भारी जल का क्या उपयोगिता है? - bhaaree jal ka kya upayogita hai?

भारी पानी संयंत्र, बड़ौदा, निष्कर्षण के लिए मोनो-थर्मल अमोनिया-हाइड्रोजन समस्थानिक विनिमय प्रक्रम का उपयोग करते हुए भारत में भारी पानी (D2O) का उत्पादन करने में और तत्पश्चात ड्यूटेरियम समस्थानिक को नाभिकीय ग्रेड तक समृद्ध करने में अग्रणी संयंत्र है। प्रक्रम प्रौद्योगिकी फ्रांस से प्राप्त की गई थी। चूंकि ऐसे संयंत्र के लिए मुख्य सामग्री हाइड्रोजन है, जिसमें लगभग 120-125 पीपीएम जितना ड्यूटेरियम सांद्रण होने से फर्टिलाइजर इकाई को इस हेतु श्रेष्ठ पाया गया। बड़ौदा स्थित मैसर्स गुजरात स्टेट फर्टिलाइजर एंड केमिकल लि. (जीएसएफसी) संयंत्र को उनकी क्षमता, कार्य-निष्पादन, कच्ची सामग्री की उपलब्धता, बिजली, कुशल जनशक्ति तथा अन्य आधारभूत सुविधा को देखते हुए मोनो-थर्मल हाइड्रोजन अमोनिया विनिमय प्रक्रम का प्रथम भारी पानी संयंत्र के संस्थापन के लिए चुना गया। इस प्रकार, 1969 में, भारी पानी संयंत्र, बड़ौदा के प्रथम मील का पत्थर अमोनिया हाइड्रोजन विनिमय प्रक्रम पर भारी पानी के उत्पादन को अर्जित किया गया । चूंकि मैसर्स जीएसएफसी के अमोनिया संयंत्र को 600 कि.ग्रा./सेमी2(जी) दाब पर प्रचालन के लिए अभिकल्पित किया गया था। मैसर्स जेलप्रा ने उच्च दाब पर प्रचालित करने के लिए आवती गैस शुद्धिकरण, ड्यूटेरियम निष्कर्षण, अमोनिया संश्लेषण इकाई का अभिकल्पन किया था। स्थापन और यांत्रिक परीक्षण अप्रैल, 1975 में पूरे किए गए । संयंत्र के कमीशनन के बाद, भारी पानी का उत्पादन माह जुलाई 1977 में हुआ था। H2S-H2O प्रक्रम को ठीक से स्थापित करने के लिए इस प्रक्रम मुख्य स्पर्धक पाया गया। यह मुख्यतः H2S के मुकाबले अमोनिया की कम जहरीली प्रकृति और उत्पादन की प्रति इकाई कम आपेक्षिक ऊर्जा खपत के कारण हुआ। दोनों प्रक्रमों के अभिकल्पन और प्रचालन में महारत हासिल करने वाला भारत एक मात्र देश है।

फर्टिलाइजर उत्पादन के लिए अमोनिया कच्‍चा पदार्थ है। अमोनिया के उत्पादन की कीमत कन्वर्टर के दाब पर निर्भर करती है। फर्टिलाइजर की कीमत कम करने की दिशा में, अमोनिया के उत्पादन की प्रौद्योगिकी में क्रांति आई और कन्वर्टर का प्रचालन दाब पर्याप्त रूप से कम हो गया । मैसर्स जीएसएफसी ने वर्ष 1999 में अपने उच्च दाब अमोनिया संयंत्र को बंद कर दिया और निम्‍न दाब अमोनिया संयंत्र को शुरू किया। भारी पानी संयंत्र (बड़ौदा) दिनांक 31.12.1998 को बंद (शट डाउन) हुआ। यही स्थिति अन्य भारी पानी संयंत्रों की भी हुई जिनसे फर्टिलाइजर संयंत्र जुड़े हुए थे । ऐसे प्रभावित भापासंयंत्रों का प्रचालन जारी रखने के लिए नए अमोनिया जल विनिमय प्रक्रम के विकास की आवश्‍यकता महसूस हुई।

पानी से अमोनिया द्वारा ड्यूटेरियम स्थानांतरण, परित्यक्त जल से अमोनिया निष्कासन, और उत्पाद अमोनिया से पानी, पैकेजिंग का कार्य-निष्पादन आदि के अध्ययन के लिए वर्ष 1986 में भापासं, बड़ौदा में एक पायलट संयंत्र की स्थापना की गई। पानी से ड्यूटेरियम के निष्कर्षण में पायलट संयंत्र अध्ययन में उत्साहजनक परिणाम प्राप्त हुए, भारी पानी बोर्ड ने पानी से ड्यूटेरियम के प्रारंभिक निष्कर्षण हेतु अग्रांत इकाई के रूप में NH3-H2O विनिमय इकाई के उपयोग से भापासं (बड़ौदा) में प्रौद्योगिकी निदर्शन संयंत्र स्थापित करने का और अधिक समृद्धिकरण के लिए मुख्य संयंत्र की वर्तमान सुविधा प्रणाली में आवश्यक सुधार करते हुए जोड़ने का निर्णय लिया।

वर्तमान संयंत्र में मुख्य परिवर्तन, गैस शुद्धिकरण सेक्शन को हटाना, कम दाब (125 कि.ग्रा./सेमी2) पर पुराने निष्कर्षण टावरों का प्रचालन और कम तापमान (-30 डिग्री से.), द्रव शुद्धिकरण प्रणाली का समामेलन और अमोनिया संश्लेषण लूप (पाश) का रिसाइकल मोड प्रचालन है। पुनः अमोनिया अवशोषण रेफ्रिजरेशन (एएआर) के माध्यम से मुख्य संयंत्र की रेफ्रिजरेशन आवश्यकताओं को एकीकृत करने की उमदा तक अग्रांत (फ्रंट एंड) प्रदान करता है। प्रचालन अनुभव प्राप्त करने तथा प्रोसेस डाटा संग्रहण के लिए संयंत्र का प्रचालन 2011 तक जारी रहा। नई अमोनिया जल प्रौद्योगिकी के सफल निदर्शन के बाद संयंत्र को अप्रैल 2011 में बंद किया गया।

(ii)पोटेशियम धातु संयंत्र (के-मेटल संयंत्र):

पोटेशियम धातु पोटेशियम अमाइड, जिसे अमोनिया हाइड्रोजन विनिमय पर आधारित भारी पानी संयंत्रों में उत्प्रेरक के रूप में उपयोग किया जाता है, तैयार करने के लिए आवश्यक है। बैच प्रोसेस में कैल्सियम कार्बाइड सहित पोटेशियम फ्लोराइड का ताप करते हुए पोटेशियम धातु उत्पन्न की जाती है। कच्ची सामग्री, कैल्सियम कार्बाइड एवं पोटेशियम फ्लोराइड को अक्रिय गैस वातावरण के तहत मिश्र किया जाता है। मिश्रित कच्ची सामग्री (चार्ज) को प्रत्युत्तर में रखी जाती है और अंत में प्राकृतिक गैस वाली भट्टी में रखा जाता है। पोटेशियम धातु के निर्माण की अभिक्रिया ऊष्माशोषी है और उच्च तापमान पर शुरू होती है। पोटेशियम धातु से उत्पन्न वाष्प संघनित होती है और गलित धातु छड़ों में ढलती है, कटती है और पैराफीन तैल में भंडारित होती है।

(iii)टीबीपी संयंत्र : मूल सिद्धांत :

भापासं, बड़ौदा में स्थापित टीबीपी संयंत्र का उद्देश्य उच्च गुणवत्ता वाला त्रय-ब्यूटाइल फॉस्फेट (टीबीपी) का उत्पादन करना है। संयंत्र का प्रचालन बैच में किया जाता है। संयंत्र की क्षमता 130 मैट्रिक टन प्रति वर्ष है।

टीबीपी के उत्पादन में मुख्यतः निम्नलिखित चार चरण शामिल हैं :

  • फॉस्फरस ऑक्सी-क्लोराइड (POCl3) तथा एन-ब्यूटानोल के बीच एस्टरीकरण अभिक्रिया।
  • हाइड्रोक्लोराइड (HCl) और एकल एवं द्वय-ब्यूटाइल फॉस्फरिक एसिड जैसे कुछ अवांछित अम्ल यौगिकों का उदासीनीकरण।
  • ब्यूटानोल की पुनःप्राप्ति।
  • अपरिष्कृत (क्रूड) टीबीपी का अंतिम शुद्धिकरण।

टीबीपी संश्लेषण हेतु उपरोक्त चरण क्रियान्वित करने के क्रम में संयंत्र सुविधा को कच्ची सामग्री चार्जिंग प्रणाली, विभिन्न सहायक प्रणालियां और उपयोगिता तथा भंडार यूनिटों सहित 5000 लीटर क्षमता के 3 ग्लास लाइन रिएक्टरों वाला रिएक्टर यूनिट प्रदान किया गया है। रिएक्टर यूनिट के साथ जुड़ी सहायक प्रणालियां निर्वात प्रणाली है जो रिएक्टर का सब-एटमोस्फरिक प्रचालन, कच्ची सामग्री भंडारण सुविधा, ब्यूटानोल शुद्धिकरण यूनिट, मार्जक (स्क्रबर) यूनिट तथा द्रव बहिःस्राव उपचार यूनिट को सरल बनाती है। उपयोगिता यूनिटों में शीतित जल यूनिट तथा लघु बॉइलर यूनिट शामिल हैं। वर्तमान उपयोगिताओं जैसे विखनिजीकृत जल, इंस्ट्रुमेंट एयर, नाइट्रोजन को टीबीपी तक विस्तारित करती हैं।

प्रोसेस में उत्पन्न हाइड्रोक्लोराइड के अवशोषण के लिए अधिक एन-ब्यूटानोल की उपस्थिति में टीबीपी संश्लेषित प्रोसेस किया जाता है। यह अधिक एन-ब्यूटानोल को मुख्य टीबीपी प्रोसेस से बैच आसवन द्वारा पुनःप्राप्त किया जाता है। इस प्रोसेस में, पुनःप्राप्त एन-ब्यूटानोल आर्द्रता सहित संदूषित रहता है। पुनःप्राप्त एन-ब्यूटानोल का पुनःचक्रण होता है और टीबीपी संश्लेषण की अगली बैच में पुनः उपयोग में लिया जाता है। लेकिन इसे पुनः उपयोग में लेने से पहले इसे पानी से संदूषित करना आवश्यक है। इसलिए इस उद्देश्य के लिए ब्यूटानोल शुद्धिकरण प्रणाली के अलग यूनिट का उपयोग किया जाता है। इस यूनिट में मुख्यतः दो आसवन स्तंभ, संघनित्रों, निस्तारित्र, उत्पाद कूलर एवं अन्य ऊष्मा विनिमायकों, भरण और उत्पाद वैसेल और ट्रांसफर पंप शामिल हैं।

अक्टूबर, 2010 में टीबीपी संयंत्र को स्थापित एवं कमीशनन किया गया। तब से संयंत्र प्रचालनरत है और उत्पाद की आवश्यकता को पूरी कर रहा है ।

भारी जल की क्या उपयोगिता है?

भारी जल का मुख्य उपयोग नाभिकीय संयन्त्रों में होने वाली नाभिकीय विघटन क्रियाओं के दौरान उत्पन्न न्यूट्रॉन को अवशोषित करने के लिये मंदक के रूप में होता है। जिससे की नाभिकीय ऊर्जा का नियन्त्रित उत्पादन और शान्तिपूर्ण उपयोग किया जा सके।

भारी जल का सूत्र क्या होता है?

D2Oभारी जल / सूत्रnull

भारत में भारी जल कहाँ बनाया जाता है?

भापासं, बड़ौदा भारी पानी संयंत्र, बड़ौदा, निष्कर्षण के लिए मोनो-थर्मल अमोनिया-हाइड्रोजन समस्थानिक विनिमय प्रक्रम का उपयोग करते हुए भारत में भारी पानी (D2O) का उत्पादन करने में और तत्पश्चात ड्यूटेरियम समस्थानिक को नाभिकीय ग्रेड तक समृद्ध करने में अग्रणी संयंत्र है।

भारी जल का रासायनिक नाम क्या है?

[2H]2-waterभारी जल / IUPAC आईडीnull

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