भारत की एकता में विविधता से आपका क्या मतलब है? - bhaarat kee ekata mein vividhata se aapaka kya matalab hai?

इस लेख में हमलोग जानेंगे कि विविधता किसे कहते हैं? विविधता के प्रकार कौन-कौन से हैं? विविधता के कारण क्या है?

विविधता किसे कहते हैं?

विभिन्न जगह के लोगों में उनके भाषा, रहन-सहन, खान-पान एवं पर्व-त्योहारों में विभिन्नता पाई जाती है। इसी विभिन्नता को विविधता (Diversity) करते हैं।

विविधता (Diversity) के कारण क्या है?

एक क्षेत्र के लोगों तथा दूसरे क्षेत्रों के लोगों के बीच कई कारणों से विविधता देखने को मिलती है। विविधता के प्रमुख कारण निम्नलिखित है:-

  • जाति धर्म
  • भाषा
  • संस्कृति
  • त्यौहार
  • रहन सहन
  • खान पान
  • भौगोलिक संरचना इत्यादि।

NOTE:- एक ही जगह या परिवेश के दो व्यक्तियों में उसके खानपान एवं रहन-सहन में अंतर पाई जाती है तो उसे विविधता नहीं कर सकते हैं। एक ही परिवेश के लोगों में खानपान एवं रहन सहन में अंतर गरीबी और अमीरी के कारण होता है। गरीबी तथा अमीरी विविधता का रूप नहीं है। इसे गैर बराबरी यानि असमानता कहते हैं।

विविधता किसे कहते हैं?

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विविधता कैसे उत्पन्न होता है?

मनुष्य जब कोई नई जगह पर निवास करते हैं तो कुछ उस क्षेत्र के चीजों को अपनाते हैं तथा कुछ पुराने चीजों को ही रखते हैं। जिससे उनकी भाषा, भोजन, संगीत, धर्म इत्यादि में नए एवं पुराने चीजों का मिश्रण होता रहता है। पुरानी संस्कृति और नई जगह की संस्कृति का आदान-प्रदान होता है। जिससे एक मिश्रित संस्कृति उभरती है। यही मिश्रित संस्कृति विविधता का कारण बनती है।

भारत में विविधता

भारत विविधताओं का देश है। यहां कई प्रकार के धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं। भारत में अनेकों प्रकार की भाषाएं बोली जाती है, अलग-अलग त्योहार मनाए जाते हैं तथा विभिन्न प्रकार का खाना खाया जाता है। इन्हीं सब कारणों से भारत को विविधताओं का देश कहा जाता है।

उपरोक्त लेख के माध्यम से हम लोगों ने विविधता को जाना। इस लेख में हम लोगों ने जाना कि विविधता किसे कहते हैं? विविधता के प्रकार एवं विविधता के कारण, भारत में विविधता, विविधता में एकता के बारे में हमलोगों ने अध्ययन किया। 

विविधता- विविधता का अर्थ है अलग-अलग प्रकार के धर्म , बोली, भाषा और समाज। जैसे:- भारत एक विविधता वादी राष्ट्र है अर्थात यहां विभिन्न प्रकार की बोलियाँ, भाषाएँ और सभ्यतायें एवं अनेक धर्म और जातियां मिलती हैं। धर्म-लिंग-योन अभिवृत्ति, सामाजिक आर्थिक स्थिति, शारीरिक क्षमता और धार्मिक मान्यताओं आदि को व्यक्तिगत मतभेदों के द्वारा पहचाना जा सकता है। गरशेल

के अनुसार-विविधता का अर्थ योग्यता, लिंग, जाति, प्रजाति, भाषा, चिंतन स्तर, विकलांगता, व्यवहार और धर्म से संबंधित होता है।"

इनके अलावा मनुष्य की सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भूगौलिक स्थिति भी विविधता की मुख्य कारक हैं।

भारत में विविधता में एकता पर निबंध | Unity in Diversity in India

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भारत में विविधता में एकता पर निबंध (दो निबंध) | Read These Two Essays on Unity in Diversity in India in Hindi.

#Essay 1: भारत में विविधता में एकता पर निबंध | Unity in Diversity in India!

भारत एक विविधतापूर्ण देश है’। इसके विभिन्न भागों में भौगोलिक अवस्थाओं, निवासियों और उनकी संस्कृतियों में काफी अन्तर है । कुछ प्रदेश अफ्रीकी रेगिस्तानों जैसे तप्त और शुष्क हैं, तो कुछ ध्रुव प्रदेश की भांति ठण्डे है ।

कहीं वर्षा का अतिरेक है, तो कहीं उसका नितान्त अभाव है । तमिलनाडु, पंजाब और असम के निवासियों को एक साथ देखकर कोई उन्हें एक नस्ल या एक संस्कृति का अंग नहीं मान सकता । देश के निवासियों के अलग-अलग धर्म, विविधतापूर्ण भोजन और वस्त्र उतने ही भिन्न हैं, जितनी उनकी भाषाएं या बोलियां ।

इतनी और इस कोटि की विभिन्नता के बावजूद सम्पूर्ण भारत एकता के सूत्र में निबद्ध है । इस सूत्र की अनेक विधायें हैं, जिनकी जडें देश के सभी कोनों तक पल्लवित और पुष्पित हैं । बाहर विभिन्नताएं और विविधताएं भौतिक हैं, किन्तु भारतीयों के अभ्यन्तर में प्रवाहित एकता की अजस्र धारा भावनात्मक एवं रोगात्मक है । इसी ने देश के जन-मन को एकता के सूत्र में पिरो रखा है ।

भारत की एकता का यह भारतीय संस्कृति का स्तम्भ है । भारतीय संस्कृति अति प्राचीन है और वह अपनी विशिष्टताओं सहित विकसित होती रही है । इसके कुछ विशेष लक्षण हैं, जिन्होंने भारतीय एकता के सूत्र की जड़ों को और भी सुदृढ़ किया है ।

कुछ विशेष लक्षणों की कुछ विशेषताओं का उल्लेख नीचे किया जाता है:

I. भारतीय संस्कृति की धारा अविच्छिन्न रही है ।

II. यह धर्म, दर्शन और चिन्तन प्रधान रही है । यहां धर्म का अर्थ न ‘मजहब’ है और न ‘रिलीजन’ है । भारतीय संस्कृति का यह धर्म अति व्यापक, उदार एवं जीवन के सत्यों का पुंज है ।

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III. भारतीय संस्कृति का एक अलौकिक तत्व इसकी सहिष्णुता है । यहां सहिष्णुता का सामान्य अर्थ सहनशीलता नहीं वरन् गौरवपूर्ण शान्त विशाल मनोभाव है, जो स्वकीय-परकीय से ऊपर और समष्टिवाचक है ।

IV. यह जड़ अथवा स्थिर नहीं, बल्कि सचेतन और गतिशील है । इसने समय-काल के अनुरूप अपना कलेवर (आत्मा नहीं) बदला ही नहीं, वरन् उसे अति ग्रहणशील बनाया है ।

V. यह एकांगी नहीं, सर्वांगीण है । इसके सब पक्ष परिपक्व, समुन्नत, विकसित और सम्पूर्ण हैं । इसमें न कोई रिक्तता है और न संकीर्णता ।

भारतीय संस्कृति की इन्हीं विशेषताओं ने इस देश को एक सशक्त एवं सम्पूर्ण भावनात्मक एकता के सूत्र में बांध रखा है ।

भारत में सदैव राजनैतिक एकता रही । राष्ट्र व सम्राट, महाराजाधिराज जैसी उपाधियां, दिग्विजय और अश्वमेध व राजसूय यज्ञ भारत की जाग्रत राजनैतिक एकता के द्योतक रहे हैं । महाकाव्यकाल, मौर्यकाल, गुप्तकाल और उसके बाद मुगलकाल में भी सम्पूर्ण भारत एक शक्तिशाली राजनैतिक इकाई रहा ।

यही कारण है कि देश के भीतर छोटे-मोटे विवाद, बड़े-बड़े युद्ध और व्यापक उथल-पुथल के बाद भी राजनैतिक एकता का सूत्र खण्डित नहीं हुआ । साम्प्रदायिकता, भाषावाद, क्षेत्रीयता और ऐसे ही अन्य तत्व उभरे और अन्तर्राष्ट्रीय शक्तियों ने उनकी सहायता से देश की राष्ट्रीय एकता को खण्डित करने का प्रयास किया, किन्तु वे कभी भी सफल नहीं हो पाये ।

जब देश के भीतर युद्ध, अराजकता और अस्थिरता की आंधी चल रही थी तब भी कोटि-कोटि जनता के मन और मस्तिष्क से राजनैतिक एकता की सूक्ष्म, किन्तु सुदृढ़ कल्पना एक क्षण के लिए भी ओझल नहीं हो पाई । इतिहास साक्षी है कि राजनैतिक एकता वाले देश पर विदेशी शक्तियां कभी भी निष्कंटक शासन नहीं चला पाई । भारत का इतिहास इसी की पुनरोक्ति है ।

भारतीय संस्कृति का एक शक्तिशाली पक्ष इसकी धार्मिक एकता है । भारत के सभी धर्मों और सम्प्रदायों मे बाह्य विभिन्नता भले ही हो, किन्तु उन सबकी आत्माओं का स्रोत एक ही है । मोक्ष, निर्वाण अथवा कैवल्य एक ही गन्तव्य के पृथक-पृथक नाम हैं । भारतीय धर्मों में कर्मकाण्डों की विविधता भले ही हो किन्तु उनकी मूल भावना में पूर्ण सादृश्यता है ।

इसी धार्मिक एकता एवं धर्म की विशद कल्पना ने देश को व्यापक दृष्टिकोण दिया जिसमें लोगों के अभ्यन्तर को समेटने और जोड़ने की असीम शक्ति है । नानक, तुलसी, बुद्ध, महावीर सभी के लिए अभिनन्दनीय हैं । देश के मन्दिरों, मस्जिदों और गुरुद्वारों के समक्ष सब नतमस्तक होते है; तीर्थों और चारों धामों के प्रति जन-जन की आस्था इसी सांस्कृतिक एकता का मूल तत्व है ।

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भारत की एकता का सबसे सुदृढ़ स्तम्भ इसकी संस्कृति है । रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा और त्योहारों-उत्सवों की विविधता के पीछे सांस्कृतिक समरसता का तत्व दृष्टिगोचर होता है । संस्कारों (जन्म, विवाह, मृत्यु के समय अन्तिम संस्कार आदि) के एक ही प्रतिमान सर्वत्र विद्यमान हैं । सामाजिक नैतिकता और सदाचार के सूत्रों के प्रति समान आस्था के दर्शन होते हैं ।

मनुष्य जीवन पुरुष, स्त्रियों और लड़कों-लड़कियों के लिए आचरण, व्यवहार, शिष्टाचार, नैतिकता और जीवन-दर्शन की अविचल एकरूपता देश की सांस्कृतिक एकता का सुदृढ़ आधार है । भाषाओं के बीच पारस्परिक सम्बन्ध व आदान-प्रदान, साहित्य के मूल तत्वों, स्थायी मूल्यों और ललित कलाओं की मौलिक सृजनशील प्रेरणाएं सब हमारी सांस्कृतिक एकता की मौलिक एकता का प्रमाण है । सब ‘सत्यं’ ‘शिवं’ और ‘सुन्दरं’ की अभिव्यक्ति का माध्यम है ।

भारत की गहरी और आधारभूत एकता देखने की कम और अनुभव करने की वस्तु अधिक है । देश सबको प्यारा है । इसकी धरती, नदियों, पहाड़ों, हरे-भरे खेतों, लोक-गीतों, लोक-रीतियों और जीवन-दर्शन के प्रति लोगों में कितना अपनापन, कितना प्यार-अनुराग और कितना भावनात्मक लगाव है इसकी कल्पना नहीं की जा सकती । किसी भारतीय को इनके सम्बन्ध में कोई अपवाद सहय नहीं होगा क्योंकि ये सब उसके अपने है ।

भारत में इतनी विविधताओं के बावजूद एक अत्यन्त टिकाऊ और सुदृढ़ एकता की धारा प्रवाहित हो रही है इस सम्बन्ध में सभी भारतीयों के अनुभव एवं अहसास के बाद किसी बाह्य प्रमाण या प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं हैं । लेकिन फिर भी यहां बी॰ए॰ स्मिथ जैसे सुविख्यात इतिहासवेत्ता के कथन का हवाला देना अप्रासंगिक न होगा । उसने कहा कि भारत में ऐसी गहरी आधारभूत और दृढ़ एकता है, जो रंग, भाषा, वेष-भूषा, रहन-सहन की शैलियों और जातियों की अनेकताओं के बावजूद सर्वत्र विद्यमान है ।

#Essay 2: विविधता में एकता पर निबंध | Essay on Unity in Diversity in Hindi

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”हिन्द देश के निवासी सभी जन एक हैं

रंग, रूप, भेष, भाषा चाहे अनेक हैं ।”

उक्त पंक्तियाँ भारतवर्ष के सन्दर्भ में शत-प्रतिशत सही है भारत विविधता में एकता का देश है । यहाँ हिन्दू मुसलमान, सिख, ईसाई, पारसी आदि विविध धर्मों को मानने बाले लोग निवास करते हैं । इनकी भाषा, रहन-सहन, रीति-रिवाज, आचार-विचार, व्यवहार, धर्म तथा आदर्श इन्हें एक-दूसरे से अलग करते हैं । इसके बावजूद भारत के लोगों में एकता देखते ही बनती है ।

आज भारतवासियों ने ‘आचार्य विनोबा भावे’ की इस पंक्ति को अपने जीवन में अच्छी तरह चीरतार्य कर लिया है- ”सबको हाथ की पाँच अँगुलियों की तरह रहना चाहिए ।”

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यदि हम भारतीय समाज एवं जन-जीवन का गहन अध्ययन करें, तो हमें स्वतः ही पता चल जाता है कि इन विविधताओं और विषमताओं के पीछे आधारभूत अखण्ड मौलिक एकता भी भारतीय समाज एवं संस्कृति की अपनी एक विशिष्ट विशेषता है बाहरी तौर पर तो विषमता एक अनेकता ही झलकती है, पर इसकी तह में आधारभूत एकता भी एक शाश्वत-सत्य की भाँति झिलमिलाती है ।

भारत को भौगोलिक दृष्टिकोण से कई क्षेत्रों में विभक्त किया जा सकता है, परन्तु सम्पूर्ण देश भारतवर्ष के नाम से विख्यात है । इस विशाल देश के अन्दर न तो ऐसी पर्वतमालाएँ है और न ही ऐसी सरिताएँ या सघन बन, जिन्हें पार न किया जा सके । इसके अतिरिक्त, उत्तर में हिमालय की विशाल पर्वतमाला तथा दक्षिण में समुद्र ने सारे भारत में एक विशेष प्रकार की ऋतु पद्धति बना दी है ।

ग्रीष्म ऋतु में जो भाप बादल बनकर उठती है, बह हिमालय की चोटियों पर बर्फ के रूप में जम जाती है और गर्मियों में पिघलकर नदियों की धाराएँ बनकर वापस समुद्र में चली जाती है । सनातन काल से समुद्र और हिमालय में एक-दूसरे पर पानी फेंकने का यह अद्‌भुत खेल चल रहा है । एक निश्चित क्रम के अनुसार ऋतुएँ परिवर्तित होती हैं एवं यह ऋतु चक्र सपने देश में एक जैसा है ।

भारत में सदैव अनेक राज्य विद्यमान रहे है, परन्तु भारत के सभी महत्वाकांक्षी सम्राटों का ध्येय सम्पूर्ण भारत पर अपना एकछत्र साम्राज्य स्थापित करने का रहा है एवं इसी ध्येय से राजसूय वाजपेय, अश्वमेध आदि यश किए जाते थे तथा सम्राट स्वयं को राजाधिराज व चक्रवर्ती आदि उपाधियों से विभूषित कर इस अनुभूति को व्यक्त करते थे कि वास्तव में भारत का विस्तृत भूखण्ड राजनीतिक तौर पर एक है ।

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राजनीतिक एकता और राष्ट्रीय भावना के आधार पर ही राष्ट्रीय आन्दोलनों एवं स्वतन्त्रता संग्राम में, देश के विभिन्न प्रान्तों के निवासियों ने दिल खोलकर सक्रिय रूप से भाग लिया और अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया । स्वतन्त्र भारत में राष्ट्रीय एकता की परख चीनी एवं पाकिस्तानी आक्रमणों के दौरान भी खूब हुई ।

समकालीन राजनीतिक इतिहास में एक युगान्तरकारी परिवर्तन का प्रतीक बन चुके ग्यारहवीं लोकसभा (1966) के चुनाव परिणाम यद्यपि किसी दल विशेष को स्पष्ट जनादेश नहीं दे पाए, फिर भी राजनीतिक एकता की कड़ी टूटी नहीं । हमारे शास्त्र में भी ‘संघे शक्ति कलियुगे’ अर्थात् कलियुग में संगठन (एकता) में ही बल है कहा गया है ।

भारत में विभिन्न धर्मावलम्बियों पद जातियों के होने पर भी उनकी संस्कृति भारतीय संस्कृति का ही एक अंग बनकर रही है । समूचे देश के सामाजिक सांस्कृतिक जीवन का मौलिक आधार एक-सा है वास्तव में, भारतीय संस्कृति की कहानी, एकता व समाधानों का समन्वय है तथा प्राचीन परम्पराओं एवं नवीन मानो के पूर्ण संयोग की उन्नति की कहानी है ।

यह प्राचीनकाल से लेकर वर्तमान तक और भविष्य में भी सदैव रहेगी । ऊपर से देखने पर तो लगता है कि भारत में अनेक धर्म, धार्मिक सम्प्रदाय एवं मत हैं, लेकिन गहराई से देखने पर पता चलता है कि बे सभी समान दार्शनिक एवं नैतिक सिद्धान्तों पर आधारित हैं । एकेश्वरवाद, आत्मा का अमरत्व, कर्म, पुनर्जन्म, मायावाद, मोक्ष निर्वाण, भक्ति आदि प्रायः सभी धर्मों की समान निधियाँ है ।

इस प्रकार भारत की सात पवित्र नदियाँ लगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, सिन्ध, नर्मदा एवं कावेरी विभिन्न पर्वत आदि देश के विभिन्न भागों में स्थित है, तथापि देश के प्रत्येक भाग के निवासी उन्हें समान रूप से पवित्र मानते है और उनके लिए समान श्रद्धा एवं प्रेम की भावना रखते हैं । विष्णु व शिव की उपासना तथा राम एवं कृष्ण की गाथा का गुणगान सम्पूर्ण भारत में एक समान है ।

हिमालय के शिखरों से लेकर कृष्णा-कावेरी समतल डेल्टाओं तक सर्वत्र शिव एवं विष्णु के मन्दिरों के शिखर प्राचीनकाल से आकाश से बातें करते और धार्मिक एकता की घोषणा करते आ रहे हैं । इस प्रकार चारों दिशाओं के चार धाम-उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम्, पूर्व में जगन्नाथपुरी और पश्चिम में द्वारिका भारत की धार्मिक एकता एक अखण्डता के पुष्ट प्रमाण हैं ।

सभी हिन्द गाय को पवित्र मानते है और ‘उपनिषद’, ‘वेद’, ‘गीता’, रामायण’, ‘महाभारत’, ‘धर्मशास्त्र’, ‘पुराण’ आदि के प्रति समान रूप से श्रद्धा भाव रखते हैं । सम्पूर्ण भारत में सर्वत्र संयुक्त परिवार की प्रथा प्रचलित हे । जाति प्रथा का प्रभाव किसी-न-किसी रूप में भारत के सभी स्थानों एवं लोगों पर पड़ा है ।

रक्षाबन्धन, दशहरा, दीपावली, होली आदि त्योहारों का फैलाव समूचे भारत में है सारे देश में जन्म-मरण के संस्कारों एवं विधियों, विवाह प्रणालियों, शिष्टाचार, आमोद-प्रमोद, उत्सव, मेलों, सामाजिक रूढ़ियों और परम्पराओं में पर्याप्त समानता देखने को मिलती है ।

भारत में भाषाओं की बहुलता है, पर वास्तव में वे सभी एक ही साँचे में ढली हुई हैं । अधिकांश भाषाओं की वर्णमाला एक ही हे । सभी भाषाओं पर संस्कृत भाषा का स्पष्ट प्रभाव देखने को मिलता है, जिसके फलस्वरूप भारत की प्रायः सभी भाषाएं अनेक अर्थों में समान बन गई हैं ।

समस्त धर्मों का प्रचार संस्कृत एक पाली भाषा के द्वारा ही हुआ । संस्कृत के ग्रन्थ आज भी समस्त देश में रुचि पूर्वक पड़े जाते है । रामायण और महाभारत नामक महाकाव्य तमिल तथा अन्य दक्षिण प्रदेशों के राजदरबारों में उतनी ही श्रद्धा एवं भक्ति से पढे जाते थे, जितने बे पश्चिमी पंजाब में तक्षशिला की विद्वत मण्डली एवं गंगा की ऊपरी घाटी में स्थित नैमिषारण्य में ।

समस्त देश के विद्वत समाज को एक सूत्र में पिरोने का काम पहले ‘प्राकृत’ एवं ‘संस्कृत’ भाषा ने, बाद में ‘अंग्रेजी’ और आज ‘हिन्दी’ के द्वारा पूर्ण हो रहा है । भाषा की एकता की इस निरन्तरता को कभी भी खण्डित नहीं किया जा सकता ।

‘महात्मा गाँधी’ ने कहा था-

”जब तक हम एकता के सूत्र में बँधे हैं, तब तक मजबूत हैं

और जब तक खण्डित हैं तब तक कमजोर हैं ।”

स्थापत्य कला, मूर्तिकला, चित्रकला, नृत्य, संगीत, सिनेमा आदि के क्षेत्र में हमें एक अखिल भारतीय समानता देखने को मिलती है । इन सभी क्षेत्रों में देश की विभिन्न कलाओं का एक अपूर्व मिलन हुआ है । देश के विभिन्न मार्गों में निर्मित मन्दिरों, मस्जिदों, चर्चो एवं अन्य धार्मिक इमारतों में इस मिलन का आभास होता है ।

दरबारी, मियाँ मल्हार, ध्रुपद, भजन खयाल, दमा, ठुमरी, गजल के अतिरिक्त पाश्चात्य धुनों का भी विस्तार सारे भारतवर्ष में है । दक्षिण में निर्मित फिल्मों को डबिंग के साथ हिन्दी भाषी क्षेत्र में तथा हिन्दी फिल्मों को डबिंग के साथ देश के कोने-कोने में दिखाया जाता है । इसी प्रकार भरतनाट्यम, कथकली, कत्थक, मणिपुरी आदि सभी प्रकार के नृत्य भारत के सभी भागों में प्रचलित है ।

भारत प्रजातियों का एक अजायबघर है लेकिन बाहर से आई द्रविड, शक, सिथियन, हूण, तुर्क, पठान, मंगोल आदि प्रजातियाँ हिन्दू समाज में अब इतनी धुल-मिल गई हैं कि उनका पृथक अस्तित्व आज समाप्त हो गया है । हिन्दुओं, मुसलमानों और ईसाइयों के अनेक रीति-रिवाज, उत्सव, मेले, भाषा, पहनावा आदि में समानता है ।

इस प्रकार, कहा जा सकता है कि बाहरी तौर पर भारतीय समाज, संस्कृति एवं जन-जीवन में विभिन्नताएँ दिखाई देने पर भी भारत की संस्कृति, धर्म, भाषा, विचार एवं राष्ट्रीयता मूलतः एक है । इस एकता को विखण्डित नहीं किया जा सकता । हजारों वर्षों की अग्नि-परीक्षा और विदेशी आक्रमणों ने इस सत्य को प्रमाणित कर दिया है ।

भारत के लिए विविध में एकता का क्या अर्थ है?

“विविधता में एकता” का अर्थ है विभिन्न असमानताओं के बावजूद भी अखंडता का अस्तित्व। “विविधता में एकता” की इस अवधारणा के लिये भारत एक बेहतर उदाहरण है।

भारत में विविधता से आप क्या समझते हैं?

भारत में विविधता भारत विविधताओं का देश है। यहां कई प्रकार के धर्म को मानने वाले लोग रहते हैंभारत में अनेकों प्रकार की भाषाएं बोली जाती है, अलग-अलग त्योहार मनाए जाते हैं तथा विभिन्न प्रकार का खाना खाया जाता है। इन्हीं सब कारणों से भारत को विविधताओं का देश कहा जाता है।

भारत में विविधता में एकता का प्रतीक क्या है?

भारत विविधता में एकता के प्रतीक की भूमि है। भारतीय संस्कृति जातियों, धर्मों, रीति-रिवाजों और भाषाओं की बहुलता का भंडार है। इस प्रकार भारत दुनिया में अद्वितीय है।

विविधता का अर्थ क्या होता है?

विविधता से तात्पर्य ऐसी स्थिति से है जिसमें समस्त भाषायी, क्षेत्रीय, भौगोलिक एवं सांस्कृतिक रुप से अलग-अलग रहने वाले मानव एक समुह/ समाज या एक स्थान विशेष में साथ-साथ निवास करते हैं। ऐसा माना जाता है कि सभी व्यक्ति शारीरिक रचना की दृष्टि से समान होती है।

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