सैनिकों के प्रति हमारा क्या कर्तव्य होना चाहिए? - sainikon ke prati hamaara kya kartavy hona chaahie?

स्वतंत्रताआंदोलन में सक्रिय रहे स्वतंत्रता सेनानी नीलकंठ सहाय ने कहा कि शहीदों के प्रति हर नागरिक में सम्मान का भाव हो। देश के लिए लड़ने-मिटने वालों के लिए यही सम्मान उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। शहीदों और सैनिकों के प्रति हर व्यक्ति के मन में श्रद्धा सम्मान से नई पीढ़ी को भी प्रेरणा मिलेगी। वे 68वें गणतंत्र दिवस के मौके पर बात कर रहे थे।

दैनिक भास्कर प्रतिनिधि से बात करते हुए उन्होंने कहा कि हर नागरिक का यह कर्तव्य बनता है कि वह खुद को सबसे पहले भारतीय समझे। हिंदुस्तान का रहने वाला हर वह व्यक्ति चाहे वह किसी भी धर्म जाति का हो सबसे पहले वह भारतीय है। देश का सच्चा नागरिक होने के नाते हर देशवासी का यह कर्तव्य बनता है कि वह देशविरोधी ताकतों और अन्य उपद्रवी शक्तियों को कोई सहयोग अथवा सुझाव दे। उन्होंने कहा कि 1857 से लेकर अभी तक देश के लिए शहीद होने वाले हर उस सैनिक अथवा व्यक्ति का सम्मान होना चाहिए जिन्होंने देश के लिए बलिदान किया है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार को भी इस बात का पूरा ख्याल रखना चाहिए कि देश की रक्षा के लिए काम करने वाले लोगों की हर जरूरत का ख्याल रखें। स्वतंत्रता सेनानी नीलकंठ सहाय ने कहा कि महात्मा गांधी ऐसी शख्सियत का नाम है जो सिर्फ राष्ट्रपिता हैं बल्कि वे इस युग के महान आत्माओं में से एक थे। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के व्यक्तित्व का असर सिर्फ देश में बल्कि सात समंदर पार दूर देश तक रहा है। वैज्ञानिक आइंस्टाइन ने भी महात्मा गांधी के व्यक्तित्व को अद्वितीय बताया था। उन्होंने कहा था कि आने वाले शताब्दी में लोगों को यह आश्चर्य होगा कि कोई ऐसा व्यक्ति भी इस धरती पर जन्म लिया होगा। 26 जनवरी के अपने संदेश में स्वतंत्रता सेनानी नीलकंठ सहाय ने देश को आजादी दिलाने तथा इसे एक गणतंत्र के रूप में स्थापित करने वाले सभी लोगों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि श्रद्धा व्यक्त करने का तरीका यही होगा कि हम सब मिलकर इस देश को ताकतवर और गौरवशाली देश बनाएं।

देश का सच्चा नागरिक होने के नाते हर देशवासी का यह कर्तव्य बनता है कि वह देशविरोधी ताकतों और अन्य उपद्रवी शक्तियों को कोई सहयोग अथवा सुझाव दे।

स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर शहर की वामा साहित्य मंच द्वारा कार्यक्रम आयोजित किया गया। डॉ. हेमलता दिखित के मुख्य आतिथ्य में यह कार्यक्रम देशभक्ति को समर्पित था। विषय था : क्या देशभक्ति का दायित्व सिर्फ सैनिकों और उनके परिवार का है? डॉ. दिखित की 5 पीढियां सीमा पर अपने कर्तव्यों के लिए शहीद हुई हैं। विषय की प्रासंगिकता इसलिए अधिक है क्योंकि सोशल मीडिया के जमाने में देशभक्ति हमारे दिलों में उमड़ती बहुत है लेकिन वास्तव में हम अपने देश के लिए करते क्या है?

डॉ. हेमलता दिखित ने साहित्य मंच की सदस्याओं को संबोधित करते हुए कहा कि साहित्य यानी संवेदना और मंच यानी अभिव्यक्ति। शहर का यह वामा साहित्य मंच इन दोनों के कुशल संयोजन के साथ साहित्य संसार में सक्रिय है। एक फौजी परिवार से होने के अपने अनुभवों को साझा करते हुए उन्होंने कहा कि देशभक्ति एक जज्बा है, एक अनुभूति है। एक फौजी के जीवन में दो ही चीजें होती है, शांति और युद्ध।

सैनिकके व्यक्तित्व में कुछ गुण बड़े कठोर होते हैं। फौजी यानी अनुशासन, फौजी यानी लक्ष्य पक्का, फौजी यानी पूरे परिवार का उनके साथ पक्के मन और दृढ़ इरादों वाला होना है।

विषय पर अपने विचार रखते हुए डॉ. दिखित ने कहा कि अगर हम फौज में नहीं है तो जो कार्य हमारे जिम्मे है वही कर्तव्य परायणता के साथ निभाएं। जरूरी नहीं कि हम सब सीमा पर जाए यह संभव भी नहीं है लेकिन देश में रहते हुए राष्ट्रीय मूल्यों का पालन करना तो संभव है, हम वही कर सकते हैं।

इस अवसर पर मंच की सदस्याओं ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

इंदू पाराशर ने अत्यंत ओजस्वी स्वर में अपनी देशभक्ति की सुंदर रचनाएं प्रस्तुत की।

सरला मेहता ने विचार व्यक्त किए, '' यूं तो एक चिंगारी मंगल पांडे ने सुलगाई थी पर आजादी की आग हर हिन्दुस्तानी ने फैलाई थी। देशभक्ति का दायित्व उन सभी नागरिकों का है जो देश में रहते हैं। जो अपने मूलभूत अधिकारों के साथ देश में स्वतंत्र रूप से जीवन जीते हैं। देश हमारा है, सारे प्राकृतिक संसाधन हमारे हैं, और हम हक से कहते हैं कि हिंदुस्तान हमारा है। ऐ से में हर देशवासी देशभक्त बन सकता है यदि वह अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक है। युद्ध हो या शांति हर नागरिक को अपने कार्यक्षेत्र में दायित्वों का निर्वहन ईमानदारी एवं पूर्ण निष्ठा से करना चाहिए। सैनिक सीमाओं पर डटे रहते हैं। ऐसे में सामान्य नागरिक सहयोग का हाथ बढ़ाकर सै‍निकों के साथी बन सकते हैं।

निरूपमा नागर ने कहा,'' देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी जितनी हमारे सैनिकों की है उतनी ही देश के प्रत्येक नागरिक की भी है। सैनिक सरहद पर देश की रक्षा करते हैं। देश के नागरिक देशभक्ति का परचम लहराने के साथ अपने कार्य के प्रति ईमानदारी और समर्पण के द्वारा देश को सुरक्षित रखने में मदद कर सकते हैं।

हंसा मेहता ने कविता सुनाई... हम सो सके चैन से, वे प्रहरी बन जागते सारी रात, हम सुकून से रह सके, वे भूखे-प्यासे लड़ते सीमा पर दिन-रात... परिवार हमारा निष्कंटक फले-फूले यही सोच पत्थर-कांटों से करते प्यार, शीतल छाया मिले हमें, धूप में तपते, चौकस वे रहते...

अंजू निगम ने रचना सुनाई, लम्हे जो गुजर गए थे उनकी याद दिलाई किसने, बुझी शमा दोबारा सुलगाई किसने, चिंगारी से भड़केंगे शोले हजारों देखना, विद्रोह की यह आग दिला में जलाई किसने....

डॉ. किसलय पंचोली ने कहा, ' यह सही है कि देश की सीमाओं की रक्षा करना निसंदेह सैनिकों का कर्तव्य है। और वे उसे बखूबी अंजाम देते हैं। लेकिन प्रकारांतर से अपने कार्य स्थल पर नैतिक मूल्यों की रक्षा करना हर नागरिक का कर्तव्य है। सोचना यह है कि क्या हम उनकी रक्षा करते हैं? यदि नहीं तो हम सैनिकों द्वारा सुरक्षित देश को दुर्दशा की ओर ठेलने के लिए उत्तरदायी हैं। जब तक हर नागरिक अपनी कर्तव्य चौकी पर मुस्तैदी से तैनात नहीं होता तब तक देश सही अर्थों में पूर्णतः सुरक्षित हो ही नहीं सकता।

कविता वर्मा ने कुशल संचालन करते हुए अपने विचार व्यक्त किए कि हमारी सेना हमारा अभिमान है हमारे सैनिक सिर्फ सरहद पर ही तैनात नहीं रहते बल्कि जरूरत पड़ने पर घरेलू मोर्चे पर भी अपनी सशक्त उपस्थिति से हमारा हौसला बढ़ाते हैं फिर चाहे केदारनाथ त्रासदी हो या देश में अशांति की स्थिति सेना हमेशा तत्पर रहती है। हम देश के आम नागरिक जिस तरह सेना की सराहना करते हैं उन्हीं की तरह अपने कर्तव्य को निभाने के प्रति भी सजग रहें। यह देश हम सभी का है देश की खुशहाली और उन्नति के लिये हमें हर छोटी से छोटी बात के लिये सकारात्मक होना चाहिए। राष्ट्रभक्ति का अर्थ सिर्फ हाथ में बंदूक लिए सरहद पर खड़े होकर दुश्मनों का सामना करना नहीं है। हमारे देश के अंदर अशिक्षा असमानता, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, सांप्रदायिकता रूपी जो दुश्मन हैं जो हमारे देश को खोखला कर रहे हैं उनसे हम आम इंसान ही लड़ सकते हैं। अफवाहों पर ध्यान न देना उन्हें फैलाने में सहयोग न करना अंधविश्वास दूर करने की कोशिश, शिक्षा का प्रसार, भ्रष्टाचार की जड़ पर प्रहार जैसे अनेक मुद्दे हैं जिनमें हम अपनी मजबूत और महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। राष्ट्र प्रेम हाथ में झंडा फहराने से बढ़कर रोजमर्रा के जीवन की जिम्मेदारी और कर्तव्य निभाना है। आम नागरिकों का स्व अनुशासन ही किसी भी देश की उन्नति और पहचान है।

इस अवसर पर एक आकर्षक पुस्तिका का विमोचन किया गया। यह पुस्तिका पर्यावरण दिवस पर संपन्न कार्यक्रम के रोचक और प्रेरक स्लोगन को संयोजित कर प्रकाशित की गई है।

आरंभ में आशा मुंशी ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। स्वागत भाषण वामा साहित्य मंच की अध्यक्ष पद्मा राजेंद्र ने दिया। आभार सचिव ज्योति जैन ने माना।

सैनिक का कर्तव्य क्या है?

सेना या फ़ौज किसी देश या उसके नागरिकों या फिर किसी शासन-व्यवस्था और उस से सम्बन्धित लोगों के हितों व ध्येयों को बढ़ाने और उनकी रक्षा के लिये घातक बल-प्रयोग की क्षमता रखने वाला सशस्त्र संगठन होता है। सेना का काम देश व नागरिकों की रक्षा, उनके शत्रुओं पर प्रहार करना और शत्रुओं के प्रहारों को खदेड़ देना होता है।

सैनिकों के प्रति देशवासियों का क्या कर्तव्य होना चाहिए?

उनका कर्त्तव्य देश को स्वच्छ और सुंदर बनाना हैं। उन्हें अपने देश की ऐतिहासिक विरासत और पर्यटन स्थलों को नष्ट और गंदा नहीं करना चाहिये। लोगों को दैनिक समाचारों और अन्य दैनिक गतिविधियों में देश में चल रही अच्छी और बुरी खबरों के बारे में जानने के लिये दिलचस्पी लेनी चाहिये।

क्या आप देश के सैनिकों का सम्मान करते?

सीमा पर विपरीत परिस्थितियों में भी जवान इसलिए दिनरात ड्यूटी देते हैं, ताकि हमारी आरामतलब जिंदगी में कोई खलल न पड़े। सैनिक ही नहीं, देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपनी मातृभूमि के सम्मान में हमेशा तत्पर रहे। कुछ परिस्थितियों के कारण कई बार लोग इसकी पूरी जिम्मेदारी सैनिकों के ऊपर ही थोप देते हैं।

सैनिक जीवन को त्याग मई क्यों कहा जाता है?

वे अपने सुख जीवन का त्याग करते हैं। धूप, बारिश और बर्फ का सामना करते हुए भी देश की रक्षा करते हैं। हर समय उनको सर्तक रहते हैं। इस लिए उनको नींद भी अच्छी तरह से नहीं मिलती हैं।

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