गणेशजी को तुलसी छोड़कर सभी पत्र-पुष्प प्रिय हैं! गणपतिजी को दूर्वा अधिक प्रिय है। अतः सफेद या हरी दूर्वा चढ़ानी चाहिए। दूः+अवम्, इन शब्दों से दूर्वा शब्द बना है। 'दूः' यानी दूरस्थ व 'अवम्' यानी वह जो पास लाता है। दूर्वा वह है, जो गणेश के दूरस्थ पवित्रकों को पास लाती है।
गणपति को अर्पित की जाने वाली दूर्वा कोमल होनी चाहिए। ऐसी दूर्वा को बालतृणम् कहते हैं। सूख जाने पर यह आम घास जैसी हो जाती है। दूर्वा की पत्तियां विषम संख्या में (जैसे 3, 5, 7) अर्पित करनी चाहिए। पूर्वकाल में गणपति की मूर्ति की ऊंचाई लगभग एक मीटर होती थी, इसलिए समिधा की लंबाई जितनी लंबी दूर्वा अर्पण करते थे। मूर्ति यदि समिधा जितनी लंबी हो, तो लघु आकार की दूर्वा अर्पण करें, परंतु मूर्ति बहुत बड़ी हो, तो समिधा के आकार की ही दूर्वा चढ़ाएं। जैसे समिधा एकत्र बांधते हैं, उसी प्रकार दूर्वा को भी बांधते हैं। ऐसे बांधने से उनकी सुगंध अधिक समय टिकी रहती है। उसे अधिक समय ताजा रखने के लिए पानी में भिगोकर चढ़ाते हैं। इन दोनों कारणों से गणपति के पवित्रक बहुत समय तक मूर्ति में रहते हैं।
गणेशजी पर तुलसी कभी भी नहीं चढ़ाई जाती। कार्तिक माहात्म्य में भी कहा गया है कि 'गणेश तुलसी पत्र दुर्गा नैव तु दूर्वाया' अर्थात गणेशजी की तुलसी पत्र और दुर्गाजी की दूर्वा से पूजा नहीं करनी चाहिए। भगवान गणेश को गुड़हल का लाल फूल विशेष रूप से प्रिय है। इसके अलावा चांदनी, चमेली या पारिजात के फूलों की माला बनाकर पहनाने से भी गणेश जी प्रसन्न होते हैं। गणपति का वर्ण लाल है, उनकी पूजा में लाल वस्त्र, लाल फूल व रक्तचंदन का प्रयोग किया जाता है।
सांसारिक कामनाएं इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति को होती हैं। कई कामनाओं का संबंध मूल आवश्यकता से होता है। इसी इच्छापूर्ति की प्राप्ति के लिए व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार प्रयास करता है। लेकिन भौतिक प्रयत्न से भी फल नहीं मिलने पर आशा ईश्वरीय चमत्कार की ओर जाती है।
जिसकी प्राप्ति तभी संभव होती है जब आपेक्षक सविधि कोई अनुष्ठान करता है। इसमें गणेशजी की साधना शीघ्र फलदायी है। इनके अनेक प्रयोग में उनको प्रिय दूर्वा के चढ़ाने की पूजा शीघ्र
फलदायी और सरलतम है।
इसे गणेशोत्सव के प्रथम शुभ दिन प्रारंभ करना चाहिए।
इसे गणेशजी की प्रतिष्ठित प्रतिमा पर करें।
21 दूर्वा लेकर इन नाम मंत्र द्वारा गणेशजी को गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप व नैवेद्य अर्पण करके एक-एक नाम पर दो-दो दूर्वा चढ़ाना चाहिए।
यह क्रम प्रतिदिन जारी रखें...
नियमित समय पर करने से जो आप चाहते हैं वह सब प्राप्त होता है।
मन की
प्रार्थना गणेशजी से निरंतर करते रहने पर वह शीघ्र पूर्ण हो जाती है।
इसमें प्रयोग के अतिरिक्त विघ्ननायक पर श्रद्धा व विश्वास रखना चाहिए।
ॐ कुमारगुरवे नमः
दूर्वा यानी दूब जैसा कोई अन्य पदार्थ, इस धरा पर हो ही नहीं सकता, जो देव मनुष्य व पशु तीनों को ही प्रिय है। नन्ही दूब के आचमन से देवता, दूब आच्छादित मैदानों पर भ्रमण से मनुष्य और भोजन के रूप में पशु इसको पाकर प्रसन्न रहते हैं। खेल के मैदान, मंदिर, बाग-बगीचे में उगी नन्ही दूब का मखमली हरा गलीचा सबको अपनी ओर आकर्षित करता है। सबके पांव से रगड़ खाती, विपरीत परिस्थितियों में भी जीवित रहती, देवताओं को प्रिय व मानव के लिए मंगलकारी व आरोग्य प्रदायक है।
अनेक युगों से हरी कोमल दूब का मैदान सर्वप्रिय और उद्यानों का आवश्यक अंग रहा है। अथर्ववेद तथा कौटिल्य अर्थशास्त्र में हरी व कोमल दूब का संदर्भ मिलता है। पुराणों में भी नंदन वन का वर्णन मिलता है। वाटिकाओं में समतल व ऊंची-नीची घुमावदार भूमि पर कोमल हरी दूब लगी हुई है, जिस पर कुलांचे मारते हिरण घास चर रहे हैं और गाय बड़े चाव से घास खाकर जुगाली कर रही है।
सम्राट विक्रमादित्य और अशोक के काल में भी हरित घास मैदानों की बहुलता थी। मुगलकाल से पूर्व व पश्चात उद्यान कला अत्यंत विकसित थी। हरे घास के मैदानों पर विभिन्न प्रकार के घुमावदार बेलबूटों युक्त कटाव के उभार उपवनों शोभा बढ़ाते थे। कश्मीर, मैसूर के वृंदावन गार्डन के हरित घास के उपवन, हैदराबाद में फिल्म सिटी के बगीचों की हरित आभा की झलक से मन पुलकित हो जाता है।
पौराणिक संदर्भों से ज्ञात होता है कि क्षीर सागर से उत्पन्न होने के कारण भगवान विष्णु को यह अत्यंत प्रिय रही और क्षीर सागर से जन्म लेने के कारण लक्ष्मी की छोटी बहन कहलाई।
विष्च्यवादि सर्व देवानां, दूर्वे त्वं प्रीतिदायदा।
क्षीरसागर सम्भूते, वंशवृद्धिकारी भव।।
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आपको बता दें कि गणेशजी को तुलसी छोड़कर सभी पत्र-पुष्प पसंद हैं. गणेश जी को दूर्वा अधिक पसंद है. अत: सफेद या हरी दूर्वा चढ़ानी चाहिए. दूर्वा वो चीज है जो गणेश के दूरस्थ पवित्रकों को पास लाती है.
कोमल दूर्वा होनी चाहिए
सबसे महत्वपूर्ण बात गणपति जी को अर्पित की जाने वाली दूर्वा कोमल होनी चाहिए. ऐसी दूर्वा को बालतृणम् कहते हैं, जो सूख जाने पर घास जैसी हो जाती है. गणेश जी को दूर्वा की पत्तियां विषम संख्या में (जैसे 3, 5, 7) अर्पित करनी चाहिए. गणेश जी को सबसे ज्यादा गुड़हल लाल फूल विशेष रूप से प्रिय है.
पानी में भिगोकर चढ़ाए
दूर्वा को ज्यादा समय ताजा रखने के लिए पानी में भिगोकर चढ़ाते हैं. इन दोनों कारणों से गणपति के पवित्रक बहुत समय तक मूर्ति में रहते हैं.
तुलसी से पूजा नहीं करना चाहिए
गणेशजी की पूजा करते टाइम सबसे ज्यादा ध्यान रखने वाली बात ये है कि उन्हें तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए. कार्तिक माहात्म्य में भी कहा गया है कि 'गणेश तुलसी पत्र दुर्गा नैव तु दूर्वाया' अर्थात गणेशजी की तुलसी पत्र और दुर्गाजी की दूर्वा से पूजा नहीं करनी चाहिए.