संसाधनों के दोहन से क्या अभिप्राय है? - sansaadhanon ke dohan se kya abhipraay hai?

संसाधनों का दोहन , संसाधनों के दोहन से होने वाली हानिया , चिपको आंदोलन , वनों पर निर्भर उद्योग 

10th science June 11, 2019

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depletion of natural resources in hindi संसाधनों का दोहन :

जब हम संसधानो का बहुत अधिक उपयोग करते है तो इनका लगातार हास् हने लगता है जिसे संसाधनों का दोहन कहते है।

संसाधनों के दोहन से होने वाली हानिया 

1. संसाधनों के दोहन से पर्यावरण को हानि पहुचती है और यह पर्यावरण को प्रदूषित भी करते है।

2. संसाधनों के दोहन से हम आने वाली पीढ़ी को उनके हक़ से वंचित करते है अर्थात् उनके लिए हमे संसाधनों को रहने देना चाहिए।

चिपको आंदोलन 

यह आन्दोलन वनों की कटाई को रोकने हेतु गढ़वाल के रेनी नमक गांव में सन 1970 में हुआ। उस समय गांव में पुरुष नहीं थे जिसके कारण वहा की महिलाओ ने उस जगह पर जाकर वह के वनों से चिपक गयी जिसके कारण पेड़ काटने वाले ढेकेकारो को पेढ़ काटने का कम रोकना पड़ा ।यह आन्दोलन अन्य समुदाय में भी फ़ैल गया तथा यह आन्दोलन चिपको आन्दोलन के नाम से जाना जाता है।

राजस्थान के विश्नोई समुदाय के लिए वन एवं वन्य प्राणि संरक्षण उनके धार्मिक अनुष्ठान का भाग बन गया है। भारत सरकार ने जीव संरक्षण हेतु अमृता देवी विश्नोई राष्ट्रीय पुरस्कार की व्यवस्था की है। यह पुरस्कार अमृता देवी विश्नोई की स्मृति में दिया जाता है जिन्होंने 1731 में राजस्थान के जोधपुर के पास खेजराली गाँव में ‘खेजरी वृक्षों’ को बचाने हेतु 363 लोगों के साथ अपने आप को बलिदान कर दिया था।

वनों पर निर्भर उद्योग 

टिम्बर (इमारती लकड़ी), कागज, लाख तथा खेल के समान अन्य उद्योग भी वनों पर निर्भर करते हैं।उद्योग इन वनों को अपनी फैक्टरी के लिए कच्चे माल का स्रोत मात्र मानते हैं। निहित स्वार्थ से लोगों का एक बड़ा वर्ग सरकार से उद्योगों के लिए कच्चे माल को बहुत कम मूल्य पर प्राप्त कर लेता है। क्योंकि स्थानीय निवासियों की अपेक्षा इन व्यक्तियों की पहुँच सरकार में काफी ऊपर तक होती है, अतः उन्हें उस क्षेत्र के संपोषित विकास में कोई रुचि नहीं होती है।

उदाहरण के लिए किसी वन के टीक के सभी वृक्षों को काटने के बाद, वे दूरस्थ वनों से टीक प्राप्त करने लगते है। उन्हें इस बात से मतलब नहीं होता कि वे इनका इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करें जिससे कि वह आगे आने वाली पीढि़यों को भी उपलब्ध हो सके।

वनों की प्राकृतिक छवि में मनुष्य का हस्तक्षेप बहुत अधिक होता है। हमें इस हस्तक्षेप की प्रकृति एवं सीमा को नियंत्रित करना होगा। वन संसाधनों का उपयोग हमे कुछ इस तरह से करना होगा की जो पर्यावरण एवं विकास दोनों के हित में हो। दूसरे शब्दों में जब पर्यावरण अथवा वन संरक्षित किए जाते है तो उसके सुनियोजित उपयोग का लाभ स्थानीय निवासियों को मिलना चाहिए।

विकेंद्रीकरण 

विकेंद्रीकरण एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें आर्थिक विकास एवं पारिस्थितिक संरक्षण दोनों साथ-साथ चलते हैं। जिस प्रकार का आर्थिक एवं सामाजिक विकास हम चाहते हैं उससे ही अंततः यह निर्णय होगा कि उससे पर्यावरण का संरक्षण हो रहा है या इसका और विनाश हो रहा है। पर्यावरण को पौधों और जंतुओं का सजावटी संग्रह मात्र ही नहीं माना जा सकता अत: यह एक जटिल व्यवस्था है जिससे हमें उपयोग हेतु अनेक प्रकार के प्राकृतिक संसाधन प्राप्त होते हैं। हमें अपने आर्थिक एवं सामाजिक विकास की आपूर्ति हेतु इन संसाधनों का सावधानीपूर्वक उपयोग करना होगा।

वन प्रबंधन में लोगों की भागीदारी 

पश्चिम बंगाल वन विभाग को 1972 में प्रदेश के दक्षिण पश्चिम जिलों में नष्ट हुए साल के वनों को पुनःपूरण करने की अपनी योजना असफल हो गयी जिसके कारण सतर्कता की परंपरागत विधियों और पुलिस की कार्रवाई से स्थानीय लोग और प्रशासन में बहुत ज्यादा झड़पे होने लगी।

अतः वन विभाग ने अपनी नीति में बदलाव कर दिया तथा मिदनापुर के अराबाड़ी वन क्षेत्र में एक योजना प्रारंभ की। यहाँ वन विभाग के एक अधिकारी ए-केबनर्जीने ग्रामीणों को अपनी योजना में शामिल किया तथा उनके सहयोग से बुरी तरह से क्षतिग्रस्त साल के वन की 1272 हेक्टेयर क्षेत्र का संरक्षण किया। इसके बदले में निवासियों को क्षेत्र की देखभाल की जिम्मेदारी के लिए रोजगार मिला और साथ ही उन्हें वहाँ से उपज की 25 प्रतिशत के उपयोग का अधिकार भी मिला और बहुत कम मूल्य पर ईधन के लिए लकड़ी और पशुओं को चराने की अनुमति भी दी गई। स्थानीय समुदाय की सहमति एवं सक्रिय भागीदारी से 1983 तक अराबाड़ी का सालवन समृद्ध हो गया तथा पहले बेकार कहे जाने वाले वन का अब मूल्य कम से कम 12-5 करोड़ आँका गया।

जल 

धरती पर रहने वाले सभी जीवों की मूल आवश्यकता जल है। परन्तु मनुष्य की प्रकृति में दखल से अनेक क्षेत्र मे जल की उपलब्धता प्रभावित हुई है तथा जल स्रोतों को प्रदूषित किया है। जल की कमी वाले क्षेत्र एवं अत्यधिक गरीबी में रहने वाले क्षेत्र में घनिष्ट संबंध है। भारत में वर्षा मुख्यतः मानसून पर निर्भर करती है। इसका अर्थ है कि वर्षा की अवधि वर्ष के कुछ महीनों तक ही रहती है।

जल की मात्रा में कमी होने के कारण 

1.किसी भी क्षेत्र के वनस्पति आच्छादन कम होने के कारण भूजल स्तर

की उपलब्धता में काफ़ी कमी आ गयी है।

2.फसलों के लिए जल की अधिक मात्रा की माँग ने भी इसकी उपलब्धता को कम कर दिया है।

3.उद्योगों से प्रवाहित प्रदूषक एवं नगरों के कूड़ा-कचरे ने जल को प्रदूषित कर उसकी उपलब्धता

को और कम कर दिया है।

बाँध, जलाशय एवं नहरों का उपयोग भारत के विभिन्न क्षेत्र में सिंचाई के लिए किया जाता है। पहले इन तकनीकों का प्रयोग स्थानीय लोगों दवारा कृषि एवं दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जाता था, जिससे जल पूरे वर्ष उपलब्ध रह सके। इस भंडारित जल का नियंत्रण भली प्रकार से किया जाता था तथा सिंचाई के इन संसाधनों का प्रबंधन भी स्थानीय लोगों द्वारा किया जाता था।

संसाधनों का दोहन क्या है?

depletion of natural resources in hindi संसाधनों का दोहन : जब हम संसधानो का बहुत अधिक उपयोग करते है तो इनका लगातार हास् हने लगता है जिसे संसाधनों का दोहन कहते है।

संसाधनों से क्या अभिप्राय है?

हमारे पर्यावरण में उपलब्ध हर वह वस्तु संसाधन कहलाती है जिसका इस्तेमाल हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये कर सकते हैं, जिसे बनाने के लिये हमारे पास प्रौद्योगिकी है और जिसका इस्तेमाल सांस्कृतिक रूप से मान्य है। प्रकृति का कोई भी तत्व तभी संसाधन बनता है जब वह मानवीय सेवा करता है

संसाधन से आप क्या समझते हैं उदाहरण दो?

Solution : हमारे पर्यावरण में उपलब्ध प्रत्येक वस्तु जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने में प्रयुक्त की जा सकती है और जिसको बनाने के लिए प्रौद्योगिकी उपलब्ध है, जो आर्थिक रूप से संभाव्य और सांस्कृतिक रूप से मान्य है, एक संसाधन है। कोयला, जल, वायु, खनिज आदि, संसाधनों के कुछ उदाहरण हैं।

संसाधनों के दोहन के क्या फायदे होंगे?

हमें वन एवं वन्य जीवन का संरक्षण करना चाहिए क्योंकि:.
यह पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिए ज़रूरी है।.
जैविक विविधता बनी रहे।.
यह भूमि के कटाव को रोकते हैं।.
वन्य जीवन के संरक्षण के लिए और उन्हें आश्रय प्रदान करने के लिए।.

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