सामाजिक परिवर्तन और सांस्कृतिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? - saamaajik parivartan aur saanskrtik parivartan se aap kya samajhate hain?

सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन के बीच अंतर | Difference Between Social and Cultural Change in Hindi!

सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा करते हुए कुछ समाजशास्त्री सामाजिक परिवर्तन और सांस्कृतिक परिवर्तन में अनार करना भूल गये हैं । इस प्रकार गिलिन और गिलिन ने सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा करते हुए लिखा है कि सामाजिक परिवर्तन जीवन के स्वीकृत प्रकारों में परिवर्तन है चाहे वह भौगोलिक परिस्थितियों में, सांस्कृतिक साधनों में, जनसंख्या की अथवा विचारधारणओं की रचना में परिवर्तन से हुए हों या समूह के अन्दर ही प्रसार अथवा आविष्कार से लाये गये हों ।

सामाजिक परिवर्तन की इस परिभाषा में सामाजिक परिवर्तन और सांस्कृतिक परिवर्तन में अन्तर किया गया है । मैकाइवर और पेज ने इन दोनों में अनार करने की चेष्टा की है । सामाजिक परिवर्तन सामाजिक सम्बन्धों का परिवर्तन है । सामाजिक सम्बन्ध समाज के जीवन से पृथक् नहीं किये का सकते ।

इस प्रकार सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों में एक अन्य बड़ा अन्तर उनके तत्वों को लेकर है । संस्कृति के तत्व ऐसे होते है कि समय के परिवर्तन के बाद भी उनको किसी रूप में जीवित रखा जा सकता है । उदाहरण के लिए सभ्य समाजों में प्राचीन संस्कृतियों के अवशेषों को संग्रहालयों और अजायबघरों में सजा कर रखा जाता है ।

इस प्रकार हजारों साल बीत जाने के बाद भी ये सांस्कृतिक उपकरण ज्यों के त्यों देखे जा सकते है । परन्तु सामाजिक परिर्वतन के तत्वों के विषय में ऐसा नहीं है । सामाजिक परिवर्तन में सामाजिक सम्बन्ध बदलते है । नये सम्बन्ध आने के बाद पुराने सम्बन्धों को किसी अजायबघर में नहीं देखा जा सकता ।

यद्यपि इतिहास में समाज की प्राचीन संरचना और दशाओं का कुछ-उल्लेख मिल सकता है परन्तु इस प्रकार का ज्ञान एक अप्रत्यक्ष ज्ञान होगा जबकि अजायबघर में रखी वस्तुयें प्रत्यक्ष दिखाई पड़ती हैं । एक नयी मशीन बन जाती है, तो पुरानी मशीन अजायबघर में देखी जा सकती है ।

इस तरह पुरानी मशीन भी कायम रहती है । परन्तु जब एक नई प्रथा या संस्था विकसित होती है तो पुरानी प्रथा और संस्था का कहीं नामोनिशान नहीं रहता वास्तव में जैसा कि मैकाइवर और पेज ने ठीक ही लिखा है- ”यदि लोग किसी प्रथा को नहीं मानते तो यह प्रथा पृथ्वी पर अब कहीं नहीं रहती सम्बन्धों को संस्था से अलग नहीं किया जा सकता जिसकी कि वह अभिव्यक्ति है । काल के आघातों से बचाने के लिए एक सामाजिक संरचना को एक अजायबघर में नहीं रखा जा सकता ।”

समाज और संस्कृति के अन्तर से भी सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन का अनार स्पष्ट मालूम होता है । समाज सामाजिक सम्बन्धों की व्यवस्था है इस व्यवस्था में परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन हैं । यह व्यवस्था कुछ जनरीतियों, रूढ़ियों, परम्पराओं प्रथाओं तथा फैशन आदि से चलती है ।

इन सब में परिवर्तन या इनमें से किसी में भी परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन है इनके परिवर्तन से सामाजिक सम्बन्ध, उनके स्वरूप और व्यवहार प्रभावित होते है । दूसरी ओर संस्कृति वाला, विज्ञान, साहित्य दर्शन तथा विचारों ओर मूल्यों आदि से सम्बन्धित है । इनमें परिवर्तन का समाज पर कुछ न कुछ प्रभाव पड़ सकता है और सामाजिक परिवर्तन से इनमें भी परिवर्तन होता है ।

परन्तु एक परिवर्तन होने से दूसरे में परिवर्तन होना अनिवार्य नहीं है उदाहरण के लिए संगीत वाला के क्षेत्र में नये-नये रागों, नृत्यों आदि के निकलने से सामाजिक परिवर्तनों में कोई विशेष अनार नहीं पड़ता । अतः सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन परस्पर संबन्धित होते हुए भी अभिन्न नहीं हैं ।

वास्तव में संस्कृति एक अधिक व्यापक शब्द है अतः सांस्कृतिक परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन से अधिक व्यापक है । सामाजिक परिवर्तन में केवल सामाजिक सम्बन्धों के परिवर्तन आते है जबकि सांस्कृतिक परिवर्तन में कला, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी और विचार आदि के परिवर्तन भी आते है । इन सबके परिवर्तन का सामाजिक परिवर्तन में उसी सीमा तक महत्व है जिस सीमा तक ये सामाजिक सम्बन्धों को प्रभावित करते हैं ।

अतः सांस्कृतिक और सामाजिक परिवर्तनों को एक दूसरे से पृथक् समझना चाहिए । डेविड ने ठीक ही लिखा है कि “यह ठीक है कि संस्कृति का कोई भी भाग सामाजिक व्यवस्था से असम्बद्ध नहीं है परन्तु यह सत्य है कि इन शाखाओं में सामाजिक व्यवस्था पर कोई प्रत्यक्ष प्रभाव डाले बिना परिवर्तन हो सकते हैं ।”

अतएव समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से हम सांस्कृतिक परिवर्तन में उसी सीमा तक रूचि लेते है जिस सीमा तक वह सामाजिक संगठन से निकलता है या उस पर प्रभाव डालता है । सामाजिक परिवर्तन से अलग हम उसमें उसी के रूचि नहीं लेते समाज सामाजिक सम्बन्धों का जाल है ।

सामाजिक सम्बन्ध समाज के सदस्यों नर-नारियों बाल, युवा और वृद्धों के परस्पर व्यवहार में स्थापित होते है । यह व्यवहार परस्पर क्रियाओं के रूप में होता है । इस प्रकार सामाजिक सम्बन्ध समाज के सदस्यों में सामाजिक अन्त-क्रिया पर आधारित है ।

समाज के किन्हीं दो सदस्यों में सम्पर्क होने पर किसी न किसी प्रकार की सामाजिक अन्तःक्रिया आरम्भ हो जाती है । स्त्री पुरुष के सम्पर्क में आने पर आकर्षण भी हो सकता है और विकर्षण भी, सहयोग भी हो सकता है और संघर्ष भी । समाज के विभिन्न समूहों में परस्पर संघर्ष प्रतियोगिता, सहयोग अथवा समन्वय की प्रक्रियायें चलती रहती हैं । ये सब सामाजिक अन्त क्रियायें हैं ।

इस प्रकार सामाजिक अन्त:क्रियाओं और सामाजिक परिवर्तन का घनिष्ठ सम्बन्ध है । यदि किसी समाज में विभिन्न अन्त क्रियायें संघर्ष प्रतियोगिता, सहयोग, समन्वय आदि न हों तो समाज में परिवर्तन नहीं हो सकता । अन्तःक्रियाओं के होने से ही सामाजिक परिवर्तन होता है ।

परन्तु सामाजिक अन्त क्रिया और सामाजिक परिवर्तन में अनार है । सामाजिक अन्त क्रियायें वे प्रक्रियायें है जिनसे व्यक्तियों में कुछ अर्थपूर्ण मानसिक व्यवहार स्थापित होते हैं । दूसरी ओर सामाजिक परिवर्तन व्यक्तियों के व्यवहारों में कुछ प्रतिमानों में परिवर्तन की ओर संकेत करता है ।

यह सामाजिक परिर्वतन सामाजिक जीवन के सभी भागों को प्रभावित करता है । समाज एक गतिशील संरचना हैं । उसमें सामाजिक परिर्वतन सदैव होता रहता है । समाज की इसी प्रकृति के कारण सामाजिक अन्तःक्रियायें दिखाई पड़ती हैं ।

सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन क्या है?

सामाजिक परिवर्तन, समाज के आधारभूत परिवर्तनों पर प्रकाश डालने वाला एक विस्तृत एवं कठिन विषय है। इस प्रक्रिया में समाज की संरचना एवं कार्यप्रणाली का एक नया जन्म होता है। इसके अन्तर्गत मूलतः प्रस्थिति, वर्ग, स्तर तथा व्यवहार के अनेकानेक प्रतिमान बनते एवं बिगड़ते हैं। समाज गतिशील है और समय के साथ परिवर्तन अवश्यंभावी है।

सांस्कृतिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं?

(1) सांस्कृतिक परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन से अधिक व्यापक अवधारणा है, जिसमें समस्त वैचारिक, मूल्यात्मक और भौतिक वस्तुयें सम्मिलित है। इसके विपरीत सामाजिक परिवर्तनों का सम्बन्ध सामाजिक सम्बन्ध, सामाजिक अन्तः क्रिया, प्रस्थिति तथा भूमिका और समूहों में होने वाले परिवर्तनों से है। सामाजिक परिवर्तन का क्षेत्र सीमित है।

सामाजिक और सांस्कृतिक में क्या अंतर है?

यह उसके सामाजिक तथा सांस्कृतिक विकास के रूप में पहचानी जाती है । वास्तव में मानव का सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास शिक्षा द्वारा संभव हो पाता है।

सामाजिक परिवर्तन क्या है सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक और तकनीकी कारकों के बारे में चर्चा?

सामाजिक परिवर्तन समाज के आधारभूत परिवर्तनों पर प्रकाश डालने वाला एक विस्तृत एवं कठिन विषय है। इस प्रक्रिया में समाज की संरचना एवं कार्यप्रणाली का एक नया जन्म होता है। इसके अन्तर्गत मूलतः प्रस्थिति, वर्ग, स्तर तथा व्यवहार के अनेकानेक प्रतिमान बनते एवं बिगड़ते हैं। समाज गतिशील है और समय के साथ परिवर्तन अवश्यंभावी है ।

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