शुक्रवार आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाएगा। यह पर्व गुरु शिष्य की परंपरा को दर्शाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था।
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शुक्रवार आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाएगा। यह पर्व गुरु शिष्य की परंपरा को दर्शाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। जिस के उपलक्ष में आज भी प्रत्येक आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को यह पर्व मनाया जाता है। प्राचीन समय से भारत में
गुरु और शिष्य की परंपरा चली आ रही है। हमारे शास्त्रों वेदों उपनिषदों पुराणों आदि में आज भी गुरु शिष्य से जुड़ी कई कहानियां वर्णित है। आज अपनी आर्टिकल के माध्यम से हम आपको गुरु और शिष्य परंपरा की ऐसी प्रमुख बातें बताने जा रहे हैं जिनके बारे में शायद बहुत कम लोग जानते हैं। तो चलिए जानते हैं-
सनातन धर्म के ग्रंथों के अनुसार भगवान ब्रह्मा और शिव इस संसार के पहले गुरु माने जाते हैं। ब्रह्मदेव ने अपने मानस पुत्रों को शिक्षा दी थी, तो वही शिवजी ने अपने 7 शिष्यें को शिक्षा दी, जो आगे चलकर
सप्त ऋषि कहलाए थे।
कहा जाता है कि शिव जी ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी जिसके चलते आज भी समाज में नाथ, शैव, शाक्त आदि संतों में उसी परंपरा का निर्वाह होता आ रहा है। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार भगवान शंकर की इस परंपरा को आदि शंकराचार्य वह गुरु गोरखनाथ ने आगे बढ़ाया था।
भगवान शंकर के बाद सबसे बड़े गुरु भगवान दत्तात्रेय को कहा जाता है। कथाओं के अनुसार इन्होंने ब्रह्मा जी विष्णु महेश तीनों से ही दीक्षा और शिक्षा प्राप्त की थी। धार्मिक ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि
दत्तात्रेय के भाई ऋषि दुर्वासा बहुत चंद्रमा थे। यह ब्रह्मा के पुत्र अत्रि और कर्दम ऋषि की पुत्री अनसूया के पुत्र थे।
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अश्रु के गुरु थे आचार्य शुक्राचार्य। धार्मिक कथाओं के अनुसार शुक्राचार्य गुरु के गुरु माने जाते थे। प्रचलित मान्यताओं के मुताबिक प्राचीन समय में ऐसे कई असुर हुए हैं जो किसी न किसी के गुरु रहे हैं।
आचार्य चाणक्य चंद्रगुप्त मौर्य के नीतू
माने जाते हैं इस बारे में लगभग सभी जानते हैं लेकिन आचार्य चाणक्य के गुरु उनके पिता चणक थे। इस बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। कहा जाता है कि इस समय में यानी चाणक्य के काल में भी कई महान गुरु हुए थे।
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