भक्ति आंदोलन का तत्कालीन समाज पर क्या प्रभाव पड़ा? - bhakti aandolan ka tatkaaleen samaaj par kya prabhaav pada?

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  • प्रश्न :

    भारत में भक्ति आंदोलन के उदय के कारकों की पहचान कीजिये एवं इसके महत्त्व की चर्चा कीजिये।

    26 Sep, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृति

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा-

    • भक्ति आंदोलन से जुड़े संतों का संक्षिप्त में उल्लेख करें।
    • भक्ति आंदोलन के उदय के कारणों को लिखें।
    • समाज, संस्कृति आदि पर भक्ति आंदोलन के प्रभावों के माध्यम से उसका महत्त्व बतलाएँ।
    • निष्कर्ष

    मध्य काल में भक्ति आंदोलन की शुरुआत सर्वप्रथम दक्षिण के अलवार तथा नयनार संतों द्वारा की गई। बारहवीं शताब्दी के प्रारंभ में रामानंद द्वारा यह आंदोलन दक्षिण भारत से उत्तर भारत में लाया गया। इस आंदोलन को चैतन्‍य महाप्रभु, नामदेव, तुकाराम, जयदेव ने और अधिक मुखरता प्रदान की। भक्ति आंदोलन का उद्देश्य था- हिन्दू धर्म एवं समाज में सुधार तथा इस्लाम एवं हिन्दू धर्म में समन्वय स्थापित करना। अपने उद्देश्यों में यह आंदोलन काफी हद तक सफल रहा।

    भारत में भक्ति आंदोलन के उदय के कारण-

    • मुस्लिम शासकों के बर्बर शासन से कुंठित एवं उनके अत्याचारों से त्रस्त हिन्दू जनता ने ईश्वर की शरण में अपने को अधिक सुरक्षित महसूस कर भक्ति मार्ग का सहारा लिया। 
    • हिन्दू एवं मुस्लिम जनता के आपस में सामाजिक एवं सांस्कृतिक संपर्क से दोनों के मध्य सद्भाव, सहानुभूति एवं सहयोग की भावना का विकास हुआ। इस कारण से भी भक्ति आंदोलन के विकास में सहयोग मिला। 
    • सूफी संतों की उदार एवं सहिष्णुता की भावना तथा एकेश्वरवाद में उनकी प्रबल निष्ठा ने हिन्दुओं को प्रभावित किया; जिस कारण से हिन्दू, इस्लाम के सिद्धांतों के निकट सम्पर्क में आये। 
    • हिन्दुओं ने सूफियों की तरह एकेश्वरवाद में विश्वास करते हुए ऊँच-नीच एवं जात-पात का विरोध किया। शंकराचार्य का ज्ञान मार्ग व अद्वैतवाद अब साधारण जनता के लिये बोधगम्य नहीं रह गया था। 
    • मुस्लिम शासकों द्वार मूर्तियों को नष्ट एवं अपवित्र कर देने के कारण, बिना मूर्ति एवं मंदिर के ईश्वर की आराधना के प्रति लोगों का झुकाव बढ़ा, जिसके लिये उन्हें भक्ति मार्ग का सहारा लेना पड़ा।
    • तत्कालीन भारतीय समाज की शोषणकारी वर्ण व्यवस्था के कारण निचले वर्णों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। भक्ति-संतों द्वारा दिये गए सामाजिक सौहार्द्र और सद्भाव के संदेश ने लोगों को प्रभावित किया।

    भक्ति आंदोलन का महत्त्व-

    • भक्ति आंदोलन के संतों ने लोगों के सामने कर्मकांडों से मुक्त जीवन का ऐसा लक्ष्य रखा, जिसमें ब्राह्मणों द्वारा लोगों के शोषण का कोई स्थान नहीं था।
    • भक्ति आंदोलन के कई संतों ने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल दिया, जिससे इन समुदायों के मध्य सहिष्णुता और सद्भाव की स्थापना हुई।
    • भक्तिकालीन संतों ने क्षेत्रीय भाषों की उन्नति में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। हिंदी, पंजाबी, तेलुगू, कन्नड़, बंगला आदि भाषाओं में इन्होंने अपनी भक्तिपरक रचनाएँ कीं।
    • भक्ति आंदोलन के प्रभाव से जाति-बंधन की जटिलता कुछ हद तक समाप्त हुई।  फलस्वरूप दलित व निम्न वर्ग के लोगों में भी आत्मसम्मान की भावना जागी। 
    • भक्तिकालीन आंदोलन ने कर्मकांड रहित समतामूलक समाज की स्थपाना के लिये आधार तैयार किया। 

    निष्कर्षतः भक्ति आंदोलन से हिन्दू-मुस्लिम सभ्यताओं का संपर्क हुआ और दोनों के दृष्टिकोण में परिवर्तन आया। भक्तिमार्गी संतों ने समता का प्रचार किया और सभी धर्मों के लोगों की आध्यात्मिक और नैतिक उन्नति के लिये प्रयास किये। 

    सल्तनत काल से ही हिन्दू मुस्लिम संघर्ष का काल था । दिल्ली सुल्तानों ने हिन्दू धर्म के प्रति अत्याचार करना आरंभ कर दिये थे । उन्होंने अनेक मंदिरेां और मुर्तियों को तोड़ने लगे थे । जिससे हिन्दुओं ने अपने धर्म की रक्षा के लिए एकेश्वरवाद को महत्व दिया और धर्म सुधारक ने एक आंदोलन चलाया यही आंदोलन भक्ति आंदोलन के नाम से विख्यात हुआ। 


    मध्यकाल में सुल्तानों के अत्याचार एवं दमन की नीति से भारतीय समाज आंतकित और निराश हो चुका था । ऐसी स्थिति में कुछ विचारकों एवं संतों ने हिन्दू धर्म की कुरीतियों को दूर करने के लिए एक अभियान प्रारंभ किया । 


    इसी अभियान को भक्ति आंदोलन के नाम से जाना जाता था। 

    भक्ति आंदोलन के कारण

    भक्ति आंदोलन के कारण - भक्ति आंदोलन को अपनाने के कारण थे । जो इस प्रकार है -

    1. मुस्लिम आक्रमणकारी के अत्याचार - भारत में मुस्लिम अत्याचारियों ने बर्बरता से अत्याचार किया हिन्दुओं का कत्लेआम, मूर्तियों मंदिरों का विध्वंस आदि । इससे निजात पाने के लिए भक्ति आंदोलन को अपनाया गया ।
    2. धर्म एवं जाति का भय - मुस्लिम आक्रमणकारियों से हिन्दू सम्प्रदाय के लागे भयभीत थे उन्हें यह डर था कि उनके धर्म एवं जाति का विनाश हो जायेगा । इसलिए इनकी रक्षा हेतु भक्ति आंदोलन का आश्रय लिया गया ।
    3. इस्लाम का प्रभाव - हिन्दुओं ने अनुभव किया कि इस्लाम धर्म में सादगी व सरलता है । उनमें जातीय भेदभाव नहीं है इसलिए हिन्दुओं ने इन्हें दूर करने के लिए जो मार्ग अपनाया। उसने भक्ति आंदोलन का रूप धारण कर लिया ।
    4. राजनैतिक सगंठन - मुस्लिम सुल्तानों ने भारतीयों पर भयंकर अत्याचार किया । भारतीय राजाओं को परास्त कर अपनी सत्ता की स्थापना की । इस संघर्ष से मुक्ति पाने के लिए भारतीयों ने अपने राज्य की पुर्नस्थापना की । जिससे हिन्दू धर्म संगठित हो गया और भक्ति मार्ग को बल मिला ।
    5. रूढ़िवादिता - मध्यकाल के आते आते हिन्दू धर्म रूढ़िवादी हो गया था । यज्ञो, अनुष्ठानों की संकीर्णता से लोग ऊब गये थे । वे सरल धर्म चाहते थे । जिससे भक्ति मार्ग का उदय हुआ।
    6. पारस्परिक मतभेद - हिन्दू धर्म में भेदभाव बहुत था । निम्न वर्गों की दशा बहुत दयनीय थी । भेदभाव को समाप्त करने के लिए भक्ति मार्ग को अपनाया गया । 
    7. हिन्दुओं की निराशा - मुसलमानों के अत्याचार से हिन्दुओं की निराशा बढ़ चुकी थी। वे बहुत हताश हो गये थे ईश्वर के अतिरिक्त उन्हें कोई नहीं दिखाई दे रहा था जिसके कारण वे भक्ति मार्ग को अपनाया ।

    भक्ति आंदोलन का उदय 

    1. हिन्दू धर्म एवं समाज में सुधार करना - भक्ति मार्ग अपनाने से समाज में धर्म के प्रति एकता की भावना जागृत हो गयी ।
    2. इस्लाम एवं हिन्दू धर्म में समन्वय करना - भक्ति आंदोलन के द्वारा इस्लाम व हिन्दू धर्म के प्रति समन्वय की भावना का विकास हुआ ।

    भक्ति आंदोलन की मुख्य विशेषताएं

    भक्ति आंदोलन की मुख्य विशेषताएं है।

    1. एक ईश्वर मेंं आस्था- ईश्वर एक है वह सर्व शक्तिमान है । 
    2. बाह्य आडम्बरों का विरोध- भक्ति आंदोलन के संतों ने कर्मकाण्ड का खण्डन किया । सच्ची भक्ति से मोक्ष एवं ईश्वर की प्राप्ति होती है ।
    3. सन्यास का विरोध- भक्ति आंदोलन के अनुसार यदि सच्ची भक्ति है ईश्वर में श्रद्धा है तो गृहस्थ में ही मोक्ष मिल सकता है ।
    4. वर्ण व्यवस्था का विरोध- भक्ति आंदोलन के आंदोलन के प्रवतकों ने वर्ण व्यवस्था का विरोध किया है । ईश्वर के अनुसार सभी एक है ।
    5. मानव सेवा पर बल- भक्ति आंदोलन के समर्थकों ने यह माना कि मानव सेवा सर्वोपरि है । इससे मोक्ष मिल सकता है ।
    6. हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रयास- भक्ति आंदोलन के द्वारा संतों ने लोगों को यह समझाया कि राम, रहीम में कोई अंतर नहीं ।
    7. स्थानीय भाषाओं में उपदेश- संतों ने अपना उपदेश स्थानीय भाषाओं में दिया । भक्तों ने इसे सरलता से ग्रहण किया ।
    8. समन्वयवादी प्रवृत्ति- संतों, चिन्तकों, विचारकों ने ईर्ष्या की भावना को समाप्त करके लोगों में सामंजस्य, समन्वय की भावनाओं को प्रोत्साहन दिया ।
    9. गुरु के महत्व मेंं वृद्धि- भक्ति आंदोलन के संतों ने गुरु एवं शिक्षक के महत्व पर बल दिया । गुरु ही ईश्वर के रहस्य को सुलझाने एवं मोक्ष प्राप्ति में सहायक होता है । समर्पण की भावना- समर्पण की भावना से सत्य का साक्षात्कार एवं मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है ।
    10. समानता की भावना- ईश्वर के समक्ष सभी लागे समान है । ईश्वर सत्य है । सभी जगह विद्यमान है । उनमें भेदभाव नहीं है । यही भक्ति मार्ग का सही रास्ता है ।

    भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत

    भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत -

    1. आचार्य रामानुुज- इनका जन्म आधुनिक आन्ध्रपद्रेश के त्रिपुती नगर में 1066 ई. में हुआ था । वे विष्णु के भक्त थे । उन्होंने सभी के लिए मोक्ष प्राप्ति का मार्ग खोला ।
    2. रामानंद- इनका जन्म प्रयाग में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था । वे एक महान धर्म सुधारक थे । वे अल्पायु में ही सन्यास ग्रहण कर लिये थे, ये राम के भक्त थे इन्होंने वैष्णव धर्म का द्वार सभी के लिए खोल दिया था । वे प्रेम व भक्ति पर जोर दिये ।
    3. कबीर- कबीर एक महान सतं थे । इनका जन्म 1398 में काशी में हुआ था । इन्होंने भी प्रेम व भक्ति पर बल दिया । इन्होंने अंधविश्वास, कर्मकांड, दकियानूसी विचार, तीर्थ आदि पर खूब व्यंग्य किया है । उन्होंने पहली बार धर्म को अकर्मण्यता की भूमि से कटाकर कर्मयोगी की भूमि में लाकर खड़ा कर दिया । कबीर हिन्दू, मुसलमान, सम्प्रदायों की एकता का महान अग्रदूत था । कबीर ने हिन्दुओं की मूर्तिपूजा की आलोचना करते हुए लिखा है- ‘‘पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ प्रहार ताते यह चाकी भली, पीस खाए संसार ।।’’ इस प्रकार कबीर उच्च कोटि के निर्गुण भक्त ही नही बल्कि वे समाज सुधारक, उपदेशक, प्रगतिशील विचारक भी थे ।
    4. चैतन्य- चैतन्य महाप्रभु सन्यासी होने के बाद कृष्ण भक्ति में लीन हो गये । उनका विश्वास था कि प्रेम, भक्ति, संगीत, नृत्य आदि से ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है । 
    5. नामदेव- वे भी बाह्य आडम्बर जाति पाति का विरोध किया । ईश्वर की भक्ति को सच्चा मार्ग बतलाया ।
    6. गुरूुनानक- गुरूनानक ने मूिर्तपूजा का विरोध किया । इनके गुरु अर्जुन देव थे एकेश्वरवाद व निर्गुण ब्रह्मा के उपासक थे । वे हिन्दू मुसलमानों में एकता चाहते थे । 
    7.  वल्लाभाचार्य- ये तेलगू बा्रम्हण परिवार के थे ये महान विद्वान थे । वे कृष्ण भक्ति का प्रचार किये । कृष्ण भक्ति के महत्व को उच्चकोटि का कहा । उन्होंने कृष्ण के प्रति सच्ची श्रद्धा व्यक्त की है ।
    8. ज्ञानेश्वर- ये ब्राह्मणों का विरोध करते थे । इन्होंने निम्न जाति के लोगों के लिए धार्मिक ग्रंथों पर प्रतिबंध लगाया था ।
    9. माधवाचार्य- 13वी सदी के महान सुधारक एवं संत थे । ये विष्णु के भक्त थे । इनका मानना था कि ईश्वर भक्ति से इंसान जन्म मरण के चक्र से मोक्ष प्राप्त कर लेता है ।
    10. निम्बार्क- ये कृष्ण राधा पर आधारित भक्ति की व्याख्या की है । ये धर्म सुधारक थे । ये पूर्ण आत्मसमर्पण पर जोर देते थे ।

    भक्ति आंदोलन का प्रभाव

    1. धामिर्क प्रभाव- धार्मिक कट्टरता समाप्त हो गई सहिष्णुता की भावना जागृत हो गयी।
    2. अंध विश्वास में कमी- अंधविश्वास एवं वाह्य आडम्बर, पाखण्ड आदि दूर हो गये ।
    3. ईष्या द्वेष में कमी- भक्ति मार्ग से लोगों के मन में जो ईष्या द्वेष की भावना समाप्त होकर एकता जागृत हो गई ।
    4. समन्वय की भावना में वृद्धि हुई- हिन्दू, मुस्लिम में कटुता कम हो गई ।
    5. धर्म निरपेक्ष भावना में वृद्धि- सभी धर्मों में एकता जागृत हुई । यही कारण था कि अकबर जैसे सम्राट आये ।
    6. इस्लाम प्रसार की समाप्ति- लोगों में समानता की भावना उत्पन्न हो गई । निम्न वर्ग इस्लाम के प्रभाव से मुक्त हो गया ।
    7. सिक्ख धर्म की स्थापना- भक्ति मार्ग के कारण गुरुनानक ने सिक्ख धर्म की स्थापना की ।
    8. बौद्ध धर्म का पतन- हिन्दू धर्म में जागृति आयी बौद्ध धर्म का पतन हो गया ।
    9. समाज सेवा में वृद्धि- समाज सेवा से लोगों के मन में मानव सेवा की भावना जागृत हुई। 
    10. कला का विकास- भक्ति आंदोलन से अनेक भवनों का निर्माण होने से कला का विकास आरंभ हो गया ।

    भक्ति आंदोलन से आप क्या समझते हैं इसका तत्कालीन समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?

    इस आंदोलन के समर्थक समाज में जाति-पाति, वर्ग-भेद समाप्त कर सामाजिक समानता की स्थापना कर संस्कृति के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। भक्ति आंदोलन ने भारतीय संस्कृति को राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक सभी क्षेत्रों में समान रूप से प्रभावित किया। मानववाद के साथ व्यक्तिवाद को जोड़ा। निम्नवर्ग में आध्यात्मिक चेतना का स्फुरण।

    भक्ति आंदोलन ने भारतीय समाज को कैसे प्रभावित किया?

    भक्ति आंदोलन का भारतीय समाज पर प्रभाव भक्ति आन्दोलन के सन्तों ने जात-पात का खण्डन किया तथा सामाजिक सामनता पर बल दिया। इस आन्दोलन के परिणामस्वरूप जनता में समाज सेवा की भावना उत्पन्न हुई जो भक्ति आन्दोलन का अच्छा प्रभाव था। भक्ति आन्दोलन के सन्तों ने सभी धर्मो की आधारभूत समानता पर बल दिया। एकेश्वरवाद का प्रचार किया

    भक्ति आंदोलन के उदय के क्या कारण थे भारतीय समाज पर इसका क्या प्रभाव पड़ा?

    भारत में भक्ति आंदोलन के उदय के कारण- सूफी संतों की उदार एवं सहिष्णुता की भावना तथा एकेश्वरवाद में उनकी प्रबल निष्ठा ने हिन्दुओं को प्रभावित किया; जिस कारण से हिन्दू, इस्लाम के सिद्धांतों के निकट सम्पर्क में आये। हिन्दुओं ने सूफियों की तरह एकेश्वरवाद में विश्वास करते हुए ऊँच-नीच एवं जात-पात का विरोध किया।

    भक्ति आंदोलन का क्या प्रभाव पड़ा?

    (3) भारतीय शासकों पर लाभकारी प्रभाव- भक्ति आंदोलन ने भारतीय शासकों पर अच्छा प्रभाव डाला जिन्होंने अपनी सभी प्रजा के साथ उदारतापूर्वक और निष्पक्ष व्यवहार करना शुरू कर दिया। इसने शेरशाह सूरी और अकबर आदि जैसे राष्ट्रीय शासकों का निर्माण किया और राष्ट्रीय सोच को प्रोत्साहित किया।

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