समास शब्द-रचना की ऐसी प्रक्रिया है जिसमें अर्थ की दृष्टि से परस्पर भिन्न तथा स्वतंत्र अर्थ रखने वाले दो या दो से अधिक शब्द मिलकर किसी अन्य स्वतंत्र शब्द की रचना करते हैं।[1]
समास विग्रह सामासिक शब्दों को विभक्ति सहित पृथक करके उनके संबंधों को स्पष्ट करने की प्रक्रिया है। यह समास रचना से पूर्ण रूप से विपरित प्रक्रिया है।
संस्कृत में समासों का बहुत प्रयोग होता है। अन्य भारतीय भाषाओं में भी समास उपयोग होता है। समास के बारे में संस्कृत में एक सूक्ति प्रसिद्ध है:
द्वन्द्वो द्विगुरपि चाहं मद्गेहे नित्यमव्ययीभावः।तत् पुरुष कर्म धारय येनाहं स्यां बहुव्रीहिः॥समास रचना में दो शब्द अथवा दो पद होते हैं पहले पद को पूर्व पद तथा दूसरे पद का उत्तर प्रद कहा जाता है।
इन दोनों पदों के समास से जो नया संक्षिप्त शब्द बनता है उसे समस्त पद या सामासिक पद कहते हैं।
जैसे: राष्ट्र (पूर्व पद) + पति (उत्तर पद) = राष्ट्रपति (समस्त पद)
समास की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं—
- समास में दो या दो से अधिक पदों का मेल होता है।
- समास में शब्द पास-पास आकर नया शब्द बनाते हैं।
- पदों के बीच विभक्ति चिह्नों का लोप हो जाता है।
- समास से बने शब्द में कभी उत्तर पद प्रधान होता है तो कभी पूर्व पद और कभी-कभी अन्य पद। इसके अलावा कभी कभी दोनों पद प्रधान होते हैं।
समास के निम्नलिखित छह भेद होते हैं—
- तत्पुरुष समास
- कर्मधारय समास
- द्विगु समास
- द्वन्द्व समास
- बहुव्रीहि समास
- अव्ययीभाव समास
- इस समास में पूर्व पद गौण तथा उत्तर पद प्रधान होता है।
- समस्त पद बनाते समय पदों के विभक्ति चिह्नों को लुप्त किया जाता है।
- इस समास की दो प्रकार से रचना होती है:
(क) संज्ञा + संज्ञा/विशेषण
युद्ध का क्षेत्र = युद्धक्षेत्रदान में वीर = दानवीर(ख) संज्ञा + क्रिया
कारक की दृष्टि से तत्पुरुष समास के निम्नलिखित छह भेद होते हैं:
1. कर्म तत्पुरुष (विभक्ति चिह्न: 'को')
सिद्धिप्राप्त = सिद्धि को प्राप्तनगरगत = नगर को गत2. करण तत्पुरुष (विभक्ति चिह्न: 'से, के द्वारा')
हस्तलिखित = हाथों से लिखिततुलसीरचित = तुलसी के द्वारा रचित3. सम्प्रदान तत्पुरुष (विभक्ति चिह्न 'के लिए')
रसोईघर = रसोई के लिए घरजेबखर्च = जेब के लिए खर्च4. अपादान तत्पुरुष (विभक्ति चिह्न 'से' [अलग होने का भाव])
पथभ्रष्ट = पथ से भ्रष्टदेशनिकाला = देश से निकाला5. संबंध तत्पुरुष (विभक्ति चिह्न 'का, के, की')
राजपुत्र = राजा का पुत्रघुड़दौड़ = घोड़ों की दौड़6. अधिकरण तत्पुरुष (विभक्ति चिह्न 'में, पर')
आपबीती = आप पर बीतीविश्व प्रसिद्ध = विश्व में प्रसिद्धयद्यपि तत्पुरुष समास के अधिकांश विग्रहों में कोई विभक्ति चिह्न अवश्य आता है परंतु तत्पुरुष समास के कुछ उदाहरण ऐसे भी हैं, जिनके विग्रहों में विभक्ति चिह्न का प्रयोग नहीं किया जाता; संस्कृत में इस भेद को नञ तत्पुरुष कहा जाता है। जैसे:
समस्त पदसमास-विग्रहसमस्त पदसमास-विग्रहअसभ्यन सभ्यअनंतन अंतअनादिन आदिअसंभवन संभव- इस समास में पूर्व पद तथा उत्तर पद के मध्य में विशेषण-विशेष्य का संबंध होता है।
- पूर्व पद गौण तथा उत्तर पद प्रधान होता है।
यह कर्मधारय समास का उपभेद होता है। इस समास का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण होता है तथा समस्त पद किसी समुह को बोध होता है।
समस्त पदसमास-विग्रहसमस्त पदसमास-विग्रहनवग्रहनौ ग्रहों का समूहदोपहरदो पहरों का समाहारत्रिलोकतीन लोकों का समाहारचौमासाचार मासों का समूहनवरात्रनौ रात्रियों का समूहशताब्दीसौ अब्दो (वर्षों) का समूहअठन्नीआठ आनों का समूहत्रयम्बकेश्वरतीन लोकों का ईश्वरइस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर योजक या समुच्चय बोधक शब्दों का प्रयोग होता है। जैसे- माता-पिता, भाई-बहन, राजा-रानी, दु:ख-सुख, दिन-रात, राजा-प्रजा।
"और" का प्रयोग समान प्रकृति के पदों के मध्य तथा "या" का प्रयोग विपरीत प्रकृति के पदों के मध्य किया जाता है। उदाहरण: माता-पिता = माता और पिता (समान प्रकृति) गाय-भैंस = गाय और भैंस (समान प्रकृति) धर्माधर्म = धर्म या अधर्म (विपरीत प्रकृति) सुरासुर = सुर या असुर (विपरीत प्रकृति)
द्वन्द्व समास के तीन भेद होते हैं- इतरेतर द्वन्द्व, समाहार द्वन्द्व, वैकल्पिक द्वन्द्व
जिस समास के दोनों पद अप्रधान हों और समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे:
समस्त पदसमास-विग्रहदशाननदश है आनन (मुख) जिसके अर्थात् रावणनीलकंठनीला है कंठ जिसका अर्थात् शिवसुलोचनासुंदर है लोचन जिसके अर्थात् मेघनाद की पत्नीपीतांबरपीला है अम्बर (वस्त्र) जिसका अर्थात् श्रीकृष्णलंबोदरलंबा है उदर (पेट) जिसका अर्थात् गणेशजीदुरात्माबुरी आत्मा वाला ( दुष्ट)श्वेतांबरश्वेत है जिसके अंबर (वस्त्र) अर्थात् सरस्वती जीइस समास में पूर्व पद प्रधान एवं अव्यय होता है। जैसे - यथामति (मति के अनुसार), आमरण (मृत्यु तक) इनमें यथा और आ अव्यय हैं। जहाँ एक ही शब्द की बार बार आवृत्ति हो, अव्ययीभाव समास होता है
कुछ उदाहरण:
- आजीवन - जीवन-भर
- यथासामर्थ्य - सामर्थ्य के अनुसार
- यथाशक्ति - शक्ति के अनुसार
- यथाविधि- विधि के अनुसार
- यथाक्रम - क्रम के अनुसार
- भरपेट- पेट भरकर
- हररोज़ - रोज़-रोज़
- हाथोंहाथ - हाथ ही हाथ में
- रातोंरात - रात ही रात में
- प्रतिदिन - प्रत्येक दिन
- बेशक - शक के बिना
- निडर - डर के बिना
- निस्संदेह - संदेह के बिना
- प्रतिवर्ष - हर वर्ष
- आमरण - मरण तक
- खूबसूरत - अच्छी सूरत वाली
अव्ययीभाव समास की पहचान[संपादित करें]
अव्ययीभाव समास में तीन प्रकार के पद आते हैं:
1. उपसर्गों से बने पद:
आजीवन (आ + जीवन) = जीवन पर्यन्तनिर्दोष (निर् + दोष) = दोष रहितप्रतिदिन (प्रति + दिन) = प्रत्येक दिनबेघर (बे + घर) = बिना घर केलावारिस (ला + वारिस) = बिना वारिस केयथाशक्ति (यथा + शक्ति) = शक्ति के अनुसार2. यदि एक ही शब्द की पुनरावृत्ति हो:
घर-घर = घर के बाद घरनगर-नगर = नगर के बाद नगररोज-रोज = हर रोज3. एक जैसे दो शब्दों के मध्य बिना संधि नियम के कोई मात्रा या व्यंजन आए:
हाथोंहाथ = हाथ ही हाथ मेंदिनोदिन = दिन ही दिन मेंबागोबाग = बाग ही बाग मेंकर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अंतर[संपादित करें]
कर्मधारय में समस्त-पद का एक पद दूसरे का विशेषण होता है। इसमें शब्दार्थ प्रधान होता है।
जैसे: नीलकंठ = नीला कंठ।
बहुव्रीहि में समस्त पद के दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य का संबंध नहीं होता अपितु वह समस्त पद ही किसी अन्य संज्ञा का विशेषण होता है। इसके साथ ही शब्दार्थ गौण होता है और कोई भिन्नार्थ ही प्रधान हो जाता है।
जैसे: नीलकंठ = नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव।
संधि में वर्णों का मेल होत है। इसमें विभक्ति या शब्द का लोप नहीं होता है। जैसे: देव + आलय = देवालय।
समास में दो पदों का मेल होता है। समास होने पर विभक्ति या शब्दों का लोप भी हो जाता है।
जैसे: विद्यालय = विद्या के लिए आलय।
समास-व्यास से विषय का प्रतिपादन[संपादित करें]
यदि आपको लगता है कि सन्देश लम्बा हो गया है (जैसे, कोई एक पृष्ठ से अधिक), तो अच्छा होगा कि आप समास और व्यास दोनों में ही अपने विषय-वस्तु का प्रतिपादन करें अर्थात् जैसे किसी शोध लेख का प्रस्तुतीकरण आरम्भ में एक सारांश के साथ किया जाता है, वैसे ही आप भी कर सकते हैं। इसके बारे में कुछ प्राचीन उद्धरण भी दिए जा रहे हैं।
विस्तीर्यैतन्महज्ज्ञानमृषिः संक्षिप्य चाब्रवीत्।इष्टं हि विदुषां लोके समासव्यासधारणम् ॥ (महाभारत आदिपर्व १.५१)--- अर्थात् महर्षि ने इस महान ज्ञान (महाभारत) का संक्षेप और विस्तार दोनों ही प्रकार से वर्णन किया है, क्योंकि इस लोक में विद्वज्जन किसी भी विषय पर समास (संक्षेप) और व्यास (विस्तार) दोनों ही रीतियाँ पसन्द करते हैं।
ते वै खल्वपि विधयः सुपरिगृहीता भवन्ति येषां लक्षणं प्रपंचश्च।केवलं लक्षणं केवलः प्रपंचो वा न तथा कारकं भवति॥ (व्याकरण-महाभाष्य २। १। ५८, ६। ३। १४)--- अर्थात् वे विधियाँ सरलता से समझ में आती हैं जिनका लक्षण (संक्षेप से निर्देश) और प्रपंच (विस्तार) से विधान होता है। केवल लक्षण या केवल प्रपंच उतना प्रभावकारी नहीं होता।