स्वतंत्रता आंदोलन में प्रिंट मीडिया की भूमिका - svatantrata aandolan mein print meediya kee bhoomika

यह लेख एक आधार है। जानकारी जोड़कर इसे बढ़ाने में विकिपीडिया की मदद करें।

विभिन्न एलेक्ट्रॉनिक माध्यमों सहित परम्परागत रूप से प्रकाशित अखबारों को प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रेस की स्वतंत्रता कहा जाता है।

किन्तु इस समस्या का एक दूसरा पहलू भी है। दुनियाभर में मीडिया कार्पोरेट के हाथ में है जिसका एकमात्र उद्देश्य अधिक से अधिक फ़ायदा कमाना है। वास्तव में कोई प्रेस स्वतंत्रता है ही नहीं। बड़े पत्रकार मोटा वेतन लेते हैं और इसी वजह से वे फैंसी जीवनशैली के आदी हो गए हैं। वो इसे खोना नहीं चाहेंगे और इसलिए ही आदेशों का पालन करते हैं और तलवे चाटते हैं।[1]

विभिन्न देशों की सरकारें भी विभिन्न कानून लाकर प्रेस पर काबू पाना चाहते हैं। उदाहरण के तौर पर भारत सरकार नें हाल ही में ऑनलाइन मीडिया वेबसाइट पर निगरानी रखने के लिए नया कानून पेश किया है।[2] इसके तहत सरकार ऑनलाइन कुछ भी छपने पर नियंत्रण करना चाहती है।

कुँवर सुनील शाह युवा पत्रकार,दमोह भारतीय संविधान में उल्लेख किया गया है कि भारतीय मीडिया पत्रकारों को उनके प्रेस स्वतंत्रता का अधिकार देते हुए वह निचले स्तर की आवाज ऊपर शासन प्रशासन तक पहुंचाने के लिए किया गया है और प्रेस को स्वतंत्रता दी गई है कि वह न्याय दिलाने का काम करें इसी माध्यम से मीडिया क्षेत्र को न्याय का चौथा स्तंभ कहा गया है क्योंकि जो दबे कुचले जिस को न्याय नहीं मिलता उन लोगों की है आवाज उठाकर अपनी मीडिया पत्रकार पत्र अखबारों में प्रकाशित करते हुए उनकी आवाज शासन प्रशासन तक पहुंचाई जाती है जिसके माध्यम से न्याय मिलता है

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. प्रेस की आजादी को कुचल देना चाहिएः काटजू
  2. सरकार की ऑनलाइन न्यूज़ वेबसाइट्स पर लगाम लगाने की तैयारी - दा इंडियन वायर

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
  • भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
  • सूचना-माध्यमों का संकेन्द्रण (media concentration )
  • सूचना-माध्यमों की पारदर्शिता (Media transparency)

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • मीडिया और कानून Archived 2010-05-24 at the Wayback Machine
  • Risorse Etiche Publish and translate articles of independent journalists
  • the ACTivist Magazine Archived 2006-08-14 at the Wayback Machine
  • Banned Magazine, the journal of censorship and secrecy. Archived 2007-03-15 at the Wayback Machine
  • News and Free Speech - Newspaper Index Blog Archived 2006-02-05 at the Wayback Machine
  • Press Freedom
  • OSCE Representative on Freedom of the Media
  • MANA - the Media Alliance for New Activism
  • IMH-Internationale Medienhilfe www.medienhilfe.org
  • International Freedom of Expression Exchange- Monitors press freedom around the world
  • IPS Inter Press Service Archived 2006-08-29 at the Wayback Machine Independent news on press freedom around the world
  • The Reporters Committee for Freedom of the Press
  • Reporters Without Borders
  • Doha Center for Media Freedom Archived 2010-11-01 at the Wayback Machine
  • World Press Freedom Committee Archived 2010-07-24 at the Wayback Machine
  • Student Press Law Center
  • Freedom Forum
  • Union syndicale des journalistes CFDT

  • होम
  • वीडियो
  • सर्च
  • वेब स्टोरीज
  • ई-पेपर

  • होम
  • वीडियो
  • सर्च
  • वेब स्टोरीज
  • ई-पेपर

  • Hindi News
  • National
  • देश की आजादी में रही प्रेस की अहम भूमिका

देश की आजादी में रही प्रेस की अहम भूमिका

अग्रवालवैश्यसमाज के प्रदेश युवा अध्यक्ष विकास गर्ग ने कहा कि देश को आजाद कराने में जो भूमिका समाचार पत्रों की रही वह स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की तरह थी। देश के लोगों को जाग्रत करने के लिए समाचारों का प्रकाशन होता था। समाचार छापने के बाद अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ समाचार वितरण करना भी बहुत कठिन था लेकिन देश के लोगों ने आजादी के लिए समाचार पत्रों प्रेस में कार्य किया और लोगों को जाग्रत कर देश से अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंका। गर्ग मंगलवार को कैथल मीडिया क्लब द्वारा प्रेस दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित कार्यक्रम में विशेष रूप से पहुंचे थे।

उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में पत्रकारों की अहम भूमिका रही है। देश की आजादी में देश के वीर शहीदों के समान पत्रकारों ने अपनी भूमिका अदा की। प्रदेश प्रवक्ता धर्मवीर केमिस्ट ने कहा कि पत्रकारिता एक पेशा नहीं बल्कि जनसेवा का माध्यम है। लोकतांत्रिक परंपराओं की रक्षा करने एवं शांति और भाईचारे की भावना बढ़ाने में इसकी अहम भूमिका है। पत्रकारिता नई जानकारी देता है, लेकिन नई जानकारी से ही संतुष्ट नहीं होता इसलिए वह घटनाओं, नई बातों नई जानकारियों की व्याख्या करने का प्रयास भी करता है। घटनाओं का कारण, प्रतिक्रियाएं एवं उनकी अच्छाई बुराइयों की विवेचना भी करता है। कार्यक्रम में सतीश सेठ, प्रदीप हरित, नवीन मल्होत्रा, जोगिंद्र कुंडू, ललित दिलकश, मोहित गुलाटी, मनोज वर्मा, पंकज आत्रेय, कुंज शर्मा, केदारनाथ शर्मा, विक्रम यादव, जसविंदर जस्सी, सोनू, युवा कैथल अध्यक्ष अमित गर्ग, प्रदेश उपाध्यक्ष शुभम गुप्ता, जिलाध्यक्ष वेदप्रकाश गर्ग, विधानसभा अध्यक्ष बसंत जैन, महिला विंग की अध्यक्ष ज्योति मित्तल, हिमांशु, मनोज गर्ग भी मौजूद रहे।

कैथल| ओएसडीपत्रकारों से बातचीत करते हुए।

राष्ट्रीय आंदोलन में प्रेस की भूमिका क्या थी?

प्रेस तथा समाचार पत्रों की भूमिका: प्रेस तथा समाचार-पत्रों ने ब्रिटिश उपनिवेशवादी तंत्र की मानसिकता से लोगों को परिचित कराया तथा देशवासियों के मन में एकता की भावना को जागृति किया, समाचार-पत्रों के माध्यम से विभिन्न विषयों पर लिखे गए लेखों ने देशवासियों को अधिकार बोध की चेतना से भर दिया, जिसके फलस्वरूप एक संगठित आंदोलन ...

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में समाचार पत्रों की क्या भूमिका रही?

बीसवीं सदी के दूसरे-तीसरे दशक में सत्याग्रह, असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन के प्रचार प्रसार और उन आन्दोलनों की कामयाबी में समाचार पत्रों की अहम भूमिका रही। कई पत्रों ने स्वाधीनता आन्दोलन में प्रवक्ता का रोल निभाया। कानपुर से 1920 में प्रकाशित 'वर्तमान' ने असहयोग आन्दोलन को अपना व्यापक समर्थन दिया था।

स्वतंत्र पत्रकारिता से आप क्या समझते है?

विभिन्न एलेक्ट्रॉनिक माध्यमों सहित परम्परागत रूप से प्रकाशित अखबारों को प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रेस की स्वतंत्रता कहा जाता है। किन्तु इस समस्या का एक दूसरा पहलू भी है। दुनियाभर में मीडिया कार्पोरेट के हाथ में है जिसका एकमात्र उद्देश्य अधिक से अधिक फ़ायदा कमाना है।

स्वतंत्रता का संघर्ष कितने वर्षों तक चला?

क्रांतिकारी आंदोलन का समय सामान्यतः लोगों ने सन् 1857 से 1942 तक माना है। श्रीकृष्ण सरल का मत है कि इसका समय सन् 1757 अर्थात् प्लासी के युद्ध से सन् 1961 अर्थात् गोवा मुक्ति तक मानना चाहिए। सन् 1961 में गोवा मुक्ति के साथ ही भारतवर्ष पूर्ण रूप से स्वाधीन हो सका है।

संबंधित पोस्ट

Toplist

नवीनतम लेख

टैग