्म है। 2012 में किए गए एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण के अनुसार, रूस में मुसलमानों की संख्या कुल जनसंख्या का 9,400,000 या 6.5% थी।

रूस में कितने हिंदू रहते हैं?

वर्ष २०१० की जनगणना के अनुसार रूस में लगभग ०.१ प्रतिशत लोग हिन्दू धर्म के अनुयायी हैं

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