सब आँखों के आँसू उजले सबके सपनों में सत्य पला!
जिसने उसको ज्वाला सौंपी
उसने इसमें मकरंद भरा,
आलोक लुटाता वह घुल-घुल
देता झर यह सौरभ बिखरा!
दोनों संगी पथ एक किंतु कब दीप खिला कब फूल जला?
वह अचल धरा को भेंट रहा
शत-शत निर्झर में हो चंचल,
चिर परिधि बना भू को घेरे
इसका नित उर्म्मिल करुणा-जल!
कब सागर उर पाषाण हुआ, कब गिरि ने निर्मम तन बदला?
नभ-तारक-सा खंडित पुलकित
यह सुर-धारा को चूम रहा,
वह अंगारों का मधु-रस पी
केशर किरणों-सा झूम रहा!
अनमोल बना रहने को कब टूटा कंचन हीरक पिघला!
नीलम मरकत के संपुट दो
जिनमें बनता जीवन-मोती,
इसमें ढलते सब रंग-रूप
उसकी आभा स्पंदन होती!
जो नभ में विद्युत्-मेघ बना वह रज में अंकुर हो निकला!
संसृति के प्रति पग में मेरी
साँसों का नव अंकन चुन लो,
मेरे बनने-मिटने में नित
अपनी साधों के क्षण गिन लो!
जलते खिलते बढ़ते जग में घुलमिल एकाकी प्राण चला!
सपने-सपने में सत्य ढला !
उत्तर- एक मनुष्य को अपने समस्त सपनों को पूरा करने के लिए, एक लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। बिना लक्ष्य निर्धारित किए, कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में सफल नहीं हो सकता।
उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए मनुष्य को अपने अंदर मौजूद समस्त गुणों को बाहर लाना होगा और उन गुणों को किसी भी व्यक्ति के वजह से किसी भी परिस्थिति के कारण खत्म नहीं होने देना होगा। तभी वह व्यक्ति अपने सपने को साकार कर सकता है और अपनी मंजिल तक जा सकता है।
प्रश्न 8- निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए
आलोक लुटाता वह…… कब फूल जला
उत्तर- काव्य पंक्तियों के माध्यम से महादेवी वर्मा जी दीपक एवं फूल दोनों का वर्णन करती हैं। वे कहती हैं कि जिस तरीके से दीपक समस्त अंधकार को मिटाने में सक्षम होता है, उसी प्रकार फूल अपनी सुगंध से संपूर्ण वातावरण को सुगंधित करता है।
ये दोनों अपना-अपना गुण एक-दूसरे के लिए कभी भी मिटाते नहीं हैं। ये दोनों ही संसार के पथ-प्रदर्शक हैं। दीपक से हमें इस जग को उजाला देने की सीख मिलती है और फूल से अपनी अच्छाई के माध्यम से समाज को कुछ देने का मन करता है। अर्थात्, एक व्यक्ति को इस फूल एवं दीपक की तरह बनना चाहिए और उनसे सीख लेना चाहिए।
नभ तारक सा…. हीरक पिघला?
उत्तर- स्वर्ण धातु एवं हीरों के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि सभी की प्रकृति अलग-अलग होती है। इन दोनों के माध्यम से कवयित्री ने यह बताने का प्रयास किया है कि जिस तरीके से हीरा अपनी चमक नहीं बदलता, सोना अपना मोल नहीं बदलता, ठीक उसी प्रकार से मानव को अपना आचार एवं व्यवहार कभी नहीं बदलना चाहिए।
कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य को अपने अंदर मौजूद किसी भी गुण को, लोगों के कारण नहीं बदलना चाहिए। एक मनुष्य जैसा गुण लेकर इस सृष्टि में आया है, अपने उस गुण को हमेशा यह कोशिश करनी चाहिए कि वह गुण हमेशा बढ़ता रहे, उसकी गुणवत्ता में कभी भी कोई कमी ना आए।
सोने को भी चमकने के लिए आग में तपना पड़ता है, उसी प्रकार मनुष्य को भी अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए हर तरीके की चुनौतियों का सामना करना चाहिए। उन चुनौतियों से पीछे हटकर चुपचाप एक कोने में नहीं बैठना चाहिए। अर्थात्, आपके जीवन में कितनी भी कठिनाइयां आएं, आप उन कठिनाइयों का डटकर सामना कीजिए और अपने अंदर के स्वभाव को किसी के लिए मत बदलिए।