समूह संचार का उपयोग कहाँ होता है? - samooh sanchaar ka upayog kahaan hota hai?

संचार माध्यम (Communication Medium) से आशय है | संदेश के प्रवाह में प्रयुक्त किए जाने वाले माध्यम। संचार माध्यमों के विकास के पीछे मुख्य कारण मानव की जिज्ञासु प्रवृत्ति का होना है। वर्तमान समय में संचार माध्यम और समाज में गहरा संबन्ध एवं निकटता है। इसके द्वारा जन सामान्य की रूचि एवं हितों को स्पष्ट किया जाता है। संचार माध्यमों ने ही सूचना को सर्वसुलभ कराया है। तकनीकी विकास से संचार माध्यम भी विकसित हुए हैं तथा इससे संचार अब ग्लोबल फेनोमेनो बन गया है।

संचार माध्यम, अंग्रेजी के "मीडिया" (मिडियम का बहुवचन) से बना है, जिसका अभिप्राय होता है दो बिंदुओं को जोड़ने वाला। संचार माध्यम ही संप्रेषक और श्रोता को परस्पर जोड़ते हैं। हेराल्ड लॉसवेल के अनुसार, संचार माध्यम के मुख्य कार्य सूचना संग्रह एवं प्रसार, सूचना विश्लेषण, सामाजिक मूल्य एवं ज्ञान का संप्रेषण तथा लोगों का मनोरंजन करना है।

संचार माध्यम का प्रभाव समाज में अनादिकाल से ही रहा है। परंपरागत एवं आधुनिक संचार माध्यम समाज की विकास प्रक्रिया से ही जुड़े हुए हैं। संचार माध्यम का श्रोता अथवा लक्ष्य समूह बिखरा होता है। इसके संदेश भी अस्थिर स्वभाव वाले होते हैं। फिर संचार माध्यम ही संचार प्रक्रिया को अंजाम तक पहुँचाते हैं।

संचार मराठीत[संपादित करें]

संचार शब्द अंग्रेजी के कम्युनिकेशन का हिन्दी रूपांतर है जो लैटिन शब्द कम्युनिस से बना है, जिसका अर्थ है सामान्य भागीदारी युक्त सूचना। चूंकि संचार समाज में ही घटित होता है, अत: हम समाज के परिप्रेक्ष्य से देखें तो पाते हैं कि सामाजिक संबन्धों को दिशा देने अथवा निरंतर प्रवाहमान बनाए रखने की प्रक्रिया ही संचार है। संचार समाज के आरंभ से लेकर अब तक के विकास से जुड़ा हुआ है।

परिभाषाएं-

प्रसिद्ध संचारवेत्ता डेनिस मैक्वेल के अनुसार, " एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक अर्थपूर्ण संदेशों का आदान प्रदान है।

डॉ॰ मरी के मत में, "संचार सामाजिक उपकरण का सामंजस्य है।"

लीगैन्स की शब्दों में, " निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया निरंतर अन्तक्रिया से चलती रहती है और इसमें अनुभवों की साझेदारी होती है।"

राजनीति शास्त्र विचारक लुकिव पाई के विचार में, " सामाजिक प्रक्रियाओं का विश्लेषण ही संचार है।"

इस प्रकार संचार के संबन्ध में कह सकते हैं कि इसमें समाज मुख्य केन्द्र होता है जहाँ संचार की प्रक्रिया घटित होती है। संचार की प्रक्रिया को किसी दायरे में बांधा नहीं जा सकता। फिर संचार का लक्ष्य ही होता है- सूचनात्मक, प्रेरणात्मक, शिक्षात्मक व मनोरंजनात्मक।

संचार माध्यमों की प्रकृति[संपादित करें]

भारत में प्राचीन काल से ही के दुनिया में सबसे अच्छा नीतीश है का अस्तित्व रहा है। यह अलग बात है कि उनका रूप अलग-अलग होता था। भारत में संचार सिद्धान्त काव्य परपंरा से जुड़ा हुआ है। साधारीकरण और स्थायीभाव संचार सिद्धान्त से ही जुड़े हुए हैं। संचार मुख्य रूप से संदेश की प्रकृति पर निर्भर करता है। फिर जहाँ तक संचार माध्यमों की प्रकृति का सवाल है तो वह संचार के उपयोगकर्ता के साथ-साथ समाज से भी जुड़ा होता है। चूंकि हम यह भी पाते हैं कि संचार माध्यम समाज की भीतर की प्रक्रियाओं को ही उभारते हैं। निवर्तमान शताब्दी में भारत के संचार माध्यमों की प्रकृति व चरित्र में बदलाव भी हुए हैं लेकिन प्रेस में मुख्यत: तीन-चार गुणात्मक परिवर्तन दिखाई देते हैं-

पहला : शताब्दी के पूर्वाद्ध में इसका चरित्र मूलत: मिशनवादी रहा, वजह थी स्वतंत्रता आंदोलन व औपनिवेशिक शासन से मुक्ति। इसके चरित्र के निर्माण में तिलक, गांधी, माखनलाल चतुर्वेदी, विष्णु पराडकर, माधवराव सप्रे जैसे व्यक्तित्व ने योगदान किया था।

दूसरा : 15 अगस्त 1947 के बाद राष्ट्र के एजेंडे पर नई प्राथमिकताओं का उभरना। यहाँ से राष्ट्र निर्माण काल आरंभ हुआ और प्रेस भी इसके संस्कारों से प्रभावित हुआ। यह दौर दो दशक तक चला।

तीसरा : सातवें दशक से विशुद्ध व्यावसायिकता की संस्कृति आरंभ हुई। वजह थी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का विस्फोट।

चौथा : अन्तिम दो दशकों में प्रेस का आधुनिकीकरण हुआ, क्षेत्रीय प्रेस का एक `शक्ति` के रूप में उभरना और पत्र-पत्रिकाओं से संवेदनशीलता एवं दृष्टि का विलुप्त होना।

इसके इतर आज तो संचार माध्यमों की प्रकृति अस्थायी है। इसके अपने वाजिब कारण भी हैं हालांकि इसके अलावा अन्य मकसद से भी संचार माध्यम बेतुकी ख़बरें व सूचनाएं सनसनीखेज तरीके से परोसने लगे हैं।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • पत्रकारिता

Black Day 14February को मनाया जाता है ।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • मिडिया की आवाज
  • मिडिया गुरुजी

समूहसंचार (Group Communication)

      यहअंतर वैयक्तिकसंचारकाविस्तारहै, जिसमेंसम्बन्धोंकीजटिलता होतीहै।समूहसंचारकीप्रक्रियाकोसमझनेकेलिए समूहकेबारेमेंजाननाआवश्यकहै।मानवअपनेजीवन कालमेंकिसी--किसीसमूहकासदस्यअवश्य होताहै।अपनीआवश्यकतओंकीपूर्तिकेलिएनये समूहोंकानिर्माणभीकरताहै।समूहोंसेपृथकहोकर मानवअलग-थलगपड़जाताहै।समूहमेंजहां व्यक्तित्वकाविकासहोताहै, वहींसामाजिकप्रतिष्ठाबनती है।समूहकेमाध्यमसेएकपीढ़ीकेविचारदूसरे पीढ़ीतकस्थानांतरितहोताहै।समाजशास्त्रीचार्ल्सएच. कूले केअनुसार, समाजमेंदोप्रकारकेसमूहहोते हैं।पहला, प्राथमिकसमूह (Primary Group)- जिसकेसदस्योंकेबीचआत्मीयता, निकटताएवंटिकाऊसम्बन्धहोतेहैं।परिवार, मित्रमंडली सामाजिकसंस्थाआदिप्राथमिकसमूहकेउदाहरणहैं। दूसरा, द्वितीयकसमूह (Secondary Group)- जिसकानिर्माणसंयोगपरिस्थितिवशया स्थानविशेषकेकारणकुछसमयकेलिएहोताहै। ट्रेनबसकेयात्री, क्रिकेटमैचकेदर्शक, जोआपसमेंविचार-विमर्शकरतेहंै, द्वितीयकसमूहकेसदस्यकहलातेहैं।

       सामाजिककार्यव्यवहारके अनुसारसमूहकोहितसमूहऔरदबावसमूहमेंबांटा गयाहै।जबकोईसमूहअपनेउद्देश्योंकीपूर्तिके लिएकार्यकरताहै, तोउसेहितसमूहकहाजाता है।इसकेविपरीतजबअपनेउद्देश्योंकीपूर्तिके लिएअन्यसमूहोंयाप्रशासनकेऊपरदबावडालता है, तबवहस्वत: हीदबावसमूहमेंपरिवर्तित होजाताहै।व्यक्तिसमूहबनाकरविचार-विमर्श, संगोष्ठी, भाषण, सभाकेमाध्यमसेविचारों, जानकारियोंअनुभवाओं काआदान-प्रदानकरताहै, तोउसेसमूहसंचार कहाजाताहै।इसमेंफीडबैकतुरंतमिलताहै, लेकिन अंतर-वैयक्तिकसंचारकीतरहनहीं।फिरभी, यह बहुतहीप्रभावीसंचारहै, क्योंकिइसमेंव्यक्तित्वखुलकर सामनेआताहै।समूहकेसदस्योंकोअपनीबातकहने कापर्याप्तअवसरमिलताहै।समूहसंचारकईसामाजिक परिवेशोंमेंपायाजाताहै।जैसे- कक्षा, रंगमंच, कमेटी हॉल, बैठकइत्यादि।कईसंचारविशेषज्ञोंनेसमूहसंचार मेंसदस्योंकीसंख्या 20 तकमानतेहैं, जबकिकई संख्यात्मककीबजायगुणात्मकविभाजनपरजोरदेतेहैं। लिण्डग्रेनकेअनुसार- दोयादोसेअधिकव्यक्तियों काएकदूसरेकेसाथकार्यात्मकसम्बन्धमेंव्यस्त होनेपरएकसमूहकानिर्माणहोताहै।

     समूहसंचारऔरअंतरवैयक्तिकसंचारकेकईगुणआपस मेंमिलतेहैं।समूहसंचारकितनाबेहतरहोगा, फीडबैक कितनाअधिकमिलेगा, यहसमूहकेप्रधानऔरउसके सदस्योंकेपरस्परसम्बन्धोंपरनिर्भरकरताहै।संचार कौशलमेंप्रधानजितनाअधिकनिपुणज्ञानवानहोगा। उसकेसमूहकेसदस्योंकेबीचआपसीसम्बन्धजितना अधिकहोगा, संचारउतनाहीअधिकबेहतरहोगा।छोटे समूहोंमेंअंतर-वैयक्तिकसंचारकेगुणज्यादामिलने कीसंभावनाहोतीहै।समूहसंचारप्रक्रियामेंनिम्न पांचघटकभागलेतेहैं।

विशेषताएं : समूह संचारमें ...

1. प्रापकोंकीसंख्यानिश्चितहोती है, सभीअपनीइच्छासामर्थकेअनुसारसहयोग करतेहैं,

2. सदस्योंकेबीचसमानरूपसे विचारों, भावनाओंकाआदान-प्रदानहोताहै,

3. संचारक औरप्रापककेबीचनिकटताहोतीहै,

4. विचार-विमर्शकेमाध्यमसेसमस्याओंकासमाधानकियाजाताहै,

5. संचारककाउद्देश्यसदस्योंकेबीचचेतना विकसितकरदायित्वबोधकरानाहोताहै,

6. फीडबैक समय-समयपरसदस्योंसेप्राप्तहोतारहताहै, और

7. समस्याकेमूलउद्देश्योंकेअनुरूपसंदेशसम्प्रेषितकियाजाताहै।

समूह संचार का उपयोग कहाँ होता?

समूह संचार कई सामाजिक परिवेशों में पाया जाता है। जैसे- कक्षा, रंगमंच, कमेटी हॉल, बैठक इत्यादि। कई संचार विशेषज्ञों ने समूह संचार में सदस्यों की संख्या 20 तक मानते हैं, जबकि कई संख्यात्मक की बजाय गुणात्मक विभाजन पर जोर देते हैं।

समूह संचार से क्या आशय है ?`?

इस संचार में हम जो कुछ भी कहते हैं, वह किसी एक या दो व्यक्ति के लिए न होकर पूरे समूह के लिए होता है । समूह संचार का उपयोग समाज और देश के सामने उपस्थित समस्याओं को बातचीत और बहस-मुबाहिसे के ज़रिये हल करने के लिए होता है । संसद में जब विभिन्न मुद्दों पर चर्चा होती है तो यह भी समूह संचार का ही एक उदाहरण है।

समूह संचार से क्या?

समूह संचार को हम कह सकते हैं कि 'यह तीन या अधिक लोगों के बीच होने वाली अन्योन्यक्रिया है, जो कि एक सांझे लक्ष्य की प्राप्ति हेतु आमने-सामने या किसी अन्य माध्यम से संचार कर रहे होते हैं। ' कुछ विशिष्ट लक्ष्यों व उद्देश्यों वाले लोगों के झुंड को समूह कहा जाता है। संसक्ति समूह का एक और महत्वपूर्ण गुण है।

समूह संचार क्यों आवश्यक है?

समूह में कार्य करना विद्यार्थियों को सोचने, संवाद कायम करने, समझने और विचारों का आदान–प्रदान करने और निर्णय लेने के लिए प्रेरित करने का प्रभावी तरीका है। आपके छात्र दूसरों को सिखा भी सकते हैं और उनसे सीख भी सकते हैं: यह सीखने का एक सशक्त और सक्रिय तरीका है।

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