स्टोरी हाइलाइट्स
- दुष्प्रेरण करने वाले के बारे में बताती है ये धारा
- अंग्रेजी शासनकाल में लागू हुई थी आईपीसी
- जुर्म और उनकी सजा का प्रावधान बताती है IPC
Indian Penal Code: भारतीय दंड संहिता की धाराओं में अदालत (Court), पुलिस (Police) और अन्य कानूनी एजेंसियों (Legal agencies) की कार्य प्रणाली से जुड़े प्रावधान (Provision) दर्ज हैं. ऐसे ही आईपीसी (IPC) की धारा 107 (Section 107) में ऐसे व्यक्ति के बारे में बताया गया है, जो किसी बात के किए जाने का दुष्प्रेरण (Abetment) करता है. आइए जानते हैं कि आईपीसी की धारा 107 इस बारे में क्या जानकारी देती है?
आईपीसी की धारा 107 (Indian Penal Code Section 107)
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 107 (Section 107) में दुष्प्रेरण (Abetment) करने वाले व्यक्ति के बारे में प्रावधान किया गया है. IPC की धारा 107 के अनुसार, वह व्यक्ति किसी बात के किए जाने का दुष्प्रेरण (Abetment) करता है, जो-
प्रथम- उस बात को करने के लिए किसी व्यक्ति को उकसाता
(Incites) है, अथवा
द्वितीय- उस बात को करने के लिए किसी षड्यंत्र (Conspiracy) में एक या अधिक अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों के साथ सम्मिलित होता है, यदि उस षडयंत्र के अनुसरण (Following a conspiracy) में, कोई कार्य या अवैध चूक होती है, अथवा
तृतीय- उस बात के किए जाने में किसी कार्य या अवैध लोप (Indirectly) द्वारा साशय (जानबूझ) कर सहायता करता है.
साधारण भाषा में कहें तो दुष्प्रेरण (Abetment) का अर्थ है, किसी व्यक्ति को कोई कार्य करने के लिए, और यदि वह व्यक्ति कोई कार्य कर रहा है, तो उसे वह कार्य करने से रोकने के लिए उकसाना या प्रेरित करना. लेकिन हर बार सामान्यतः किसी व्यक्ति को किसी कार्य के लिए उकसाना कोई अपराध (Offence) नहीं माना जाता है लेकिन जब भी ऐसे किसी दुष्प्रेरण में कोई गैर कानूनी बात आ जाएगी, तो ऐसा दुष्प्रेरण एक अपराध माना जाएगा.
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क्या होती है आईपीसी (IPC)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी
नागरिक (Citizen) द्वारा किये गये कुछ अपराधों (certain offenses) की परिभाषा (Definition) और दंड (Punishment) का प्रावधान (Provision) करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना (Indian Army) पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी (IPC) जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
अंग्रेजों ने लागू की थी IPC
ब्रिटिश कालीन भारत (British India) के पहले कानून आयोग (law
commission) की सिफारिश (Recommendation) पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले (Lord Macaulay) ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.
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धारा 107 का विवरण
भारतीय दंड संहिता की धारा 107 के अनुसार,
वह व्यक्ति किसी चीज़ के किए जाने का दुष्प्रेरण करता है, जो -
उस चीज़ को करने के लिए किसी व्यक्ति को उकसाता है; अथवा
उस चीज़ को करने के लिए किसी षड्यंत्र में एक या अधिक अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों के साथ सम्मिलित होता है, यदि उस षडयंत्र के अनुसरण में, कोई कार्य या अवैध चूक होती है; अथवा
उस चीज़ के किए जाने में किसी कार्य या अवैध लोप द्वारा जानबूझ कर सहायता करता है ।
स्पष्टीकरण 1-- अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर दुर्व्यपदेशन या तात्विक तथ्य द्वारा, जिसे प्रकट करने के लिए वह आबद्ध है, जानबूझकर छिपाने द्वारा, स्वेच्छा से किसी चीज़ का किया जाना कारित करता है अथवा कारित करने का प्रयत्न करता है, तो उसे उस चीज़ को करने के लिए उकसाना कहा जाता है ।
भारतीय दंड संहिता की धारा 107 (किसी बात का दुष्प्रेरण करना)
भारतीय दंड संहिता की धारा 107 में दुष्प्रेरण के अपराध के बारे में समझाया है, दुष्प्रेरण का शाब्दिक
अर्थ है, किसी व्यक्ति को कोई कार्य करने के लिए, और यदि वह व्यक्ति कोई कार्य कर रहा है, तो उसे वह कार्य करने से रोकने के लिए उकसाना या प्रेरित करना होता है। सामान्यतः किसी व्यक्ति को किसी कार्य के लिए उकसाना कोई अपराध नहीं माना जाता है, किन्तु जब ऐसे किसी दुष्प्रेरण में कोई गैर क़ानूनी तत्त्व आ जाता है, तो ऐसा दुष्प्रेरण एक अपराध की श्रेणी में आ जाता है। भारतीय दंड संहिता में दुष्प्रेरण के कई प्रकारों को समझाया गया है, और दुष्प्रेरण के अपराध के साथ - साथ इस अपराध की सजा के बारे में भी बताया गया
है।
दुष्प्रेरण क्या और कैसे होता है
भारतीय दंड संहिता की धारा 107 में दुष्प्रेरण की परिभाषा को कई उदाहरणों के साथ समझाया गया है, जिसके अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति से किसी कार्य को करने के लिए उकसाता है, या उस व्यक्ति को दुष्प्रेरण करता है, तो भारतीय दंड संहिता के अनुसार यह निम्न प्रकार से किया जाता है,
प्रथम
कोई व्यक्ति
किसी अन्य व्यक्ति को किसी कार्य को करने के लिए उकसाता है।
द्वितीय
उस कार्य को करने के लिए उसे किसी षडयंत्र का रूप दिया जा सकता है, जिसमें संभवतः एक या एक से अधिक व्यक्ति भी सम्मिलित हो सकते हैं, यदि किसी व्यक्ति से कोई कार्य करवाने के लिए एक से एक से अधिक लोग किसी षड़यंत्र का प्रयोग करते हैं।
तृतीय
यदि एक व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को कोई अवैध या गैर क़ानूनी कार्य करने के लिए कहता है। तो इस कृत्य को भी भारतीय दंड संहिता कि धारा 107 के तहत ही
अपराध माना जाता है।
दुष्प्रेरण के लिए आवश्यक तत्व
भारतीय दंड संहिता कि धारा 107 में वर्णित दुष्प्रेरण के अपराध के लिए कुछ आवश्यक तत्त्व निम्न हैं
किसी व्यक्ति को उकसाना
कानून की भाषा में उकसाने का अर्थ है, किसी व्यक्ति को कोई कार्य करने के लिए उत्तेजित करना, सक्रीय रूप से किसी कार्य को
करने के लिए कोई सुझाव देना, इसके आलावा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संकेत द्वारा प्रेरित करना, फुसलाना, प्रार्थना करना, विनती करना, किसी कार्य को करने या करने से रोकने के लिए उत्साहित करना। परन्तु कोई कार्य दुष्प्रेरण की श्रेणी में केवल तभी आएगा जब वह कार्य स्वयं अपराध हो। दुष्प्रेरण मौन स्वीकृति देने से भी किया जा सकता है।
षडयंत्र
कोई व्यक्ति कुछ अन्य व्यक्तियों के साथ मिल कर षडयंत्र द्वारा भी दुष्प्रेरण कर सकता है, जब
-
दो या दो से अधिक व्यक्ति एकत्र हों ,और
वे किसी कार्य के लिए एकत्र हों,
ऐसा कार्य षडयंत्र करके किया गया हो
ऐसा कोई कार्य करने से कोई अवैध या गैर क़ानूनी कार्य हो गया हो
सहायता द्वारा दुष्प्रेरण
सहायता करने से दुष्प्रेरण तीन प्रकार से किया जा सकता है
कोई कार्य करके
कोई व्यक्ति किसी प्रकार का कार्य करके किसी अपराध के घटित होने में सहायता करता है, तो उस अपराध को कार्य करके सहायता द्वारा दुष्प्रेरण कहा जाता है। उदहारण के लिए कोई व्यक्ति जानते हुए अपना मकान किराये पर दे देता है, कि उसका मकान का उपयोग अवैध कार्यो के लिए किया जायेगा।
अवैध क्रिया करके
किसी व्यक्ति का कोई कार्य क़ानूनी ढंग से करने का दायित्व होता है, और वह जान बूझकर वह कार्य गैर क़ानूनी ढंग से करता है, तो ऐसी स्तिथि में वह व्यक्ति दुष्प्रेरण का अपराध करता है।
कार्य को आसान बनाकर
दंड संहिता की धारा 107 में वर्णित स्पष्टीकरण 2 इस बात की पुष्टि करता है, कि किसी कार्य को सुगम बनाकर भी दुष्प्रेरण किया जा सकता है।
दुष्प्रेरण के लिए सजा का प्रावधान
भारतीय दंड संहिता की धारा 109 में दुष्प्रेरण के लिए दंड के प्रावधान का स्पष्टीकरण दिया गया है, जिसके अनुसार जो कोई व्यक्ति किसी अपराध का दुष्प्रेरण करता है, और यदि दुष्प्रेरित व्यक्ति उस दुष्प्रेरित कार्य को दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप करता है, तो ऐसे व्यक्ति को न्यायालय उस अपराध की सजा से दण्डित किया जाता है, जिस अपराध का उस व्यक्ति ने दुष्प्रेरण किया है।
धारा 107 में वकील की जरुरत क्यों होती है?
भारतीय दंड संहिता में धारा 107 का अपराध भी अन्य सभी धाराओं की भांति एक बड़ा अपराध है, जिसमें इस अपराध के दोषी को धारा 109 के अनुसार उस अपराध की सजा दी जाती है, जिस अपराध को करने का अपराधी दुष्प्रेरण करता है। ऐसे अपराध से किसी भी आरोपी का बच निकलना बहुत ही मुश्किल हो जाता है, इसमें आरोपी को निर्दोष साबित कर पाना बहुत ही कठिन हो जाता है। ऐसी विकट परिस्तिथि से निपटने के लिए केवल एक वकील ही ऐसा व्यक्ति हो सकता है, जो किसी भी आरोपी को बचाने के लिए उचित रूप से लाभकारी सिद्ध हो सकता है, और अगर वह वकील अपने क्षेत्र में निपुण वकील है, तो वह आरोपी को उसके आरोप से मुक्त भी करा सकता है। और किसी बात का दुष्प्रेरण करने जैसे मामलों में ऐसे किसी वकील को नियुक्त करना चाहिए जो कि ऐसे मामलों में पहले से ही पारंगत हो, और धारा 109 जैसे मामलों को उचित तरीके से सुलझा सकता हो। जिससे आपके केस को जीतने के अवसर और भी बढ़ सकते हैं।