वैदिक परंपरा और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार पितरों के लिए श्रद्धा से श्राद्ध करना एक महान और उत्कृष्ट कार्य है. मान्यता के मुताबिक पुत्र का पुत्रत्व तभी सार्थक माना जाता है जब वह अपने जीवन काल में जीवित माता-पिता की सेवा करें और उनके मरणोपरांत उनकी मृत्यु तिथि (बरसी) तथा महालय (पितृपक्ष) में उसका विधिवत श्राद्ध करें.
अश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से आश्विन महीने की अमावस्या तक को पितृपक्ष या महालया पक्ष कहा गया है. मान्यता के अनुसार पिंडदान मोक्ष प्राप्ति का एक सहज और सरल मार्ग है.
ऐसे तो देश के हरिद्वार, गंगासागर, कुरुक्षेत्र, चित्रकूट, पुष्कर सहित कई स्थानों में भगवान पितरों को श्रद्धापूर्वक किए गए श्राद्ध से मोक्ष प्रदान कर देते हैं, लेकिन गया में किए गए श्राद्ध की महिमा का गुणगान तो भगवान राम ने भी किया है. कहा जाता है कि भगवान राम और सीताजी ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में ही पिंडदान किया था.
आचार्यों के मुताबिक जनमानस में यह आम धारणा है कि एक परिवार से कोई एक ही 'गया' करता है. गया करने का मतलब है कि गया में पितरों को श्राद्ध करना, पिंडदान करना. गरूड़ पुराण में लिखा गया है कि गया जाने के लिए घर से निकलने पर चलने वाले एक-एक कदम पितरों के स्वर्गारोहण के लिए एक-एक सीढ़ी बनते जाते हैं. 'गृहाच्चलितमात्रस्य गयायां गमनं प्रति. स्वर्गारोहणसोपानं पितृणां तु पदे-पदे.'
गया को विष्णु का नगर माना गया है. यह मोक्ष की भूमि कहलाती है. विष्णु पुराण और वायु पुराण में भी इसकी चर्चा की गई है. विष्णु पुराण के मुताबिक गया में पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है और वे स्वर्ग चले जाते हैं. माना जाता है कि स्वयं विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं, इसलिए इसे 'पितृ तीर्थ' भी कहा जाता है.
गया के पंडा रामानंद कहते हैं कि फल्गु नदी के तट पर पिंडदान किए बिना पिंडदान हो ही नहीं सकता. पिंडदान की प्रक्रिया पुनपुन नदी के किनारे से प्रारंभ होती है. ऐसे तो प्रतिपदा से पिंडदान किया जाता है परंतु पूर्णिमा से भी कई लोग पिंडदान करने लगते हैं.
पौराणिक मान्यताओं और किवंदंतियों के अनुसार भस्मासुर के वंश में गयासुर नामक राक्षस ने कठिन तपस्या कर ब्रह्माजी से वरदान मांगा था कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और लोग उसके दर्शन मात्र से पाप मुक्त हो जाएं. इस वरदान के मिलने के बाद स्वर्ग की जनसंख्या बढ़ने लगी और प्राकृतिक नियम के विपरीत सब कुछ होने लगा. लेाग बिना भय के पाप करने लगे और गयासुर के दर्शन से पाप मुक्त होने लगे.
इससे बचने के लिए देवताओं ने यज्ञ के लिए पवित्र स्थल की मांग गयासुर से मांगी. गयासुर ने अपना शरीर देवताओं के यज्ञ के लिए दे दिया. जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया.
यही पांच कोस की जगह आगे चलकर गया बनी परंतु गयासुर के मन से लोगों को पाप मुक्त करने की इच्छा नहीं गई और फिर उसने देवताओं से वरदान मांगा कि यह स्थान लोगों को तारने (मुक्ति) वाला बना रहे. जो भी लोग यहां पर किसी का तर्पण करने की इच्छा से पिंडदान करें, उन्हें मुक्ति मिले. यही कारण है कि आज भी लोग अपने पितरों को तारने के लिए पिंडदान के लिए गया आते हैं.
कहा जाता है कि गया में पहले विभिन्न नामों की 360 वेदियां थीं, जहां पिंडदान किया जाता था. इनमें से अब 48 ही बची हैं. हालांकि कई धार्मिक संस्थाएं उन पुरानी वेदियों की खोज की मांग कर रही हैं. वर्तमान समय में इन्हीं वेदियों पर लोग पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं. पिंडदान के लिए प्रतिवर्ष गया में देश-विदेश से लाखों लोग आते हैं.
दशरथ का अर्थ होता है दस रथ। दस रथों का स्वामी। अयोध्या के राजा दशरथ की रामायण के अलावा पुराणों में भी बहुत चर्चा होती है। आओ जानते हैं उनके संबंध में 10 ऐसी बातें तो शायद ही आप जानते होंगे।
1.दशरथ का राज्य : राजा दशरथ के राज्य कौशल की राजधानी अयोध्या थी। वाल्मीकि रामायण के 5वें सर्ग में अयोध्या पुरी का वर्णन विस्तार से किया गया है। सरयू नदी के तट पर बसे इस नगर की रामायण अनुसार विवस्वान (सूर्य) के पुत्र वैवस्वत मनु महाराज द्वारा स्थापना की गई थी।
2.दशरथ के वंशज : दशरथ वैवस्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु के कुल में उत्पन्न हुए थे। रामायण के अनुसार नहुष के पुत्र ययाति और ययाति के पुत्र नाभाग हुए। नाभाग के पुत्र का नाम अज था। अज के पुत्र दशरथ हुए। इनकी माता का नाम इन्दुमती था।
3.दशरथ की पत्नियां : राजा दशरथ की तीन रानियां थीं- कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी। कोशल नरेश सुकौशल माहराज की पुत्री कौशल्या, कैकय नरेश अश्वपति सम्राट की पुत्री कैकयी और काशी नरेश की पुत्री सुमित्रा यह तीन रानियां दशरथ की भार्याएं थी।
4. दशरथ की पुत्रियां : राजा दशरथ की दो पुत्रियां थीं। शांता और कुकबी। कुकबी के बारे में ज्यादा उल्लेख नहीं मिलता लेकिन शांता राजा दशरथ और कौशल्या की पुत्री थीं, लेकिन पैदा होने के कुछ वर्षों बाद कुछ कारणों से राजा दशरथ ने शांता को अंगदेश के राजा रोमपद को दे दिया था। भगवान राम की बड़ी बहन का पालन-पोषण राजा रोमपद और उनकी पत्नी वर्षिणी ने किया, जो महारानी कौशल्या की बहन अर्थात राम की मौसी थीं।
5. दशरथ के पुत्र : दशरथ के चार पुत्र हुए राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हैं। राम की माता का नाम कौशल्या, लक्ष्मण और शत्रुघ्न की माता का नाम सुमित्रा और भरत की माता का नाम कैकेयी था। लक्ष्मण की पत्नी का नाम उर्मिला, शत्रुध्न की पत्नी का नाम श्रुतकीर्ति और भरत की पत्नी का नाम मांडवी था। सीता और उर्मिला राजा जनक की पुत्रियां थी और मांडवी और श्रुतकीर्ति कुशध्वज की पुत्रियां थीं।
6. पुत्रेष्टि यज्ञ से जन्मे थे चार पुत्र : वशिष्ठ के कहने पर राजा दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ के बारे में सोचा। दशरथ के मंत्री सुमंत की सलाह पर पुत्रकामेष्ठि यज्ञ में महान ऋषियों को बुलाया गया। इस यज्ञ में दशरथ ने ऋंग ऋषि को भी बुलाया। ऋंग ऋषि एक पुण्य आत्मा थे तथा जहां वे पांव रखते थे वहां यश होता था। सुमंत ने ऋंग को मुख्य ऋत्विक बनने के लिए कहा। दशरथ ने आयोजन करने का आदेश दिया। पहले तो ऋंग ऋषि ने यज्ञ करने से इंकार किया लेकिन बाद में शांता के कहने पर ही ऋंग ऋषि राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करने के लिए तैयार हुए थे। शांता दशरथ की पुत्री थीं, जिसे दशरथ ने छोड़ दिया था।
7. देवासुर संग्राम : एक बार राजा दशरथ ने देवासुर संग्राम में इंद्र के कहने पर भाग लिया था। इस युद्ध में उनकी पत्नी कैकयी ने उनका साथ दिया था। युद्ध में दशरथ अचेत हो गए थे। राजा के अचेत होने पर कैकेयी उन्हें रणक्षेत्र से बाहर ले आयी थी, अत: प्रसन्न होकर दशरथ ने दो वरदान देने का वादा किया था। तब कैकेयी ने कहा था कि वक्त आने पर मांगूगी। बाद में मंथरा के कान भरने पर कैकयी ने राम का वनवास और भरत के लिए राज्य मांग लिया था।
8. दशरथकृत शनि स्तोत्र : कहते हैं कि राजा दशरथ ने शनि स्त्रोत को रचा था। जो भी जातक शनि ग्रह, शनि साढ़ेसाती, शनि ढैया या शनि की महादशा से पीड़ित हैं उन्हें दशरथकृत शनि स्तोत्र का नियमित पाठ करना चाहिए। इस पाठ को नियमित करने से भगवान शनि प्रसन्न होते हैं तथा जीवन की समस्त परेशानियों से मुक्ति दिलाकर जीवन को मंगलमय बनाते हैं।
9. राजा दशरथ और श्रवण कुमार : श्रवण के माता-पिता अंधे थे। एक दिन श्रवण के माता-पिता ने कहा- 'हमारी उमर हो गई अब हम भगवान के भजन के लिए तीर्थ यात्रा पर जाना चाहते हैं बेटा। शायद भगवान के चरणों में हमें शांति मिले।' श्रवण सोच में पड़ गया। फिर श्रवण ने दो बड़ी-बड़ी टोकरियां लीं। उसमें माता पिता को बिठाकर वो तीर्थ यात्रा कराने चल पड़ा।
एक दोपहर श्रवण और उसके माता-पिता अयोध्या के पास एक जंगल में विश्राम कर रहे थे। मां को प्यास लगी। श्रवण कमंडल लेकर पानी लाने चला गया। अयोध्या के राजा दशरथ जंगल में शिकार खेलने आए हुए थे। श्रवण ने जल भरने के लिए कमंडल को पानी में डुबोया। बर्तन में पानी भरने की अवाज सुनकर राजा दशरथ को लगा कोई जानवर पानी पानी पीने आया है। राजा दशरथ ने आवाज के आधार पर तीर मारा। तीर सीधा श्रवण के सीने में जा लगा। श्रवण के मुंह से ‘आह’ निकल गई।
माता पिता को जब पता चला तो वे 'हां श्रवण, हाय मेरा बेटा' मां चीत्कार कर उठी। बेटे का नाम रो-रोकर लेते हुए, दोनों ने प्राण त्याग दिए। पानी को उन्होंने हाथ भी नहीं लगाया। प्यासे ही उन्होंने इस संसार से विदा ले ली। कहा जाता है कि राजा दशरथ ने बूढ़े मां बाप से उनके बेटे को छीना था। इसीलिए राजा दशरथ को भी पुत्र वियोग सहना पड़ा रामचंद्रजी चौदह साल के लिए वनवास को गए। राजा दशरथ यह वियोग नहीं सह पाए। इसीलिए उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।
10.राजा दशरथ की मत्यु : श्रवणकुमार की मृत्यु के बाद राजा दशरथ भी रामजी के वियोग में स्वर्ग को प्राप्त हुए। राम को यह समाचार उनके चित्रकुट निवास के दौरान मिला। राजा भरत उन्हें लेने को गए लेकिन राम ने यह कहकर आने से इनकार कर दिया कि पिता को दिया वचन मेरे लिए महत्वपूर्ण है।