उलाहना पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
उलाहना लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
मधुदान का मेहमान से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मधुदान का मेहमान से तात्पर्य है-देशप्रेमी का महत्त्व रखना।
प्रश्न 2.
कवि के अनुसार
सलामत कौन रह जाता है?
उत्तर:
कवि के अनुसार सलामत आम आदमी रह जाता है।
प्रश्न 3.
रमलू भगत किसका प्रतीक है?
उत्तर:
रमलू भगत सर्वहारा वर्ग का प्रतीक है।
उलाहना दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
छोटे अपने किन गुणों के कारण सलामत रह जाते हैं?
उत्तर:
जीवन में हर प्रकार के अभावों और कठिनाइयों को झेलते रहना, दुखों को सहन करते रहना, हमेशा मर-मरकर घोर और कठोर श्रम साधना करते रहना और परस्पर घुल-मिलकर रहना। इन गुणों के कारण छोटे सलामत रह
जाते हैं।
प्रश्न 2.
कवि अमीरों से उनके जीवन में किस तरह के परिर्वन की आकांक्षा करता है?
उत्तर:
कवि अमीरों से उनके जीवन में अनेक तरह के परिवर्तन की आकांक्षा करता है। हमेशा छोटों से घुल-मिलकर रहना, उनके दुःखों को समय निकालकर समझना और उन्हें दूर करने की कोशिश करना, अमीरी की ऊँचाई से नीचे उतर गरीबी की जमीन पर आना और कुटिया निवासी आम आदमी के आदर-भाव को महत्त्व देना। इस प्रकार के अपने जीवन में परिवर्तन लाने की कवि अमीरों से चाहता है।
प्रश्न 3.
कविता में ‘कुटिया निवासी’ वनने
का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
कविता में ‘कुटिया निवासी’ बनाने का तात्पर्य है-अमीर अपनी निर्माणपरक शक्तियों का उपयोग कुटिया में रहने वालों के लिए करें और अपनी एकांतिक अमीरों की ऊँचाई से नीचे उतरकर समाज के विकास में सहयोग करें।
उलाहना भाव-विस्तार/पल्लवन
प्रश्न.
- “सदा सहना ……… छोटे सलामत हैं”
- “अमीरी से जरा नीचे उतर आओ।”
- “उठो, कारा ……… के सहलाओ।”
उत्तर:
1 ‘सदा सहना ………छोटे सलामत हैं’:
उपर्युक्त पद्यांश में आम आदमी खास
तौर मजदूर वर्ग के जीवन-स्वरूप को रेखांकित किया गया है। इसके माध्यम से यह बतलाने का प्रयास किया गया है कि मजदूर अनेक प्रकार के अभावों और कठिनाइयों को जीवन-भर झेलता रहता है। फिर भी वह उससे हिम्मत नहीं हारता है। घोर परिश्रम करके वह मर-मरकर अपनी जीविका चलाता है। इस प्रकार वह जीवन जीते हुए पर हितार्थ लगा रहता है। वह समाज को हमेशा सही दिशा देते हुए आगे बढ़ाता रहता है। इसके विपरीत अमीर वर्ग ऐसा कुछ नहीं कर पाता है। इसलिए मजदूरों के सामने उसका कोई सामाजिक मूल्य नहीं रह जाता है।
2. ‘अमीरी से जरा
नीचे उतर आओ’:
काव्य पंक्तियों के माध्यम से कवि ने यह भाव व्यक्त करना चाहता है कि जन-सामान्य खास तौर से मजदूर को हर प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, फिर भी वह अपने उद्देश्य से नहीं भटकता है। वह समाज-सेवा और समाज-कल्याण के लिए निरंतर लगा रहता है। उसके लिए वह कठोर-से-कठोर श्रम करता है। अनेक प्रकार के अभावों को झेलता है। समय आने पर अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है।
उसके इस देन से अमीर वर्ग प्रभावित होता है। इससे वह खूब फूलता-फलता रहता है। उसे इस प्रकार देखकर मजदूर की उससे अपेक्षा होती है कि वह कभी समय निकालकर अपनी अमीरी की ऊँचाई से उतर वह गरीबी की जमीन पर आता तो उसकी निराशा, हताशा, आशा और उत्साह की किरणों से जगमगा उठती है।
3. ‘उठो कारा……..के सहलाओ’:
उपर्युक्त काव्यांश का भाव यह है कि मजदूर वर्ग अपने अभावों की जिन्दगी से ऊब चुका है। उसे अपनी गरीबी को दूर करने के लिए और कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा है। उसे अगर कोई रास्ता दिखाई दे रहा है तो वह है अमीर वर्ग। उससे उसे वही उम्मीदें हैं। ऐसा इसलिए कि उसने अनेक बड़े-बड़े काम किए हैं। उससे देश-समाज के रूप-रंग बदले हैं।
उसे उससे बड़े यश प्राप्त हुए हैं। इसलिए वह अब मजदूर वर्ग के पास आए।
उसके दुखों-अभावों को समझे, उसकी गरीबी की कारा बना दे, अर्थात गरीबी को नियंत्रित करके उसे दूर कर दे। इस प्रकार वह मजदूर वर्ग के बलबूते पर रहते हुए उन्हें न भूलें। उन्हें अपना समझकर उनके दुःख-सुख में हाथ बँटाए। मजदूर वर्ग की उससे अपेक्षा है कि वह एक मसीहा के रूप में आकर सदियों से चले आ रहे उनके दुखों और अभावों के गहरे घावों पर ममता का मरहम लगाकर उन्हें सहला दे।
उलाहना भाषा अध्ययन
प्रश्न 1.
इबादत, मसीहा, अमीरी, मेहमान, जमाना, सलामत विदेशी शब्द हैं, इनके मानक अर्थ लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 2.
बाढ़ोमयी, बड़ापन,
न्यौतता, बलिदान, इन शब्दों में लगाये गये प्रत्यय बताएं?
उत्तर:
प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए।
श्रम,
मुत्यु, प्यार, स्मृति।
उत्तर:
प्रश्न 4.
निम्नांकित अपठित पद्यांश को ध्यान से पढ़कर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
हर कदम-कदम पे सबको साथ ले,
एकता अखंडता की बात ले,
शुभ-पवित्र लक्ष्य के लिए जिओ
देश और धर्म के लिए जिओ ॥1॥
मातृभूमि पर भी हमको गर्व हो,
मातृभूमि रक्षा एक पर्व हो,
ऐसे राष्ट्र पर्व के लिए जिओ
देश और धर्म के लिए जिओ ॥2॥
श्रम सभी का एक मूलमंत्र हो
श्रम के लिए हर मनुज स्वतंत्र हो
लोक-लाज शर्म छोड़कर जिओ
देश और धर्म के लिए जिओ ॥3॥
हो अनाथ दुखिया अगर राह में
हो समानुभूति हर निगाह में,
करुणा-और प्रेम के लिए जिओ,
देश और धर्म के लिए जिओ
॥4॥
भाईचारा सबके दिल में हो सदा
कटुता घृणा बैर भाव हो विदा,
जीना, श्रेष्ठ कर्म के लिए जिओ
देश और धर्म के लिए जिओ॥5॥ -मुनि विमर्शसागर
प्रश्न – (क) इस पद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
प्रश्न – (ख) इस पद्यांश का भाव संक्षेप में लिखिए।
प्रश्न – (ग) इन प्रश्नों के उत्तर लिखिए।
- इन पंक्तियों के रचयिता कौन हैं?
- हमें किस पर गर्व होना चाहिए?
- हमारा मूलमंत्र क्या होना चाहिए?
उत्तर:
(क) देश और धर्म
(ख) उपर्युक्त पद्यांश के द्वारा कवि ने परस्पर एकता, अखंडता और भाईचारा को बनाए रखने का भाव भरा है। अपनी मातृभूमि के प्रति गर्व रखते हुए उसकी रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहने का मूल मंत्र दिया है। सबमें करुणा और प्रेम जगाने के लिए सहानुभूति की आँखें सोखने की आवश्यकता पर भी कवि ने बल दिया है।
(ग)
- रचयिता-मुनि विमर्श सागर।
- हमें अपनी मात्रभूमि पर गर्व होना चाहिए।
- हमारा मूलमंत्र श्रम होना चाहिए।
उलाहना योग्यता विस्तार
प्रश्न 1.
आप अपने गाँव या शहर के नजदीक किसी बाँध
का भ्रमण कीजिए तथा बाँध से होने वाले लाभ-हानि पर चार्ट तैयार कीजिए।
उत्तर:
उपयुक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।
प्रश्न 2.
घरों में पकाए जाने वाले पारंपरिक व्यंजनों की सूची बनाइए।
उत्तर:
उपयुक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।
प्रश्न 3.
कवि ने कविता में ‘बड़े रास्ते, बड़े पुल, बाँध क्या कहने। बड़े ही कारखाने हैं, इमारत हैं।’ के माध्यम से विकास की बात कही है। आप अपने आस-पास की किसी खदान/कारखाना/लघुउद्योग आदि में जाकर उसके बारे में जानकरी प्राप्त कर उसे सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
उपयुक्त प्रश्नों को
छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।
उलाहना परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
उलाहना लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
बलिदान के मंदिर गिराने से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
बलिदान के मंदिर गिराने से तात्पर्य है-बलिदान करने वालों की घोर उपेक्षा करना।
प्रश्न 2.
जमाने में कौन तालियों से सब कुछ पा लेता है?
उत्तर:
जमाने में अमीर वर्ग तालियों से सब कुछ पर लेता है।
प्रश्न 3.
‘कुटिया निवासी’ किसका
प्रतीक है?
उत्तर:
‘कुटिया निवासी’ गरीबी का प्रतीक है।
उलाहना दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
बड़ों में कौन-कौन से दोष होते हैं?
उत्तर:
बड़ों में निम्नलिखित दोष होते हैं –
वे याद की टीसें भुला देते हैं। वे बलिदान के मंदिर गिराते हैं। वे शहीदों के बलिदान को भुला देते हैं। वे अपने आप ही बिना किसी के कहे-सुने बहके-बहके काम करने लगते हैं।
प्रश्न 2.
बड़ों से गरीब क्या अपेक्षा करता है और क्यों?
उत्तर:
बड़ों से गरीब अपने साथ भाईचारा और अपने दुख-सुख का साथी बने रहने की अपेक्षा करता है। वह उससे यह भी अपेक्षा करता है कि वह कभी कुटिया निवासी बनकर उनके दुखों को समझे। इस तरह वह उनकी गरीबी को दूर करने के लिए अपनी
शक्तियों और क्षमताओं को लगा दे। यह इसलिए कि वह इसके लिए हर प्रकार से सक्षम और समर्थ है।
प्रश्न 3.
‘उलाहना’ कविता के मुख्य भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि ने इस कविता में जन सामान्य से अलग-थलग पड़ जाने वाले अमीर वर्ग को उलाहना देते हुए स्पष्ट किया है कि क्रांतिकारियों के बलिदान को भूलकर इस वर्ग ने अपने हित में जय-जयकार कराके अपने समाज को कोई सही दिशा नहीं दी है। जन सामान्य के दुःख-दर्द का अनुभव करना भी पूजाभाव से परिपूर्ण होना है। छोटों के साथ घुल-मिलकर जीने में ही जीवन की
सार्थकता है। कवि को अमीरों से अपेक्षा है कि वे अपनी निर्माणपरक शक्तियों का उपयोग कुटिया में रहने वालों के लिए करें और अपनी एकांतिक अमीरी की ऊँचाई से नीचे उतरकर समाज के विकास में सहयोग करें। प्रस्तुत कविता में कवि ने बड़े-बड़े कारखानों, पुलों और बाँधों के निर्माणों के साथ-साथ मानवीय संवेदना के विस्तार को भी जरूरी माना है।
उलाहना कवि-परिचय
प्रश्न 1.
माखललाल चतुर्वेदी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल, सन् 1889 में होशंगाबाद जिले के बाबई नामक स्थान में हुआ था। अपनी शिक्षा समाप्त करके उन्होंने अध्यापन शुरू किया। अध्यापन के दौरान उन्होंने संस्कृत, अंग्रेजी, मराठी, गुजराती और बंगला का गहरा ज्ञान प्राप्त किया। उनकी रचनाएँ गांधीवादी दर्शन, चिन्तन और विचारधारा से प्रभावित हैं। उनका निधन 30 जनवरी, 1968 को हुआ।
रचनाएँ:
माखनलाल चतुर्वेदी जी की प्रमुख रचनाएँ ‘हिमकिरीटिनी’, ‘हिमतरंगिनी’. ‘माता’, ‘युगचरण’, ‘समर्पण’, ‘वेणु’, ‘लो गूंजे धरा’
(काव्य) ‘साहित्य देवता’ (गद्यकाव्य) वनवासी और कला का अनुवाद (कहानी), ‘कृष्णार्जुन युद्ध’ (नाटक) हैं।
भाषा-शैली:
चतुर्वेदी जी की भाषा-शैली में प्रवाह है। इनकी भाषा में बोलचाल के शब्दों के साथ-साथ उर्दू-फारसी के शब्द भी हैं जो भाषा को गति प्रदान करते हैं।
महत्त्व:
माखनलाल चतुर्वेदी ‘हिन्दी साहित्य जगत’ में ‘एक भारतीय आत्मा’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। राष्ट्रीय आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लेने के कारण इन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। माखनलाल चतुर्वेदी जी की प्रसिद्धि का आधार कविता
ही है, किन्तु वे एक सक्रिय पत्रकार, समर्थ निबंधकार और सिद्धहस्त संपादक भी थे। भारत सरकार ने आपको पद्मभूषण की उपाधि से अलंकृत किया। चतुर्वेदी जी के काव्य का मूल स्वर राष्ट्रीयतावादी है, जिसमें समर्पण, त्याग, बलिदान, सेवा और कर्त्तव्य की भावना सन्निहित है।।
उलाहना पाठ का सारांश
प्रश्न 1.
माखनलाल चतुर्वेदी-विरचित कविता ‘उलाहना’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
माखनलाल चतुर्वेदी-विरचित कविता ‘उलाहना’ एक शिक्षाप्रद कविता है। कवि ने प्रस्तुत कविता के माध्यम से जन-सामान्य से हटकर सुख-सुविधा की जिन्दगी जीनेवाले सुविधाभोगियों को उलाहना देने का
प्रयत्न किया है। कवि को साधन सम्पन्न और सुविधाभोगियों से शिकायत है कि वे ही जब देश-भक्तों के बलिदानों को भुला दिए हैं, तो फिर साधारण लोगों को उनसे क्या उम्मीदें हो सकती हैं? कवि का पुनः साधनसम्पन्न और सुविधाभोगी वर्ग से शिकायत है कि वह नहीं बदल पाया है।
उसने देश के लिए कुर्बान होनेवाले को भुला दिया है। वह लोगों से अपनी प्रशंसा की तालियाँ बजवाकर भी देश-समाज के दिल को नहीं जीत पाया। बड़ी-बड़ी सड़कें, बड़े-बड़े पुल, बड़े-बड़े बाँध, बड़े-बड़े कारखाने, और बड़ी-बड़ी इमारत तो उसने बनवाई, लेकिन इन्हें बनाने वाले मजदूरों के अभाव के आँसुओं को वह नहीं पोंछ पाया। छोटों का तो जीवन हमेशा सहन करना, श्रम-साधना करना होता है। इसलिए तुम भी उनसे घुल-मिलकर रहना सीखो। यह भी समझो कि बड़े-बड़े ऐसे मिट गए कि उनका कोई नाम-निशान भी शेष नहीं है, लेकिन छोटे आज भी सलामत हैं।
वे तो तुम्हारी चरण-रेखा देखते हैं, लेकिन तुम्हें तो उनके दुःख-दर्द को समझने का समय नहीं होता है। वे तो तुम्हारे मान-सम्मान के लिए मर-मिटते हैं। इसे समझकर तुम अपनी अमीरी से हटकर गरीबी की ओर आ जाओ। तुम्हारी आँचाज संसार का जादू है, तुम्हारी बाँहों में संसार की ताकत है। कभी कुटिया निवासी बनकर तो देखो। तुमने असंभव जैसे कई काम किए हैं। इसलिए अब तुम अपनों के पास आओ। युग का मसीहा बनकर सदियों के लगे गहरे घाव पर ममता के मलहम लगाकर सहला दो।
उलाहना संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या
प्रश्न 1.
तुम्हीं जब याद की टीसें भुलाते हो,
भला फिर प्यार का अभिमान क्यों जीवे?
तुम्हीं जब बलिदान के मन्दिर गिराते हो,
भला मधुदान का मेहमान क्यों ‘जीवे?
भुला दीं सूलियाँ? जैसे सभी कुछ,
जमाने में तालियों से
पा लिया तुमने,
न तुम बहले, न युग बहला, भले साथी,
बताओ तो किसे बहला लिया तुमने!
शब्दार्थ:
- टीसें – दर्द की अनुभूति।
- जीवे – जीवित रहे।
- मधुदान – प्रेम का दान।
- सूलियाँ – बलिदान।
- बहला – फुसला।
प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ से संकलित तथा माखनलाल चतुर्वेदी-विरचित ‘उलाहना’ शीर्षक कविता से उद्धत है। इसमें कवि ने अमीर वर्ग के प्रति जन-सामान्य के उलाहना को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। अमीर वर्ग
को उलाहना देते हुए जन-सामान्य कह रहा है –
व्याख्या:
देश के नेता और कर्णधार कहे जाने वाले अमीर वर्ग! जब तुम्हीं देश के आन-मान की रक्षा के लिए अपने प्राणों के बलिदान करने वालों के दर्द की अनुभूति को अनसुना कर रहे हो, तो फिर कैसे प्रेम का अभिमान जीवित रह सकता है? तुम्हीं जब त्याग और बलिदान को महत्त्व नहीं दे रहे हो, तो प्रेम का दान करने वाले का हौसला बढ़ सकता है, अर्थात् नहीं बढ़ सकता है। यह भी बड़े दुःख और अफ़सोस की बात है कि तुमने तो देश के आन-मान पर मर मिटने वाले अमर देशभक्तों की
पवित्र यादों को भुला दिया है। अपने चापलूसों और पिछलग्गुओं द्वारा वाहवाही की तालियों को बजवाकर मानो तुमने सब कुछ पा लिया है। इस प्रकार की सोच रखने वाले क्या तुम यह बतलाओगे कि अगर तुम बहके नहीं हो और न जमाना ही बहका है, तो फिर तुम्हें किसने बहका दिया है?
विशेष:
- अमीर वर्ग से खासतौर से देश के गद्दारों का उल्लेख है।
- व्यंग्यात्मक शैली है।
- तुकान्त शब्दावली है।
- यह अंश मार्मिक है।
- ‘बलिदान का मंदिर’ में रूपक अलंकार है।
पद्यांश पर आधारित
सौन्दर्यबोध संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.
- प्रस्तुत पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
- प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
- ‘तुम्हीं जब बलिदान के मंदिर गिराते हो’ काव्य-पंक्ति का मुख्य भाव लिखिए।
उत्तर:
1. प्रस्तुत पद्यांश में अमीर वर्ग के प्रति जन-सामान्य की शिकायत है। अमीर वर्ग द्वारा अपने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने वाले देशभक्तों को भुला देना जन-सामान्य को मान्य नहीं है। इसे कवि ने मुहावरेदार भाषा के द्वारा प्रस्तुत किया है। शब्द-चयन सामान्य स्तर के हैं लेकिन बड़े सजीव हैं। शैली-विधान भावपूर्ण है। रूपक अलंकार से कथन को आकर्षक बनाने का प्रयास किया है।
2. प्रस्तुत पद्यांश का भाव रोचक किन्तु मर्मस्पर्शी है। देश के बलिदानियों को सहज ढंग से भुलाकर बहके-बहके भाषणों की बौछार लगाकर वाहवाही लूटना आज के राजनेताओं का राजनीतिक कुचक्र.है। इसके नीचे आम जनता पिस जाती है। लेकिन राजनेता उसी ढर्रे पर अपनी राजनीति का पहिया चलाते रहते हैं। उसे आम जनता तनिक भी नहीं समझ पाती है। वह भौचक्की बनी रहकर कुछ भी नहीं कर पाते हैं। इस प्रकार के तथ्य इस पद्यांश में भावपूर्ण शब्दों के द्वारा प्रस्तुत किए गए हैं।
3. ‘तुम्हीं जब बलिदान के मंदिर गिराते हो।’ काव्य-पंक्ति का भाव है-राजनेताओं के द्वारा अंगरशहीदों की उपेक्षा कर वर्तमान देश-भक्तों को हतोत्साहित करना। इससे राजनेताओं के देश-द्रोही भावों का संकेत हो रहा है।
पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.
- कवि और कविता का नाम लिखिए।
- ‘भुला दी सूलियाँ’ का आशय क्या है?
उत्तर:
- कवि-माखन लाल चतुर्वेदी। कविता-‘उलाहना’।
- ‘भुला दी सूलियाँ’ का आशय है-देश की आजादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने वाले देश-भक्तों और अमीर शहीदों की राजनेताओं द्वारा उपेक्षा करना।
प्रश्न 2.
बड़े रस्ते, बड़े पुल, बाँध, क्या कहने!
बड़े ही कारखाने हैं, इमारत हैं,
जरा पोर्चे इन्हें आँस उभर आये,
बड़ापन यह न छोटों की इबादत है।
सदा सहना, सदा श्रम साधना मर-मर,
वही हैं जो लिये छोटों का मृत-वृत हैं,
तनिक छोटों से घुल-मिलकर रहो जीवन,
बड़े सब मिट गये, छोटे सलामत हैं!
शब्दार्थ:
- रस्ते – रास्ता, सड़क।
- इमारत – भवन, मकान।
- इबादत – पूजा।
- श्रम – सौधनामेहनत।
- सलामत – सुरक्षित।
प्रसंग:
पूर्ववत। इसमें अमीरों और गरीबों के जीवन की भिन्नता पर प्रकाश डाला गया है। अमीर वर्ग के प्रति सामान्य-जन
शिकायत करते हुए कह रहा है –
व्याख्या:
हे अमीर वर्ग! यह बड़ी ही अच्छी बात है कि तुम्हारे प्रयासों से देश को बड़ी सुविधाएँ मिली हैं। पगडंडियाँ चौड़ी-चौड़ी और लम्बी-लम्बी सड़कों के रूप ले लिये हैं। नदियों की छाती पर बड़े-बड़े पुल और बाँध खड़े हो गए हैं। जगह-जगह बड़े-बड़े कारखाने बन गए हैं। ऊँची-ऊँची इमारतें आकाश से बातें करने लगी हैं। फिर भी सामान्य जन को दो जून की रोटी नहीं नसीब हो रही है। उनके आँखों में दुख और अभावों के आँसू छलकते रहते हैं। उन्हें पोंछना सच्ची मानवता है। यह बड़प्पन नहीं
है, बल्कि यह तो छोटों की पूजा करना है।
ऐसा इसलिए कि ये जीवन भर सभी प्रकार की विपत्तियां सहते रहते हैं। मरते दम तक घोर परिश्रम से मुँह नहीं फेरते हैं। इस प्रकार के जीवन जीनेवाले ही आज सलामत हैं, जबकि सभी बड़े मिट गए। यह समझकर तुम इनसे कुछ देर के लिए घुलमिल कर रहते, तो इनके जीवन के गम का बोझ हल्का हो जाता। इनके मुरझाए चेहरे थोड़ी देर के लिए ही सही, खिल उठता। फिर ये अपने जीवन के बोझ को उठाकर और आगे ले जाने की हिम्मत जुटा पाते।
विशेष:
- भाषा में प्रवाह है।
- शैली व्यंग्यात्मक है।
- सम्पूर्ण कथन मार्मिक है।
- ‘मर-मर’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- करुण रस का संचार है।
पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.
- प्रस्तुत पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
- प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
- ‘बड़े रस्ते, बड़े पुल, बाँध, क्या कहने!’ का मुख्य भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1. प्रस्तुत पद्यांश में देश के कर्णधार कहे जाने वाले राजनेताओं द्वारा अनेक प्रकार के साधनों-सुविधाओं को देने का उल्लेख है। इसके साथ ही सामान्य जन के प्रति उनकी उपेक्षा और दूरी का भी उल्लेख है। इस प्रकार इस पद्यांश में परस्पर विरोधी बातों को बड़े ही रोचक रूप में प्रस्तुत किया गया है। फलस्वरूप प्रस्तुत हुए विरोधाभास अलंकार का चमत्कार तब और हृदयस्पर्शी दिखाई देता है जब उसके सहयोगी अलंकार पुनरुक्ति प्रकाश ‘मर-मर’ और अनुप्रास अलंकार ‘सदा सहना’ पर हमारा ध्यान जाता है। इसकी भाव और भाषा भी कम प्रभावशाली नहीं है।
2. उपर्युक्त पद्यांश का भाव-सौन्दर्य आकर्षक है। देश में विकास के बढ़ते चरण के बावजूद सामान्यजन की बदहवाली के चित्र स्वाभाविक होने के साथ-साथ मार्मिक और विचारणीय हैं। इस प्रकार के तथ्य को विश्वसनीय रूप में प्रस्तुत करने का ढंग सचमुच बड़ा ही अनूठा है। इस तरह उपर्युक्त पद्यांश का भाव-सौन्दर्य हृदयस्पर्शी और उद्धरणीय बन गया है।
3. ‘बड़े रस्ते, बड़े पुल, बाँध, क्या कहने!’ का मुख्य भाव यह है कि देश में चहुंमुखी विकास हो रहे हैं। इसे देखकर सबका मन बाग-बाग हो रहा है।
पद्यांश पर आधारित विषयवस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.
- कवि और कविता का नाम लिखिए।
- ‘छोटों से घुल-मिलकर रहो’ ऐसा कवि ने क्यों कहा है?
उत्तर:
- कवि-माखललाल चतुर्वेदी कविता-उलाहना।
- ‘छोटों से घुल-मिलकर रहो’ ऐसा कवि ने कहा है। यह इसलिए कि इसमें ही जीवन की सार्थकता है।
प्रश्न 3.
‘तुम्हारी चरण-रेखा देखते हैं वे,
उन्हें भी देखने का तुम समय पाओ,
तुम्हारी आन पर कुर्बान जाते हैं,
अमीरी से जरा नीचे उतर आओ!
तुम्हारी बाँह में बल है, जमाने का,
तुम्हारे बोल में जादू जगत का है,
कभी कुटिया निवासी
बन जरा देखो,
कि दलिया न्यौतता रमलू भगत का है!
शब्दार्थ:
- कुर्बान – बलिदान।
- बाँह – भुजा।
प्रसंग: पूर्ववत्।
व्याख्या:
हे अमीर वर्ग! सामान्य जन जो हर प्रकार से अपने जीवन में दुखी और अभावग्रस्त हैं, वे तुमसे सहायता के लिए तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। इसके लिए तुम्हें कुछ अवश्य समय निकालना होगा। ऐसा इसलिए कि तुम्हारी आन-मान के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देते हैं। इसे तुम गंभीरतापूर्वक समझो, फिर अपनी अमीरी की ऊँचाई से गरीबी की जमीन पर आ जाओ। तुम्हें
स्वयं को यह जानना चाहिए कि तुम्हारी भुजाओं के अंदर बहुत बड़ी शक्ति है। वह शक्ति है-जमाने की। तुम्हारे भाषण में दुनिया की जादुई शक्ति है। इसलिए तुम कभी समय निकालकर अभावों को झेल रहे कटिया निवासी रमलू भगत के पास आकर रहो। फिर देखो कि वह तुम्हें कितना अपनापन लिए बुला रहा है। इसे समझने पर तुम्हें अपार सुख का अनुभव होगा।
विशेष:
- भाषा में प्रवाह है।
- शैली भावात्मक है।
- उर्दू की प्रचलित शब्दावली है।
- अमीरों को अपनी अमीरी को भुलाकर सामान्य जन के लिए सहयोग करने की शिक्षा दी गई है।
पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.
- प्रस्तुत पयांश का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
- प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य लिखिए।
- ‘अमीरी से जरा नीचे उतर आओ’ का मुख्य भाव बताइए।
उत्तर:
1. प्रस्तुत पद्यांश में आम जनता का आह्वान साधन-सम्पन्न अर्थात् अमीर वर्ग के प्रति है। आमजन अमीर वर्ग से उसका महत्त्वांकन करते हुए उसे उसके साथ अपनापन के भावों को रखने की अपेक्षा करता है। इसे सरल आर सपाट भाषा के द्वारा
अतिशयोक्ति अलंकार के साथ रूपक अलंकार (चरण-रेखा) से अलंकृत करके चमत्कृत किया है। बिम्ब, प्रतीक और योजना वीर रस और करुण रस के मिश्रण से अधिक प्रभावशाली रूप में है।
2. प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य आकर्षक रूप में है। इसमें भावों की तारतम्यता और क्रमबद्धता सुनियोजित रूप में है। इससे मार्मिकता का जो पुट प्रस्तुत हो रहा है, वह न केवल भाववर्द्धक है, अपितु प्रेरक है। सरलता से प्रयुक्त हुए भाव सहज ही ग्रहणीय और हृदयस्पर्शी बन गए हैं।
3. ‘अमीरी से जरा नीचे उतर आओ’ का मुख्य भाव परस्पर समानता और सहयोग का वातावरण उत्पन्न करता है।
पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.
- कवि और कविता का नाम लिखिए।
- ‘उन्हें भी देखने का तुम समय पाओ’ का व्यंग्यार्थ क्या है?
उत्तर:
1. कवि-माखनलाल चतुर्वेदी कविता-‘उलाहना’।
2. ‘उन्हें भी देखने का तुम समय पाओ’ का व्यंग्यार्थ है-अमीर वर्ग आम आदमी के दुखों और अभावों को समझने से कतराता रहता है। उसे तो अपने सुख-विलास से ही फुरसत नहीं मिलती है। फिर वह आम आदमी के लिए कहाँ समय निकाल पाएगा। दूसरी ओर आम आदमी उससे सहयोग प्राप्त करने की हमेशा आशा लगाए रहता है।
प्रश्न 4.
गयी सदियाँ कि यह बहती रही गंगा,
गनीमत है कि तुमने मोड़ दी धारा,
बड़ी बाढ़ोमयी उद्दण्ड नदियों को,
बना दी पत्थरों वाला नयी कारा।
उठो, कारा बनाओ इस गरीबी की,
रहो मत दूर अपनों के
निकट आओ,
बड़े गहरे लगे हैं घाव सदियों के,
मसीहा इनको ममता भर के सहलाओ।
शब्दार्थ:
- सदियाँ – शताब्दियाँ।
- गनीमत – अच्छी बात।
- उद्दण्ड – बेकाबू।
- कारा – जेल।
- मसीहा – अवतारी पुरुष।
- ममता – अपनापन।
प्रसंग: पूर्ववत्।
व्याख्या:
हे अमीर वर्ग! अनेक सदियों के बाद तम अपने शक्ति से गंगा के बहते पानी को व्यर्थ बहने के बारे में चिंतन-मनन किया। फिर उसे जनोपयोगी बनाने के लिए उसकी धारा को मोड़कर उसके ऊपर बाँध बनवाकर अनेक प्रकार से
सिंचाई के रूप तैयार किए। इस प्रकार बाढ़ से उफनती हुई उद्दण्ड नदियों को पत्थर वाले जेल की अपने काबू में कर लिये। इस प्रकार के महान जीवनोपयोगी कार्य करने के बाद अब तुमसे यही कहना है कि अब तुम उठो। इस गरीबी को जेल में बदलकर उस पर अपना नियंत्रण रखो। सदियों से गरीबी की मार सह रहे गरीबों का मसीहा बनकर तुम उनके दुखों-अभावों रूपी घावों पर अपनी ममता का मरहम सहलाते रहो।
विशेष:
- अमीर वर्ग से गरीब वर्ग की अपेक्षाओं को चित्रित किया गया है।
- अमीरों का महत्त्वांकन,प्रस्तुत है।
- रूपकालंकार है।
- वीर रस का संचार है।
- तुकान्त शब्दावली है।
पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.
- प्रस्तुत पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य को लिखिए।
- प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
- ‘गरीबी को कारा’ बनाने से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
1. प्रस्तुत पद्यांश में अमीर वर्ग के प्रति आमजन के भावों को व्यक्त किया गया है। ये भाव उसके हौसले को बढ़ाते हुए उससे कुछ पाने की उम्मीदों के हैं। इसे स्मरण अलंकार, रूपक और
अनुप्रास अलंकारों से अलंकृत करके चमत्कृत किया गया है। भाषा की सरलता में प्रवाहमयता है तो वर्णनात्मक शैली विधान में रोचकता है। प्रचलित उर्दू और तत्सम शब्दों के साथ-साथ देशज शब्दों का मेल उपयुक्त रूप में है। बिम्ब और प्रतीक यथास्थान हैं।
2. प्रस्तुत पद्यांश की भाव योजना में क्रमबद्धता और अनुरूपता है। अमीर वर्ग को समुत्साहित करते हुए आमजन को अपने कल्याणार्थ प्रेरित करने का प्रयास सचमुच में काबिलेतारीफ़ है। इसके लिए दिए गए उल्लेखों को दृष्टान्तों के माध्यम से प्रस्तुत करने का भी प्रयास कम कलात्मक नहीं है। फलस्वरूप यह पद्यांश भाववर्द्धक बन गया है।
3. ‘गरीबी को कारा’ बनाने से तात्पर्य अभावों पर पूरी तरह नियंत्रण रखने से है।
पद्यांश पर आधारित विषयवस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न.
- कवि और कविता का नाम लिखिए।
- ‘बड़े गहरे लगे हैं घाव सदियों के’ का मुख्य भाव बताइए।
उत्तर:
- कवि-माखनलाल चतुर्वेदी। – कविता-‘उलाहना’।
- ‘बड़े गहरे लगे हैं घाव सदियों के’ का मुख्य भाव है-बहुत समय से आमजन अभावों में अपना जीवन सफर कर रहा है। वह इससे ऊब चुका है। उसे इससे मुक्ति चाहिए। अमीर वर्ग ही उसे इससे मुक्ति मसीहा बनकर दिला सकता है।