सामाजिक क्रिया के प्रकार - Types of Social Action
मैक्स वेबर के द्वारा सामाजिक क्रिया का उपयोग करने से पहले विलफ्रेडो परेटो ने सामाजिक क्रिया की अवधारणा को अपने सैद्धांतिकरण में प्रयोग में लिया था। सामाजिक क्रिया की व्याख्या करते समय उन्होंने इस समस्या को उठाया था कि समाजशास्त्र की परिभाषाएं किस प्रकार दी जाए। इस संदर्भ में उन्होंने कहा था कि समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो अतार्किक क्रियाओं का अध्ययन करता है। उनके अनुसार तार्किक क्रियायें वह है जिन्हें विवेकपूर्ण ढंग से समझा जा सकता है। हालांकि उनका कहना था कि तार्किक क्रिया की परिभाषा को तर्कशास्त्र और गणित के नाम पर छोड़ देते हैं पर अतार्किक क्रियाएं ऐसी होती हैं जिसमें कि व्यक्ति के संवेग और भावनाओं के द्वारा काम किया जाता है। इस आधार पर विलफ्रेडो परेटो ने क्रिया के दो प्रकार बताए थे।
1. तार्किक क्रिया (Rational Action)
2. अतार्किक क्रिया (Non Rational Action)
मैक्स वेबर ने तार्किक क्रिया की अवधारणा को विलफ्रेडो परेटो की तुलना में और अधिक विस्तृत में संदर्भ में देखा है। मैक्स वेबर ने स्पष्ट किया है कि प्रत्येक सामाजिक क्रिया का एक विशेष लक्ष्य होता है और व्यक्ति विभिन्न साधनों के द्वारा हमेशा अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करता है। मैक्स वेबर कहते हैं कि “कोई भी क्रिया शून्य में नहीं होती यह हमेशा अन्य कर्ताओं के संदर्भ में होती है।” मैक्स वेबर ने समाजशास्त्र को केवल सामाजिक क्रिया के आधार पर ही परिभाषित नहीं किया है बल्कि उन्होंने जो सामाजिक क्रिया के प्रकारों को दिया है वह अनिवार्य रूप से उनके आदर्श स्वरुप के अंग मात्र हैं। मैक्स वेबर के अनुसार सामाजिक क्रिया के चार प्रकार होते हैं
1. तार्किक क्रिया (Rational Action)
तार्किक क्रिया वह क्रियाएं होती हैं जो किसी योजना के अनुसार सोच-समझकर की जाती है।
इसमें कर्ता अपनी क्रिया का संबंध तार्किक रूप से लक्ष्य के साथ जोड़ता है अर्थात तार्किक क्रियाओं में लक्ष्य एवं साधनों का पूर्ण ध्यान रखा जाता है। तार्किक क्रियाओं को क्रियान्वयन में साध्य एवं साधनों को ध्यान में रखते हुए क्रिया की जाती है उदाहरण के लिए यदि एक इंजीनियर को किसी घर का निर्माण करना है तो वह घर के निर्माण के लिए उसे कुल कितनी नींव खोदनी होगी। कितने मंजिल का घर बनाना है उसमें कितने कमरे रखने हैं उसमें कितना सीमेंट, गिट्टी और रेत की आवश्यकता होगी। इस सब की योजना वह तार्किक ढंग से बनाता है। उसके बाद ही लक्ष्य के अनुरूप वह एक घर का निर्माण करता है। इस तरह एक इंजीनियर अपने लक्ष्य को ध्यान में रखकर क्रिया का संपादन करता है। मैक्स वेबर की यह क्रिया ही तार्किक क्रिया है।
रेमंड एरेन (Raymond Aron) ने तार्किक क्रिया के विश्लेषण के लिए एक उदाहरण दिया है। एरेन के अनुसार स्टॉक एक्सचेंज में जब एक सटोरिया घुसता है
तो वह अपना रुपए दांव पर लगाने से पहले बड़े विस्तार से पूरी तरह तर्क के द्वारा हिसाब-किताब करता है। वह भावनाओं में बह कर धन का नियोजन नहीं करता। इस समय उसके द्वारा की जाने वाली क्रिया पूर्णतः विवेकपूर्ण और तार्किक होती है। अतः मैक्स वेबर के अनुसार यह क्रिया वह होती है, जिसमें कर्ता का रुझान लक्ष्य को प्राप्त करने का होता है। इसी कारण वह इस क्रिया को लक्ष्य उन्मुख क्रिया कहते है, अर्थात इस क्रिया को करते समय कर्ता लक्ष्य और साधन के चुनाव करने में सोच-विचारकर तर्क की मदद लेता है।
2. भावनात्मक एवं संवेदनात्मक क्रियाएं (Effective or Emotional Action)
व्यक्तियों के आवेगों संवेगों से प्रेरित होने वाली क्रियाएं प्रभावात्मक भावनात्मक या संवेगात्मक क्रिया कहलाती है। इस प्रकार की क्रियाओं का संबंध व्यक्ति की भावनात्मक दशाओं से होता है ना कि किसी साधन साध्य से। तार्किक मूल्यांकन अर्थात यह मस्तिष्क की वह स्थिति है, जिसमें व्यक्ति आवेश में आकर क्रिया को करता है। इस प्रकार की क्रिया का संबंध ना तो किसी विशेष लक्ष्य होता है, और ना ही वह किसी मूल्यों से जुड़ी होती है।
इस प्रकार की क्रियाओं को मैक्स वेबर ने अवशिष्ट क्रियाओं के नाम से संबोधित किया है। संवेगात्मक क्रियाओं को समझा नहीं जा सकता। यह भावना प्रधान होती है। वास्तव में ऐसी क्रिया के विश्लेषण को केवल मनोवैज्ञानिक और मनोविश्लेषक ही स्पष्ट कर सकते हैं। इन क्रियाओं का प्रमुख आधार प्रेम घृणा और द्वेष क्रोध भय एवं वात्सल्य जैसे संवेग होते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि दो व्यक्ति आपस में बात कर रहे हैं और उनकी बातचीत अचानक वाद-विवाद में बदल जाती है और एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से गाली गलौज करता है या बाद में उसके गाल पर थप्पड़ मार देता है तो यह क्रिया विशुद्ध रूप से संवेगात्मक है। इस तरह की क्रिया तुरंत भावावेश में हो जाती है और व्यक्ति को मानसिक संतुष्टि देती है। मैक्स वेबर के आलोचकों ने इस तरह की क्रिया को अधिक विस्तृत रूप दिया है और उनका यह भी कहना है कि संवेगात्मक क्रिया का अध्ययन क्षेत्र समाजशास्त्र नहीं मनोविज्ञान है।
3. मूल्यांकनात्मक क्रियाएँ (Evaluative Actions)
सामाजिक मूल्यों से संबंधित क्रियाओं को मूल्यांकनात्मक क्रियायें कहा जाता है। क्रिया का यह दूसरा प्रकार तर्क पूर्ण होने के साथ-साथ मूल्यों के प्रति भी अभिस्थापित होता है। इस तरह की क्रियाएं अधिकतम मूल्य की ओर रुझान वाली तार्किकक्रियाओं के विश्वास पर आधारित होती है और यह क्रियाएं कर्ता की दृढ़ धारणाओं पर निर्भर रहती है। इन क्रियाओं का आधार तर्क नहीं बल्कि धर्म, कला, मनोरंजन जैसे मूल्यांकनात्मक आधार होते हैं। इन क्रियाओं के करने से पहले कर्ता कभी भी यह नहीं सोचता कि इनके करने के परिणाम स्वरुप कर्ता का भविष्य क्या होगा? वह मूल्यों की उपेक्षा के लिए किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करता। उदाहरण के तौर पर यदि कोई व्यक्ति अपने माता-पिता की सेवा करता है उसकी यह धारणा होती है कि सामाजिक मूल्यों के आधार पर माता पिता के प्रति उसके जो कर्तव्य थे।
उनकी पूर्ति हो रही है। हमारे देश में राजस्थान में राजपूत महिलाओं के द्वारा जोहर किया जाना प्रतिष्ठा का मूल्य था क्योंकि यह मूल्य स्पष्ट कर रहे थे कि स्त्रियां अपने सतीत्व को बनाए रखने के लिए जो जौहर करते हुए अपने मूल्यों का निर्वाह करेंगे।
इस क्रिया के पीछे कर्ता का लक्ष्य सामाजिक मूल्यों को प्राप्त करना होता है। मूल्यों का विस्तार वृहद होता है पर कुछ मूल्य प्रमुख होते है और कुछ गौण होते है। मूल्य हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक में होते है। व्यक्ति इन मूल्यों का पालन करना अपना कर्तव्य समझता है।
4. परंपरागत क्रियाएं (Traditional Action )
परंपरागत क्रियाएं वे होती हैं जो सामाजिक प्रथाओं परम्पराओं के द्वारा नियंत्रित एवं संचालित होती है इसके अंतर्गत व्यक्तियों के उन व्यवहारों क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है। जो प्राचीन काल से चली आ रही हैं। प्रत्येक समाज और समूह में जन्म, विवाह, मृत्यु, त्यौहार आदि होते है। जिनमें इनसे जुड़े रीति रिवाज और विश्वास ऐसे होते हैं। जिन का संचालन परंपरागत क्रियाओं के माध्यम से होता है। इसमें कर्ता को किसी लक्ष्य को निर्धारित नहीं करना पड़ता बल्कि वह मानकर चलता है कि परम्परा और विश्वास में एक ही लक्ष्य निर्धारित है इसलिए वह बिना किसी उद्देश्य के बारे में सोचें आंख बंद कर परम्पराओं का पालन करता है और लक्ष्य की तरह मूल्यों के बारे में भी कुछ नहीं सोचता क्योंकि वह मानकर चलता है कि इन परम्पराओं का पालन पीढ़ी-दर-पीढ़ी चला आ रहा है और वह यह मानता है कि इन परम्पराओं के पीछे पूर्व में कोई ना कोई मूल्य अवश्य होगा। इसलिए वह इन्हें सहज क्रिया मानता हैं और इन क्रियाओं को करता है। प्राचीन काल से ही चाहे समाज रूढ़िवादी हो, परंपरागत या प्रगतिशील हो, व्यक्ति के द्वारा इस तरह की क्रियायें हमेशा की जाती है।