राष्ट्र निर्माण में युवा की भूमिका पर निबंध | Essays on Role of Youth in Nation Building in Hindi | देश के नव-निर्माण में युवा वर्ग की भूमिका
देश का नव-निर्माण में युवा वर्ग की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। यह अकारण नहीं है। युवा जहां अथाह ऊर्जा के स्वामी होते हैं, वहीं वे परिश्रमी और उत्साही भी होते हैं। बस, जरूरत उन्हें सही दिशा देने की होती है। सही दिशा मिलते ही वे असंभव को भी संभव बना सकते हैं। युवा शक्ति का सकारात्मक इस्तेमाल देश की काया पलट सकता है, नव-चेतना और नव-निर्माण का सूत्रपात कर सकता है। इसीलिए युवा-शक्ति को किसी भी राष्ट्र की पूंजी के रूप में अभिहित किया जाता है।
किसी देश की मौलिक प्रगति का निर्धारण, उसकी सुशिक्षित और शिक्षित युवा शक्ति ही करती है। अतः युवाओं का शिक्षित व अनुशासित होना राष्ट्र निर्माण में बहुमूल्य भूमिका निभा सकता है। क्योंकि अनुशासित एवं देशभक्त युवक सैनिक बनकर राष्ट्र-निर्माण में अपनी अति महत्त्वपूर्ण भमिका निभा सकते हैं। आज देश की सीमाएं विदेशी षड्यंत्रों और आतंकवाद से त्रस्त हैं। देश की अखंडता को चुनौतियां मिल रही हैं। ऐसे समय में युवा शक्ति का दायित्व बहुत बढ़ गया है।
“चरित्रवान, निर्भीक और जागरूक युवा संगठित रूप से आगे आकर आज समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, शोषण तथा अन्य कई सामाजिक विकृतियों से देशवासियों की रक्षा कर सकते हैं।’
चरित्रवान, निर्भीक और जागरूक युवा संगठित रूप से आगे आकर आज समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, शोषण तथा अन्य कई सामाजिक विकृतियों से देशवासियों की रक्षा कर सकते हैं। इसके अलावा भी ऐसे कई क्षेत्र हैं जिनके माध्यम से यवा आर्थिक व राजनीतिक ना ला सकते हैं और राष्ट्र के नव-निर्माण में अपनी भूमिका प्रस्तुत कर सकते हैं। उदाहरणार्थ आजकल नव-निर्माण की चलायी जा रही कई योजनाओं में श्रमदान की आवश्यकता है, जैसे-बड़े-बड़े ऊसर भागों को कृषि-योग्य बनाना, यातायात के लिए जलमार्ग तैयार करना, सिंचाई हेतु नहरों, कुओं तथा तालाबों को गहरा करना, नदियों के जल संचय हेतु बांध बनाना, मलेरिया रोग की रोक-थाम के लिए गन्दे पानी के गड्ढों को पाटना तथा वृक्षारोपण आदि सार्वजनिक हित के कार्य श्रमदान द्वारा सम्भव हैं। हमारे यहां धन की कमी और जनशक्ति की अधिकता को देखते हुए यह कार्य अत्यंत सरल एवं सराहनीय होगा।
बालक-बालिकाओं में तो शिक्षा का प्रसार हो रहा है, किन्त अधिकांश प्रौढ़ नर-नारियों की दशा संतोषजनक नहीं है। लाखों लोगों के लिए अभी काला अक्षर भैंस बराबर है। अतः प्रौढ़ शिक्षा में युवावर्ग अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। प्रत्येक युवा कम से कम एक प्रौढ़ को ग्रीष्मावकाश में साक्षर करे। इसी प्रकार प्रौढ़ माताओं एवं बहनों को साक्षर बनाने का कार्य छात्राएँ अपने हाथ में ले सकती हैं। इस कार्य को सफल बनाने में केंद्र व राज्य सरकारें अपनी भूमिका निभा सकती हैं। जैसे-गांवों में वाचनालयों की स्थापना करना, प्रौढ़ शिक्षा हेतु स्टेशनरी उपलब्ध कराना इत्यादि।
प्रायः यह देखने में आया है कि देश के नव-निर्माण में सबसे बड़ी बाधा अनेक सामाजिक कुरीतियाँ रही हैं, जिन्होंने न केवल युवाओं की प्रतिभा को कुंठित किया बल्कि हमेशा के लिए समाप्त भी कर दिया है। दहेज की कुप्रथा को ही ले लीजिए। इस कुप्रथा का शिकार होकर न जाने कितनी किशोरियाँ, जो राष्ट्र की प्रगति में योगदान कर सकती थीं, अकाल ही काल के गर्त में चली जाती हैं। इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए युवा ही सबसे अधिक सक्षम हैं। अगर भारत का युवा वर्ग महिला उत्पीड़न या दहेज प्रथा के खिलाफ हो जाय, तो यह सामाजिक बुराई शीघ्र समाप्त हो सकती है। लेकिन ऐसा करने के लिए युवाओं को पहले ही प्रशिक्षित करना पड़ेगा। उन्हें नैतिक रूप से साक्षर बनाना पड़ेगा तथा उनको उनकी जिम्मेदारी का बोध भी कराना पड़ेगा।
जातियों के आधार पर निम्न जाति के लोगों के प्रति दुर्व्यवहार हमारे समाज का अभी भी एक अहम हिस्सा बना हुआ है। इस तरह का भेदभाव राष्ट्र के निर्माण में बहुत बड़ी बाधा है। जब तक निम्न वर्ग को ऊंचा उठा कर समान स्तर पर नहीं लाया जायेगा तब तक राष्ट्र का सम्यक् विकास सम्भव नहीं है। जाति-पांति ने समाज को टुकड़ों में बांट रखा है, जिससे राष्ट्रीय एकता की भावना को ठेस पहुंचती है। युवा वर्ग निम्न वर्ग का उद्धार तथा जाति-पांति समाप्ति की दिशा में अच्छी भूमिका निभा सकते हैं। अन्तर्जातीय विवाह तथा निम्न जाति के लोगों के साथ मेल-जोल बढ़ाकर वे एक आदर्श वातावरण निर्मित कर सकते हैं।
“युवा शक्ति का अर्थ ऐसी प्रक्रिया से है जिसमें युवाओं की अपने आप को संगठित करने की क्षमता बढ़ती तथा सुदृढ़ होती है। उनमें ऊर्जा भी भरपूर होती है, जिसे सकारात्मक दिशा और सोच से रण के नव-निर्माण में खपाया जा सकता है।”
वस्तुतः युवावस्था मानव जीवन का अत्यंत महत्त्वपूर्ण काल है। यह वह अवस्था है, जिसमें मानव की अंतर्निहित शक्तियां विकासोन्मुख होती हैं। ऐसे में हमारे शक्तिमान, बुद्धिमान, पवित्र एवं निःस्वार्थ युवा क्या कुछ नहीं कर सकते हैं। वे हितकर क्रांतियों के जन्मदाता बन सकते हैं, तो राष्ट्र निर्माण एवं देश को शक्तिशाली बनाने के सर्वोत्तम माध्यम सिद्ध हो सकते हैं। यह वह शक्ति है जो अपने उद्यमों से दुर्बल एवं उपेक्षित लोगों तथा ऐसे लोगों के समूहों को क्षमतावान बना सकती है। यह शक्ति, शोषितों, पीड़ितों, वंचितों एवं असमानता के शिकार लोगों का संबल बन सकती है। अर्थात सामाजिक न्याय की स्थापना में युवकों की केंद्रीय भूमिका हो सकती है। वे कमजोरों निर्बलों का संबल बनकर देश को विकास के पथ पर आगे ले जा सकते हैं, तो हितकारी क्रांतियों के सूत्रधार बनकर व्यापक बदलाव ला सकते हैं।
विचार, धर्म, आस्था और अंतरात्मा की स्वतंत्रता सहित युवाओं की प्रगति के प्रयासों से व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से युवाओं के साथ-साथ प्रौढ़ों की भी नैतिक आध्यात्मिक और बौद्धिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। इससे समाज में उनकी पूर्ण क्षमता के उपयोग की संभावना सुनिश्चित होती है और अपनी आकांक्षाओं के अनुसार अपनी जिन्दगी को रूप देने की पक्की गारंटी भी होती है।
युवा शक्ति का अर्थ ऐसी प्रक्रिया से है जिसमें युवाओं की अपने आप को संगठित करने की क्षमता बढ़ती तथा सुदृढ़ होती है। उनमें ऊर्जा भी भरपूर होती है, जिसे सकारात्मक दिशा और सोच से राष्ट्र के नव-निर्माण में खपाया जा सकता है। यह नई पौध एक नये फलक का सृजन करती है और विकास को ऊंचाइयां प्रदान करती है। हमें राष्ट्र के नव-निर्माण के लिए युवा वर्ग को हर क्षेत्र में प्रोत्साहित करना चाहिए।