Answer: गणित की पाठ्य पुस्तक :
प्रत्येक विषय में पाठ्य–पुस्तक का होना अनिवार्य होता है। पाठ्य–पुस्तक में विषय का संगठित ज्ञान एक विशेष क्रम में एक निश्चित स्थान पर संग्रहीत रहता है। पाठ्य–पुस्तक के द्वारा छात्रों एवं शिक्षकों को यह ज्ञात होता है कि अमुक कक्षा में कितनी पाठ्य–वस्तु का अध्ययन तथा अध्यापन करना जरूरी है। पाठ्य–पुस्तक के आधार पर कक्षा कार्य को दिशा मिलती है एवं छात्रों का मूल्यांकन सम्भव हो पाता है। स्पष्टतया पुस्तक छात्रों एवं शिक्षकों दोनों के लिए समान रूप से उपयोगी होती हैं। यह कक्षा में शिक्षण–अधिगम परिस्थितियों पर स्पष्ट प्रभाव अंकित करती है। इसलिए निष्कर्षतया कहा जा सकता है। (जैसी पाठ्य–पुस्तक होगी वैसी ही शिक्षण–अधिगम परिस्थितियाँ।)
गणित की पाठ्य–पुस्तकें अध्यापन की क्रिया को प्रभावशाली बनाने एवं छात्रों को अध्ययन में सुगमता प्राप्त करने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं, लेकिन वर्तमान में पुस्तकें छात्रों के स्तर, रुचि तथा आवश्यकताओं के अनुरूप न होकर सिर्फ सम्पूर्ण विषय–वस्तु तक ही सीमित होती हैं। गणित की पाठ्य–पुस्तक का उद्देश्य सिर्फ गणित विषय–वस्तु का संग्रहण मात्र न होकर छात्रों का सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास, खुले मस्तिष्क का निर्माण, आलोचनात्मक अभिवृत्ति का विकास आदि होना चाहिए।
गणित की पाठ्य–पुस्तक की आवश्यकता तथा महत्त्व :
हमारी शिक्षा प्रणाली के अन्तर्गत पाठ्य–पुस्तकों को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। पाठ्य–पुस्तक शिक्षक का वह, महत्त्वपूर्ण साधन है जिसके द्वारा वह ज्ञानार्जन करा सकता है। हर्ल आर. डगलस ने पाठ्य–पुस्तक के महत्त्व को निम्न शब्दों में व्यक्त किया है–
"विशाल बहुमत के अन्तिम विश्लेषण के अनुसार शिक्षक क्या एवं कैसे पढ़ायें की शक्तिशाली निर्धारक पुस्तक हैं–
प्रो. बार एवं बर्टन ने लिखा है–“पुस्तक एक महत्त्वपूर्ण शैक्षिक साधन है।"
गणित शिक्षण में पाठ्य–पुस्तक की जरूरत को हम निम्न बिन्दुओं में समाहित कर सकते हैं–
1. शिक्षक के मार्गदर्शन के लिए– अगर गणित की पाठ्य–पुस्तक में उत्तम तथा नवीन अध्यापन विधियों के द्वारा विषय–वस्तु का संकलन किया गया है तो उस पाठ्य–पुस्तक के द्वारा शिक्षक को उचित मार्गदर्शन प्राप्त होता है।
2. उद्देश्यों को उचित प्राप्ति के लिए– पाठ्य–पुस्तक के सहयोग से ही शिक्षक शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करता है। वह शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु सफल प्रयास करता है एवं पाठ्य–पुस्तकों की मदद से ही उचित मार्गदर्शन प्राप्त करके ही उद्देश्यों की प्राप्ति में सफल हो सकता हैं !
3. शिक्षण प्रयासों को सफल बनाने के लिए– कक्षा में शिक्षक के प्रयासों को सफल बनाने के लिए पाठ्य–पुस्तक जरूरी होती है। पुस्तक की मदद से शिक्षक छात्रों को ‘सरल से कठिन की ओर' 'ज्ञात से अज्ञात की ओर' के सिद्धान्तों के अनुरूप ज्ञान प्रदान करता है जिससे वह अपने प्रयासों में अधिकतम सफलता प्राप्त कर सके।
4. नवीन ज्ञान एवं विचारों की जानकारी के लिए– अगर पाठ्य–पुस्तक की समीक्षा समय–समय पर की जाती है तो गणित शिक्षा में नवीन विचारों एवं आविष्कारों की जानकारी पाठ्य–पुस्तकों द्वारा अच्छी तरह से प्राप्त हो सकती है।
5. शिक्षण सहायक सामग्री- के रूप में अध्यापक को जिस तरह अपने शिक्षण कार्य में अन्य प्रभावी शिक्षण सामग्री की आवश्यकता पड़ती है, उसी तरह अच्छे उदाहरणों एवं अभ्यासार्थ प्रश्नों के संग्रह के लिए पाठ्य–पुस्तक की आवश्यकता होती है।
6. स्वाध्याय में सहायक– विद्यार्थियों को अपने खाली समय में घर पर स्वयं की समस्याओं को हल करने में पाठ्य–पुस्तक की आवश्यकता पड़ती है। इसकी मदद से छात्र अपने ज्ञान को अधिक स्पष्ट तथा विस्तृत कर सकते हैं। स्वाध्याय की मदद से छात्र अपनी दैनिक समस्याओं को गणित के उपयोग द्वारा हल कर सकते हैं।
7. विषय–वस्तु की समीक्षा करने हेतु– गणित में प्राप्त ज्ञान की जाँच छात्र स्वयं आवश्यकतानुसार दोहराकर कर सकते हैं। इस तरह पुस्तक के द्वारा छात्र स्वयं दोहराकर प्राप्त ज्ञान की समीक्षा कर सकते हैं।
8. अभ्यास के लिए– पाठ्य–पुस्तक की मदद से विद्यार्थी विभिन्न सूत्रों, सिद्धान्तों आदि के ज्ञान को पुनः घर पर दोहरा सकते हैं एवं अपने द्वारा अर्जित ज्ञान की जाँच स्वयं अभ्यास द्वारा कर सकते हैं। इस तरह पाठ्य–पुस्तक द्वारा छात्रों को अभ्यास द्वारा सीखने का अवसर मिलता है
अतः हम कह सकते हैं कि गणित शिक्षण में शिक्षक एवं शिक्षार्थी दोनों हेतु पाठ्य–पुस्तक अति आवश्यक तथा महत्त्वपूर्ण है। इसकी सहायता से छात्र अपनी क्षमता, योग्यता एवं रुचि के अनुसार सीख सकते हैं। अत: उन्हें शिक्षक की गति के अनुसार सीखने हेतु बाध्य नहीं होना पड़ता है, लेकिन फिर भी पुस्तक शिक्षक का स्थान नहीं ले सकती, सिर्फ शिक्षक के कार्य को ज्यादा उपयोगी तथा सरल बना सकती है।
गणित शिक्षण में पाठ्य–पुस्तक का उपयोग शिक्षण सामग्री के रूप में छात्रों एवं शिक्षकों के मार्गदर्शन के लिए होता है। छात्रों को अभ्यास कार्य के लिए प्रश्न एवं समस्यायें एक स्थान पर संकलित मिल जाती हैं, जिससे छात्रों में स्वाध्याय की आदत का विकास होता है पुस्तक द्वारा समय की बचत तथा अनावश्यक प्रयासों से छुटकारा मिल जाता है।
गणित की अच्छी पाठ्य–पुस्तक की विशेषताएँ :
गणित की पाठ्यपुस्तकों में कुछ ऐसे गुणों एवं विशेषताओं का समावेश होना आवश्यक है, जो पाठ्य पुस्तक की गुणवत्ता की दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण हैं। एक अच्छी गणित की पाठ्य–पुस्तक की विशेषताओं को निम्न मुख्य बिन्दुओं के अन्तर्गत समाहित किया जा सकता हैं–
1. पाठ्यक्रम पर आधारित– पाठ्य–पुस्तक शिक्षा विभाग द्वारा निर्धारित सम्पूर्ण पाठ्यक्रम पर आधारित होनी चाहिए। पाठ्यक्रम के सभी अंगों जैसे– प्रकरण, पाठ इत्यादि पर उसमें उचित ध्यान दिया जाना चाहिए।
2. बालकों की आवश्यकताओं तथा सुविधाओं के अनुरूप– पाठ्य–पुस्तक जिस स्तर के लिए लिखी गई हो वह उस स्तर हेतु निर्धारित गणित शिक्षण के उद्देश्यों के अनुकूल होनी चाहिए। पाठ्य–पुस्तक छात्रों को दैनिक जीवन की आवश्यकताओं, सामाजिक एवं प्राकृतिक वातावरण को ध्यान में रखकर बनायी गयी होनी चाहिए उदाहरणार्थ पुस्तक में आधुनिक माप, तौल, इकाइयों तथा दशमलव प्रणाली का उपयोग किया जाना चाहिए।
3. लेखक– वर्तमान में कॉलेजों के प्राध्यापक तथा अन्य व्यक्ति सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने के लिए पुस्तक लिखते हैं, जबकि सिर्फ योग्य तथा अनुभवी लेखकों द्वारा ही पुस्तकें लिखी जानी चाहिएँ। NCERT के अनुसार अधिकारियों को चाहिए कि वे लेखकों के लिए उचित अनुभव तथा योग्यताएँ निर्धारित करें। अधिक अच्छा हो, अगर पुस्तकों के लेखन हेतु समिति का गठन किया जाए, जिससे पुस्तकों में सभी विशेषज्ञों के विचारों का समायोजन परिलक्षित हो सके।
4. प्रकरणों का उचित क्रम– पाठ्य–पुस्तक में विषय सामग्री की व्यवस्था मनोवैज्ञानिक में एवं तार्किक क्रम के अनुरूप होनी चाहिए। विभिन्न प्रकरणों को 'सरल से कठिन की ओर', 'ज्ञात से अज्ञात की ओर' के सिद्धान्तों का परिपालन करते हुए क्रमबद्ध होने चाहिएँ।
5. भाषा शैली– उत्तम पाठ्यपुस्तक में भाषा छात्रों की आयु मानसिक स्तर के अनुकूल होनी चाहिए। प्रायः यह देखा गया है कि निम्न कक्षाओं की पाठ्य–पुस्तकों में कठिन तथा क्लिष्ट भाषा का प्रयोग किया जाता है, को पूर्णतया अनुचित है क्योंकि छात्र अपने मनोनुकूल भाषा को न पाकर अध्ययन में अरुचि प्रकट करते हैं एवं उनकी उपलब्धि प्रभावित होती है। अनेक बार प्रश्नों तथा उदाहरणों की भाषा इतनी कठिन एवं अस्पष्ट होती है कि छात्र उन्हें समझ नहीं पाते हैं।
6. उत्तम तथा नवीन विधियों का समोवश– पाठ्य–पुस्तक में छात्रों एवं शिक्षकों के मार्गदर्शन के लिए गणित शिक्षण की आधुनिक तथा व्यावहारिक विधियों यथा विश्लेषणात्मक आगमन विधि, प्रयोगशाला तथा खोज विधि पर बल दिया जाना चाहिए। प्रायः पुस्तकों में निगमन एवं संश्लेषण विधियों का उल्लेख होता है जिससे छात्रों में तर्क शक्ति, विचार शक्ति और खोज की प्रवृत्ति का समुचित विकास नहीं हो पाता है। इससे गणित सिर्फ प्रत्यास्मरण की सीमा में ही सिमटा रहता है, छात्रों में बोध एवं अनुप्रयोग का क्षेत्र प्रविष्ट नहीं हो पाता है।
7. उदाहरणों द्वारा स्पष्टीकरण– पाठ्य–पुस्तक में पर्याप्त उदाहरण दिये गये होने चाहिएँ जिससे छात्रों एवं शिक्षकों को उचित मार्गदर्शन प्राप्त हो सके। उदाहरणों में विभिन्नता होनी चाहिए एवं एक से अधिक विधियों का प्रयोग किया जाना चाहिए। उदाहरण शुद्ध, उचित एवं विस्तृतता तथा विभिन्नता लिए हुए हों। पाठ्य–पुस्तक में प्रकरण में समाहित सभी तरह के प्रश्नों से संबंधित उदाहरण दिये जाने चाहिएँ।
8. अभ्यास प्रश्नों का स्तर क्रम– पाठ्य–पुस्तकों में किये गये कार्य के अभ्यास के लिए उचित व्यवस्था होनी चाहिए। नवीन प्रकार के वस्तुपरक प्रश्न पाठ के अन्त में दिये जाने चाहिएँ। ये प्रश्न छात्रों की योग्यतानुसार, मानसिक स्तरानुसार एवं क्रमिक रूप में होने चाहिएँ। प्रश्नों को तीन वर्गों में विभाजित किया जाना चाहिए। पहले वर्ग के प्रश्न ऐसे हों जिन्हें कक्षा के सभी छात्र हल कर सकें, जिससे छात्रों में आत्मविश्वास जागृत होगा एवं रुचि बढ़ेगी। दूसरे वर्ग के प्रश्न ऐसे हों जिन्हें औसत स्तर के सभी विद्यार्थी हल कर सकें। तीसरे वर्ग में वे प्रश्न हों जिन्हें सिर्फ कुछ प्रतिभावान छात्र ही हल कर सकें, इससे प्रत्येक स्तर के छात्र के योग्य अभ्यास कार्य मिल पायेगा तथा पाठ्य–पुस्तक ज्यादा उपयोगी सिद्ध हो पायेगी।
9. प्रश्नों के उत्तर– प्रश्नों के उत्तर शुद्ध होने चाहिएँ। उत्तर प्रश्नों के साथ–साथ न देकर, अन्त में दिये जाने चाहिएँ। किसी प्रकरण विशेष की समाप्ति पर भी उत्तर दिये जा सकते हैं। साथ–साथ उत्तर लिखे होने से छात्र उत्तर देखने में जल्दी करते हैं।
10. अन्य विशेषताएँ -
(i) सूत्र, संकेत, पारिभाषिक शब्द एवं नामावली वहीं दिये जायें, जहाँ इनका अधिक से अधिक प्रयोग हो और राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य हों।
(ii) पुस्तक सचित्र होनी चाहिए, इसमें चित्र, चार्ट,ग्राफ इत्यादि यथास्थान तथा उचित मात्रा में प्रयोग हों।
(iii) ज्यादा कठिन प्रश्नों के हल के लिए उचित संकेत दिये जाने चाहिएँ।
(iv) पुस्तक के अन्त में तालिकाएँ तथा आवश्यक सूचनाएँ दी जानी चाहिएँ।
(v) पाठ्य–पुस्तक की जिल्द आकर्षक एवं मजबूत होनी चाहिए और सिलाई उपयुक्त हो जिससे मेज पर रखकर पुस्तक खोली जा सके।
(vi) पुस्तक में आवश्यकतानुसार समय–समय पर संशोधन किये जाने चाहिएँ।
(vii) पुस्तक में योजना समवाय, अधिन्यास, सहायक सामग्री का प्रयोग, प्रयोगात्मक कार्य हेतु सुझाव दिये होने चाहिएँ।
(viii) पुस्तक का मूल्य बहुत ज्यादा नहीं होना चाहिए।
(ix) पाठ्य–पुस्तक में प्रयुक्त कागज उचित स्तर का होना चाहिए।
(x) पाठ्य–पुस्तक में छपाई संबंधी अशुद्धियाँ न हों, छपाई सुन्दर तथा अक्षर स्पष्ट एवं बड़े हों।
इस तरह एक अच्छी पाठ्यपुस्तक द्वारा अध्यापक एवं विद्यार्थी दोनों के समय की बचत होती है और दोनों का उचित मार्गदर्शन होता है। गणित अध्यापकों को यह ध्यान रखना चाहिए कि वह पाठ्य–पुस्तक का दास न बने वरन् पाठ्य–पुस्तक उसकी दास है। अर्थात् शिक्षक को परिस्थिति के अनुसार पाठ्य–पुस्तक में दिये गये क्रम तथा समस्याओं में जावश्यक सुधार करके ही छात्रों को ज्ञान देना चाहिए तभी पाठ्य पुस्तक का सदुपयोग सम्भव हो सकता है। पाठ्य–पुस्तकें शिक्षक का स्थान कभी नहीं ले सकतीं, वरन् पाठ्य पुस्तकों के द्वारा शिक्षा का कार्य सरल तथा छात्रों के लिए अधिक उपयोगी हो जाता है। इस तरह शिक्षक के प्रयत्न को सफल बनाने में पाठ्य–पुस्तक महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इसकी मदद से शिक्षक उचित मार्गदर्शन कर सकता है।
गणित की पाठ्य–पुस्तक की सीमाएँ :
गणित की पाठ्य–पुस्तक के उपयोग की अपनी विशिष्ट सीमाएँ हैं। यह कभी भी शिक्षक तथा अनुदेशन प्रक्रिया का स्थान नहीं ले सकती। इसके सीमित लाभ हैं। यहाँ इसकी सीमाओं का उल्लेख समीचीन है।
गणित की पाठ्य–पुस्तक एक शिक्षण–सामग्री है जिसकी उपयोगिता तथा प्रभाव शिक्षक द्वारा उसके उपयोग पर निर्भर है।
पाठ्य–पुस्तक कभी भी गणित के शिक्षक का स्थान ग्रहण नहीं कर सकती।
पाठ्य–पुस्तक गणित के शिक्षार्थियों हेतु अधिगम संस्थितियों का सृजन नहीं करती। वह तो इन संस्थितियों के सृजन के लिये सामग्री उपलब्ध कराती है। सृजन कार्य तो शिक्षक की ही विलक्षणता है।
प्रायः विद्यार्थी पाठ्य–पुस्तक पर ही निर्भर रहते हैं। वे कक्षा में क्रियाशील नहीं रहते। इससे अनुदेशन की प्रभाविता पर निषेधात्मक प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है।
विद्यार्थी गणित की कक्षा में अनुपस्थित रहने पर हो रही हानि का अनुभव नहीं करते, क्योंकि उन्हें विषय–वस्तु निर्धारित पाठ्य–पुस्तक में उपलब्ध हो जाती है। वे कक्षा की नियमितता के प्रति लापरवाह हो जाते हैं।
विद्यार्थी अभ्यासार्थ प्रश्नों के ही उत्तर पाठ्य–पुस्तक में पढ़ कर रटते हैं। वे गणित का वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने के प्रति उदासीन हो जाते है।
पाठ्य–पुस्तक की विषय–सामग्री को याद करना ही विद्याथों माणित सीखने का एकमात्र उद्देश्य समझते हैं।
शिक्षक पाठ्य–पुस्तक के ही अध्ययन तक सीमित हो जाते हैं। वे सन्दर्भ पुस्तकों के अध्ययन के प्रति लापरवाह हो जाते हैं।
शिक्षक अनुदेशन में मूल्यांकन तथा गृह–कार्य में सिर्फ पाठ्य–पुस्तक से ही चुने गये प्रश्न देते हैं। स्थानीय परीक्षाओं में भी वे इन्हीं प्रश्नों को देते हैं। इससे विषय ज्ञान परिसीमित हो जाता है।
पाठ्य–पुस्तक का मूल्यांकन :
गणित विषयों की पाठ्य–पुस्तकों के मूल्यांकन हेतु कई उपकरण उपलब्ध हैं, पर इनके आधार हण्टर एवं वॉजेल द्वारा निर्मित मूल स्कोर बोर्ड तथा चैक लिस्ट ही हैं। इसलिए इन्हें यहाँ मूल रूप में दिया जा रहा है। वांछित संशोधन से कोई भी अध्ययनकर्ता अपने लिए उपकरण इनके आधार पर कर सकता है। गणित विषयों की पाठ्य–पुस्तकों के मूल्यांकन के लिए निर्मित कई उपकरणों में हण्टर द्वारा प्रतिपादित स्कोर कार्ड एवं वॉजेल द्वारा निर्मित जाँच सूची यहाँ पेश किये जा रहे हैं। ये पाठ्य–पुस्तक के चयन के लिए कसौटी बन सकते हैं।
जार्ज डब्ल्यू. हण्टर द्वारा प्रतिपादित अंकन कार्ड– यपि यह सन् 1934 में निर्मित प्रारंभिक उपकरण है, पर इसकी उपादेयता अब भी कम नहीं है।
जार्ज डब्ल्यू. हण्टर
द्वारा प्रतिपादित अंकन कार्ड
लुइस एफ वॉनेल– यह वॉजेल का स्पॉट चैक इवैल्युएशन स्केल नाम से जाना जाता है। इनके उपयोगकर्ता का पक्षपातरहित होने के साथ–साथ लेखन, अनुसंधान के पर्याप्त अनुभव होने चाहिए।
वॉजेल का स्पॉट चैक इवैल्युएशन स्केल
पाठ्य–पुस्तक..............
लेखक...........
प्रकाशक.............
कॉपीराइट अधिकार वर्ष............
कीमत.................
प्राप्तांक.....
I. लेखक की शैक्षिक योग्यता (मुखपृष्ठ, प्राक्कथन, भूमिकाएँ)
(1) लेखक ने विषय का शिक्षण किया है।
(2) लेखक के पास संबंधित क्षेत्र में पर्याप्त डिग्रियाँ हैं
(3) हस्तलिखित को तैयार करने में लेखक ने विशेषज्ञों की मदद ली है।
(4) लेखक ने कक्षा में विषय–वस्तु का पूर्वान्वेषण किया है।
(5) लेखक के विचार, सिद्धान्त तथा दर्शन मेरे विद्यालय के इन पक्षों के साथ मेल' खाते हैं
प्राप्तांक........
II. संगठन [विषय सूची, प्राक्कथन, अनुभाग, शीर्षक, इकाइयाँ (अध्याय देखें)]
(1) एक केन्द्रीय विचार सम्पूर्ण पाठ्य–पुस्तक के साथ सह–संबंधित है।
(2) पाठ्य–पुस्तक को जिन इकाइयों में संगठित किया गया है वे विद्यार्थी की अभिरुचि तथा दैनिक जीवन पर आधारित हैं।
(3) इसके संगठन में मेरे विद्यालय में पढ़ाई गई विषय–सामग्री शामिल है।
(4) प्रत्येक अध्याय के अन्त में प्रश्नों तथा समस्याओं को उनकी कठिनाई स्तर के आधार पर पेश किया गया है।
प्राप्तांक........
III. विषय–वस्तु (विषय–सूची, इण्डेक्स)
(1) मेरे कोर्स की सभी इकाइयाँ पाठ्य–पुस्तक में हैं।
(2) पाठ्य–पुस्तक के एक भाग की विषय–वस्तु दूसरे भाग की विषय–वस्तु के अनुकूल है।
(3) वांछित स्थलों पर विज्ञान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि उपलब्ध है।
(4) प्रकरण गणित में नवीनतम प्रगति को प्रकाशित करते हैं।
(5) गणित के सामाजिक महत्त्व पर बल दिया गया है। प्राप्तांक..............
IV. सामग्री का प्रस्तुतीकरण (किन्हीं पाँच अध्यायों की प्रस्तावना अथवा समस्याएँ देखें)
(1) नवीन अध्याय को प्रस्तावित करने में आगमन उपागम का उपयोग है।
(2) समस्या समाधान तथा वैज्ञानिक विधि पर बल दिया गया है।
(3) लेखक की शैली औपचारिक और रुचिकर है।
(4) विशिष्ट पदों को रेखांकित किया गया है।
(5) महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों को मोटे अक्षरों में लिखा गया है। प्राप्तांक..........
V. निश्चितता (अनुसूची में कोई पाँच अध्याय देखें एवं पढ़ें)
(1) सूची में लिखित सभी शीर्षकों पर सामग्री उपलब्ध है।
(2) ये वैज्ञानिक दृष्टि से सही हैं।
(3) आलंकारिक अभिव्यक्तियों को छोड़ा गया है।
(4) वैयक्तीकरण भी छोड़ा गया है।
(5) किसी तरह की अस्पष्टता नहीं है। प्राप्तांक...........
VI. पठन–योग्यता (कोई भी सामग्री पढ़ें)
(1) प्रति वाक्य शब्द संख्या औसतन 21 है।
(2) 60% सरल या मिश्र हैं जो कि जटिल नहीं हैं
(3) इसमें कम से कम 100 शब्दों वाले कम से कम 4 व्यक्तिगत सन्दर्भ हैं।
(4) प्रति 100 शब्द से अधिक पर प्रत्यय नहीं हैं। प्राप्तांक............
VII. अनुकूलता (विषय–सूची तथा कोई पाँच इकाइयाँ पढ़ें)
(1) यह मन्द, औसत एवं तेज छात्रों हेतु उपयुक्त है।
(2) ग्रामीण तथा शहरी पृष्ठभूमि के विद्यार्थियों हेतु यह उपयोगी है।
(3) इसको इस प्रकार व्यवस्थित किया गया है कि किसी भी अध्याय को छोड़ा जा सकता है
(4) लेखक ने विवादास्पद विषय का निष्पादन विवरण दिया है।
(5) यह मेरी सामुदायिक आवश्यकताओं के अनुरूप है। प्राप्तांक.............
VIII. शिक्षण सामग्रियाँ (अध्याय के अन्त में, परिशिष्ट तथा मैन्युअल देखें)
(1) संक्षिप्तीकरण, प्रश्न, समस्याएँ उपयुक्त ढंग से दिये गये हैं।
(2) शिक्षक विद्यार्थियों हेतु सन्दर्भ हैं
(3) परिशिष्ट उपयोगी है।
(4) शिक्षक मैन्युअल सन्तोषप्रद है
(5) संबंधित फिल्मों की पूर्व–सूची उपलब्ध है। प्राप्तांक.............
IX. उद्धरण (किन्हीं 10 उद्धरणों का अध्ययन करें)
(1) ये आधुनिकतम हैं।
(2) फोटोग्राफ बड़े तथा स्पष्ट हैं
(3) ये सही तरह से अंकित तथा नामांकित हैं।
(4) चित्र ठीक तरह से प्रस्तुत हैं
(5) प्रत्येक उद्धरण के साथ दी गई विषय–वस्तु उपयोगी अधिगम युक्ति है।
प्राप्तांक......
X. उपस्थिति (मुखपृष्ठ तथा पृष्ठों को देखें)
(1) पृष्ठ आकर्षक है।
(2) आकार तथा प्रकार विद्यार्थियों हेतु अनुपयुक्त नहीं है।
(3) उद्धरणों के स्थल उपयुक्त हैं।
(4) पृष्ठ खुले रूप में लिये गये हैं, इनमें शब्द–भीड़ नहीं है।
(5) अक्षरों का आकार स्तर के अनुकूल है। प्राप्तांक...............
कुछ अनुभवी शिक्षकों द्वारा पाठ्य–पुस्तकों का मूल्यांकन निम्नलिखित योग्यता निर्धारण मापनी द्वारा किया जाता है। इसमें पाठ्य–पुस्तक के लिए शिक्षक, विद्यार्थी, अन्य की अभिवृत्ति का आंकलन किया जाता है। यह आंकलन अभिवृत्ति गुणांक की सहायता से किया जाता है।
अभिवृत्ति गुणांक = स्तरीय + औसतन + स्तरीय नहीं
योग्यता निर्धारण मापनी स्तरीय औसतन स्तरीय नहीं
(1) संगठन
(a) मुखपृष्ठ–शीर्षक तथा उसकी विषय वैधता
(b) विषय–वस्तु का वर्गीकरण
(c) विषय–वस्तु–मौलिकता तथा नवीनतम
(d) मुद्रण तथा कागज की गुणवत्ता
(2) प्रस्तुतीकरण
(a) भाषा तथा वाक्य आकार
(b) शब्दावली तथा प्रयुक्त पद
(c) प्रस्तुतीकरण में नयापन
(d) इकाई, उप–इकाइयाँ, अनुभाग आदि
(3) दृश्य प्रस्तुतीकरण तथा शिक्षण सामग्रियाँ
(a) स्पष्टता
(b) यथार्थता
(c) चित्रों की उपयोगिता
(4) उदाहरणों तथा उद्धरणों का औचित्य
(a) छात्र जीवन से संबंध
(b) स्पष्टता तथा यथार्थता
(c) आकर्षक तथा रुचिकर
(5) अभ्यासार्थ तथा अधिगम स्थायित्व हेतु प्रश्न
(a) विषय–वस्तु से संबंध
(b) शिक्षण उद्देश्यों से संबंध
(c) शिक्षार्थी हेतु उपयोगी
(6) सन्दर्भ, पदावली आरूप
(a) सत्यता, वैधता
(b) प्रयुक्ति और उपयोग
(c) औचित्य।